बौद्ध भिक्षुओं के निवास स्थान को विहार कहा जाता है विहार के अन्दर एक बड़ा मण्डप होता था, उसमें तीन या चार छोटी कोठरियां खोदी जाती थी, सामने की दीवार में प्रवेश के लिए एक द्वार होता था और उसके सामने स्तम्भों पर आश्रित एक बरामदा रहता था । भीतरी मण्डप की कोठरिया चैकोर होती थी, जिनमें बौद्ध भिक्षु निवास करते थे, एक भिक्षु के लिए कोठरी बनी होती थी,1 दो भिक्षुओं के लिए द्विगर्भ और तीन भिक्षुओं के लिए त्रिगर्भ शालाएं बनाई जाती थी । जहां पर बहुत से भिक्षु निवास करते थे उनको संधाराम कहा जाता था । विहार की कोठरियां छोटे आकार की होती थी । इनका आकार 9ग्9 फूट होता था । इन कोठरियों में एक तरफ भिक्षुओं के सोने के लिए लम्बी चैकियां बनी होत थी।
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