ROLE OF ART AND MUSIC IN RELIEVING STRESS, DURING AND AFTER COVID-19's LOCKDOWNकोविड-19 लॉकडाउन और उसके
पश्चात् तनाव दूर
करने में
कला और
संगीत को भूमिका Dr. Sunita Gupta 1 1 Associate Professor and HOD, Department of DRG. and PTG. D.S. College, Aligarh |
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Received 15 January 2022 Accepted 19 February 2022 Published 03 March 2022 Corresponding Author Dr Sunita Gupta, guptasunni.14@gmail.com DOI 10.29121/granthaalayah.v10.i2.2022.4514 Funding:
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and reproduction in any medium, provided the original author and source are
credited. |
ABSTRACT |
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English: Indian
art presents in the form of art from the science of the body to the science
of every corpus of the mind, from earth to sky, north to south, east to west,
and from Kashmir to Kanyakumari as the subject of its stream of thought. Is.
Animals, vegetation, sound, mind, mind, intellect, earth, space, sky,
constellations, oceans, rivers, mountains, mountains, animals, birds, forests
are all contained in Indian paintings. The artist and musician feel the
beauty and sound of nature in every particle of the world through emotions
and imagination. Trying to see each side from a new perspective, presents it.
Art and music are the sumptuous expressions of the artist's feelings and
perceptions. The purpose of this expression is to provide joy, to create good
feelings in life, to remove social problems and sufferings and to lead human
beings on the best and inspired path through rasaic
artefacts. Hindi: भारतीय कला शरीर
के विज्ञान
से लेकर
मन के
प्रत्येक
कोश के
विज्ञान को, पृथ्वी
से लेकर
आसमान को, उत्तर
से दक्षिण
दिशा को,
पूर्व से पश्चिम
दिशा को,
तथा कश्मीर
से लेकर
कन्याकुमारी
को अपनी
चिंतन धारा का
विषय बनाकर
कला रूप
में प्रस्तुत
करती है।
प्राणी, वनस्पति, ध्वनि, मन्,
चित्त, बुद्धि, पृथ्वी, अंतरिक्ष,
आकाश, नक्षत्र,
बह्याण्ड,
नदियां, पर्वत, पहाड़
पशु -पक्षी,
वन सभी
कुछ भारतीय
चित्रों में समाहित
है। प्रकृति
के कण-कण
में व्याप्त
सौदर्य और नाद
की अनुभूति
कलाकार और संगीतकार
संवेगो और कल्पना
से करता
है। प्रत्येक
पक्ष को
नये-नये आयामों से देखने
का प्रयास
कर प्रस्तुत
करता है।
कला और
संगीत कलाकार के भावों
और बोधों
की सरस
अभिव्यक्ति
है। इस
अभिव्यक्ति
का उद्देश्य
आनन्द
प्रदान करना, जीवन
में शुभ
भावों का उदय
करना, सामाजिक
समस्याओं
और कष्टों
का निवारण
और रसात्मक
कलाकृतियों
के माध्यम
से मानव
को श्रेष्ठ
और प्रेरित
मार्ग पर अग्रसर
करना है।
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Keywords: Art,
Music, Stress, Covid-19, Aesthetic Pleasure, Expression 1. प्रस्तावना कला अंतरंग जीवन का शोध प्रस्तुत करती है। जीवन में
