पर्यावरण के अन्तर्गत वायु जल भूमि वनस्पति पेड़ पौधे, पशु मानव सब आते है । प्रकृति में इन सबकी मात्रा और इनकी रचना कुछ इस प्रकार व्यवस्थित है कि पृथ्वी पर एक संतुलनमय जीवन चलता रहे । विगत करोंड़ांे वर्षो से जब से पृथ्वी मनुष्य पशुपक्षी और अन्य जीव-जीवाणु उपभोक्ता बनकर आये तब से, प्रकृति का यह चक्र निरंतर और अबाध गति से चल रहा है । जिसको जितनी आवष्यकता है व प्रकृति से प्राप्त कर रहा है और प्रकृति आगे के लिये अपने में और उत्पन्न करके संरक्षित कर लेती है । मानव इतिहास का अवलोकन करे तो आज से पंाॅच सौ सात सौ वर्ष पूर्व मनुष्य प्रकृति के समीप था । प्रकृति से मिले भोजन पर सामान्य आश्रित था , वह उसका सुखमय जीवन था, जब जल वायु निरापद थे । लेकिन धीरे-धीरे समय के साथ परिवर्तन हुवा और मनुष्य मंे सुखमय जीने की लालसा में वृद्धि हुई । विज्ञान की प्रगति के साथ मनुष्य ने प्राकृतिक चक्र में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया । इसका दूष्प्रभाव यह हुवा कि मनुष्य की प्राथमिक आवष्यकताओं की वस्तुऐं जल, वायु भोजन का अभाव होने लगा । प्रकृति के अपार भण्डार दिन प्रतिदिन कम होने लगे और प्रदुषण शब्द का उदय हुवा । पर्यावरण संरक्षण की आवष्यकता होने लगी ।
Cumulative Rating:
(not yet rated)
(no comments available yet for this resource)
Resource Comments