STAGE TECHNOLOGY IN THE MODERN ERA
आधुनिक युग में मंच की तकनीक
DOI:
https://doi.org/10.29121/granthaalayah.v3.i1SE.2015.3416Keywords:
रंगमंच, भाषाAbstract [English]
The specific place where the artist sits for the presentation of any art or specific ideas is called the stage. This is also called theater because pigmentation is its main subject. In Western countries or the English language, it is called a stage. It seems that theater was prevalent among the deities even before the emergence of humans. Like Kailash festival of Lord Shiva, Mata Vagishwari sitting on a peacock with a veena in her hand and dancing in the court of Indra to Gandharva, Kinnar, and Apsaras only indicate the existence of the stage. According to the tradition of Indian music and drama, theater is first mentioned in the famous scripture Natya Shastra of Sanskrit literature. In ancient times, when the sage Muni used to do penance, he used to be in a tomb at some high place. Similarly, kings and emperors etc. used to address the meeting only after sitting on any highest posture. Because art is an essential part of life, it is natural to develop artistic elements along with the development of civilization and culture. A modern form of stage or theater can be achieved as a result of this long sequence of development.
किसी भी कला अथवा विशिष्ट विचारों की प्रस्तुति के लिए कलाकार जिस विशिष्ट स्थान पर विराजमान होते हैं उसे मंच कहा जाता है। रंजकता इसका प्रमुख विषय होने के कारण इसी को रंगमंच भी कहते हैं। पाश्चात्य देशों अथवा अंग्रेजी भाषा में इसे स्टेज कहा जाता है। ऐसा प्रतीत होता है कि मानव के उद्भव से पूर्व भी रंगमंच देवी देवताओं में प्रचलित था। जेसे भगवान शिव का कैलाश पर्व, माता वागीश्वरी का हस्त में वीणा लेकर मयूर पर बैठना तथा इन्द्र के दरबार में गांधर्व, किन्नर, एवं अप्सराओं को नृत्य आदि मंच के अस्तित्व की ओर ही संकेत करते हैं। भारतीय संगीत एवं नाट्य परम्परा के अनुसार सर्वप्रथम संस्कृत साहित्य के सुप्रसिद्ध ग्रंथ नाट्य शास्त्र में रंगमंच का उल्लेख मिलता है। प्राचीनकाल में ऋषि मुनि जब तपस्या करते थे तो किसी न किसी उच्च स्थान पर समाधिस्थ होते थे। इसी प्रकार राजा व सम्राट आदि भी किसी उच्चतम आसन पर आसीन होकर ही सभा को संबोधित किया करते थे। क्योंकि कला जीवन का एक अनिवार्य अंग है, अतः सभ्यता एवं संस्कृति के विकास के साथ-साथ कलात्मक तत्वों का विकास होना भी स्वाभाविक है। विकास के इसी लम्बे क्रम के परिणाम स्वरूप मंच अथवा रंगमंच का आधुनिक रूप प्राप्त हो सकता है।
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References
बजट के अनुसार तथा श्रोताओं की रूचि का ध्यान रखते हुए कलाकार का ठीक चुनाव और उससे अनुबन्धक। समय से काफी पहले हाॅल बुक करना या पंडाल बुक करना।
शहर के उत्साही एवं कलाप्रेमी कार्यकर्ताओं की समिति बनाकर उन्हें अलग-अलग कार्यो की जिम्मेदारी सौंपना।
मंच व्यवस्था, लाउडस्पीकर व्यवस्था, स्वागत व्यवस्था, जलपान व्यवस्था, आसनिक व्यवस्था, गेटकीपरों की डयूटी, आवश्यक प्रवेश पत्र तथा कार्यकर्ताओं के लिए पहचान पदक बनाना।
टिकट विक्रय के लिए केन्द्रों का चुनाव और मनोरंजन कर संबंधी औपचारिकताएं
शहर में पोस्टर या बैनर लगाने के लिए सबंधित विभाग से अनुमति लेकर निर्धारित एवं स्वीकृति स्थानों पर उनकी व्यवस्था
उच्च पदाधिकारी या कलाकार को मुख्य अतिथि के रूप में निमन्त्रित करने के लिए उनका स्वीकृति पत्र प्राप्त करना।
समारोह के लिए पुलिस का आवश्यक बन्दोबस्त करने के लिए नगर से संबंधित बनाने में कुछ सप्ताह पहले आवेदन पत्र भेजना।
फोटोग्राफ की व्यवस्था तथा समारोह की प्रेस विज्ञप्ति एवं तत्संबंधी विज्ञापन।
माइक्रोफोन तथा लाउडस्पीकर देर रात तक चलाने के लिए पुलिस विभाग से स्वीकृति पत्र लेना।
स्वागत सत्कार के लिए आवश्यक सामग्री का संग्रह
नगर के विशिष्ठ व्यक्ति, कलाकार, राजकीय अधिकारी तथा पत्रकारों के लिए निमंत्रण पत्र भेजना एवं उनके बैठने से संबंधित आरक्षित स्थान की व्यवस्था।
सम्मेलन को सुचारू रूप से चलाने के लिए प्रसन्नचित यो उद्घोषक का चुनाव और उसके लिए आवश्यक कार्यक्रम तैयार करना।
यदि कोई स्मारिका प्रकाशित करनी हो तो उसके छापने, विज्ञापन लेने तथा समारोह में उसके वितरण की व्यवस्था करना।
आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा समारोह की रिपोर्टिंग के लिए संबंधित अधिकारियों से आवश्यक पत्र व्यवहार ।
संगीत समारोह की समाप्ति के बाद प्रयुक्त साज-समान उचित रख रखाव और अखबारों के लिए चित्र व समाचार भेजने की त्वरित कार्यवाही ।
समारोह के पश्चात सम्मानित अतिथियों को धन्यवाद या उपर्युक्त बातों का ध्यान रखने से ही कोई आयोजन सफल होता है और मंच की प्रतिष्ठा बढ़ती है। मंच पर प्रस्तुत की जाने वाली कला को भरत ने यज्ञ बताया है। ‘नाटय शास्त्र’ में मंच पूजन और मंच प्रवेश का विस्तृत वर्णन दिया है और कहा है कि आँधी से प्रज्जवलित अग्नि भी इतनी शीघ्रता से भस्म नहीं करती जितनी तेजी से कला का अशुद्ध प्रयोग प्रयोक्ता को नष्ट कर डालता।
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