INTEGRATED
TEACHER EDUCATION PROGRAMME: BENEFITS AND CHALLENGES
एकीकृत शिक्षक शिक्षा कार्यक्रम: लाभ और चुनौतियाँ
Vani Bhattacharya 1, Dr. Jyoti Puri 2
1 Research Scholar, Faculty of Education, Teerthanker Mahaveer University, Moradabad (U.P.), India
2 Associate Professor, Faculty of Education, Teerthanker Mahaveer University, Moradabad (U.P.), India
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ABSTRACT |
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English: With the aim of improving the quality of education and making teacher education more professional and holistic, the Government of India has envisaged the Integrated Teacher Education Programme (ITEP) under the National Education Policy 2020. This programme is a four-year graduate level course, in which subject knowledge and teacher training are presented in an integrated manner. ITEP is more coherent, modern and teaching-oriented as compared to the traditional B.Ed. course. This research paper highlights the major benefits of ITEP, which include time saving, high quality training, inclusive approach and multidisciplinary development. Since this course starts directly after class XII, it provides students with an opportunity to become teachers quickly. Also, it incorporates various subjects like arts, science, humanities and education, which makes it possible to develop multidimensional competence of teachers. However, many challenges are also faced in implementing ITEP. The major problems include shortage of qualified and trained teachers, inadequacy of institutional resources and lack of professional maturity among students at an early stage. To address these challenges, there is a need for concerted policy efforts, special training for teachers, and equipping institutions with necessary educational and physical resources. This study provides important insights to policymakers, teacher training institutions and researchers in understanding the effectiveness, feasibility and possibilities of improvement of ITEP. Hindi: शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार और शिक्षक शिक्षा को अधिक व्यावसायिक एवं समग्र बनाने के उद्देश्य से भारत सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अंतर्गत एकीकृत शिक्षक शिक्षा कार्यक्रम (ITEP) की परिकल्पना की है। यह कार्यक्रम एक चार वर्षीय स्नातक स्तरीय पाठ्यक्रम है, जिसमें विषय ज्ञान और शिक्षक प्रशिक्षण को एकीकृत रूप से प्रस्तुत किया गया है। पारंपरिक बी.एड. पाठ्यक्रम की तुलना में ITEP अधिक सुसंगत, आधुनिक और शिक्षण-उन्मुख है। इस शोध-पत्र में ITEP के प्रमुख लाभों पर प्रकाश डाला गया है, जिनमें समय की बचत, उच्च गुणवत्ता वाला प्रशिक्षण, समावेशी दृष्टिकोण और बहु-विषयक विकास प्रमुख हैं। चूंकि यह पाठ्यक्रम बारहवीं के बाद सीधे प्रारंभ होता है, इसलिए इससे विद्यार्थियों को शीघ्र शिक्षक बनने का अवसर प्राप्त होता है। साथ ही, इसमें कला, विज्ञान, मानविकी एवं शिक्षा जैसे विभिन्न विषयों को समाहित किया गया है, जिससे शिक्षकों की बहुआयामी योग्यता का विकास संभव होता है। हालाँकि, ITEP को लागू करने में कई चुनौतियाँ भी सामने आती हैं। प्रमुख समस्याओं में योग्य एवं