STUDY OF
THE EFFECT OF PICTURE DIALOGUE TEACHING METHOD ON STUDENTS' CREATIVITY
विद्यार्थियों की सृजनात्मकता पर चित्र संवाद शिक्षण विधि के प्रभाव का अध्ययन
Deepika Mishra 1, Dr. Roma Bhansali 2
1 Researcher, Janardan Rai Nagar
Rajasthan Vidyapeeth Deemed to be University, Udaipur Rajasthan, India
2 Research Director and Assistant
Professor, Lokmanya Tilak Teacher Training College, C.T.E. Dabok, Udaipur,
Rajasthan, India
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ABSTRACT |
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English: This study was conducted with the aim of evaluating the effect of picture dialogue teaching method on creativity of upper primary level students. In the current educational scenario, creativity is being accepted as an essential life skill, but most schools still use traditional, textbook-centric teaching methods, which limit the original thinking and expression ability of students. In this research, 60 upper primary students were divided into two groups—control (30) and experimental (30)—using a pre-test-post-test control group design. The experimental group was taught through picture dialogue method for 4 weeks while the control group was taught through traditional methods. In the study, dimensions like plot construction, dialogue writing, descriptive style etc. were evaluated using a self-made creativity test. Analysis of the data revealed that there was a statistically significant increase (p < 0.01) in the creativity of the students of the experimental group, while the change in the control group was negligible. This leads to the conclusion that the picture dialogue teaching method proves helpful in effectively developing the creative ability of the students of the upper primary level. This method is a strong initiative towards educational innovations, which needs to be adopted regularly in the classroom. Hindi: यह अध्ययन उच्च प्राथमिक स्तर के विद्यार्थियों की सृजनात्मकता पर चित्र संवाद शिक्षण विधि के प्रभाव का मूल्यांकन करने के उद्देश्य से किया गया। वर्तमान शैक्षणिक परिदृश्य में रचनात्मकता को एक आवश्यक जीवन-कौशल के रूप में स्वीकार किया जा रहा है, किंतु अधिकांश विद्यालयों में अभी भी पारंपरिक, पाठ्यपुस्तक-केंद्रित शिक्षण विधियों का ही प्रयोग हो रहा है, जो विद्यार्थियों की मौलिक सोच और अभिव्यक्ति क्षमता को सीमित कर देती हैं। इस शोध में पूर्व-परीक्षण-पश्चात-परीक्षण नियंत्रण समूह डिजाइन का उपयोग करते हुए उच्च प्राथमिक के 60 विद्यार्थियों को दो समूहों — नियंत्रण (30) एवं प्रयोगात्मक (30) — में विभाजित किया गया। प्रयोगात्मक समूह को 4 सप्ताह तक चित्र संवाद विधि से शिक्षण प्रदान किया गया जबकि नियंत्रण समूह को पारंपरिक विधियों से पढ़ाया गया। अध्ययन में स्वनिर्मित सृजनात्मकता परीक्षण का प्रयोग कर कथानक निर्माण, संवाद लेखन, वर्णनात्मक शैली आदि आयामों का मूल्यांकन किया गया। आँकड़ों के विश्लेषण में पाया गया कि प्रयोगात्मक समूह के विद्यार्थियों की सृजनात्मकता में सांख्यिकीय रूप से अत्यधिक महत्वपूर्ण वृद्धि (p < 0.01) हुई, जबकि नियंत्रण समूह में परिवर्तन नगण्य रहा। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि चित्र संवाद शिक्षण विधि उच्च प्राथमिक स्तर के विद्यार्थियों की सृजनात्मक क्षमता को प्रभावी रूप से विकसित करने में सहायक सिद्ध होती है। यह विधि शैक्षिक नवाचारों की दिशा में एक सशक्त पहल है, जिसे कक्षा-कक्ष में नियमित रूप से अपनाने की आवश्यकता है। |
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Received 12 May 2025 Accepted 13 June 2025 Published 15 July 2025 DOI 10.29121/granthaalayah.v13.i5.2025.6256 Funding: This research
received no specific grant from any funding agency in the public, commercial,
or not-for-profit sectors. Copyright: © 2025 The
Author(s). This work is licensed under a Creative Commons
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Keywords: Creativity, Picture Dialogue Method, Upper Primary Level, Language Teaching, Creative
Writing, Expression Skills, Dialogue Learning सृजनात्मकता, चित्र संवाद
विधि, उच्च
प्राथमिक
स्तर, भाषा शिक्षण, रचनात्मक
लेखन, अभिव्यक्ति
कौशल, संवादात्मक
अधिगम |
1. प्रस्तावना
21वीं
सदी के इस
नवाचार-प्रधान
युग में
शिक्षा का
उद्देश्य
केवल सूचनाओं
का संग्रह
कराना नहीं है, बल्कि
विद्यार्थियों
में ऐसे गुणों
का विकास करना
है जो उन्हें
सामाजिक, व्यावसायिक
और रचनात्मक
रूप से सक्षम
बना सके।
इनमें
सृजनात्मकता
एक मूलभूत
जीवन-कौशल के
रूप में उभरकर
सामने आई है।
सृजनात्मकता
वह मानसिक
प्रक्रिया है
जो किसी
व्यक्ति को
नवीन,
मौलिक और
मूल्यवान
विचारों, भावों या
वस्तुओं की
रचना करने की
क्षमता प्रदान
करती है। यह
केवल कला या
साहित्य तक
सीमित नहीं, बल्कि
वैज्ञानिक
सोच, समस्या
समाधान,
अभिव्यक्ति
कौशल,
और नवाचार के
हर क्षेत्र
में उपयोगी
है।
उच्च
प्राथमिक
स्तर (कक्षा 6 से
8) के
विद्यार्थियों
में यह वह आयु
होती है जब वे
मात्र अनुकरण
करने से आगे
बढ़कर सोचने, कल्पना
करने और
आत्म-अभिव्यक्ति
के माध्यम से
सीखने लगते
हैं। इस स्तर
पर
सृजनात्मकता
का संवर्धन
उन्हें
जीवनभर के लिए
आलोचनात्मक चिंतन, भाषिक
प्रवाह,
और
आत्मविश्वास
से युक्त करता
है। यदि इस
अवस्था में
उनकी
कल्पनाशीलता
और
विचार-प्रवाह
को उचित दिशा
मिले,
तो वे
आत्म-प्रेरित, नवोन्मेषी
और बहुआयामी
बन सकते हैं।
