पर्यावरण हमारी पृथ्वी पर जीवन का आधार है, जो न केवल मानव अपितु विभिन्न प्रकार के जीव जन्तुओं एवं वनस्पति के उद्भव, विकास एवं अस्तित्व का आधार है। सभ्यता के विकास से वर्तमान युग तक मानव ने जो प्रगति की है उसमें पर्यावरण की महती भूमिका है और यह कहना अतिश्योक्ति न होगी कि मानव सभ्यता एवं संस्कृति का विकास मानव पर्यावरण के समानुकूल एवं सामन्जस्य का परिणाम हैं यही कारण है कि अनेक प्राचीन सभ्यतायंे प्रतिकूल पर्यावरण के कारण काल के गर्त में समा गई तथा अनेक जीवों एवं पादप समूहों की प्रजातियाँ विलुप्त हो गयी और अनेक पर यह संकट गहराता जा रहा है।
वास्तव में पर्यावरण कोई एक तत्व नहीं है अपितु अनेक तत्वों का समूह है और ये सभी तत्व अथवा घटक एक प्राकृतिक सन्तुलन की स्थिति में रहते हुए एक ऐसे वातावरण का निर्माण करते है जिसमें मानव, जीव-जन्तु, वनस्पति आदि का विकास अनवरत चलता रहे। किन्तु यदि इनमें से किसी एक भी तत्व में कमी आ जाती है अथवा उसकी प्राकृतिक क्रिया में अवरोध आ जाता है तो उसका बुरा प्रभाव दूसरे तत्वों पर भी पड़ता है, जिससे एक नई विषम परिस्थिति का जन्म होता है। इस विषमता से जलवायु, वनस्पति, जीव जन्तु एवं मानव पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जो जीव जगत के अस्तित्व के लिये संकट का कारण बन जाता है।
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