Granthaalayah

SANSKAR BHARTI RANGOLI: MEDIUM TO CONSERVE TRADITIONAL ART OF RANGOLI FROM EXTRINSIC TO INTRINSIC

बाहरी सज्जा से आंतरिक सज्जा की ओर: संस्कार भारती रंगोली

 

श्वेता शर्मा 1Icon

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1 शोधार्थी, मानविकी और उदार कला विभाग, रवींद्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय भोपाल, इंडिया.

 

 

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Received 14 September 2021

Accepted 14 October 2021

Published 31 October 2021

Corresponding Author

श्वेता शर्मा, Shweta.varad2009@gmail.com

DOI 10.29121/granthaalayah.v9.i10.2021.4338

Funding: This research received no specific grant from any funding agency in the public, commercial, or not-for-profit sectors.

Copyright: © 2021 The Author(s). This is an open access article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution License, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited.

 

 

 

 

ABSTRACT

 

(English)- Indian culture and Art Share an unwavering Connection between them. Indian art provides picturesque Slide view of Indian culture, Rangoli Art is one of the most prominent art among Indian Art forms. This is a floor art, which were basically designed and embossed at main entrance and courtyards. On various auspicious occasions and festivals Rangoli was designed to grant divine blessings of God as well as signifies the prosperity and heartwarming welcome of guests. There are many varites of Rangoli in India

Sanskar Bharti Rangoli is one of the most popular rangoli art of Maharashtra. This art form comprises of many Hindu aesthetics, artifacts and cultural symbols. These symbols bring a distinct feature to Sanskar Bharti Rangoli. This paper aims at conservation of Rangoli art form by shifting its inclination to fabric embossing. These art form can be consummate by fabric printing (Block, screen printing, stencil printing), fabric printing and embroidery can be used by fashion enjoy to uplift the unique experience of traditional colors, designs and styles to conserve these rangoli art forms

Sanskar Bharti Rangoli is designed to facilitate compatibility of shape, area design and group design which brings appropriateness to art form. Ten art designs developed for this paper, on the counter part, five best fabrics painting finalized to paint on home furnishing Textile. Fashion Users appreciated the products designed with traditional Indian Rangoli art, Sanskar Bharti Rangoli. This paper elaborates the efforts and significance of Sanskar Textile fabric.

(Hindi)- भारतीय संस्कृति एवं कला का अटूट संबंध है, जहां संस्कृति की बात आती है वहीं भारतीय कला का रूपांकन नेत्रों में आ जाता है। भारतीय कलाओं में से एक है रंगोली कला। यह भारतीय पारंपरिक फ्लोर आर्ट है जिसे मुख्य द्वार के सामने तथा आँगन में किसी विशेष अवसर अथवा उत्सव व त्यौहारों पर बनाई जाती है, रंगोली न केवल आंगन की सजावट थी अपितु यह ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए, सौभाग्य के लिए एवं अतिथियों के सत्कार के लिए बनाई जाती है। रंगोली के कई प्रकार हैं, उसमें से एक है संस्कार भारती रंगोली जो महाराष्ट्र में अत्यधिक लोकप्रिय है। इसमें कई हिन्दू मान्यता एवं संस्कृति से संबंधित चिन्हों का प्रयोग किया जाता है। संस्कार भारती रंगोली में उपयुक्त होने वाली डिज़ाइनों का होम फर्निशिंग टेक्सटाइल उत्पाद पर विभिन्न वस्त्र अलंकरण जैसे- फैब्रिक प्रिटिंग (ब्लॉक, स्क्रीन प्रिटिंग, स्टेन्सील प्रिटिंग), फैब्रिक पेंटिंग, एम्ब्रायडरी का उपयोग करना जिससे फैशन उपभोक्ता के लिए अद्वितीय डिज़ाइन बनाने अथवा पारंपरिक कला में उपयुक्त रंग, डिज़ाइन अथवा शैली का उपयोग कर रंगोली कला की डिज़ाइनों को संरक्षित करना है। संस्कार भारती रंगोली में उपयुक्त होने वाली आकृति को वर्ग, डिज़ाइन, समूह डिज़ाइन, के लिए अनुकूलित किया गया था।