दुर्भाग्यवश
वर्तमान
शैक्षणिक
वातावरण में
अधिकांश
विद्यालयों
में भाषा एवं
अभिव्यक्ति
का शिक्षण अब
भी पारंपरिक, एकांगी, पाठ्यपुस्तक-केन्द्रित
और यादृच्छिक
बना हुआ है।
शिक्षण का यह
तरीका
विद्यार्थियों
को रचनात्मक
रूप से सोचने, विचार
प्रस्तुत
करने या भाषा
के प्रयोग में
स्वतंत्रता
नहीं देता। इस
स्थिति में यह
आवश्यक हो
जाता है कि
ऐसी शिक्षण
विधियाँ
अपनाई जाएँ जो
विद्यार्थियों
को दृश्य, भावनात्मक
एवं
विचारात्मक
अनुभव प्रदान
करें,
जिससे उनकी
रचनात्मक
अभिव्यक्ति
सशक्त हो सके।
चित्र
संवाद शिक्षण
विधि एक ऐसी
अभिनव पद्धति
है जो इस
उद्देश्य की
पूर्ति कर
सकती है। यह विधि
भाषा शिक्षण
को दृष्टि और
संवाद से जोड़ती
है। जब
विद्यार्थियों
को कोई चित्र
दिया जाता है
और उस पर वे
विचार करते
हैं, कथानक
रचते हैं, संवाद
बनाते हैं, तो
वे न केवल
भाषा का
प्रयोग करते
हैं, बल्कि
उसमें अपनी
कल्पनाओं, भावनाओं
और दृष्टिकोण
को भी जोड़ते
हैं। यह विधि "Language through Experience" की
अवधारणा पर
आधारित है
जिसमें दृश्य
अनुभवों को
भाषिक सृजन
में
रूपांतरित
किया जाता है।
चित्र
संवाद विधि
में
विद्यार्थियों
को संवादात्मक
रूप से सोचने, काल्पनिक
परिस्थितियों
की रचना करने, और
भावनात्मक
प्रतिक्रियाएँ
व्यक्त करने का
अवसर मिलता
है। यह केवल
भाषा कौशल
नहीं,
बल्कि
कल्पना शक्ति, संप्रेषण
कौशल,
वर्णन
क्षमता और
सामाजिक
संवेदनशीलता
को भी बढ़ावा
देती है।
विशेष रूप से
उन
विद्यार्थियों
के लिए जो
पाठ्यपुस्तक
आधारित
शिक्षण से जल्दी
ऊब जाते हैं
या जिनकी रुचि
दृश्य माध्यमों
में अधिक होती
है, यह
विधि अत्यधिक
प्रभावशाली
सिद्ध हो सकती
है।
यह अध्ययन
इस पृष्ठभूमि
में अत्यंत
प्रासंगिक हो
जाता है जहाँ
उच्च
प्राथमिक
स्तर के विद्यार्थियों
के दो समूह—30
विद्यार्थियों
का नियंत्रण
समूह और 30
विद्यार्थियों
का
प्रयोगात्मक
समूह—पर चित्र
संवाद विधि के
प्रभाव का
वैज्ञानिक
विश्लेषण
किया गया है।
अध्ययन का
उद्देश्य यह
समझना है कि
क्या यह विधि
पारंपरिक
विधियों की
तुलना में
विद्यार्थियों
की
सृजनात्मकता
को अधिक
प्रभावशाली
ढंग से विकसित
कर सकती है।
राष्ट्रीय
शिक्षा नीति 2020 भी
आवश्यक जीवन
कौशलों के रूप
में
रचनात्मकता, संप्रेषण
और नवाचार पर
बल देती है।
ऐसी परिस्थिति
में शिक्षकों
और
शोधकर्ताओं
की यह जिम्मेदारी
बनती है कि वे
कक्षा-कक्ष
में ऐसी नवाचारी
पद्धतियों को
अपनाएँ जो
विद्यार्थियों
को केवल
शिक्षित ही
नहीं,
बल्कि सक्षम
भी बनाएँ।
चित्र संवाद
शिक्षण विधि
इस दिशा में
एक ठोस प्रयास
है।
2. समीक्षा साहित्य
शर्मा (2018) ने
प्राथमिक
स्तर के
विद्यार्थियों
पर रचनात्मक
लेखन विधियों
के प्रभाव का
अध्ययन किया।
उन्होंने
पाया कि चित्र
आधारित
गतिविधियाँ
छात्रों की
मौलिकता और
भाव-प्रवणता
को बढ़ाती
हैं। वर्मा
एवं जोशी (2019) ने
संवाद आधारित
शिक्षण
विधियों और
पारंपरिक
विधियों की
तुलना की।
प्रयोगात्मक
समूह में
विद्यार्थियों
की