प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी, संस्थागत संसाधनों की अपर्याप्तता तथा विद्यार्थियों में प्रारंभिक अवस्था में व्यावसायिक परिपक्वता का अभाव शामिल हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिए ठोस नीतिगत प्रयासों, शिक्षकों के लिए विशेष प्रशिक्षण, तथा संस्थानों को आवश्यक शैक्षिक और भौतिक संसाधनों से सुसज्जित करने की आवश्यकता है। यह अध्ययन नीति-निर्माताओं, शिक्षक-प्रशिक्षण संस्थानों और शोधकर्ताओं को ITEP की प्रभावशीलता, व्यावहारिकता और सुधार की संभावनाओं को समझने में महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। |
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Received 12 April 2025 Accepted 15 May 2025 Published 04 July 2025 DOI 10.29121/granthaalayah.v13.i6.2025.6247 Funding: This research
received no specific grant from any funding agency in the public, commercial,
or not-for-profit sectors. Copyright: © 2025 The
Author(s). This work is licensed under a Creative Commons
Attribution 4.0 International License. With the
license CC-BY, authors retain the copyright, allowing anyone to download,
reuse, re-print, modify, distribute, and/or copy their contribution. The work
must be properly attributed to its author. |
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Keywords: ITEP, Teacher Education, National
Education Policy, 2020, Quality, Integrated
Curriculum, Challenges ITEP, शिक्षक
शिक्षा, राष्ट्रीय
शिक्षा नीति 2020, गुणवत्ता, एकीकृत
पाठ्यक्रम, चुनौतियाँ |
1. प्रस्तावना
शिक्षा
किसी भी समाज
की सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक
और नैतिक
प्रगति का मूल
आधार होती है।
यह न केवल
ज्ञान का
संप्रेषण
करती है, बल्कि
व्यक्ति के
व्यक्तित्व
निर्माण, मूल्य-बोध
और सामाजिक
उत्तरदायित्व
की समझ को भी
विकसित करती
है। इस
दृष्टिकोण से
शिक्षक समाज
का वह
मार्गदर्शक
होता है, जो शिक्षा
के माध्यम से
राष्ट्र
निर्माण में योगदान
देता है
(एनसीईआरटी, 2005)।
शिक्षक जितना
अधिक सक्षम, प्रतिबद्ध
और जागरूक
होगा,
शिक्षा की
गुणवत्ता
उतनी ही
सुदृढ़ होगी।
हालाँकि, भारत में
लंबे समय से
संचालित
पारंपरिक
शिक्षक
प्रशिक्षण कार्यक्रमों
में अनेक
व्यावहारिक
समस्याएँ देखी
गई हैं। ये
कार्यक्रम
विषय अध्ययन
और शिक्षण
प्रशिक्षण के
बीच समुचित
समन्वय स्थापित
करने में असफल
रहे हैं।
विभिन्न
चरणों में विषय
और शिक्षण को
अलग-अलग
पढ़ाने की
प्रवृत्ति ने
विद्यार्थी-शिक्षकों
के समग्र
विकास में
बाधा उत्पन्न
की है
(एनसीटीई, 2009)।
साथ ही,
अधिकांश
विद्यार्थी
स्नातक स्तर
के उपरांत ही
शिक्षण
क्षेत्र में
प्रवेश करते
हैं, जिससे
प्रारंभिक
अवस्था से ही
उनमें शिक्षक बनने
की
प्रतिबद्धता
विकसित नहीं
हो पाती। राष्ट्रीय
शिक्षा नीति 2020 (NEP 2020) ने
इस समस्या को
गंभीरता से
लेते हुए
शिक्षक
शिक्षा कार्यक्रमों
में व्यापक
सुधार की
आवश्यकता को
रेखांकित
किया है। नीति
में उल्लेख है
कि “2030
तक सभी शिक्षक
शिक्षा
कार्यक्रम
बहु-विषयक उच्च
शिक्षा
संस्थानों
में संचालित
किए जाएंगे, और
विद्यालयी
शिक्षकों के
लिए न्यूनतम
योग्यता चार
वर्षीय
एकीकृत बी.एड.
डिग्री होगी”
(शिक्षा
मंत्रालय, 2020, पृ.
23)।
इस
परिप्रेक्ष्य
में एकीकृत
शिक्षक शिक्षा
कार्यक्रम (ITEP) एक
महत्वपूर्ण
पहल के रूप
में सामने आया
है। यह एक चार
वर्षीय
स्नातक
स्तरीय
पाठ्यक्रम है, जिसमें
विषय अध्ययन
(जैसे बी.ए., बी.एससी., बी.कॉम.)