लेख के लिए कुल दस डिज़ाइन चयनित कर विकसित किए गए थे और फैब्रिक पेंटिंग के द्वारा होमफर्निशिंग टेक्सटाइल पर बनाने के लिए सर्वश्रेष्ठ 05 डिज़ाइन का चयन किया गया। उपभोक्ता के द्वारा भारतीय रंगोली कला संस्कार भारती रंगोली कला का उपयोग कर बनाए गए उत्पाद बहुत सराहे गए। संस्कार भारती रंगोली कला वस्त्रोत्पाद र प्रयोग करके लेख तैयार किया गया है।.

 

Keywords: Sanskar Bharti Rangoli, Traditional Art, Floor Art, Sample

 

 

 

 

 


 

1.     प्रस्तावना

फर्श पर बनाई जाने वाली कला को रंगोली आर्ट के नाम से जाना जाता है। रंगोली कला घर के मुख्य द्वार पर सजावट के लिए बनाई जाती है।  रंगोली प्राचीन भारतीय हिन्दू कला है, यह संस्कृत शब्द रंगावली से लिया गया है। यह किसी विशेष अवसरों पर जैसे किसी उत्सव अथवा विशेष त्यौहारों जैसे- दीपावली अथवा अन्य त्यौहार पर बनाई जाती है। रंगोली सौभाग्य, आरोग्यता, समृद्धि, तथा अतिथियों के स्वागत हेतु बनाई जाती है। सूर्योदय से पूर्व रंगोली बनाने की एक विशिष्ट परंपरा है जिसे घर की महिलाओं द्वारा किया जाने वाला सर्वप्रथम कार्य था, रंगोली बनाते समय सर्वप्रथम आंगन को साफ व स्वच्छ करके पानी से धोने के पश्चात् रंगोली मंत्रों का उच्चारण करके बनाई जाती थी। इसके पीछे धारणा थी कि ये उनके घर को बुरी शक्तियों से बचाएगी। विशेषज्ञ मानते हैं कि रंगोली कला का अभ्यास महाकाव्य से भी पुराना हो सकता है क्योंकि इसका उल्लेख रामायण में मिलता है, जिसमें भगवान राम के स्वागत के लिए अयोध्या वासियों ने उल्लास एवं उत्साह को प्रकट करने के लिए रंगोली बनाई थी। रंगोली कला भारत के विभिन्न हिस्सों में बनाई जाती है। रंगोली कला को अलग-अलग प्रदेश में अलग-अलग नामों से जानते हैं जैसे- गुजरात में सातिया, तमिलनाडु में कोलम, आंध्रप्रदेश में मुग्गुल, कर्नाटक में रंगावली, उत्तर भारत में चैक पूरना, राजस्थान एवं मध्यप्रदेश में माण्डना, बंगाल में अल्पना, उड़िसा में झूंटी, हिमालय में ऐपन, केरला में पोवीडल, महाराष्ट्र में रंगोली अथवा संस्कार भारती रंगोली के नाम से भी जाना जाता है, तात्पर्य है कि रंगोली भारत की सबसे सुंदर तथा मनभावन कला रूपों में से एक है। रंगोली अवसर की खूबसूरती बढ़ाने में अह्म भूमिका निभाती है।

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1.1      रंगोली डिज़ाइन एवं नमूने

