आज धरती माॅं का दुःख सर्वविदित है। उसे संभाले रखने वाले तत्व-जल, वनस्पति,आकाश और वायु, विकास की चिमनियों से निकलने वाले धुएं के कारण हांप रहे हैं ।
भू-मण्डलीकरण की लालची जीभ ने इन सभी तत्वों को बाजार में सुन्दर पैकिंग में भर व्यापार की वस्तु के रूप में पेश कर दिया है । इन चारों के कम होने से पाॅंचवे अंग यानी अग्नि ने आज पूरी धरती को भीतर-बाहर से घेर लिया है । जिसके कारण धरती का भीतर-बाहर सब तपने लगा है । इसीलिए ‘पृथ्वी दिवसों’ की आड़ में संयुक्त राष्ट्र टाइप धरती के दूर के रिश्तेदार आईसीयू में डाॅयलिसिस पर लेटी धरती को शीशों के कमरों से झांकते रहते हैं । धरती के बुखार से दूर के रिश्तेदारों की तरह चिंता में दुबले हो रहे थर्मामीटर लेकर बैठे संयुक्त राष्ट्र ने हाल ही में ‘सहस्त्राब्दि का पर्यावरण आकलन’ छापा है ।
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