Article Type: Research Article Article Citation: Dr. Usha Kumari K.P.. (2020). PSYCHOLOGY IN
YASHPAL'S NOVELS. International Journal of Research -GRANTHAALAYAH, 8(12), 225-227.
https://doi.org/10.29121/granthaalayah.v8.i12.2020.2769 Received Date: 07 December 2020
Accepted Date: 31 December 2020
ABSTRACT English: Yashpal's literature is an
expression of revolutionary sentiments and ideas. His literature is placed on
the ground of reality, in which the struggle of generations and the
interruption of social life is highlighted. Being a true Marxist litterateur,
he is an advocate of the "Art for Life". He successfully ran his pen
in all the disciplines of literature such as story, novel, montage, travelogue,
translation, essay. Yashpal is the second revolutionary novelist after
Premchand. His major novels are 'Dada Comrade', 'Deshadrohi', 'Divya', 'Party
Comrade', 'Man's Form', 'Anita', 'Jhutha-Sach', 'Twelve Hours' and 'Why How'? . Hindi: यषपाल का साहित्य
क्रांतिकारी भावों
और विचारों का
अभिव्यक्त रूप
है । उनका साहित्य
यथार्थ की धरती
पर रखा गया है, जिसमें
पीढ़ियों का संघर्ष
और सामाजिक जीवन
का अन्तर्द्धन्द्ध
मुखरित है । एक
सषक्त माक्र्सवादी
साहित्यकार होने
के नाते वे ‘‘कला
जीवनके लिए” मत
के समर्थक हैं
। उन्होनें साहित्य
की सभी विधाओं
जैसे कहानी, उपन्यास,
एकांकी, यात्रावर्णन,
अनुवाद, निबन्ध
में अपनी कलम सफलतापूर्वक
चलायी । प्रेमचन्द
के उपरांत यषपाल
ही दूसरे क्रांतिकारी
उपन्यासकार हैं।
‘दादा कामरेड’, ’देषद्रोही’, ’दिव्या’, ‘पार्टी कामरेड’, ‘मनुष्य के
रूप’, ‘अनिता’, ‘झुठा-सच’, ‘बारह घंटे’ तथा ‘क्यों
कैसे’?, आदि
उनके प्रमुख उपन्यास
हैं । Keywords: उपन्यासों; मनौवेज्ञानिकता
1.
प्रस्तावना
विकास-क्रम
की दृष्टि से ‘दादा
कामरेड’ यषपाल
जी का सर्वप्रथम
प्रयास है जो मई
सन् 1941 में प्रकाषित
हुआ । इसमें राजनीतिक
सिद्धान्तों तथा
रोमान्स का सम्मिश्रण
है । सन् 1960 में प्रकाषित
‘झुठा-सच’ ने पाठकों
में एक हलचल उत्पन्न
कर दी । उनके उपन्यास
‘देषद्रोही’ में
गाँधीवाद की अपेक्षा
समाजवाद को ही
अधिक उपयोगी चित्रित
किया गया है । यषपाल
के उपन्यासों की
सबसे बड़ी विषेषता
है उनकी सामयवादी
और जनवादी विचारधार
। कहीं पर तो मनोवैज्ञानिकता
भी दृष्टिगत होते
हैं । यषपाल ने फ्राइड
के मूलभूत सिद्धान्तों
को स्वीकार किया
है और अपने उपन्यासों
को अभिव्यक्त यथार्थवादी
घरातल पर प्रस्तुत
करने के लिए उसे
साधन के रूप में
अपनाया है । उन
पर सर्वाधिक प्रभाव
‘काम सिद्धान्त’
पर पड़ा । उनकी मनोवैज्ञानिकता
का झलक उनके उपन्यास
‘‘दादा कामरेड‘‘ में
देखने को मिलता
है । इस उपन्यास
का नायक है हरीष
। वह माक्र्सवादी
विचार रखनेवाला
युवक है । यषपालजी
के उपन्यासों में
अधिकतर ‘काम’ प्रवृत्ति
को समाज सेवा की
ओर मोड़ा गया है
। हरीष भी ऐसा ही
पात्र है जिसकी
काम प्रवृत्ति
समाज सेवा के माध्यम
से ही अपने प्रवाह
का मार्ग खोजता
है । वह एक क्रांतिकारी
युवक है । उसके
तनावपूर्ण जीवन
में काम प्रवृत्ति
के नैसर्गिक विकास
का अवकाष कहाँ
? उसकी मान्यता
है कि क्रांतिकारियों
के लिए नारी एक
वस्तु है । किन्तु
जब वह शैल के संपर्क
में आता है तो उसे
वह अनुभव होने
लगता है कि नारी
के अभाव में पुरूष
अपूर्ण है । इस
विचार में उसमें
घोर प्रतिक्रिया
उत्पन्न हो जाती
है जिसके कारण
उसमें भी प्रेम
भावना जागृत हो
जाती है । ‘दादा
कामरेड’ एक घटना
प्रधान राजनीतिक
उपन्यास है, फिर
भी कहीं-कहीं पर