और शिक्षण
प्रशिक्षण
(बी.एड.) को
एकीकृत रूप
में समाहित
किया गया है।
इस कार्यक्रम
का उद्देश्य
छात्र-शिक्षकों
को प्रारंभिक
चरण से ही
शिक्षण कौशल, बाल-मनोविज्ञान, मूल्य-शिक्षा, समावेशी
शिक्षा,
तकनीकी
ज्ञान,
बहुभाषी
शिक्षण जैसी
समकालीन
आवश्यकताओं से
सुसज्जित
करना है
(एनसीटीई, 2021)।
इसके माध्यम
से
छात्र-शिक्षक
न केवल शैक्षणिक
रूप से सशक्त
बनते हैं, बल्कि
उनमें एक
पेशेवर
शिक्षक के रूप
में प्रतिबद्धता
और आत्मपरकता
का भी विकास
होता है। NEP 2020 यह
भी स्पष्ट
करती है कि
शिक्षक
शिक्षा केवल शैक्षणिक
ही नहीं, बल्कि
नैतिक,
सामाजिक और
सांस्कृतिक
रूप से भी सजग
होनी चाहिए। ITEP इसी
दृष्टिकोण को
मूर्त रूप
देने का
प्रयास है। यह
कार्यक्रम
विद्यार्थियों
को केवल शिक्षक
बनाने का
प्रशिक्षण
नहीं देता, बल्कि
उन्हें 21वीं सदी
के ऐसे
शिक्षकों के
रूप में तैयार
करता है, जो नवाचार, आलोचनात्मक
चिंतन,
सहानुभूति
तथा डिजिटल
दक्षता से
युक्त हों (यूनेस्को, 2015)।
इस प्रकार, ITEP न
केवल एक
शिक्षण
कार्यक्रम है, बल्कि
यह शिक्षा
प्रणाली में
गुणात्मक
परिवर्तन
लाने की दिशा
में एक
संरचनात्मक
पहल है। यह
अध्ययन इस
कार्यक्रम के
विविध लाभों
एवं यथार्थपरक
चुनौतियों की
गहन समीक्षा
करता है, जिससे
इसकी
प्रभावशीलता
और स्थायित्व
हेतु रणनीतिक
सुझाव
प्रस्तुत किए
जा सकें।
2. उद्देश्य
1) एकीकृत
शिक्षक
शिक्षा
कार्यक्रम (ITEP) की
संरचना,
कार्यप्रणाली
तथा इससे
जुड़े प्रमुख
लाभों एवं
कार्यान्वयन
की चुनौतियों
का विश्लेषण करना।
2) शिक्षक
शिक्षा की
गुणवत्ता
सुधार में ITEP की
संभावित
भूमिका का
समग्र
मूल्यांकन
करना।
अनुसंधान
पद्धति: यह
शोध एक
वर्णनात्मक
अध्ययन है, जो
द्वितीयक
स्रोतों जैसे
नीति
दस्तावेज़ों, राष्ट्रीय
अध्यापक
शिक्षा परिषद
(NCTE) की
रिपोर्टों, शैक्षणिक
लेखों तथा
राष्ट्रीय
शिक्षा नीति 2020 (NEP 2020) के
दिशा-निर्देशों
पर आधारित है।
अध्ययन की सामग्री
का विश्लेषण
गुणात्मक शोध
पद्धति के माध्यम
से किया गया
है, जिसमें
विषयवस्तु की
गहराई से
समीक्षा कर प्रमुख
निष्कर्ष
निकाले गए
हैं।
एकीकृत
शिक्षक
शिक्षा
कार्यक्रम के
लाभ: एकीकृत
शिक्षक
शिक्षा
कार्यक्रम (ITEP) को
इस उद्देश्य
से तैयार किया
गया है कि
शिक्षक-प्रशिक्षण
को अधिक
व्यावहारिक, प्रभावी
और समयबद्ध
बनाया जा सके।
यह कार्यक्रम
न केवल शिक्षा
की गुणवत्ता
को सुधारने की
दिशा में
प्रयास करता
है, बल्कि
शिक्षकों की
पेशेवर पहचान
को भी प्रारंभिक
स्तर से ही
सुदृढ़ करता
है। विषय
ज्ञान और
शिक्षण कौशल
के एकीकरण के
कारण यह
पारंपरिक बी.एड.
प्रणाली की
तुलना में
अधिक समग्र और
उपयोगी सिद्ध
होता है। ITEP शिक्षण
क्षेत्र में
समय, संसाधन
और संरचना के
स्तर पर कई
सकारात्मक
परिवर्तन
लाता है। इसके
लाभ बहुआयामी
हैं, जिनका
विस्तृत
विवरण नीचे
प्रस्तुत
किया गया है।
चित्र 1
चित्र 1 एकीकृत
शिक्षक
शिक्षा
कार्यक्रम के लाभ |
·
समय और
संसाधनों की
बचत: एकीकृत
शिक्षक
शिक्षा
कार्यक्रम (ITEP) की
सबसे प्रमुख
विशेषता यह है
कि यह एक ही
पाठ्यक्रम
में स्नातक
डिग्री और
शिक्षक
प्रशिक्षण
(बी.एड.) को
समाहित करता
है। पारंपरिक
व्यवस्था में
स्नातक के
पश्चात दो
वर्षीय बी.एड.