पारंपरिक रंगोली डिजाइनों में कई प्रकार की डिजाइन अथवा मोटीफ का प्रयोग किया जाता है। रंगोली में फूल, पत्तियां, बेलों, लताओं, मोर, हंस, मछली, शंख, स्वास्तिक, पशु पक्षी इत्यादि का प्रयोग किया जाता है, अथवा रंगोली में ज्यामितीय, दार्शनिक, राशि चिन्ह, धार्मिक चिन्हों का भी प्रयोग किया जाता है। पारंपरिक रंगोली के नमूनों को हाथों से बनाया जाता था जिसमें बिंदु को आपस में जोड़कर अथवा फ्री हैण्ड डिज़ाइनों द्वारा बनाया जाता था। लेकिन बदलते परिवेश में रंगोली डिजाइनों में भी परिवर्तन आ गए हैं, इन्हें 3डी प्रभाव देकर भी बनाया जा रहा है। आजकल विनाइल स्टीकर का प्रयोग भी रंगोली में किया जाने लगा है जो आजकल के व्यस्त समय में समय बचाने के लिए प्रयोग किए जाते हैं। आज भी बदलावों के बाद भी रंगोली के डिजाइन में कोई विशेष परिवर्तन दिखाई नहीं देता है। रंगोली डिजाइन की किनारे सीधी, कर्व अथवा गोल आकार में  भी बनती है। रंगोली अर्द्धगोलाकार, त्रिकोण, वर्गाकार इत्यादि आकारों में भी बनाई जाती है। इसे कई प्रकार की रेखाओं व आकृति, के द्वारा बनाई जाती है।

                                     

 

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1.2.        रंगोली में रंगों का मेल

प्राचीन समय से रंगोली मुख्यतः सफेद रंग से बनाई जाती आ रही है। सफेद रंग चावल के पावडर से तैयार किया जाता था। सफेद रंग शुद्धता एवं शांति का प्रतीक होता है। चावल के आटा अथवा पेस्ट इसलिए उपयोग किया जाता है क्योंकि यह हिन्दू धर्म में समृद्धि का प्रतीक होता है तथा यह चींटियों, कीड़े अथवा पक्षी का भोजन भी बनता था जो प्राकृतिक संतुलन हेतु अन्य जीवों के लिए उपयोग में आता था। इसके अतिरिक्त पीला रंग हल्दी से तथा सिंदूर अथवा कुमकुम का प्रयोग रंगोली में रंग भरने के लिए किया जाता था। पूर्व समय में प्राकृतिक रंगों से रंगोली के रंग बनाए जाते थे जो रंगोली को और भी आकर्षक बनाने के लिए उपयोग किए जाते थे। वर्तमान में इन रंगों का स्थान रंगीन पावडर ने ले लिया है, इसमें बेस पावडर में रंगों का मिश्रण करके बनाया जाता है। बेस पावडर में रेत, संगमरमर, ईंट की धूल, में रंगों को मिलाया जाता है। इसका अधिकांश प्रयोग डिजाइन बनाने और उन्हें आकर्षक दिखाने के लिए संस्कार भारती रंगोली में किया जाता है। रंगोली में रंग, उत्साह एवं प्रसन्नता को दर्शाते हैं।

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चित्र 7 रंगोली के रंग

                                                                                   

1.3.        मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से रंगोली का महत्व

रंगोली कला हिन्दू धर्म में रंगों का व्यवस्थित आरेख है जिसे ज्यामितिय आकृति द्वारा समानान्तर तैयार किया जाता है जिसमें आकृति दाएँ एवं बाएँ पक्ष में संतुलित दिखाई देती है, जिससे मस्तिष्क के दाएँ  एवं बाएँ ओर समानान्तर प्रभाव पड़ता है। रंगोली शांति एवं उत्साह दोनों का संचार करती है। रंगो का मेल उत्साहवर्धक होता है। रंगों का मनोवैज्ञानिक प्रभाव मन अथवा मस्तिष्क पर पड़ता है जो डिप्रेशन, तनाव, को नियंत्रित करती है। रंगोली समृद्धि एवं खुशहाली का प्रतीक भी मानी जाती है। इसे अतिथि के स्वागत के लिए बनाया जाता है जिससे यह घर में आने वाले आगन्तुकों के मन में खुशी उत्पन्न करती है, जिससे आगन्तुक प्रसन्न एवं सहज हो जाता है, जिससे वातावरण में सकारात्मकता उत्पन्न होती है। रंगोली के डिजाइन मस्तिष्क में गहरा प्रभाव डालते हैं तथा इससे मस्तिष्क प्रतिक्रिया करता है। ऐसा माना जाता है कि रंगोली की अलग-अलग आकृति मस्तिष्क पर अलग-अलग प्रभाव डालती है जैसे त्रिकोण आकार भावनाओं तथा तंत्रिका तंत्र को उत्तेजित करता है तथा साइमोथैरेपी द्वारा भी मस्तिष्क में सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

