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Granthaalayah: Open Access Research Database
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Fundamental of Arts

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View Resource ‘‘चित्रकला में रंगों के माध्यम से भावनाओं का उन्नयन’’

चित्रकला में भावनाओं को सजग रखने में रंगो का विशेष महत्व होता है। रंग हमारे सुख-दुख उत्तेजना, भय, उल्लास आदि सभी भावनाओं के उद्वीपन में सहायक होते है। रंग मनुष्य के मनोभावों के रूपात्मक प्रस्तुतिकरण में सहायक होते है। रंग केवल चित्र की रंगत ही नही है, यह बसन्त के सौरभ को सूर्य के उत्ताप को, मेघों के गर्जन को और वर्षा से भीगी मिट्टी के सौधंे पन को भी व्यंजित करते है। रंग का तत्व जब समझ में आ जाता...

https://doi.org/10.29121/granthaalayah.v2.i3SE.2014.3574
View Resource वस्त्र अलंकरण में रंगों की पुरातन भूमिका

रंग वस्त्र आकल्पन (अलंकरण) का मूलाधार है। वस्त्र्ा के अनुरूप रंग द्रव्य¨ं ;कलमेद्ध का चयन और उनके प्रय¨ग की तकनीक, कलाकार अथवा रंगरेज के निजी दृष्टिक¨ण एवं उनके अनुभव पर आधारित ह¨ती है। रंग¨ं का, व्यक्ति की मन¨भावनाअ¨ं पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इन्हीं पहलुअ¨ं का अध्ययन करके वस्त्र्ा¨ं के विविध प्रकार के अनुसार रंगद्रव्य का सफलतापूर्वक प्रय¨ग किया जाता है। वस्त्र्ा रंगाई की कला अतिप्राचीन है।...

https://doi.org/10.29121/granthaalayah.v2.i3SE.2014.3575
View Resource जामिनी राय की कला में रंग योजना की भूमिका

जामिनी राय ने अपनी कला यात्रा के दौरान असंख्य चित्रों का निर्माण किया। इस निर्माण कार्य में शायद ही ऐसा कोई विषय हो जो जामिनी राय की तूलिका के माध्यम से प्रकट ना हो सका हो। कला के प्रति उनका समर्पण व उनकी निरन्तरता के कारण ही उन्होंने इतनी बड़ी संख्या में चित्रों का निर्माण किया। जामिनी राय ने अपने ही चित्रों को कई बार दोहराया है, इसलिये यह कह पाना बड़ा कठिन है कि कौन सा चित्र पहले का है, कौन सा बाद...

https://doi.org/10.29121/granthaalayah.v2.i3SE.2014.3577
View Resource संगीत की राग-रागिनियो का रंगो द्वारा मनभावन चित्रण

अर्थात् विभिन्न कलाओं की दृष्टि, अभिनय अंगोपाग आदि मिलकर एक परमचित्र का निर्माण करते हैं। क्योंकि सभी कलाओं में संगीत ही सबसे अधिक सूक्ष्म एवं भावप्रधान विशेषताओं से अंलकृत हैं। जैसे स्वर के गुण अथवा वाद्य यंत्रो को इस प्रकार बजाना कि अनुपात, संतुलन समरसता आलाप, तान लय ताल की दृष्टि से किसी राग-रागिनी का बारीक स्वर संयोजन और सुरीलापन ठीक प्रबलता, मात्रा और वैविध्य के साथ अभिव्यक्त हो जाये।साथ ही...

https://doi.org/10.29121/granthaalayah.v2.i3SE.2014.3578
View Resource चित्रकला की भाषा: रंग,रेखा एवं रुप

मनुष्य सामाजिक प्राणी होने के नाते सदैव इस प्रयत्न में रहा है कि वह अपनी अनुभुतीयों,भावनाओं तथा इच्छाओं को दूसरों से व्यक्त कर सके और दूसरों की अनुभुतीयों से लाभ उठा सके। इसके लिए उसे यह आवश्यकता पड़ी कि वह अपने को व्यक्त करने के साधनों तथा माध्यमों की खोज तथा निर्माण करे। इसी के फलस्वरुप भाषा की उत्पत्ति हुई और काव्य,संगीत,नृत्य, चित्रकला,र्मूिर्तकला इत्यादि कलाओं का प्रादुर्भाव हुआ। ये सभी हमारी...

https://doi.org/10.29121/granthaalayah.v2.i3SE.2014.3579
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