कोर्स करने से
कुल शिक्षा
अवधि पाँच या
अधिक वर्षों
की हो जाती थी, जबकि
ITEP में
यह अवधि चार
वर्षों में
पूरी हो जाती
है। इससे न
केवल
विद्यार्थियों
का एक वर्ष
बचता है, बल्कि
उनकी आर्थिक
लागत (फीस, आवास, यात्रा
आदि) में भी
कटौती होती
है। समय की यह
बचत उन्हें
शीघ्र
आत्मनिर्भर
बनने और
रोजगार के
अवसर प्राप्त
करने में
सहायता करती
है।
·
विषय और
शिक्षण
प्रशिक्षण का
समन्वय: ITEP में विषय
अध्ययन और
शिक्षक
प्रशिक्षण को
समानांतर रूप
से पढ़ाया
जाता है, जिससे
विद्यार्थी
दोनों पहलुओं
को समन्वित रूप
से समझ पाते
हैं। एक
प्रभावी
शिक्षक वही होता
है जो अपने
विषय में दक्ष
होने के
साथ-साथ उसे
प्रभावी रूप
से पढ़ाने की
क्षमता भी
रखता हो। यह
एकीकृत
दृष्टिकोण
शिक्षकों को
केवल 'विषय
विशेषज्ञ' नहीं, बल्कि
'कुशल
शिक्षक'
के रूप में
विकसित करता
है।
·
व्यावसायिक
पहचान का
विकास: 12वीं के
पश्चात सीधे
शिक्षक
शिक्षा में
प्रवेश के
कारण
विद्यार्थी
प्रारंभ से ही
एक स्पष्ट
लक्ष्य के साथ
अपनी
शैक्षणिक
यात्रा आरंभ करते
हैं। इस लंबे
और निरंतर
प्रशिक्षण से
उनमें
नैतिकता, उत्तरदायित्व, शिक्षकीय
व्यवहार और
सामाजिक
संवेदनशीलता का
विकास होता है, जिससे
शिक्षक के रूप
में उनकी
आत्म-परिकल्पना
सुदृढ़ होती
है।
·
गुणवत्ता
में सुधार: ITEP को NEP 2020 के
अनुरूप तैयार
किया गया है, जिसमें
डिजिटल
साक्षरता, मूल्य
शिक्षा,
समावेशी
दृष्टिकोण, बाल-केंद्रित
शिक्षण और
नवाचार
आधारित विधियों
को समाहित
किया गया है।
इससे
शिक्षकों की शैक्षणिक, तकनीकी
और सामाजिक
दक्षता में
सुधार होता है, जो
कक्षा की
विविध
आवश्यकताओं
को सकारात्मक रूप
से संबोधित
करने में
सहायक है।
·
बहु-विषयक
और समावेशी
दृष्टिकोण: यह
कार्यक्रम
विद्यार्थियों
को विविध विषयों
जैसे भाषा, सामाजिक
विज्ञान, विज्ञान, गणित, कला
व तकनीकी कौशल
से परिचित
कराता है।
इसके साथ ही
यह स्थानीय
संस्कृति, बाल
मनोविज्ञान, नैतिक
मूल्यों और
समावेशी
शिक्षण को भी
महत्व देता
है। इसका
उद्देश्य ऐसा
शिक्षक बनाना
है जो
विविधताओं को
समझे,
नवाचार करे
और
संवेदनशीलता
के साथ कार्य
करे।
3. चुनौतियाँ: एकीकृत शिक्षक शिक्षा कार्यक्रम
हालाँकि
एकीकृत
शिक्षक
शिक्षा
कार्यक्रम (ITEP) शिक्षकों
के समग्र
विकास और
शिक्षक
शिक्षा की
गुणवत्ता
सुधारने की
दिशा में एक
प्रभावशाली
प्रयास है, फिर
भी इसके
प्रभावी
कार्यान्वयन
में कई व्यावहारिक
समस्याएँ और
चुनौतियाँ
सामने आती हैं।
यह कार्यक्रम
जहाँ एक ओर
विषय और
शिक्षण प्रशिक्षण
का समन्वय
प्रस्तुत
करता है, वहीं
दूसरी ओर इसके
लिए आवश्यक
संसाधनों, प्रशिक्षित