घटित घटनायें चित्रात्मक एवं वर्णात्मक रूप में समाज के सामने प्रस्तुत करती है। आत्म साधना के माध्यम से उसका साक्षात्कार करती है। कलाकार मस्तिष्क रूपी प्रयोगशाला में कल्पना और चेतना के सहयोग से समस्याओं का समाधान करता है। जिससे कलाकार स्वयं तथा प्रेक्षक को अवसाद से बचाता हैं। कलाकार की चेतना द्वारा रचित कृति प्रेक्षक का आंखों से सीधे मस्तिष्क के रास्ते हृदय को प्रभावित करती है और तनाव दूर करने में सहायक होती है। |
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मनः स्थिति एवं परिस्थितियो के बीच अंसतुलन तनाव को जन्म देता है। तनाव मानसिक रोग नही वरन् मानसिक रोगों का मूल कारण है। विषम परिस्थितियों में मनुष्य जन परिस्थितियों का सामना करने में स्वयं को कमजोर महसूस करता है, स्वयं को निर्बल व असमर्थ पाता है तो वह तनावग्रस्त हो जाता है। तनाव के मुख्यतः दो भेद किये जा सकते है 1- मध्यम और इच्छित तनाव जैसे कि प्रतियोगी खेल, खेलते समय महसूस करता है। उसे यूस्ट्रेस्स (Eustress) कहा है। 2-बुरा, असंयमित, अतार्किक या अवांछित तनाव जिसे विपत्ति (Distress) कहा जाता है।
तनाव चितंन से आरम्भ होता है। जब हम किसी बात की चिन्ता करते है तो वह तनाव में परिवर्तित हो जाती है, उसका परिणाम हमारे मन, मस्तिष्क एवं व्यवहार पर पड़ता है। कोविड-19 के कारण मनोवैज्ञानिक विषाक्तता आ गई। नकात्मक प्रभाव ने मनुष्य को घेर लिया। तनाव कार्य करने की शक्ति को भी क्षीण करता है। तनाव को बहार आना आवश्यक है। इसके बहार निकलने से व्यक्ति तनाव रहित हो जाता है। कला और संगीत तनाव दूर करने का सबसे अच्छा तरीका है। भावनाऐं जो आपको तनाव दे रही है उनको कला और संगीत के माध्यम से बाहर निकाला जा सकता है क्योकि प्रतिक्रियाएं देने से तनाव दूर हो जाता है। यदि आप चुपचाप रहेगें तो स्थिति खतरनाक हो जाएगी। इसीलिए कला और संगीत के द्वारा प्रतिक्रियाएं देकर तनाव से बचा जा सकता है।
दर्शक को कला कृतियों में अपनी समस्याओं का समाधान मिल जाता है। जिन समस्याओं से वह स्वयं घिरा हुआ महसूस करता है कलाकृतियाँ उसे उनमे बाहर निकालने में सहायक सिद्ध होती है। क्योकि कलाकार सामाजिक जीवन के विविध आयामों का अनुसंधान कर समाज के सम्मुख प्रस्तुत करता है।
कला और संगीत के बिना ना जीवन बढ़ता है और ना मानसिक शांति होती है। कला मानव कल्याण करती है। कलाकार मानव कल्याण के लिए निरन्तर प्रयत्नशील रहता है, मानव कल्याण के लिए विस्तार करता है। कला और संगीत की मूलधारा मानव जीवन के विविध क्षेत्रो को स्पर्श करती हुई दिशा देती है। नई-नई रचनाओं द्वारा कर्त्तव्य और अकर्त्तव्य का बोध कराती है। आन्तरिक जीवन मनोभावों एवं व्यवहारों में नियन्त्रण, संयम व नियम द्वारा आत्मोत्थान का बोध कराती है। कला सत्य की खोज भी करती है और अपनी बात से लोक को सूचित भी करती है। कला के माध्यम से ही आत्मानुसंधान होता है। सामाजिक जीवन के विविध आयामों का अनुसंधान कर समाज के सम्मुख प्रस्तुत करती है। समाज को सचेत करती है और उपदेशित भी करती है। अमानवीय रूपों को कल्पना में पिरोकर जीवन्त और कल्याण कारी स्वरूप प्रदान करती है। महान गायक और कलाकारों ने लोकमंगल का कारक बनकर समाज में जीवन्तता का अलख जगाया है और आगे भी जगाते रहेंगे। जब तक लोक है उनकी कला और संगीत जीवन्त रहेगा।
