ShodhKosh: Journal of Visual and Performing ArtsISSN (Online): 2582-7472
नाचने, वाले
बाल कलाकारों
को ढूंढ
निकाला गया।
जिनमें अनुज
राम कार्तिक
राम, फिरतू
दास, कल्याण
दास महन्त,
बर्मना
लाल जी जैसे
प्रतिभावान व
निष्ठावान शिष्य
श्रेष्ठ
गुरूओं को
प्राप्त हुए।
गुरू जयलाल
महाराज अच्छन,
द्वारा
घंटो नृत्य का
रियास कराया
गया। अभिनय व
लास्य अंग की
शिक्षा गुरू
लच्छू महाराज
जी द्वारा हुई
। इस प्रकार
रायगढ़ दरबार
मे कत्थक
नृत्य का सर्वागीण
विकास हुआ। प0 भगवान
दास माणिक
लिखते है कि ’’
राजा चक्रधर
सिंह के दरबार
मे कर्मचारी
या तो संगीत
कार थे या फिर
विद्वान लेखक
और कवि। यह
कहना मुश्किल
है कि उस समय
रायगढ़ दरबार
या कि उस समय
रायगढ़ राज
दरबार या संगीत
विश्वविद्यालय।’’
Bhagwan Das Manik Mahant (n.d.) और यहीं
से सिलसिला
शुरू हुआ
कत्थक नृत्य
की बन्दिशो को
रचने का।
“महाराजा
चक्रधर सिंह
ने अनेकों
बोल-परणों की
रचना की जो
नर्तनसर्वस्वम
और मुरजपर्णपुष्पाकर
में दर्ज है।
बोलों की रचना
कर लेने के
बाद दरबार के
सभी नर्तकों
से इन बोलों
की प्रस्तुति
करवाई जाती
है। एक ही बोल
को अनेकों
प्रकार से
किया जाता था
और जब सर्वसम्मति
से किसी नर्तक
द्वारा
प्रस्तुत विशेष
अंग को
स्वीकृति मिल
जाती थी तब
उसे अन्तिम
रूप दे दिया
जाता था।“Bhagwan Das Manik Mahant (n.d.) यूँ
तो रायगढ़
घराने का
नृत्य लखनऊ व
जयपुर घराने की
मिला-जुला
स्वरूप है
किन्तु रायगढ़
घराने की
विशेष
बन्दिशे इसे
सभी घरानों से
भिन्न कर देती
है और
रायगढ़ घराना
सर्वथा ही
विशिष्ट
स्थान बना
पाता है।
“रायगढ़ घराने
की प्रमुख
विशेषता यह है
कि यहाँ की
रचनाओं मे
नाट्य के
तत्वों का
समावेश देखने
को मिलता है।
प्रत्येक
रचना मे
शब्दों का चयन
इतना सटीक और
सुन्दरतापूर्वक
किया गया है
कि उसकी अनुकूल
प्रस्तुति से
उस रचना के
नाम में निहित
भाव साकार हो
उठते है। “Bhagwan Das Manik Mahant (n.d.) ‐‐‐‐‐‐” यहाँ की सभी
रचनायें
शब्दात्मक,
काव्यात्मक,
ध्वन्यात्मक,
दृश्यात्मक,
भावात्मकता
और रसात्मक
है। “Bhagwan Das Manik Mahant (n.d.) रायगढ़
घराने की
रचनाये 15
श्रेणीयों
में विभक्त
है। जिनमें से
प्रकृति
प्रधान
रचनायें, प्रणी
प्रधान
रचनाये व
वनस्पति
प्रधान रचनाएं
रायगढ़ घराने
को अन्य सभी
कथक घरानों से
प्रथक करती
है। डॉ भगवान
दास माणिक
लिखते है कि ’’
जहां एक ओर
प्रकृति में
घटित घटनायें
प्राकृतिक
वातावरण, वनस्पति
आदि से
संबोधित
रचनाये है
वहीं दूसरी और
प्रकृति में
स्वछन्द रूप
से विचरण करते
पशु-पक्षियों
के गुण, धर्म, स्वभाव और
आचरण आदि से
संबोधित
रचनायें भी देखने
को मिलती है
पर राजा
चक्रधर सिंह
ने इन रचनाओं
को नर्तन सर्वस्वम
और मुरज
पर्णपुष्पाकर
मे दर्ज किया
है। राजा साहब
को प्रकृति से
बेहद लगाव था।
प्रकृति में
घटित सभी
घटनाओं का
ध्यानपूर्वक
चिन्तन मनन
करने के
उपरान्त
उन्होंने
प्राकृतिक
घटनाओं से
संबोधित
अनेको रचनाये
की है। 2.