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1.4 वस्त्र सज्जा में रंगोली का उपयोग

वस्त्र संरचना एवं वस्त्र अलंकरण में कला को प्रमुख स्थान दिया गया है। बगैर किसी कला के आधुनिक वस्त्रों की डिजाइन अर्थविहीन है। पारंपरिक, कलाओं का प्रयोग परिधान एवं वस्त्रों पर काफी समय से किया जा रहा है चाहे कला पेंटिंग के रूप में हो या कोई कलाकृति एवं पोट्रेट के रूप में। टेक्स्टाइल प्रिंट एवं डिजाइन में नित नए प्रयोगों के साथ आधुनिकता लाने का प्रयास किया जा रहा है। आजकल लुप्त होती पारंपरिक कला को वस्त्रों के माध्यम से संरक्षित किया जा सकता है। रंगोली कला को जीवंत बना कर उन्हें घर या आंगन की बाहरी सज्जा से घर में उपयोग में आने वाले वस्त्रों पर विभिन्न वस्त्र अलंकरण की तकनीक से बनाकर संरक्षित किया जा सकता है।

 

1.5 संस्कार भारती रंगोली

संस्कार भारती रंगोली सबसे अधिक महाराष्ट्र में लोकप्रिय है। इसे बनाने के लिए हिन्दू संस्कृति संबंधित चिन्हों का प्रयोग किया जाता है। इसे फ्री हैण्ड बनाया जाता है। संस्कार भारती रंगोली में पारंपरिक रंगों का उपयोग किया जाता है। रंगोली की बाह्य रेखा सफेद रंग से बनाई जाती है। ये आकार में विशाल होती है, इसके अतिरिक्त इसमें रंगो से बेकग्राउण्ड बनाकर ऊपर से सफेद रंग की रंगोली से डिजाइन बनाए जाते हैं। संस्कार भारती रंगोली के नमूने तथा रंग संयोजन ध्यान आकर्षित करते हैं। वर्तमान में किसी भी कार्यक्रम जैसेः- शादी, उत्सव, स्वागत समारोह, सांस्कृतिक कार्यक्रमों अथवा शिल्प मेलों में भी संस्कार भारती रंगोली देखी जा सकती है।

 

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2.    उद्देश्य

इस लेख का उद्देश्य निम्न है:

·        संस्कार भारती रंगोली कला से परिचित कराना।

·        संस्कार भारती रंगोली का वस्त्रोत्पाद पर प्रयोग करना।

·        संस्कार भारती रंगोली के नमूनों का उपयोग कर वस्त्रोत्पाद रेंज तैयार करना।

·        संस्कार भारती रंगोली के नमूनों का वस्त्रों में प्रयोग की संभावना।

 

3.    प्रविधि     

संस्कार भारती रंगोली के नमूनों का प्रयोग घर के बाह्य आंगन की सज्जा से आंतरिक सज्जा की ओर होम फर्निशिंग उत्पाद में विभिन्न वस्त्र अलंकरण तकनीक जैसे- एम्ब्राडरी, फैब्रिक पेंटिंग, ब्लॉक प्रिंटिंग स्टेन्सील प्रिंटिंग, स्क्रीन प्रिंटिंग, एप्लीकवर्क, इत्यादि द्वारा वस्त्रों पर तैयार करना।

