भारतीय कृषि मानसून का जुआं है और यह जुआं भारतीय अर्थषास्त्र और भारतीय जनता सनातन काल से अपने कंधे पर रखे हुए षून्य में ताक रही है। वस्तु स्थिति यह है कि जल के अभाव मेे भारतीय कृषि ही क्या भारत के उद्योग धंधें, कल-कारखाने, और समूची अर्थव्यवस्था ही ठप हो जाती है। पानी के अभाव में गहराता विद्युत संकट, सूखे पड़े खेत और बंद पड़े कल-कारखानों ने एक ओर हमारे राष्ट्रीय उत्पाद को प्रभावित किया है वहीं दूसरी तरफ हमारा अंतर्राष्ट्रीय निर्यात भी गड़बड़ाया है। फलतः एक ओर विदेषी मुद्रा की कमी की आपूर्ति और दूसरी ओर वर्तमान समस्याओं से निपटने के लिए भारी वित्तीय प्रबंधन।
”जल जो न होता तो ये जग जाता जल।”
हमारे यहाॅँ षास्त्रों में जल को “आदि-षक्ति”, अमृत आदि कहा गया है। समस्त संसार जल के बिना अधुरा है। जल मानव षरीर का ही अंग नही अपितु जीव-जन्तु पेड़-पौधे, आदि सजीव चित्रों का एक अंग है और जल के बिना सभी जीव-जन्तु पेड़ पौधे अर्थात सभी सजीव प्राणी जिसमें मनुष्य भी षामील हैॅ समाप्त हो जायेंगें।
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