यषपाल का साहित्य क्रांतिकारी भावों और विचारों का अभिव्यक्त रूप है । उनका साहित्य यथार्थ की धरती पर रखा गया है, जिसमें पीढ़ियों का संघर्ष और सामाजिक जीवन का अन्तर्द्धन्द्ध मुखरित है । एक सषक्त माक्र्सवादी साहित्यकार होने के नाते वे ‘‘कला जीवनके लिए” मत के समर्थक हैं । उन्होनें साहित्य की सभी विधाओं जैसे कहानी, उपन्यास, एकांकी, यात्रावर्णन, अनुवाद, निबन्ध में अपनी कलम सफलतापूर्वक चलायी । प्रेमचन्द के उपरांत यषपाल ही दूसरे क्रांतिकारी उपन्यासकार हैं। ‘दादा कामरेड’, ’देषद्रोही’, ’दिव्या’, ‘पार्टी कामरेड’, ‘मनुष्य के रूप’, ‘अनिता’, ‘झुठा-सच’, ‘बारह घंटे’ तथा ‘क्यों कैसे’?, आदि उनके प्रमुख उपन्यास हैं ।
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