संकाय और
छात्रों की
प्रतिबद्धता
जैसी
बुनियादी
शर्तों की
पूर्ति करना
एक बड़ी
चुनौती है।
भारत जैसे
विविधतापूर्ण
और संघीय
ढांचे वाले
देश में इसे
समान रूप से
लागू करना भी
सहज नहीं है।
इन प्रमुख
चुनौतियों का
विस्तृत
विवरण नीचे
प्रस्तुत है, जो ITEP की
प्रभावशीलता
को प्रत्यक्ष
रूप से प्रभावित
करती हैं।
चित्र 2
चित्र 2 चुनौतियाँ:
एकीकृत
शिक्षक
शिक्षा
कार्यक्रम |
प्रवेश
स्तर पर
अस्पष्टता: एकीकृत
शिक्षक
शिक्षा
कार्यक्रम (ITEP) में
प्रवेश कक्षा 12 के
पश्चात ही
लिया जाता है, जिससे
छात्र आरंभ से
ही शिक्षकीय
पेशे की दिशा
में आगे बढ़
सकें। किन्तु
व्यावहारिक
रूप से देखा
गया है कि इस
आयु में
अधिकांश
विद्यार्थी
करियर को लेकर
पूर्णतः
स्पष्ट नहीं
होते। कई बार
वे सामाजिक
दबाव,
सीमित
विकल्प,
या जानकारी
के अभाव में
शिक्षक बनने
का निर्णय ले
लेते हैं। इस
स्थिति में वे
चार वर्षीय प्रशिक्षण
में प्रवेश तो
ले लेते हैं, किंतु
उनमें
अपेक्षित
प्रतिबद्धता, लक्ष्यबोध
एवं मानसिक
तैयारी की कमी
बनी रहती है।
इसका सीधा
प्रभाव उनकी
शैक्षणिक
गुणवत्ता और
शिक्षण
दृष्टिकोण पर
पड़ता है। अतः
ITEP में
प्रवेश से
पूर्व
छात्रों के
लिए करियर परामर्श, अभिरुचि
परीक्षण और
शिक्षकीय
उपयुक्तता का मूल्यांकन
अनिवार्य
किया जाना
चाहिए।
·
योग्य
प्रशिक्षकों
की कमी: ITEP की सफलता
इस बात पर
निर्भर करती
है कि उसे पढ़ाने
वाले
प्रशिक्षक
कितने दक्ष, बहु-आयामी
और
शिक्षाशास्त्रीय
दृष्टि से समर्थ
हैं। चूँकि यह
कार्यक्रम
विषय ज्ञान और
शिक्षक
प्रशिक्षण
दोनों का
समन्वय करता
है, इसलिए
इसके लिए ऐसे
प्रशिक्षकों
की आवश्यकता
होती है जो
विषय
विशेषज्ञ
होने के
साथ-साथ पाठ्यचर्या, मूल्यांकन, ICT, समावेशी
शिक्षा,
बाल
मनोविज्ञान
और आधुनिक
शिक्षण
विधियों में
भी पारंगत
हों। परंतु
वर्तमान में
अधिकतर संस्थानों
में ऐसे
बहु-दक्ष
संकाय
सदस्यों की
भारी कमी है।
इससे न केवल
कार्यक्रम की
गुणवत्ता
प्रभावित
होती है, बल्कि
छात्र-शिक्षकों
का
व्यावसायिक
विकास भी
सीमित रह जाता
है।
·
संस्थागत
संसाधनों की
सीमाएँ: ITEP को
प्रभावी ढंग
से लागू करने
के लिए उच्च
गुणवत्ता
वाले भौतिक और
शैक्षणिक
संसाधनों की
आवश्यकता
होती है।
इनमें
स्मार्ट
कक्षाएँ, ICT प्रयोगशालाएँ, समावेशी
शिक्षा हेतु
शिक्षण
सामग्री, बाल
मनोविज्ञान
की
प्रयोगशालाएँ, समृद्ध
पुस्तकालय और
प्रशिक्षित
स्टाफ शामिल
हैं। परंतु
भारत के अनेक
शिक्षक
शिक्षा संस्थानों
में यह
अधोसंरचना या
तो अपर्याप्त
है या पूरी
तरह से
अनुपलब्ध है।
परिणामस्वरूप, व्यवहारिक
प्रशिक्षण, विद्यालय-अभ्यास, और
नवाचार