संवेदनाओं की तंरगों से कलाकार अपने अन्तस में उल्लसित भाव बिम्बो का साक्षात्कार कराकर एक उदात्त और आदर्श जीवन गढ़ता है। इसमे सर्वजन सुख की परिकल्पना दिग्दर्शित रहती है। जहाँ एक ओर दर्शन लोक से दूर ले जाता है वहीं कला लोक में रहकर जीवन को सुघड़ और सुस्ंकृत बनाती है। बुराई से संघर्ष करने में सहायता करती है। काम, क्रोध, लोभ, मोह, दबाव व बल जैसी नकारात्मक शक्तियों से लड़कर उनपर विजय पाने की प्रेरणा देती है। हमारे नैतिक बल को उन्मुक्त करके आत्मशक्ति को बलवान करती है। कोविड-19 के कारण जीवन शैली में परिवर्तन आया है। शारीरिक दूरी बनाये रखने के कारण भावनात्मक स्तर घटा अंसतुलन मनुष्यो के जीवन का अंग बन गया है। ऐसे समय में मानव को सुख और शांति की आवश्यकता महसूस हुई। जो केवल विज्ञान के सहारे सम्भव नही है। ऐसी विषम परिस्थितियों में कला और संगीत से ही भावनात्मक लगाव व जुड़ाव मानव को शांति प्रदान कर सकता है। कला और संगीत की सहचारिता से आत्मिक अनुभूति होती है।
भारतीय संगीत की आत्मा आध्यात्मिक है। संगीत को आध्यात्मिक अभिव्यक्ति का साधन मानकर मोक्ष की प्राप्ति का साधन माना जाता है। मनः शांति, योग, ध्यान, मानसिक रोगों की चिकित्सा आदि भारतीय संगीत के रोगों द्वारा सम्भव है। सृष्टि की उत्पत्ति भारतीय विद्वानो ने नाद से मानी है। सम्पूर्ण बह्याण्ड में नाद व्याप्त है। संगीत और कला आनन्द है और आनन्द ईश्वर का स्वरूप है। संगीत और कला में मन को केन्द्रित करने की एक अत्यन्त प्रभावशाली शक्ति है। मीरा, तुलसी, सूर और कबीर जैसे कवि इसी शक्ति से बह्म के आनन्द में लीन हो गए।
संगीत सुनने से मन मस्तिष्क में नई ऊर्जा, नई शक्ति का संचार होता है। मन और मस्तिष्क पर नकारात्मक प्रभाव को नियन्त्रित कर नकारात्मकता के स्तर को कम करता है जिससे मनशांत होकर नई स्फूर्ति के साथ काम करता है। प्रो वैलेंटाइन कहते है कि संगीत के द्वारा उदास क्षणो में आनन्द के प्रबल भाव का अनुभव होता है। वह मुझे बहुत ही प्रभावशाली ढंग से मुग्ध कर लेता है। कभी-कभी लय और नाद इतनी उत्तेजक और प्रभावशाली होती है कि मेरे हाथ और सिर लय के साथ-साथ हिलने लगते है और अनुभूती की अवस्था में मेरा ध्यान संगीत में रम जाता है। संतायना के अनुसार संगीत संवेगो को प्रभावित करने का सशक्त माध्यम है। ध्वनि प्रभावशाली भाषा का संसार है इसमें हमारे शरीर के आंतरिक तत्चों को उत्तेजित करने की शक्ति है। उसकी लय हमारे मन मस्तिष्क को अभिभूत कर लेती है। शरीर में स्फूर्ति आ जाती है। उसके प्रवाह में वशीभूत होकर उसकी लय के साथ प्रवाहित होने लगते है।
संगीत अन्य कलाओं की अपेक्षा हमारी संवेगात्मक शक्ति को अधिक तीव्रता एवं शीघ्रता से प्रभावित करता है। ध्वनि की क्रिया अधिक सशक्त एवं प्रबल होती है। इसीलिए संगीत हमे आकस्मिक रूप से अपने प्रभाव में ले लेता है। संगीत जिसे अभिव्यक्त करता है, वह शाश्वत, अनंत और भावनात्मक होता है, वह किसी विशिष्ट व्यक्ति के आवेग, प्रेम या इच्छा को व्यक्त नही करता। वह उसे उस असीम विविधता में प्रस्तुत करता है जो संगीत की विशेष एवं अनन्य विशेषता है। संगीत भावना के प्रति उस रूप में सत्य हो सकता है। जिस रूप में भाषा नही हो सकती हम अपने भावों को दूसरे तक संगीत के द्वारा अति प्रभावशाली ढंग से पहॅुचाने में अधिक सफल होते है। संगीत की अनुभूति किसी प्रकाशन की अनुभूति के समान प्रतीत होती है। ऐसा अनुभव करते है कि यह हम पहली बार सुन रहे है। संगीत का प्रदेय सम्प्रेषण न होकर अंतदृष्टि है। प्रेमी अपनी मनः स्थिति को अपने प्रेमी तक पहुंचाने के लिए संगीत का सुगमता से प्रयोग कर सफल होते है।
