रंग हमारे दिमाग और शरीर पर अत्यधिक प्रभाव डालता है।सूर्य से प्राप्त उर्जा रंगों में समाहित होती है।प्रकृति का सौन्दर्य हर घण्टे, हर दिन, हर वर्ष परिवर्तित होता रहता है। प्रकृति का हर रंग प्राणी का मित्र है बस आवश्यकता है धैर्यपूर्वक प्रकृति की मूक भाषा को सीखनेे, समझने, और आत्मसात करने की । खुली जगह में देखें, प्रकृति ने कैसे रंगों का ताना बाना बुना है रंगों के एक शेड को दूसरे शेड से कितनी सुन्दरता के साथ मिलाया है । आसमान का नीलापन कितना शान्तिदायक है और कितने प्रशस्त होने की भावना से ओत प्रोत है। पृथ्वी की हरीतिमा कैसी शीतल और तुष्टि प्रदायनी है। सुर्योदय और सूर्यास्त के समय का सुनहरापन और लालिमा का सौंदर्य अपने आप में अनूठापन लिए है । जबसे मानव सभ्यता का जन्म हुआ तभी से मनुष्य शोख और सुन्दर रंगों के महत्व से परिचित है। मनुष्य रंगों का प्रयोग अपने परिधानों में और अपने घरों को सजाने- संवारने में करता रहा है। मानव के लिए रंग बिरंगे घरों वाला उसका हरियाला गांव और नगर उसके लिए आनन्ददायक होता था। लेकिन जैसे जैसे मानव ने तरक्की की वैसे वैसे आधुनिक नगरों में भूरे, ग्रे रंगों का प्रयोग बढ़ा, नगरों ने सीमेंट-कंक्रीट के जंगल का रूप ले लिया और मानव में नीरसता, उदासी बढ़ने लगी। अच्छे स्वास्थ्य और प्रसन्नता की कामना कर रहे हो तो रंगों को अपने जीवन में शामिल कर लिजीए। आप थके हों, उदास हो या क्रोधित हो तब आप समझ लें कि आप गलत रंगों से घिरे है तुरन्त शान्त, उत्साहवर्धक रंगों का प्रयोग करें और व्यवहार में परिवर्तन अनुभव करें ।जीवन को रंगारंग बनायें, रंग जीवन की अनिवार्य आवश्यकता है। बेरंग और बेनूर जीवन किस काम का? प्रचलित कहावतों और मुहावरों में रंगों को व्यक्ति के अलग अलग मनोभावों को दर्शाने के लिए किया जाता है जैसे- नीला पीला होना, हाथ पीले करना, आँख्ेंा लाल होना, सावन के अंधे को हरा हरा दिखाई देना, रंग बदलना, रंगीन मिज़ाज, काला पड़ना, कालिख पोतना, काले से सफेद करना, घाव हरे होना, कागज काला करना, बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम, लाल होना, रंग उड़ना, रंग में भंग करना आदि। रंग से व्यक्ति के मनोभाव प्रकट होते है और रंगों से ही मनोभावों को परिवर्तित भी किया जा सकता है।
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