एक समय था जब कि पृथ्वी पर कृषि व्यवस्था तथा उस पर उत्पादित होने वाले खाद्य पदार्थो की मात्रा अथाह थी, लेकिन आज उस स्थिति में परिवर्ततन आ गया है और अब वह केवल पर्याप्त की श्रेणी में आ गयी है । संतोष यही है कि यह सामग्री पुनः प्राप्त की जा सकती है अतः यदि बहुत बुद्धिमता से उत्पादन का प्रबंध हो तो पूरे विष्व में रहने वाले प्राणी वर्ग को उसके खाने-पीने और अन्य पदार्थो की पूर्ति की जा सकेगी पर इसके लिये प्राकृतिक विविधता (छंजनतमष्े क्पअमतेपजल) का उपयोग करना होगा जिसे आज हम जैविक विविधता के नाम से नामित करते हैं ।
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