संसार के समस्त प्राणियों मे केवल मानव एक ऐसा प्राणी है जो सोन्दर्य की अनुभूति करता है। मानव सभ्यता मे कला की उत्पत्ति मानव मन मे सोन्दर्य के प्रति जिज्ञासा के कारण हुई है। इसके माध्यम से मनुष्य अपने भाव, मन की अनुभूति व्यक्त करके आन्नद महसूस करता है अर्थात उसकी सृतनात्म प्रवृति की अभिव्यक्तिी कला के माध्यम से करता है। इसमें चित्र,मूर्ति अभिनय,गायन,वादन एवं हात्तकोथत शामिल है। इसका उद्देश न केवल...
व्यक्ति की अभिव्यक्ति बचपन से लेकर जवानी फिर अधेड़ अवस्था तक के सफर में, विभिन्न रूप लेती है। इस यात्रा में बहुत सारे तत्व अपने विकास के दौरान घुसपैठ करते हैं और यह एक तरह का आभार है। जो सिर्फ मनुष्य के जीवन में ही नहीं घटता बल्कि कलाकार की अभिव्यक्ति में भी लक्षित होता है। जहां हर व्यक्ति अपनी विचार धाराओं के अनुरूप खुद को खोजता, व्यक्त करता है। खुद के मापदण्डों के अनुसार अपनी मूल्य दृष्टि विकसित...
जीवन का समूचा ताना-बाना रंगों से बना है, चाहे हमारे वस्त्र हांे, घर हो, या गाड़ी हो। सबकी पहचान रंगों के साथ है। रंगों का मनुष्य के जीवन और मन पर विशिष्ट प्रभाव होता है। रंग प्रकृति की बहुमूल्य देन है और मानव के जीवन का सौंदर्य भी। उषाकाल की लालिमा, नीलाभ नभ, भूरे पहाड़, तिनकों, पौधों और पेड़ों की हरिताभा, फीरोज़ी समुद्र- सबकुछ विशिष्ट और अद्भुत। मनुष्य और प्रकृति का संबंध भी अटूट है। कभी बसंती पीला...
‘रंग’ शब्द के उच्चारण मात्र से ही हम पाते हैं कि हमारे आस-पास का वातावरण रंगीन हो गया है। यदि जीवन में रंग का समावेश नहीं होता तो मनुष्य जीवन उल्लास, अभिलाषा, रस एवं सौंदर्य से कोसों दूर होता और ऐसे प्राणहीन जीवन की कल्पनामात्र से भय उत्पन्न होने लगता है।
चित्रकला में ‘रंग’ का महत्वपूर्ण योगदान है, रंग के अभाव में चित्रकला संपूर्ण नहीं हो सकती। उसमें एक अद्भूत सौंदर्य और आकर्षण होता है, जो दर्शक...