A MUSICAL ANALYSIS OF THE KAGAON AWARENESS STORIES
कुमाऊँ की जागर गाथाओं का सांगीतिक विवेचन
DOI:
https://doi.org/10.29121/granthaalayah.v5.i3.2017.1780Keywords:
कुमाऊँ, जागर, जगरिया, डगरिया, जागर गान, जागरण, आह्वानAbstract [English]
Since ancient times, Uttarakhand has been considered as a place of meditation for ascetics and the Puranicists have divided the Himalayas into five divisions of Nepal, Kurmanchal, Kedar, Jalandhar and Kashmir. Uttarakhand is the intermediate part of the entire region. In mythological geography, Kurmanchal is named as 'Manaskhand' and Garhwal is named as 'Kedarkhand'.
Uttarakhand is also known as the place of worship of innumerable folk deities. Kumaon has the special significance of local deities. The local divi-deities from which the background is made here are called Kul Devta, Ishta Devta, Gram Devta. On this, the unwavering faith and immense faith of the people is reflected here, these folk deities, where being angry with injustice, have the ability to give birth to many kinds of sufferings, sorrows, crises and vices. When pleased by, they provide all kinds of prosperity and happiness. Hence, it is a practice to create 'jagara' to invoke / incarnate the deities based on the local jagara gathas. A number of songs and songs are sung by Jagr for achieving any purpose, protection from evil, freedom from disease and peace and happiness. Vedana Pradhan also gets real knowledge of Kumaon practice, tradition, society, culture, religion, misery, pain, orthodoxy and social problems easily in these awareness stories.
The purpose of the presented research paper is to analyze and bring to light the musical forms of the Jagat stories.
आदिकाल से ही उŸाराखण्ड तपस्वियों की साधना स्थली माना गया है तथा पुराणकारों ने हिमालय को नेपाल, कुर्मांचल, केदार, जलन्धर और कश्मीर पाँच खण्डों में विभाजित किया है। उत्तराखण्ड इस पूरे क्षेत्र का मध्वर्ती भू-भाग है। पौराणिक भूगोल में कुर्मांचल को ‘मानसखण्ड’ और गढ़वाल को ‘केदारखण्ड‘ नामों से अभिहित किया गया हैं।
उŸाराखण्ड असंख्य लोक देवी-देवताओं की आराधना स्थली के नाम से भी जाना जाता है। कुमाऊँ में स्थानीय देवी-देवताओं का विशेष महŸव है। यहाँ की पृष्ठभूमि जिन स्थानीय दवी-देवताओं सेे निर्मित हुई है उन्हें कुल देवता, ईष्ट देवता, ग्राम देवता कहा जाता है। इन पर यहाँ के जनमानस का अटूट विश्वास व अपार आस्था परिलक्षित होती है ये लोक देवता जहाँ अन्याय से क्रोधित होने पर अनेक प्रकार की पीडा़ओं, दुखों, संकटों तथा विपŸिायों को जन्म देने की सामथ्र्य रखते हैं वही दूसरी ओर प्रायश्चित व नियमित पूजा-अनुष्ठान के द्वारा प्रसन्न किए जाने पर सब प्रकार की समृद्धि एव सुख प्रदान कर देतेे हैं। अतः यहाँ स्थानीय जागर गाथाओं के आधार पर देवताओं का आवाह्न/अवतरण करने के लिए ‘जागर’ लगाने की प्रथा है। जागर द्वारा किसी उद्देश्य की प्राप्ति, अनिष्ट से रक्षा, रोग-व्याधि से मुक्ति एवं सुख-शांति हेतु अनेक प्रकार की गीत, गाथाएँ गाई जाती हैं। वेदना प्रधान इन जागर गाथाओं में कुमाऊँ की प्रथा, परम्परा, समाज, संस्कार, धर्म, दुख-दर्द, रूढिवादिता, सामाजिक समस्याओं का वास्तविक ज्ञान भी आसानी से हो जाता है।
प्रस्तुत शोध पत्र का उद्देश्य जागर गाथाओं के सांगीतिक स्वरूपों का विश्लेषण कर उन्हें प्रकाश में लाना है।
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