आधारित
शिक्षण बाधित
होता है। जब तक
इन संसाधनों
की व्यवस्था
सुनिश्चित
नहीं की जाती, तब
तक ITEP के
उद्देश्यों
की पूर्ण
प्राप्ति
संभव नहीं हो
सकती।
·
पाठ्यक्रम
का बोझ: ITEP में
छात्रों को एक
साथ विषय
अध्ययन (जैसे
हिंदी,
इतिहास, गणित आदि)
और शिक्षक
प्रशिक्षण
(जैसे शिक्षाशास्त्र, मूल्यांकन, समावेशी
शिक्षा आदि)
का गहन अध्ययन
करना होता है।
यह पाठ्यक्रम
अत्यधिक
विस्तृत और
सघन होता है, जिससे
छात्र-शिक्षकों
पर शैक्षणिक
बोझ बढ़ जाता
है। इस बोझ के
कारण वे
कभी-कभी
मानसिक थकावट, तनाव
या अरुचि का
अनुभव करने
लगते हैं। यदि
शिक्षण
प्रणाली, मूल्यांकन
के तरीके, तथा
समय प्रबंधन
में लचीलापन
नहीं हो, तो यह
सीधा प्रभाव
उनकी सीखने की
क्षमता और समर्पण
पर डाल सकता
है। इसलिए
पाठ्यक्रम की
संरचना में
संतुलन बनाए
रखना अत्यंत
आवश्यक है।
·
कार्यान्वयन
में असमानता: ITEP को
पूरे भारत में
एक समान रूप
से लागू करने
का लक्ष्य
निर्धारित
किया गया है।
परंतु भारत की
संघीय
प्रणाली, विभिन्न
राज्यों की
शैक्षिक
नीतियाँ, संसाधन
उपलब्धता और
संस्थागत
क्षमताएँ एकरूप
नहीं हैं।
परिणामस्वरूप, कुछ
राज्यों ने ITEP को
आंशिक रूप से
अपनाया है, कुछ
प्रयासरत हैं, और
कुछ अभी तक
योजनात्मक
स्तर पर ही
हैं। इससे
पाठ्यक्रम की
एकरूपता, मूल्यांकन
प्रणाली, प्रशिक्षकों
की नियुक्ति
और छात्र चयन
प्रक्रिया
में अंतर
उत्पन्न हो
जाता है। यह
असमानता
कार्यक्रम की
गुणवत्ता और
उद्देश्य
दोनों को
प्रभावित
करती है। जब
तक सभी
राज्यों में
नीति,
क्रियान्वयन
और निगरानी की
समरूप
व्यवस्था नहीं
होती,
तब तक ITEP
की
राष्ट्रीय
स्तर पर सफलता
अधूरी ही
रहेगी।
4. सुझाव
·
प्रवेश
प्रक्रिया को
परामर्श-आधारित
और रुचिनिर्धारित
बनाया जाए: ITEP में
विद्यार्थी
कक्षा 12
के बाद ही
प्रवेश लेते
हैं, जब
वे करियर
विकल्पों को
लेकर भ्रमित
रहते हैं। ऐसे
में यह आवश्यक
है कि प्रवेश
से पूर्व उन्हें
उचित करियर
परामर्श, अभिरुचि
परीक्षण और
व्यक्तित्व
मूल्यांकन की
सुविधा दी जाए, जिससे
वे शिक्षक
बनने के प्रति
स्वयं को मानसिक
रूप से तैयार
कर सकें और
उनकी
प्रतिबद्धता भी
स्पष्ट हो।
·
प्रशिक्षकों
के निरंतर
पुनःप्रशिक्षण
की व्यवस्था
सुनिश्चित की
जाए: ITEP
में विषय
अध्ययन और
शिक्षण
प्रशिक्षण
दोनों सम्मिलित
होते हैं, अतः
इसके लिए ऐसे
प्रशिक्षकों
की आवश्यकता होती
है जो
बहु-दक्ष हों।
प्रशिक्षकों
को नवीनतम
शैक्षणिक
प्रवृत्तियों, तकनीकी
उपकरणों, समावेशी
शिक्षा तथा
मूल्यनिष्ठ
शिक्षण विधियों
में
प्रशिक्षित
करना आवश्यक
है, ताकि
वे
छात्र-शिक्षकों
को 21वीं
सदी की
आवश्यकताओं