संगीत हमारी भावना को उद्धेलित करने के साथ अभिव्यक्ति भी करता है। मानवीय भावना के साथ उसका अत्यन्त निकट का संबध होने के कारण मानव की रूचि और आकर्षण संगीत के प्रति विशेष रूप से होता है। संगीत संवेगात्मक जीवन का स्वरात्मक रूप है। संगीत की ध्वनि चेतना को जाग्रत कर अपनी गत्यात्मक संरचना के कारण सजीव अनुभूति के रूप आकार अभिव्यक्त करती है। भावना, जीवन, गति और संवेग सम्प्रेषित करने में संगीत भाषा से अधिक समर्थवान है। उसमें जो संवेग या अनुभूति प्रतिबिम्बित से अधिक गम्भीर होती है। संगीत से जो आनन्द प्राप्त होता है। वह समस्त बंधनो से मुक्त्त होता है। वह स्वयं में जीवन है। उस का स्वरूप रसात्मक और कमनीय है। संगीत के स्वर और बोल मानव को भावनात्मक रूप से प्रभावित कर तनाव को कम करते है। संगीत की लय के साथ मन आनन्दित होने लगता है।
मानसिक दबाव की थकान के कारण मनुष्य एकाकी महसूस कर मानसिक रोग की गिरफ्त में आ जाता है। संगीत के सात स्वर विभिन्न वाद्य यंत्रो द्वारा कंपन और ध्वनि उत्पन्न कर मस्तिष्क की स्फूर्ति को जाग्रत कर नकारात्मक विचारों को सकारात्मक विचारो में परिवर्तन कर एक नई दिशा देते है। प्राचीन समय से प्रचलित राग चिकित्सा आज भी अंर्तमन को उच्च जीवनी शक्ति प्रदान कर जटिल रोग को शिकस्त देने में सहायक है। लयबद्ध श्वास लेने व छोड़ने की एक निश्चित अवधि ध्वनि उत्पन्न करती है, जिसका निरंतर प्रयोग मानव शरीर के मेरूदंड में सातों चक्रो के प्रबंध तक पॅंहुचती है। संगीत ध्यान को केन्द्रित करके अचेतन मन की तंरगो को उत्तेजित करती है। उदाहरण स्वरूप रोते हुए बच्चे को बोलने की अपेक्षा संगीत मन को शांति देने में अधिक प्रभावी होता है। संगीत सुनने से व्यथित मन में खुशी के मनोभाव संवेग जाग्रत हो जाते है। व्यक्ति की मनः स्थिति को ठीक कर सुधार करने की क्षमता भी संगीत में है। नकारात्मक विचारों को छोड़कर सकारात्मक विचारो से जीवन जीने के लिए वह प्रेरित करती है।
संगीत, मांसपेशियों को आराम देता है। मानसिक शांति में बाधक एवं विचलित करने वाले विचारो को दूर करता है। मन को शांति मिलती है इसीलिए वह खुश होने लगता है, सोचने समझने की शक्ति भी तीव्र होने लगती है। अस्पतालो में संगीत का सहारा लेकर शारीरिक उपचार के साथ मरीज का मानसिक उपचार भी किया जा रहा है जिसके परिणाम सकारात्मक आ रहे है। कोविड काल में भी संगीत का सहारा लेकर मरीजों में सकारात्मकता लाने का प्रयास किया गया जिसमें सफलता भी मिली। लखनऊ सिविल हॉस्पिटल की साइकायट्रिस्ट डॉ दीप्ति सिंह कहती है, ‘मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य के विषय में संगीत चिकित्सता के परिणाम रोचक एव सुखद है। इसमें रोग-प्रतिरोधक क्षमता पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है तथा तनाव वाला हार्मोन कोर्टिसोल के स्तर को कम करता है। कोर्टिसोल अधिवृक्क ग्रंथियो की प्रांतस्था में बनता है। फिर पूरे शरीर में पहुँचता है। यह प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया सहित पूरे शरीर की महत्वपूर्ण क्रियाओं को नियंत्रित करता है। शरीर को तनाव का जवाब देने में मदद करने में भी इसकी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है। संगीत से शरीर में इम्यूनोग्लाबुलिन ए भी बढ़ता है। यह प्रतिपिंड (एंटीबाडी) को बढ़ाता है तथा कोशिकाओं को स्वस्थ रखता है।
