संगीत ंअर्थात् गायन, वादन और नृत्य अतिप्राचीन और ब्रह्मस्वरूप होने के कारण अलौकिक है । आद्यात्मिक संगीत जीवन को पवित्र बनाकर आत्मोन्नति द्वारा मोक्ष की ओर ले जानेवाला मार्ग है । नृत्य का आरंभ धर्म के मूल भाव से हुआ है । मनीषियों ने इसे परमानंद का आधार निरूपित किया है ।
नृत्य और गान को हमारे यहांॅं, मोक्ष प्राप्ति का श्रेष्ठतम साधन बताया गया है । कथक नृत्य जिसका अन्य नाम ही ‘नटवरी नृत्य’ है, इसका द्योतक है कि कथक नृत्य अपनी अभिव्यक्ति के लिए अधिकांशतः कृष्णचरित्र पर ही निर्भर है । यू ंतो कथक में परंपरागत अनेकों पद, ठुमरी, भजन इत्यादि पर भाव प्रदर्शन किया ही जाता रहा है किंतु कुछ वर्षो से कला के हर क्षेत्र में नवीन प्रयोग द्वारा अपनी अपनी कला का एक अपूर्व श्रृंगार कला साधकोें द्वारा किया जा रहा है जिसे कला (प्रशंसकों) द्वारा भी सहर्ष सराहा एवं स्वीकारा जा रहा है । कथक नृत्य ने भी शास्त्र की सीमा में रहते हुए भाव प्रदर्शन के क्षेत्र में नित नवीन प्रयोग किये है
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