Skip Navigation
Granthaalayah: Open Access Research Database
A Knowledge Repository
By Granthaalayah Publications and Printers
Home Browse Resources Get Recommendations Forums About Help Advanced Search

प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण में समाज की भूमिका

भारतवर्ष में प्राचीन शास्त्रों, वेद-पुराणों में, धर्म ग्रन्थो में तथा ऋषि-मुनियों ने पर्यावरण की शुद्धता पर अधिक बल दिया है । वेदों में प्रकृति प्रदत्त पर्यावरण को देवता मानकर कहा गया है कि-
‘‘यो देवोग्नों यो प्सु चो विष्वं भुव नमा विवेष,
यो औषधिषु, यो वनस्पतिषु तस्में देवाय नमो नमः’’
अर्थात जो सृष्टि, अग्नि, जल, आकाष, पृथ्वी, और वायु से आच्छादित है तथा जो औषधियों एवं वनस्पतियों में विद्यमान है । उस पर्यावरण देव को हम नमस्कार करते है ।
प्रकृति मानव पर अत्यंत उदार रही है । पृथ्वी पर अपने उद्वव के बाद से ही मानव अपने अस्तित्व के लिये प्रकृति पर निर्भर रहा है । मानवीय आवष्यकताओं की पूर्ति के लिए विभिन्न प्रकार के साधनों की आवष्यकता होती है इन संसाधनों द्वारा ही मानव की मूलभूत आवष्यकताएं रोटी, कपड़ा एवं मकान की पूर्ति होती है । इन साधनों के अभाव में सुखद मानव जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है ।
?  Cumulative Rating: (not yet rated)
Creator
Publisher
Classification
Date Issued 2015-09-30
Resource Type
Format
Language
Date Of Record Creation 2021-04-12 08:05:09
Date Of Record Release 2021-04-12 08:05:09
Date Last Modified 2021-04-12 08:05:09

Resource Comments

(no comments available yet for this resource)