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Granthaalayah: Open Access Research Database
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View Resource DANGERS OF PESTICIDES ON WILDLIFE ECOLOGY

Wildlife includes plants, insects, fish, amphibians, reptiles, birds and mammals and many other animals. Each species has certain niche for its specific food, shelter and breeding site. The place where specie has all of its living requirements becomes that species habitat. The wild life habitats include native and man-made, exist in urban settings, in agricultural fields and in the wilderness....

https://doi.org/10.29121/granthaalayah.v3.i9SE.2015.3205
View Resource जैव विविधता व प्रदूषण

एक समय था जब कि पृथ्वी पर कृषि व्यवस्था तथा उस पर उत्पादित होने वाले खाद्य पदार्थो की मात्रा अथाह थी, लेकिन आज उस स्थिति में परिवर्ततन आ गया है और अब वह केवल पर्याप्त की श्रेणी में आ गयी है । संतोष यही है कि यह सामग्री पुनः प्राप्त की जा सकती है अतः यदि बहुत बुद्धिमता से उत्पादन का प्रबंध हो तो पूरे विष्व में रहने वाले प्राणी वर्ग को उसके खाने-पीने और अन्य पदार्थो की पूर्ति की जा सकेगी पर इसके...

https://doi.org/10.29121/granthaalayah.v3.i9SE.2015.3207
View Resource ‘अक्षय उर्जा‘ का उपयोग आर्थिक विकास और पर्यावरण विकास दोनों के लिए आवष्यक (भारत के विषेष संदर्भ में)

आधारभूत संरचना के बिना कोई भी अर्थव्यवस्था विकसित नही हो सकती है। उर्जा एक महत्वपूर्ण आधारभूत संरचना है, जो विकास को गति प्रदान करता है, क्योकि सभी क्षेत्रों कृषि, उद्योग, परिवहन आदि में उर्जा संसाधनों की आवष्यकता पड़ती है। यहाॅ तक कि किसी देश के आर्थिक विकास का अनुमान उस देश में उर्जा-संसाधनों की प्रति व्यक्ति खपत से लगाया जाता है और माना जाता है कि जिस देष में उर्जा की प्रति व्यक्ति खपत जितनी...

https://doi.org/10.29121/granthaalayah.v3.i9SE.2015.3208
View Resource विकास के लिए पर्यावरण के क्षेत्र में मनुष्य की नैतिक भूमिका

मानव जीवन का समूचा अस्तित्व पर्यावरण पर आधारित है। जहाँ पर्यावरण का सन्तुलन विकास मार्ग का सन्तुलन विकास मार्ग की प्रगति को प्रषस्त करता है। वहीें पर्यावरण का असन्तुलन व्यक्ति ही नहीं समूचे समाज और मानव संसाधनों के विनाष का प्रमुख कारण है। सुन्दरलाल बहुगुणा का कहना है कि ‘‘पहले मनुष्य प्रकृति का ही एक अभिन्न हिस्सा था। प्रकृति से उसका रिष्ता अहिंसक और आत्मीयता का था। स्वार्थ और भोग संस्कृति के...

https://doi.org/10.29121/granthaalayah.v3.i9SE.2015.3209
View Resource प्राकृतिक संसाधन एवं उनका संरक्षण

प्रकृति ने मनुष्य को सभी जीवनोपयोगी संसाधन मुक्त हस्त से प्रदान किये हैं। आदिमानव अपनी समस्त आवष्यकताओं की पूर्ति के लिये पूरी तरह प्रकृति पर निर्भर करता था, किंतु आदि मानव से आधुनिक मनुष्य बनने की विकासयात्रा में मनुष्य ने प्राकृतिक संसाधनों का भरपूर दोहन किया फलस्वरूप प्रकृति की अकूत संपदा धीरे-धीरे समाप्त होने लगी। इस क्रम में विभिन्न प्रजातियाँ विलुप्त प्रजातियों की श्रेणी में पहुँच गयीं, शेष...

https://doi.org/10.29121/granthaalayah.v3.i9SE.2015.3210
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