एक अरब से ज्यादा जन सैलाब के साथ भारतीय पर्यावरण को सुरक्षित रखना एक कठिन कार्य है वह भी जबकि हर व्यक्ति की आवश्यकताएॅं, साधन, शिक्षा एवं जागरूकता के स्तर में असमान्य अंतर परिलक्षित होता है। संतुलित पर्यावरण के बिना स्वस्थ जीवन की कल्पना करना मात्र एक कल्पना ही है। पर्यावरण से खिलवाड़ के परिणाम हम कई रूप में वर्तमान में देख रहे हैं एवं भोग रहे हैं।
पर्यावरण विज्ञान आज के समय के अनुसार एक अनिवार्य विषय है। यह सिर्फ हमारी ही नहीं अपितु वैश्विक समस्या है। वर्तमान पर्यावरणीय असंतुलन को देखते हुए इस विषय से हर व्यक्ति को जुड़ना चाहिए एवं जोड़ना चाहिए। वानिकी एवं पर्यावरण विज्ञान से प्राकृतिक संसाधनों का सतत् प्रबंधन एवं नई तथा कारगर तकनीकों के माध्यम से पर्यावरण का संरक्षण और सुधार किया जा सकता है। मानव समाज ने विज्ञान एवं अन्य क्षेत्रों में अभूतपूर्व विकास किया है परंतु इस विकास के चलते उसने प्राकृतिक संसाधनों का क्रूरता के साथ उपयोग किया है या यह कहा जाये कि दुरूपयोग किया है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। इससे हमारे प्राकृतिक संसाधनों के साथ पर्यावरण को भी नुकसान हुआ है और इसके परिणाम देखने के लिए हमें कहीं दूर जाने की आवश्यकता नहीं है। प्रकृति के साथ सतत् की जा रही बर्बरता के कारण आज हम बढ़ते बंजर इलाके, कम उपजाऊ भूमि, प्रदूषण से भरे हमारे नगर और बाढ़ तथा सूखे की क्रूरता झेलते मानव समाज एवं क्षेत्र हमारे समकक्ष ही उपलब्ध हैं। आज सारा विश्व पर्यावरण संतुलन को सुधारने के लिए विवश है। इस परिप्रेक्ष्य में वन एवं पर्यावरण शब्द एक दूसरे के पूरक लगते हैं। वनों के प्रबंधन से पर्यावरण में सुधार होना अवश्यम्भावी है। वैश्विक स्तर पर पर्यावरण को हुए नुकसान एवं इसकी बेहतरी के लिए किये जा रहे प्रयासों तथा हमारे आसपास हुए भयावह परिवर्तन से सीख लेकर अब पूरे मानवसमाज को सचेत होने की जरूरत है। अगर हम अब भी सावधान नहीं हुए तो हमें विनाशकारी परिणाम भुगतने से कोई नहीं बचा सकता।
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