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चित्रकला में साहित्य/साहित्य में चित्रकला

सृष्टि चित्रलिखित सी है, चलचित्र भी है। ''ये कौन चित्रकार है''! पता नहीं! पर सृष्टि का एक क्षुद्र हिस्सा भर मनुष्य इन चित्रों-चलचित्रों के बीच ही जनमता है, काल-कवलित होता है। सांसों के आने-जाने और रूक जाने की अवधि में इन चलचित्रों को देखता है। यह जो वह देखता है, उसकी आँखों के कैमरे से गुजरकर दिल-दिमाग में छपता है। उसे बैचेनी होती है। उस छपे को साझा करूँ। इस साझा करने की बैचेनी से जनमी चित्रलिपि। लिपि की बेल फैली, चित्र रचे चितेरों ने, रंग अविष्कृत हुए। मानस उर्वर हुआ, कल्पना से कला समृद्ध हुई। आदिम बर्बरता से आगे बढ़े मनुष्य के भावों से कला को स्पन्दन मिला। सृष्टि के समानांतर दृष्टि के अपरिमित सौंदर्य ने प्रभविष्णुता के साथ नृत्य कला, गायन कला को मूर्त्त किया। वाद्य अविष्कृत हुए। प्रकृति की प्रतिकृति ध्वनि रूप पा गयी तो मिट्‌टी और पत्थर से ठोस आकार ''मूर्तिकला'' रूप में मिला।
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Creator
Publisher
Classification
Date Issued 2019-11-30
Resource Type
Format
Language
Date Of Record Creation 2021-05-03 06:21:47
Date Of Record Release 2021-05-03 06:21:47
Date Last Modified 2021-05-03 06:23:06

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