प्रकृति ने मनुष्य को सभी जीवनोपयोगी संसाधन मुक्त हस्त से प्रदान किये हैं। आदिमानव अपनी समस्त आवष्यकताओं की पूर्ति के लिये पूरी तरह प्रकृति पर निर्भर करता था, किंतु आदि मानव से आधुनिक मनुष्य बनने की विकासयात्रा में मनुष्य ने प्राकृतिक संसाधनों का भरपूर दोहन किया फलस्वरूप प्रकृति की अकूत संपदा धीरे-धीरे समाप्त होने लगी। इस क्रम में विभिन्न प्रजातियाँ विलुप्त प्रजातियों की श्रेणी में पहुँच गयीं, शेष बची हुई प्रजातियों और स्वयं मनुष्य प्रजाति को बचाये रखने के लिये भी प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण अत्यावष्यक हो गया है। इस हेतु विभिन्न सुरक्षात्मक कदम उठाने के साथ-साथ आवष्यकता ऐसे युवाओं की है जो प्रकृति के प्रति संवेदनषील हों तथा विषम परिस्थितियों में भी प्रकृति के सानिध्य में रहकर प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण का उत्तरदायित्व निभाने में सक्षम हों।
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