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Granthaalayah: Open Access Research Database
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View Resource बदलता पर्यावरण और मानव.व्यवहार

मानव और पर्यावरण के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध है। प्रायः हम किसी बुरे कार्य के लिए व्यक्ति को दोष देते है किन्तु सच्चाई यह है कि उसमें पर्यावरण भी उतना ही दोषी होता है, अतः पर्यावरण की क्षति के कारण आज मानव का अस्तित्व संकट में पड़ गया है। अब पर्यावरण चेतना को जगाना अतिआवष्यक हो गया है क्योंकि पर्यावरण भौतिक रूप में नहीं सामाजिक रूप मंे भी मानव समाज को घेरे हुए है। किसी व्यक्ति के व्यवहार को देखकर उसके...

https://doi.org/10.29121/granthaalayah.v3.i9SE.2015.3212
View Resource सामाजिक मुद्दे एवं पर्यावरण

मनुष्य अपने पर्यावरण के साथ ही जन्म लेता है। और उसके बीच ही अपना जीवन यापन करता है। दूसरे शब्दों में सारा समाज पर्यावरण के बीच अर्थात प्रकृति की गोद में अपना जीवन यापन करता है। किन्तु इस जीवनयापन के लिए मनुष्य मुख्य रूप से पर्यावरण पर निर्भर करता है। अपने जीवन को सुचारू रूप से चलाए रखने एवं उसे और अधिक बेहतर बनाने के लिए मनुष्य निरंतर प्रयास करता है तथा इसके लिए वह प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करता...

https://doi.org/10.29121/granthaalayah.v3.i9SE.2015.3213
View Resource जैव विविधता और उसका संस्थितिक एवं असंस्थितिक संरक्षण

सामान्य शब्दों में जैव विविधता से तात्पर्य सजीवों (वनस्पति और प्राणी) में पाए जाने वाले जातीय भेद से है। व्हेल मछली से लेकर सूक्ष्मदर्षी जीवाणु तक मनुष्य से लेकर फफंूद तक जैव विविधता का विस्तार पाया जाता है। पर्यावरणीय ह्रास के कारण जैव विविधता का क्षय हुआ है। मानव के अनियंत्रित क्रियाकलापों, बिजली, लालच और राजनीतिक कारणांे से जैव विविधता का विनाष बहुत तेजी से हो रहा है। लगातार बढ़ती जनसंख्याा,...

https://doi.org/10.29121/granthaalayah.v3.i9SE.2015.3214
View Resource पर्यावरणीय मनोविज्ञान

मानव एवं उसके पर्यावरण के अन्तर्सम्बन्धों के अध्ययन पर केन्द्रित एक बहुविषयी क्षेत्र है। यहाँ पर पर्यावरण ;मदअपतवदउमदजद्ध शब्द की वृहद परिभाषा में प्राकृतिक पर्यावरणए सामाजिक पर्यावरणए निर्मित पर्यावरणए शैक्षिक पर्यावरण तथा सूचना.पर्यावरण सब समाहित हैं। विगत वर्षों में पर्यावरण के विभिन्न पक्षों को लेकर व्यापक शोध कार्य हुए हैं और यह विषय क्रमशः एक समृद्धि अध्ययन क्षेत्र बनता जा रहा है इस विषय...

https://doi.org/10.29121/granthaalayah.v3.i9SE.2015.3215
View Resource ‘‘राजीव गाँधी जल प्रबधंन मिषन का ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक योगदान‘‘ (विकासखण्ड निवाली जिला बड़वानी (म.प्र.) के विषेष सन्दर्भ में)

भारतीय कृषि मानसून का जुआं है और यह जुआं भारतीय अर्थषास्त्र और भारतीय जनता सनातन काल से अपने कंधे पर रखे हुए षून्य में ताक रही है। वस्तु स्थिति यह है कि जल के अभाव मेे भारतीय कृषि ही क्या भारत के उद्योग धंधें, कल-कारखाने, और समूची अर्थव्यवस्था ही ठप हो जाती है। पानी के अभाव में गहराता विद्युत संकट, सूखे पड़े खेत और बंद पड़े कल-कारखानों ने एक ओर हमारे राष्ट्रीय उत्पाद को प्रभावित किया है वहीं दूसरी...

https://doi.org/10.29121/granthaalayah.v3.i9SE.2015.3217
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