सर कार्ल पॉपर के अनुसार वैज्ञानिक सिद्धांतों में पुनर्विवेचना की आवश्यकता है, जिससे वे सत्य के निकट पहुंचे । जहाँ छद्मविज्ञान अपने आप को स्वयं-सिद्ध मानता है, वहीं विज्ञान स्वयं का कई कसौटियों में परीक्षण करता है। सत्य तक पहुँचने हेतु तर्क एवं गणित की सहायता आवश्यक होती है । अवैज्ञानिक विधि केवल प्रत्यक्षीकरण पर आधारित होती है । सर कार्ल पॉपर ने पहली बार थॉमस कुह्न, सिगमंड फ़्रोएड, कार्ल मार्क्स जैसे तमाम विद्वानों के सिद्धांतो पर प्रश्न उठाया था । इस आलेख में समाज-विज्ञान के क्षेत्र में किए गए शोधकार्य पर सर पॉपर के मिथ्याकरण सिद्धांत के महत्व को सूचित किया गया है ।
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