कला ऐसा माध्यम है जिससे हम जीवन का संचार करते है। कला शब्द छोटा अवश्य है, लेकिन इसका अर्थ विस्तृत है। यह भावो को संचित करने में सहायक होती है। भावों का संचयन कर नया सृजन कर एक संसार रचती है। कलात्मक सृजन की अवस्था में मन- मस्तिष्क तनाव से दूर सकून की अवस्था में आ जाता है। स्वयं द्वारा सृजित रचना को देखकर उसका आनन्द और भी बढ़ जाता है। कलाकार की रचनात्मकता से दर्शक भी भाव विभोर हो जाता है। रचनात्मकता की दुनिया में सैर करने से वह तनाव से मुक्त हो जाता है। तनाव से मुक्त होते ही वह भय मुक्त हो जाता है, क्योकि कलायें चिन्ता, भय व व्याकुलता से मुक्त करती है।
कला में लीन रहने पर मन आह्लाद का अनुभव करता है। अनगिनत कलाकृतियों का सृजन अभी तक हुआ है। लेकिन नई कलाकृति के सृजन पर नवीन भावनायें जागृत होती है नये रूप में जीवन को प्रस्तुत करती है। कलात्मकता, रचनात्मकता, सृष्टि और संस्कृति से समन्वय का विस्तार वादी दृष्टिकोण उजागर करती है। चिन्तन का अपना अलग अलख जगाती है। कलाकृतियां मुल रूप में प्रस्तुत हो एक नया रास्ता दिखाती है तथा जीवन को गतिशीलता प्रदान करती है। इनमें मानव कल्याण, समाज कल्याण एवं राष्ट्र कल्याण की भावना होती है। अनांयास ही कलाकृतियां ऐसे प्रभाव डालती है जो ऊर्जादायी होते है। इसके प्रभाव को केवल अनुभव किया जा सकता है, जिया जा सकता है, वर्णन नही किया जा सकता।
कला जीवंत और स्वस्थ समाज का निर्माण करने में सहायक होती है। कलाकार अपने सृजन में, अपनी कलाकृतियों में सामाजिक भावनाओं का मानव-वृत्तियों से सीधा सम्बन्ध स्थापित करता है। कलाकार के विषय मुख्यतः समाज की समस्याओं और उनके समाधान से सम्बन्धित रहते है। इस उद्देश्य के सृजन में कलाकार का व्यक्तित्व गोण हो जाता है और समाज कल्याण प्राथमिक हो जाता है। यह उसके सृजन में स्पष्ट रूप से झलकता है। कलाकार की प्रतिमा, उसकी आत्मशक्ति एवं उसके कलात्मक तत्व समाज के स्वरूप और भावनाओं के साथ सांमजस्य कर व्यापक रूप प्रदान करता है। वह समाज से कभी अलग नही रह सकता । कलाकार की ही शक्ति है कि वह अदृश्य को सदृश्य और अनकहे को कथानक रूप में प्रस्तुत करता है। कला, कलाकार और समाज एक दुसरे में गुथे हुए है। कलाकार नए भारत के शिल्पी है। अपनी अपनी विधा से नए भारत का स्वरूप अभिव्यक्त करते है।
अतः कला और संगीत मनुष्य की उज्जवला शक्ति को बढाने और दिव्य बनाने में सहायक होती है। यह ज्ञान को प्रकाशित करने वाली नैसर्गिक शक्ति है। कला और संगीत मानव को समग्र दर्शक और दृष्टि प्रदान करती है, उसे प्रभामय करती है। इसी के द्वारा मानव नये अनुभव और नये सृजन में लगा रहता है। कलादृष्टि उसे आत्मज्ञान, आत्मस्वरूप और आत्मबोध की ओर बैचेन करती है यहीं से वह अध्यात्म के उपवन में पहुँचता जाता है। जहाँ मानसिक शांति का अनुभव करता है।
कला साधना आत्म साधना है। कलाकार साधना के द्वारा आत्मा और परमात्मा से संबध स्थापित करता है भौतिकता से क्षणिक आनन्द प्राप्त किया जा सकता है जो स्थायी नही होता। कला मनुष्य को स्थायी आंतरिक आनन्द प्रदान करती है। ईश्वर ने केवल मनुष्य को ही वास्तविक आनन्द का सुख प्रदान किया है। कला और संगीत साधना शांति के द्वार तक ले जाती है। इसी से भीतरी स्वरूप का साक्षात्कार करने तथा उससे भी आगे अनुभव करने के संकल्प के साथ आत्मस्थ होता है।
REFERENCES
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