दल बादल
परन दल
बादल परत की
खास विशेषता
है कि इसका
प्रथम बोल
’नगन’ है जो
अन्य किसी परन
मे देखने को
नही मिलता ।
धेत, तधेत,
तडन्न,
धाधा
बादलों का गरज
को दर्शाता
है। तिहाई की
दुत गति
संभवतः वर्षा
की बूंदो को
दर्शाती है।
धेतधेत
दिगिन्नाडधित
बोल से दम को
भरा गया है।
जो संभवतः
बादलो की
गड़गड़ाहट है।
सुप्रसिद्ध
विद्वान डॉ पी0 डी0 आर्शीवादम
का विचार है
कि “दलबादल का
अर्थ बादलों
का समूह है।
वर्षा ऋतु में
आकाश की ओर देखें
तो काले
बादलों का
समूह मे चलते
हुए देखा जा
सकता है। “ दलबादल 3.
घुमड़
बादल परन जिस प्रकार
वर्षा ऋतु का
आगमन होता है।
घुमड बादल परन
में काले-काले
बादलों का
चित्रण
गर्जना, बिजली की
चमक से आन्नद
व श्रृंगार रस
की अनूभूति
होती है। घुमड़बादल 4.
गीतांगी
सावनी परन मिश्र
जाति के छनद
में रचित इस
परन में सावन
के महीने में
बादलों की गरज
की गीतमर्या
प्रतिध्वनि
का चित्रण इस
बन्दिश मे
दिखाई देता
है। इसी
प्रकार
प्रकृति की
रचनाओं में
चमक बिजली कड़क
बिजली परन भी
उतकृष्ट रचना
है। इसी
श्रंखला मे एक
विशेष परन ’’
जिसका नाम
बादल, बिजली
पक्षी परन है।,
की रचना
भी राजा साहब
की प्रकृति
संबोधित अनुपम
रचनाओं में से
एक ही इसकी
पहली पंक्ति
में बादलों की
गरज, दूसरी
पंक्ति में
बिजली की
कड़कड़ाहट का
साथ चमकना,
तीसरी
पंक्ति में
वर्षा और चैथी
पंक्ति में मेंढक,
मोर, पपीहा आदि
पक्षियों की
हर्षाेल्लास
के साथ किलकारी
अथवा बातचीत
का सुन्दर
वर्णन देखने को
मिलता हैं।
प्रस्तुत है।
बादल बिजली
पक्षी परन । गीतांगी
सावनी (मिश्र
जाति) रायगढ़
घराने ने
उपरोक्त सभी
परने घराने के
नर्तको
द्वारा विशेष
आदर के साथ
नाची जाती है।
और नर्तक परन
की विशेषता
बताकर ही
पढन्त कर प्रस्तुति
देते है। रायगढ़
घराने मे राजा
चक्रधर सिंह
ने पशु-पक्षियों
से संबोधित भी
अनेक रचनायें
की है। इनकी इस
रचनाओं से भी
ऐसा प्रतीत
होता है कि
प्रकृति को
प्रत्येक चल
अचल से उन्हें
प्रेम था। कुछ
रचनाये पढ़कर
तो ऐसा लगता
है कि
पशु-पक्षियों
की इन परनों
को रचने से
पूर्व उनकी
दिनचर्या की
कितनी
सूक्ष्मता से
अध्ययन किया
होगा। राजा
साहब ने रायगढ़
घराने में
बहुत सिद्ध
परन गज विलास
परन इसी का
धोतक है। गज
विलास परन के
ही अनेक
प्रकार रागयढ़
के नर्तको
द्वारा
प्रस्तुत
किये जाते है।
कुछ परन हाथी
के चित्र पर
आधारित है।
कुछ परनों मे
हाथी की सूंड
से लेकर पूंछ
तक का वर्णन है।
निम्नलिखित
परन हाथी की
मंदमाती चाल
पर आधारित है।
5.