के अनुरूप
प्रशिक्षित
कर सकें।
·
संस्थानों
को तकनीकी एवं
वित्तीय
सहायता प्रदान
की जाए: ITEP
को
सफलतापूर्वक
लागू करने के
लिए स्मार्ट
क्लासरूम, ICT लैब, पुस्तकालय, डिजिटल
संसाधन,
इंटर्नशिप
सहयोग आदि की
आवश्यकता
होती है। सरकार
एवं संबद्ध
निकायों को
चाहिए कि वे
संस्थानों को
इन सुविधाओं
के लिए
पर्याप्त
वित्तीय
अनुदान तथा
तकनीकी
सहायता
प्रदान करें, जिससे
छात्रों को गुणवत्तापूर्ण
प्रशिक्षण
मिल सके।
·
छात्रों
के मानसिक
स्वास्थ्य और
मार्गदर्शन
हेतु परामर्श
केंद्र
स्थापित हों: ITEP का
पाठ्यक्रम
गहन और
बहुआयामी
होता है, जिससे
विद्यार्थियों
पर शैक्षणिक
दबाव बढ़ सकता
है। इसलिए
प्रत्येक
संस्थान में
मानसिक
स्वास्थ्य
सहयोग हेतु
काउंसलिंग
सेंटर की स्थापना
की जाए,
जहाँ छात्र
भावनात्मक, शैक्षणिक
और करियर
संबंधी
समस्याओं के
लिए मार्गदर्शन
प्राप्त कर
सकें।
·
राज्यों
में समान
कार्यान्वयन
हेतु एक केंद्रीय
निगरानी
तंत्र की
स्थापना हो: भारत
जैसे
विविधतापूर्ण
देश में
राज्यों की प्रशासनिक
नीतियाँ और
संसाधन
अलग-अलग होते
हैं। इससे ITEP का
कार्यान्वयन
असमान हो सकता
है। अतः एक
केंद्रीय
निगरानी
संस्था या
प्राधिकरण की
आवश्यकता है, जो
पाठ्यक्रम की
एकरूपता, प्रशिक्षक
गुणवत्ता, मूल्यांकन
प्रणाली और
संसाधन वितरण
की नियमित
निगरानी करे
और राज्यों के
बीच समरसता
बनाए रखे।
5. निष्कर्ष
एकीकृत
शिक्षक
शिक्षा
कार्यक्रम (ITEP) भारत
की शिक्षक
शिक्षा
प्रणाली में
गुणात्मक
परिवर्तन की
दिशा में एक
नवोन्मेषी और
दूरदर्शी पहल
है। यह
कार्यक्रम न
केवल विषय
ज्ञान और
शिक्षक
प्रशिक्षण को
समेकित करता
है, बल्कि
छात्र-शिक्षकों
को आरंभ से ही
एक पेशेवर और
नैतिक शिक्षक
के रूप में
तैयार करता
है। NEP
2020 द्वारा
सुझाए गए
डिजिटल
साक्षरता, समावेशी
दृष्टिकोण, आलोचनात्मक
सोच और नैतिक
मूल्यों जैसे 21वीं
सदी के शिक्षण
तत्वों को ITEP में
समाहित किया
गया है।
हालाँकि, इसके
कार्यान्वयन
में योग्य
प्रशिक्षकों
की कमी,
संसाधनों की
अनुपलब्धता, पाठ्यक्रम
का भार और
राज्यों में
असमान कार्यान्वयन
जैसी गंभीर
चुनौतियाँ
हैं। इनका समाधान
किए बिना इस
कार्यक्रम की
पूर्ण सफलता संभव
नहीं है। यदि
नीति-निर्माताओं, संस्थानों
और शिक्षकों
द्वारा
समन्वित प्रयास
किए जाएँ, तो ITEP भारतीय
शिक्षक
शिक्षा
प्रणाली को
वैश्विक मानकों
के समकक्ष
लाने में
सक्षम हो सकता
है। यह न केवल
शिक्षा की
गुणवत्ता
बढ़ाएगा, बल्कि एक
समावेशी, नैतिक और
उत्तरदायी
समाज की
स्थापना में
भी सहायक
सिद्ध होगा।
None.
None.
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