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Granthaalayah: Open Access Research Database
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Fundamental of Arts

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View Resource रंग एवं रसाभिव्यक्ति

मानव जीवन का उद्देश्य क्रियाशीलता अथवा निर्माण में निहित है। इससे रहित जीवन शून्य से अधिक नहीं होता। एक कलाकृति में मानव अपने अनुभवों को निश्चित चित्र तत्वों एवं सौन्दर्य सिद्धान्तों के आधार पर ही अभिव्यक्ति करता है। इस रूप सजृन की प्रक्रिया को कला की संज्ञा प्रदान की जाती है। हृदय अनुभूति के परिणाम स्वरूप ही कला की भाषा भावों से परिपूर्ण है। भाव का अर्थ होता है, भावना, उद्वेग, आवेग, संवेग,...

https://doi.org/10.29121/granthaalayah.v2.i3SE.2014.3564
View Resource रंगों की बढती कीमतों का तैलचित्र व्यवसाय पर प्रभाव - एक अध्ययन

संसार के समस्त प्राणियों मे केवल मानव एक ऐसा प्राणी है जो सोन्दर्य की अनुभूति करता है। मानव सभ्यता मे कला की उत्पत्ति मानव मन मे सोन्दर्य के प्रति जिज्ञासा के कारण हुई है। इसके माध्यम से मनुष्य अपने भाव, मन की अनुभूति व्यक्त करके आन्नद महसूस करता है अर्थात उसकी सृतनात्म प्रवृति की अभिव्यक्तिी कला के माध्यम से करता है। इसमें चित्र,मूर्ति अभिनय,गायन,वादन एवं हात्तकोथत शामिल है। इसका उद्देश न केवल...

https://doi.org/10.29121/granthaalayah.v2.i3SE.2014.3568
View Resource रंगों का मनोवैज्ञानिक प्रभाव एवं रंग चिकित्सा

जीवन का समूचा ताना-बाना रंगों से बना है, चाहे हमारे वस्त्र हांे, घर हो, या गाड़ी हो। सबकी पहचान रंगों के साथ है। रंगों का मनुष्य के जीवन और मन पर विशिष्ट प्रभाव होता है। रंग प्रकृति की बहुमूल्य देन है और मानव के जीवन का सौंदर्य भी। उषाकाल की लालिमा, नीलाभ नभ, भूरे पहाड़, तिनकों, पौधों और पेड़ों की हरिताभा, फीरोज़ी समुद्र- सबकुछ विशिष्ट और अद्भुत। मनुष्य और प्रकृति का संबंध भी अटूट है। कभी बसंती पीला...

https://doi.org/10.29121/granthaalayah.v2.i3SE.2014.3570
View Resource चित्रकला में रंग (प्रागैतिहासिक काल से वर्तमान काल तक के परिपे्रक्ष्य में )

‘रंग’ शब्द के उच्चारण मात्र से ही हम पाते हैं कि हमारे आस-पास का वातावरण रंगीन हो गया है। यदि जीवन में रंग का समावेश नहीं होता तो मनुष्य जीवन उल्लास, अभिलाषा, रस एवं सौंदर्य से कोसों दूर होता और ऐसे प्राणहीन जीवन की कल्पनामात्र से भय उत्पन्न होने लगता है। चित्रकला में ‘रंग’ का महत्वपूर्ण योगदान है, रंग के अभाव में चित्रकला संपूर्ण नहीं हो सकती। उसमें एक अद्भूत सौंदर्य और आकर्षण होता है, जो दर्शक...

https://doi.org/10.29121/granthaalayah.v2.i3SE.2014.3571
View Resource मधुबनी लोक चित्रकला की विशेषताएॅं एवं रंगों का अदभुत संयोजन

मिथिलांचल की मधुबनी ल¨क चित्र्ाकला के माध्यम से ल¨कचित्र्ा परम्परा का निर्वाह आज भी किया जा रहा है। यहाँ की ल¨क कला श्©ली वंश परम्परा के आधार पर आज भी गतिशील है। मधुबनी ल¨क चित्र्ाकला की विदेश¨ं में काफी मांग है ल्¨किन वह अपने ही देश में उपेक्षित है। दुर्भाग्य की बात है कि जिनके हाथ में हुनर है, वे ग्रामीण कलाकार आमत©र पर गरीब हैं। देश के कला-जगत् की नजर इस पर नहीं गई, जबकि ‘‘जापान के हासेभावा ने...

https://doi.org/10.29121/granthaalayah.v2.i3SE.2014.3573
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