बढ़ती जनसंख्या, बदलती जीवन शैली, कृषिगत उत्पादों का व्यवासायीकरण के साथ साथ मौसमी परिवर्तनशीलता, उत्पादन प्रवृत्ति मे बदलाव और कृषिगत विषमता के परिणाम स्वरूप सबसे प्रमुख मुददा कृषि के सुधार और विकास का है। मानव अपने विकास की चाहे जो सीमा निर्धारित कर ले परंतु उसकी उदरपूर्ति जमीन से उगे आनाज या उसके प्रसंस्करण से ही होगी। कृषि के संदर्भ मे तमाम प्रकार के बदलावों के परिणाम स्वरूप कृषि प्रणाली मे भी बदलाव देखे जा सकते हैं। साथ ही विश्व की जनसंख्या तेजी के साथ बढ़ रही है तथा भारत के संदर्भ मे यह तथ्य है कि यह विश्व की दूसरी सर्वाधिक जनंख्या वाला देश है जो 2030 तक यह चीन को पीछे छोड़ते हुए विश्व की सर्वाधिक आबादी वाला देश हो जाएगा। साथ ही भारत की आबादी मे प्रतिवर्ष 2 करोड़ लोग बढ़ जाते है जिनकी आवश्यकता हेतु रोटी, कपड़ा, मकान की माॅग मे भी वृद्धि होती जाती है।
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