संगीत ंअर्थात् गायन, वादन और नृत्य अतिप्राचीन और ब्रह्मस्वरूप होने के कारण अलौकिक है । आद्यात्मिक संगीत जीवन को पवित्र बनाकर आत्मोन्नति द्वारा मोक्ष की ओर ले जानेवाला मार्ग है । नृत्य का आरंभ धर्म के मूल भाव से हुआ है । मनीषियों ने इसे परमानंद का आधार निरूपित किया है ।
नृत्य और गान को हमारे यहांॅं, मोक्ष प्राप्ति का श्रेष्ठतम साधन बताया गया है । कथक नृत्य जिसका अन्य नाम ही ‘नटवरी नृत्य’ है, इसका...
भारतीय शास्त्रीय नृत्य कथक की आरंभ से ही एक विशाल व समृद्ध परम्परा रही है। प्रारंभ से ही समय परिवर्तन के साथ-साथ कथक नृत्य में नवीन प्रयोग होते रहे और नृत्य परिवर्तित भी होता गया। सोलहवीं शताब्दी जिसे हम रीति-काल के नाम से पहचानते है उस समय तक कथक नृत्य पर राम व कृष्ण भक्ति का प्रभाव था तथा राम व कृष्ण लीलाओं ही कत्थक नृत्य का मुख्य आधार थी। सत्र्ाहवीं व अठारहवीं शताब्दी में जब कथक नर्तको को नवाबो...
सुर व संगीत के बिना सामान्य कलाकारों के लिए नृत्य करना मुश्किल कार्य है लेकिन मूक-बधिर कलाकारों के लिए यह उतना ही सहज हैं। मूक-बधिर कलाकारों के लिए सुर व संगीत का कोई प्रयोजन नहीं है। यह कलाकार संगीत की किसी तान पर नहीं थिरकते अपितु यह अपने कोरियोग्राफर के ईशारों पर थिरकते है।इनकी नृत्य विधा डान्स विदआऊट म्यूजिक की धारणा पर आधारित होती हैं।मूक-बधिरांे की सांकेतिक भाषा का अच्छा ज्ञान रखने वाला...
तनाव प्रबंधन का अर्थ कुछ ऐसी मनेावैज्ञानिक और शारीरिक क्रियाआंे की प्रणाली विकसित करने से है जिन्हें सीख कर मनुष्य के शरीर और मन पर पडने वाले दुष्प्रभावोें को कम किया जा सकता है। रिचर्ड लज़ारस तथा सुसैन फोक मेन के अनुसार जब मनुष्य के पास किसी लक्ष्य तक पहुंचने के लिए संसाधन कम होते है और पूरे किये जाने वाले काम बहुत अधिक होते है तो उसे तनाव होता है। वाॅल्टर कैनन तथा हैन्स सेल्ये ने मनुष्यों तथा...
मंच का उद्भव तभी से प्रारंभ हुआ जब से नृत्य प्रारंभ हुआ। नृत्य जब भी होता है प्रेक्षक होते ही है। नाट्य शास्त्र के दूसरे अध्याय में रंग मंडप के प्रकार बनाए गए हैं। जिसमें ज्येष्ठ (बड़ा), मध्यम (ज्येष्ठ से छोटा), कनिष्ट (सबसे छोटा)। उस काल में मंच व्यवस्था का उत्तम विवरण मिलता है जिसमें दर्षकों के बैठने के लिए हाॅल, स्टेज अर्थात् रंगभूमि उसके बाद नैपत्थ्य अर्थात ग्रीन रूम का भी वर्णन मिलता है।...