सृजनात्मकता
में 30%
अधिक वृद्धि
देखी गई।
मिश्रा (2022) ने भाषा
शिक्षण में
नवाचारी
विधियों का
प्रभाव
मूल्यांकित
करते हुए कहा
कि चित्र
संवाद विधि
विशेष रूप से
मध्यम स्तर पर
अत्यंत प्रभावी
पाई गई।
समीक्षा से
स्पष्ट होता
है कि चित्र
आधारित
विधियाँ सृजनात्मक
विकास के लिए
सहायक हैं, परंतु
उच्च
प्राथमिक
स्तर पर इस
दिशा में कार्य
सीमित रहा है।
3. अध्ययन का औचित्य
आज के
ज्ञान-आधारित
समाज में
रचनात्मकता
एक प्रमुख
जीवन-कौशल बन
चुकी है।
विद्यार्थियों
को केवल
जानकारी देना
पर्याप्त
नहीं है, बल्कि
उनमें सोचने, विश्लेषण
करने और नवीन
विचार
उत्पन्न करने
की क्षमता
विकसित करना
अनिवार्य है।
वर्तमान समय
में अधिकांश
स्कूलों में
भाषा शिक्षण
अभी भी
पारंपरिक
विधियों पर
आधारित है, जो
सृजनात्मक
विकास को
सीमित करती
है। चित्र संवाद
विधि एक सजीव, दृष्टि-आधारित
और सहभागिता
पूर्ण विधि है
जो विद्यार्थियों
की
अभिव्यक्ति
क्षमता,
मौलिकता और
कल्पनाशीलता
को प्रेरित
करती है। इस
अध्ययन के
माध्यम से यह
जाँचना
आवश्यक है कि
क्या यह विधि
उच्च प्राथमिक
स्तर के
विद्यार्थियों
की सृजनात्मकता
में सार्थक
परिवर्तन ला
सकती है।
4. उद्देश्य
1) उच्च
प्राथमिक
स्तर के
विद्यार्थियों
की सृजनात्मकता
का मूल्यांकन
करना।
2) चित्र
संवाद शिक्षण
विधि का
प्रयोग करके
सृजनात्मकता
पर उसके
प्रभाव का
अध्ययन करना।
3) नियंत्रण
एवं
प्रयोगात्मक
समूह की
सृजनात्मकता
के स्तर की
तुलना करना।
5. परिकल्पनाएँ
1) चित्र
संवाद शिक्षण
विधि से
शिक्षित
विद्यार्थियों
की
सृजनात्मकता
पारंपरिक
शिक्षण विधि
से शिक्षित
विद्यार्थियों
की तुलना में अधिक
होगी।
2) प्रयोगात्मक
समूह के
पूर्व-परीक्षण
एवं पश्चात-परीक्षण
स्कोर में
सांख्यिकीय
रूप से महत्वपूर्ण
अंतर होगा।
6. शोध पद्धति
·
शोध की
प्रकृति:-
मूलतः
प्रायोगिक (Experimental) शोध।
·
शोध
अभिकल्प:-पूर्व-परीक्षण-पश्चात-परीक्षण
नियंत्रण
समूह डिज़ाइन
(Pre-test Post-test
Control Group Design)
·
न्यादर्श
:- उदयपुर जिले
के उच्च
प्राथमिक स्तर
के 60
विद्यार्थी
चयनित किये
गये —
नियंत्रण
समूह: 30
विद्यार्थी
प्रयोगात्मक
समूह: 30
विद्यार्थी
·
उपकरण :- डॉ.
एस.पी.
मल्हौत्रा
एवं एस.एस. सुचेता
कुमारी
कुरूक्षेत्र
द्वारा
निर्मित सृजनात्मक
परीक्षण का
चयन किया गया।
7. प्रदत्त विश्लेषण
विश्लेषण
के लिए
मध्यमान, मानक
विचलन तथा टी
परीक्षण का
उपयोग किया
गया।
विश्लेषण
एवं व्याख्या
तालिका 1
तालिका
1 पूर्व-परीक्षण
में दोनों
समूहों के
सृजनात्मकता
स्कोर का
तुलनात्मक
विश्लेषण |
|||||
समूह |
विद्यार्थियों
की संख्या (N) |
मध्यमान (Mean) |
मानक
विचलन (SD) |
t-मूल्य |
स्तर |
नियंत्रण
समूह |
30 |
401.23 |
14.12 |
0.47 |
नगण्य |
प्रयोगात्मक |
30 |
402.96 |
14.25 |
|
(NS) |
समूह |
|
|
|
|
|
उपरोक्त
तालिका
दर्शाती है कि
पूर्व-परीक्षण
में नियंत्रण
समूह और
प्रयोगात्मक
समूह के सृजनात्मकता
के मध्यमान
में कोई