गज
विलास परन एक
अन्य रचना नागराज
के आन्नद की
अनुभूति
कराती है।
चाँदनी राम
में नाग देव
अपनी बांबी से
निकलकर खुले मैदान
में चारों तरफ
इधर-उधर विचरण
करते हुए बाद
में अपनी
बांबी में ही
चले जाते है। गजविलास
6.
नागरंग
परन उपरोक्त
परन में क्डान
किततक
तागंतित बोल
पर नाग बांबी
से निकलकर
देखता है।
धदिगन धदिगन बोल
पर साँप की
लहराती हुई
पूंछ का वर्णन
तथा तकधुमकिट
तक धा तिहाई
में स्वछंदता
से नाग मैदान
मे विचरण कर
बांबी मे
वापिस पहुचता
है। इसी
प्रकार
पक्षियांे के
चहचहाहट व कलख
पर आधारित है।
कलख
परन एक अन्य
परन मतस्य रंगावली
पर मतस्य
रंगावली पर इस
घराने की विशेषता
है। नागरंग 7.
मतस्य
रंगावली परन उपरोक्त
परन में पहली
पंक्ति का में
तेटे का अर्थ
तट से है और
तड़ाग का अर्थ
झील से है।
अर्थात अर्थ
है। झील के तट
से उपर।
तदोपरान्त एक
पक्षी जो एक
मछली को पकडने
के लिए झील
में ताक रहा
है। फिर मतस्य
की चाल जो
पानी के जैसी
है। जो तीव्र
गति से मुडना
व आगे बढ़ना
दर्शाता हैं
अन्त में धरन
मीन का अर्थ
मछली पकडने व
धडन्न धा का अर्थ
मछली पकड़ कर
उड़ जाने से
हुआ है। रायगढ़
दरबाद के
नर्तक गुरू प0 कल्याण
दास महंत इस
परन को अपनी
प्रत्येक प्रस्तुति
में किया करते
थे। मत्स्यरंगावली 8.
मत्तमयूर
परन एक
अन्य परन मयूर
नृत्य व मयूर
की चाल पर
आधारित है। यह
भी रायगढ़
घराने की
प्रकृति पर ही
आधारित एक
अनुपम बंदिश
है जो मत्त
मयूर नाम से जानी
जाती है। उक्त
परन मे जो एक
उन्नमत मयूर
अपने पंखों को
फैला कर इधर-उधर
घूम रहा है।
पैरो को उठा
कर गर्दन को
आगे-पीछे करता
हुआ आन्नदमय
होकर नृत्य कर
रहा है, कभी कूदकर
अपने स्थान से
पलट जाता है
और अन्त में
तिहाई के बोल
ऐसे प्रतीत
होते है कि अब
पक्षी उड़ा जा
रहा है। मत्तमयूर यह
उनमत्त मयूर
से सम्बन्धित
रचना है।
इसमें - ·
धात्रकधिकिटकत
घेघेतिटकिटता ·
धा-नधिकिट
धात्रकधिकिट
कत ·
घेघेतिट
घेघेतिट
दिनदिन ·
धात्रकधिकिटकतघेघेतिटकिटता इसके
अतिरिक्त कुछ
रचनाये ऐसी भी
है जिनके केवल
नाम मात्र से
भी प्रकृति
चित्रण हो
उठता है। जैसे
- रक्त पुष्पी
परन। मुक्ता
प्रष्प परन,
सुरप्रिय,
विजय सार,
इच्छगंधा,
जवाकुसुम,
हेमपुष्प,
गेंधपुष्पी
आदि अनेक ऐसी
परने है जो
रायगढ़ के कथक
के प्रकृति
प्रेम को
दर्शाती है। रायगढ़
घराने के
अतिरिक्त का
ऐसा कोई भी
घराना नही है
कि जिसकी
बंदिशो में
प्रकृति के
प्रति इतना लगाव
हो। प्रत्येक
बंदिश में ऐसा
प्रतीत होता है
मानो प्रकृति
स्वयं नाचने
लगी हो। रायगढ़
घराने के
नर्तक आज भी
इन बंदिशो को
नाचकर अपने दर्शक
गण को प्रकृति
के समीप ले
जाते है। Refrences Mahant, B. D. M. (2015). Kathak Gharana Raigad. BR Rhythms, 8, 52, 54, 55.
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