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Granthaalayah: Open Access Research Database
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Fundamental of Arts

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View Resource रंगों का मानव जीवन पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव

इस संसार में जो कुछ भी अस्तित्व में है जो दृष्टव्य है सबका अपना-अपना रंग है। चाहे बात अंतरिक्ष, ग्रह, नक्षत्रों, पृथ्वी पर पाये जाने वाले पशु, पक्षियों वृक्षों, नदियों, मानवों, मानव निर्मित वस्तुओं आदि किसी की भी हो, सभी वस्तुएँ अनेकानेक रंगों की होने के कारण अपना स्वतन्त्र अस्तित्व रखती है। वे लोग भाग्यशाली है जिन्हें वर्णो का बोध है। वर्ण बोध का कारण ही हमें इस संसार के सौन्दर्य का आभास होता...

https://doi.org/10.29121/granthaalayah.v2.i3SE.2014.3597
View Resource रंगो का मनोवैज्ञानिक प्रभाव (किशोरियों के संदर्भ में एक अध्ययन)

रंगों के प्रति मानव का अनुराग आज से नहीं बल्कि सदियों से रहा है। रंग प्रकृति एवं ईष्वर की सबसे बहुमूल्य देन है। रंग के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। प्रकृति द्वारा रचित अनगिनत वस्तुओं के विविध रंग प्रेरणा के स्त्रोत रहे हैं। इन्हें देखकर मनुष्य ने उसे चित्रकलाओं, मूर्तिकलाओं, नाट्य एवं साहित्य में उकेरा है। रंगों से हमें निरन्तर ऊर्जा एवं चैतन्य शक्ति प्राप्त होती है, निष्चित ही...

https://doi.org/10.29121/granthaalayah.v2.i3SE.2014.3598
View Resource जैन धर्म में रंगो की दार्शनिक भूमिका

रंगो का अपना अनूठा संसार अपनी भाषा होती है। ‘रंग’ शब्दों, वस्तुओ को अर्थ प्रदान कर उन्हे प्रतिबिम्बित करते है। रंगो के द्वारा ही वस्तु, शब्दों के गुण व भावों को आसानी से समझा जा सकता है। रंग अपने आप में अनेक अर्थो को समाये रहता है। रंगों के अभाव में चित्रकला का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है। भावों को व्यक्त करने का रंग महत्वपूर्ण साधन है। मूर्तिकला में भी प्रस्तर वर्ण का विशेष ध्यान रखना आवश्यक...

https://doi.org/10.29121/granthaalayah.v2.i3SE.2014.3599
View Resource रंग संवेदना - एक मनोवैज्ञानिक विश्लेषण

मनोविज्ञान में प्रयोगशालीय अन्वेषण से पहले ही संवेदना का प्रयोगात्मक अध्ययन प्रारम्भ हुआ । टिचनर, बोरिंग, जैस्ट्रो, एलेश यंग, हेल्महोल्ज, हेरिंग, लैड, फैंक्रलिन आदि ने संवेदना का प्रायोगात्मक अध्ययन किया । विभिन्न संवेदनाओं का प्रयोगात्मक अध्ययन विज्ञान के विभिन्न विषयों में उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में ही आरम्भ हो गया था। वुण्ट 1874 ने संवदेना और प्रत्यक्षीकरण में अंतर स्पष्ट किया। उन्नीसवीं...

https://doi.org/10.29121/granthaalayah.v2.i3SE.2014.3600
View Resource ‘कवि की रंगशाला’

सृष्टा, रचेता, विधाता जिस भी नाम से पुकारें उस परम शक्ति को जो आकाश को नीला, धरती को हरा, सूरज को स्वर्ण और चाँद को रजत रंग में रंग देता है। वन प्रान्तर में पुष्पावलि के रंग अनगिनत है और सागर में जल-जीवों के रंग अद्भुत। रंगहीन जल भी उसी का चमत्कार है और गंगा, यमुना और सरस्वती का श्वेत, श्याम और लाल रंग भी उसी की अभिव्यक्ति है।कवि भी रचेता है ‘कविर्मनीषी परिभू स्वयंभू’ जीवन के जगत के, प्रकृति के...

https://doi.org/10.29121/granthaalayah.v2.i3SE.2014.3603
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