मनोवैज्ञानिकता
भी नज़र आती है । बीती हुई बातें
या घटनाओं को भूल
जाना एक मानसिक
वैकल्प है । ‘‘दिव्या’’
उपन्यास में नर्तकी
बन जाने के पश्चात्
दिव्या पृथुसेन
से प्रणय, उसका
प्रवंचनापूर्ण
व्यवहार, दासी
कर्म की भीषण वेदना,
पुत्र वियोग आदि
पूर्व स्थितियाँ
भूल जाती है क्योंकि
यह स्मृतियाँ पीड़ादायक
है किन्तु जब मारीष
उसके दुखों के
प्रति संवेदन प्रकट
करता है तो उसकी
अतीत की स्मृतियाँ
जाग उठती है । उसके
मन में प्रेम की
जो भावना दब गयी
थी, पुनः जागृत
हो जाती है किन्तु
यह सब इतने अज्ञात
रूप से होता है
कि दिव्या को इसका
आभास तक नहीं होता
। लेखक के शब्दों
में - ‘‘अंषुमाला
(दिव्या) का मस्तिष्क
अपनी समस्या पर
निरन्तर चिन्तन
करने से उलझ रहा
था । रूप-लोलूप,
व्यसनी रसिकों
के आग्रह से उसे
भय न था परन्तु
मारिष की संवेदना
उसे परास्त और
अवष-सा किये रहती
थी ।’’ .[1] ‘‘पार्टी कामरेड’’
में यषपालजी ने
पदमलाल भावरिया
के मानसिक व्यापार
का सुन्दर चित्र
खींचा है । बचपन
में उसके पिता
ने यमलोक में दंड
का भय दिखकर उसे
चोरी करने, जुआ
खेलने, नषा आदि
कामों से विरत
करने का प्रयास
किया था । उन्होनें
मंदिर पर इन दृष्यों
को खुदवा रखा था
। इन भयंकर दृष्यों
को देखकर पदमलाल
का मन घबरा जाता
था । उसे सब ओर पाप
दिखायी देता था।
इस भय के कारण धीरे-धीरे
पदमलाल के मन में
घोर प्रतिक्रिया
उत्पन्न हो जाती
है । यदि भगतजी
ने पदमलाल की बुरी
आदत को छुड़ाने
के लिए भय दिखाने
के स्थान पर कोई
तर्कसंगत आधार
दिया होता तो यह
स्थिति न होती
। भय और चिन्ता
से पदमलाल न चिढ़ते
और न ही अपने पिता
के मृत्यु के पश्चात्
वह नषा, परस्त्रीगमन,
जुआ आदि सभी कुछ
करना आरंभ करते
। यषपाल के उपन्यास
का विष्लेषण करने
पर मालूम हो जाता
है कि उन्होनें
फ्रायड और एडलर
के सिद्धान्तों
को अपने उपन्यासों
में स्थान दिया
है । ‘‘बारह घण्टे’’
भी उनका एक सामाजिक
उपन्यास है जो
मनोविज्ञान को
आधार बनाकर लिखा
गया है । इस उपन्यास
में नर और नारी
के परस्पर आर्कषण
अथवा दामपत्य संबंध
को सामाजिक कर्तव्य
की परिधि लाँधकर
आधुनिक परिस्थिति
बोध की कसौति पर
परखने का प्रयास
यषपालजी ने किया
है । एक ही प्रकार
की वेदना से पीड़ित
दो विपरीत लिंगी
व्यक्ति जब किन्हीं
कारणों से एक दूसरे
के संपर्क में
आते हैं, तो मनोवैज्ञानिक
दृष्टा उनमें एक
दूसरे के निकट
रहने की आकांक्षा
पैदा होती है ।
यहाँ सामाजिक कत्र्तव्यों
को मनोवैज्ञानिक
तर्काें के सामने
झुक जाना पड़ता
है । स्थानांतरण,
हीनताग्रन्थी,
अन्तर्मुखी व्यक्तित्व,
दिवास्वप्न, अचेतन
मन आदि मनोवैज्ञानिक
तत्वों के आधार
पर यषपाल ने अपने
‘‘बारह घण्टे’’ नामक
लुघ उपन्यास को
मनोवैज्ञानिक
उपन्यासों की श्रेणी
में स्थान पाने
का योग्य बनाया
है । यषपाल की भाषा
सरल एवं आकर्षक
है । यषपालजी ने
इन उपन्यासों में
अंग्रेजी शब्दों
का भी प्रयोग किया
है । उनकी भाषा
में मुहावरे तथा
लोकोक्ति का प्रयोग
भी स्वाभाविक लगता
है, उनके उपन्यासों
में वर्णन शैली,
विवरणात्मक शैली,
संवाद शैली, भावात्मक
शैली आदि का प्रयोग
मिलता है । माक्र्सवादी
का समर्थन करते
हुए यषपाल लिखते
हैं - ‘‘मैं कम्युनिज़म
को सर्वसाधारण
जनता की मुक्ति
का साधन वैज्ञानिक
विचार-धारा समझता
हुँ । अपनी संपूर्ण
शक्ति को उस बात
के प्रति ‘‘देय’’ स्वीकार
करने में मुझे
कोई संकोच नहीं
है ।’’ .[2] SOURCES OF FUNDINGNone. CONFLICT OF INTERESTNone. ACKNOWLEDGMENTNone. REFERENCES
[1]
यषपाल - दिव्या,
पृ.सं.-163
[2]
यषपाल के
उपन्यासों का मूल्यांकन- डॉ.
भूलिका त्रिवेदी,
पृ.सं.-49
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