सृष्टा, रचेता, विधाता जिस भी नाम से पुकारें उस परम शक्ति को जो आकाश को नीला, धरती को हरा, सूरज को स्वर्ण और चाँद को रजत रंग में रंग देता है। वन प्रान्तर में पुष्पावलि के रंग अनगिनत है और सागर में जल-जीवों के रंग अद्भुत। रंगहीन जल भी उसी का चमत्कार है और गंगा, यमुना और सरस्वती का श्वेत, श्याम और लाल रंग भी उसी की अभिव्यक्ति है।कवि भी रचेता है ‘कविर्मनीषी परिभू स्वयंभू’ जीवन के जगत के, प्रकृति के रंगो को कवि पूरी संवेदन शीलता से संयोजित करता है। काव्य में मुख्य रूप से तीन रंग आधारभूत रंग है- श्वेत, श्याम, रतनान-सफेद, काला और लाल।
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