रंग हमारे दिमाग और शरीर पर अत्यधिक प्रभाव डालता है।सूर्य से प्राप्त उर्जा रंगों में समाहित होती है।प्रकृति का सौन्दर्य हर घण्टे, हर दिन, हर वर्ष परिवर्तित होता रहता है। प्रकृति का हर रंग प्राणी का मित्र है बस आवश्यकता है धैर्यपूर्वक प्रकृति की मूक भाषा को सीखनेे, समझने, और आत्मसात करने की । खुली जगह में देखें, प्रकृति ने कैसे रंगों का ताना बाना बुना है रंगों के एक शेड को दूसरे शेड से कितनी...
वात्सायन मुनि के कामसूत्र (2 ई-3 ई शताब्दी ई0) नामक ग्रन्थ में तीसरे अध्याय के अन्तर्गत चैसठ कलाओं का विवेचन किया गया है। जिनमें प्रथम स्थान पर गीतं (संगीत) द्वितीय स्थान पर बाद्यं (वाद्य- वादन), तृतीय स्थान पर नृत्यं (नाच) तथा चतुर्थ स्थान पर आलेख्यं अर्थात ‘चित्रकला’ को माना है। ‘कामसूत्र के प्रथम प्राधिकरण के तीसरे अध्याय की ‘जयमंगला’ नामक टीका (11-12वी शताब्दी) पण्डित यशोधर द्वारा प्रस्तुत की...
मानव जीवन का उद्देश्य क्रियाशीलता अथवा निर्माण में निहित है। इससे रहित जीवन शून्य से अधिक नहीं होता। एक कलाकृति में मानव अपने अनुभवों को निश्चित चित्र तत्वों एवं सौन्दर्य सिद्धान्तों के आधार पर ही अभिव्यक्ति करता है। इस रूप सजृन की प्रक्रिया को कला की संज्ञा प्रदान की जाती है। हृदय अनुभूति के परिणाम स्वरूप ही कला की भाषा भावों से परिपूर्ण है।
भाव का अर्थ होता है, भावना, उद्वेग, आवेग, संवेग,...
संसार के समस्त प्राणियों मे केवल मानव एक ऐसा प्राणी है जो सोन्दर्य की अनुभूति करता है। मानव सभ्यता मे कला की उत्पत्ति मानव मन मे सोन्दर्य के प्रति जिज्ञासा के कारण हुई है। इसके माध्यम से मनुष्य अपने भाव, मन की अनुभूति व्यक्त करके आन्नद महसूस करता है अर्थात उसकी सृतनात्म प्रवृति की अभिव्यक्तिी कला के माध्यम से करता है। इसमें चित्र,मूर्ति अभिनय,गायन,वादन एवं हात्तकोथत शामिल है। इसका उद्देश न केवल...
व्यक्ति की अभिव्यक्ति बचपन से लेकर जवानी फिर अधेड़ अवस्था तक के सफर में, विभिन्न रूप लेती है। इस यात्रा में बहुत सारे तत्व अपने विकास के दौरान घुसपैठ करते हैं और यह एक तरह का आभार है। जो सिर्फ मनुष्य के जीवन में ही नहीं घटता बल्कि कलाकार की अभिव्यक्ति में भी लक्षित होता है। जहां हर व्यक्ति अपनी विचार धाराओं के अनुरूप खुद को खोजता, व्यक्त करता है। खुद के मापदण्डों के अनुसार अपनी मूल्य दृष्टि विकसित...