पेंटींग कला उपयोग करके होम फर्निश तैयार किए गए हैं। इस हेतु सर्वप्रथम संस्कार भारती रंगोली के डिजाइनों एवं नमूनों का संग्रह द्वितीय स्त्रोत जैसेः- किताबें, फोटोग्राफ, वेबसाइट इत्यादि से करेंगे। इस संग्रह से श्रेष्ठ दस डिजाइन का चयन करेंगे। इन चयनित नमूनों में से पांच सर्वश्रेष्ठ नमूनों का चयन कर उसे फैब्रिक पेंटिंग द्वारा होम फर्निशिंग के लिए उपयुक्त होने वाले वस्त्र जैसे कॉटन, लिनन इत्यादि का प्रयोग होमफर्निशिंग उत्पाद कुशन अथवा बेडशीट पर बनाएंगे।

रंगोली के नमूनों का वस्त्रों पर रूपांतरण नमूने के आकार अथवा डिजाइन की उत्पाद पर उपयुक्तता के आधार पर डिज़ाइन  का संयोजन करके भी बनाएंगे। चयनित नमूने तथा इन नमूनों को फैब्रिक पेंटिंग के द्वारा कुशन अथवा बेडशीट पर प्रयोग कर उत्पाद की स्वीकार्यता को जानेंगे। इन चयनित नमूनों के आकार एवं रंगों में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है।

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चित्र 20 चयनित रंगोली मोटीफ

 

चयनित रंगोली मोटीफ का कुशन कवर अथवा बेडशीट पर फैब्रिक पेंटिंग द्वारा अलंकरण

सं.

चयनित रंगोली के मूल मोटीफ

उत्पाद पर प्रयोग

1

2

3

4

5

 

4.    निष्कर्ष                

यह अध्ययन पारंपरिक संस्कार भारती रंगोली का उपयोग कर वस्त्र उत्पाद में विभिन्न आर्ट द्वारा जैसे फैब्रिक प्रिंटिंग, डिजीटल प्रिंटिंग, स्टेन्सील प्रिंटिंग, ब्लॉक प्रिंटिंग, कढ़ाई द्वारा भी हो सकता है, इसकी पूर्णतः संभावना है। यहां पर फैब्रिक पेंटिंग के द्वारा उत्पाद बनाए गए हैं। इसका उद्देश्य पारंपरिक कला को आधुनिक प्रभाव से लुप्त होने से संरक्षित करने के लिए किया है। इसके मोटीफ में किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया गया । संस्कार भारती रंगोली से बनाए गए उत्पाद को बहुसंख्यक समुदाय द्वारा पसंद किया गया। इस प्रकार रंगोली के डिजाइनों की अमिट छाप कुशन अथवा बेडशीट पर बनाकर इन्हें जीवंत रखा गया है। यह शोध दिए गए उद्देश्य को परिपूर्ण करने में सक्षम है।

 

REFERENCES

http://www.swastikrangoli.com/introduction.html

https://www.culturalindia.net/indian-art/rangoli/index.html

http://rangolimaking.blogspot.com/p/the-rangolis-were-not-only-adoration.html

https://www.arenaflowers.co.in/blog/rangoli-and-rangoli-designs-in-india/

https://www.pbs.org/newshour/extra/1999/10/what-is-fashion/

https://www.richlandlibrary.com/blog/2020-07-15/rangoli-creative-expression-indian-folk-art-through-use-colors

https://artsandculture.google.com/story/rangoli-for-diwali/sQWxwh-VUtKR3A?hl=en

https://designyoutrust.com/2014/06/rangoli-amazing-folk-art-from-india/

https://www.indianeagle.com/travelbeats/rangoli-ushering-in-prosperity/

https://indianfolk.com/rangoli-india-riya/

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https://www.google.com/search?sxsrf=ALeKk00repHcnjfYiyh1wxlYgv3b4QAIgQ:1598954979540&source=univ&tbm=isch&q=Sanskar+Bharti+Rangoli&sa=X&ved=2ahUKEwj6zcS828frAhUJCsAKHRD8D-kQsAR6BAgJEAE&biw=1231&bih=636

https://education.asianart.org/resources/making-rangoli-a-celebration-of-color/

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