महत्वपूर्ण
अंतर नहीं है।
इनसे प्राप्त t-मूल्य
0.47
है, जो
कि 0.05
स्तर पर भी
नगण्य है।
इससे यह
स्पष्ट होता
है कि दोनों
समूहों की
प्रारंभिक
सृजनात्मकता लगभग
समान थी।
आरेख1 पूर्व-परीक्षण
में दोनों
समूहों के
सृजनात्मकता
स्कोर का
तुलनात्मक
विश्लेषण
तालिका 2
तालिका
2 पश्चात-परीक्षण
में दोनों
समूहों के
सृजनात्मकता
स्कोर का
तुलनात्मक
विश्लेषण |
|||||
समूह |
विद्यार्थियों
की संख्या (N) |
मध्यमान (Mean) |
मानक
विचलन (SD) |
t-मूल्य |
स्तर |
नियंत्रण
समूह |
30 |
403.10 |
16.30 |
24.38 |
अत्यधिक
महत्वपूर्ण (p < 0.01) |
प्रयोगात्मक |
30 |
501.87 |
15.06 |
|
|
समूह |
|
|
|
|
|
व्याख्या:
पश्चात-परीक्षण
के आंकड़ों से
यह स्पष्ट होता
है कि
प्रयोगात्मक
समूह (चित्र
संवाद शिक्षण
विधि से
शिक्षित) का
मध्यमान 501.87 है, जो
नियंत्रण
समूह के
मध्यमान 403.10 की
तुलना में
काफी अधिक है।
इनसे प्राप्त t-मूल्य
24.38
है, जो
0.01
के स्तर पर भी
अत्यधिक
महत्वपूर्ण
है। इससे यह
निष्कर्ष
निकलता है कि
चित्र संवाद
शिक्षण विधि
ने
विद्यार्थियों
की
सृजनात्मकता
में सार्थक और
महत्वपूर्ण
वृद्धि की है।
आरेख 2 पश्चात-परीक्षण
में दोनों
समूहों के
सृजनात्मकता
स्कोर का
तुलनात्मक
विश्लेषण
तालिका 3
तालिका
3 प्रयोगात्मक
समूह के
पूर्व-परीक्षण
एवं पश्चात-परीक्षण
स्कोर का
तुलनात्मक
विश्लेषण |
||||
परीक्षण
प्रकार |
मध्यमान (Mean) |
मानक
विचलन (SD) |
t-मूल्य |
स्तर |
पूर्व-परीक्षण |
402.96 |
14.25 |
26.13 |
अत्यधिक महत्वपूर्ण
(p < 0.01) |
पश्चात-परीक्षण |
501.87 |
15.06 |
|
|
व्याख्या:
यह तालिका
दर्शाती है कि
एक ही समूह
(प्रयोगात्मक)
में चित्र
संवाद विधि के
प्रयोग के बाद
सृजनात्मकता
के मध्यमान
में
महत्वपूर्ण
वृद्धि देखी
गई। इनसे
प्राप्त t-मूल्य
26.13
दर्शाता है कि
परिवर्तन
केवल संयोग
नहीं बल्कि
विधि का
प्रभाव है।
आरेख 3 प्रयोगात्मक
समूह के
पूर्व-परीक्षण
एवं पश्चात-परीक्षण
स्कोर का
तुलनात्मक
विश्लेषण
8. समग्र निष्कर्ष
·
चित्र
संवाद शिक्षण
विधि ने
विद्यार्थियों
की
सृजनात्मकता
को
महत्वपूर्ण
रूप से सकारात्मक
रूप में
प्रभावित
किया।
·
यह विधि
कल्पनाशीलता, कथानक
निर्माण, अभिव्यक्ति
कौशल और भाषिक
संवेदनशीलता
को सशक्त
बनाती है।
·
नियंत्रण
समूह में कोई
विशेष
परिवर्तन
नहीं देखा गया, जिससे
यह सिद्ध होता
है कि
पारंपरिक
शिक्षण विधि
इस संदर्भ में
सीमित
प्रभावी रही।
9. शैक्षिक सुझाव
·
भाषा
शिक्षण में
चित्र संवाद
विधि को
नियमित रूप से
अपनाया जाना
चाहिए।
·
शिक्षकों
को चित्र
आधारित
शिक्षण हेतु
प्रशिक्षण
दिया जाए।
·
सृजनात्मक
लेखन को
पाठ्यक्रम का
अभिन्न भाग बनाया
जाए।
·
विद्यालयों
में
दृश्य-सामग्री
(चित्र,
पोस्टर, एनिमेशन)
की सुविधा
सुनिश्चित की
जाए।
Mishra, D.
(2022). "Innovative Teaching Techniques in Language Development". EduVoice, 18(3), 77-83.
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