ShodhKosh: Journal of Visual and Performing Arts
ISSN (Online): 2582-7472

GRAFFITI ART OF CHANDVAD RAJPRASAD चांदवढ़ राजप्रासाद की भित्तिचित्र कला

GRAFFITI ART OF CHANDVAD RAJPRASAD

चांदवढ़ राजप्रासाद की भित्तिचित्र कला

 

Dr. Sushma Jain 1

 

1 Retired Principal, Shubhankan Fine Arts College, Indore, India

 

 

 

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Received 15 June 2021

Accepted 15 July 2021

Published 21 July 2021

Corresponding Author

Dr. Sushma Jain sushmajain.artist@gmail.com

DOI 10.29121/shodhkosh.v2.i2.2021.26

Funding: This research received no specific grant from any funding agency in the public, commercial, or not-for-profit sectors.

Copyright: © 2021 The Author(s). This is an open access article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution License, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited.

 

 

 


 

 

 

 

 

 

 

ABSTRACT

 

English: A small town named Chandvad is situated on the Agra-Mumbai highway between Nashik and Malegaon in the state of Maharashtra. The Holkar's palace at Chandvad was built between 1753 and 1797. Many paintings have been made on the walls of this palace, which are older than the paintings of Rajbara found in Indore, but from the point of view of study, these paintings could be known much later. In 1929 the eminent archaeologist Shri R.D. When the Chandwad palace was surveyed by Banerjee, no importance was given to the painted walls there. After 12 years, the then District Collector of Nashik district, Shri H. F. Knight saw these paintings in AD 1933 and asked Sir J.J. School of Art Bombay Director Mr. H.J. King was invited. Mr. King was very impressed by those pictures, and he studied those pictures closely and sent his report to the Holkar state. The princely state of Holkar again sent Kalaguru Devlalikar ji from Indore to Chandvad for a classified study of those paintings. After about ten years of all these activities, these paintings were preserved in 1944 AD. The frescoes built here were probably built between 1753 and 1797 AD during the construction of the Rajwada. Ketkar (2007-08)

 

Hindi: महाराष्ट्र राज्य के नासिक तथा मालेगांव के मध्य आगरा मुम्बई राजमार्ग पर चांदवढ़ नामक एक छोटा सा कस्बा बसा है। चांदवढ़ स्थित होल्करों का राजप्रासाद 1753 से 1797 के मध्य निर्मित किया गया था । इस राजमहल की भित्तियों पर अनेक चित्र बने हैं जो कि इंदौर में प्राप्त राजबाड़े के चित्रों की तुलना में प्राचीन हैं लेकिन अध्ययन की दृष्टि से इन चित्रों का बहुत बाद में जाना जा सका । 1929 में सुप्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता श्री आर.डी. बैनर्जी द्वारा चांदवढ़ राजमहल का सर्वेक्षण किया गया तब वहां की चित्रित भित्तियों को कोई महत्व नहीं दिया गया। इसके 12 वर्ष बाद नासिक जिले के तत्कालीन जिलाधीश श्री एच. एफ. नाइट ने ई. 1933 में इन चित्रों को देखा और उनके महत्व का सही मूल्यांकन करने के लिये सर जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट बाम्बे के संचालक श्री एच.जे. किंग को आमंत्रित किया गया । श्री किंग उन चित्रों से अत्यन्त प्रभावित हुए तथा उन्होंने उन चित्रों का बारीकी से अध्ययन किया तथा अपनी रिपोर्ट होल्कर राज्य को भेजी । होल्कर रियासत ने पुनः इंदौर से कलागुरू देवलालीकर जी को उन चित्रों का वर्गीकृत अध्ययन करने चांदवढ़ भेजा। इन सब गतिविधियों के लगभग दस वर्षों बाद 1944 ई. में इन चित्रों को संरक्षित किया गया । यहां निर्मित भित्तिचित्र संभवतः राजवाड़े के निर्माण के समय 1753 से 1797 ई. के मध्य निर्मित हुए थे । Ketkar (2007-08)

 

Keywords: Graffiti, Chandvad Rajprasad, Art, भित्ति चित्र, चंदवाड़ राजप्रसाद, कला

 

 


 

1.    प्रस्तावना

चांदवढ़ के जन साधारण की भाषा में यह राजमहल ष्अहिल्याबाई होल्कर का राजबाड़ाष् है। राजबाड़े के मुख्य भाग के द्वितीय तल पर एक कक्ष तथा एक चैड़े बरामदे अथवा छज्जे की दो दीवारों पर सौ से अधिक चित्र बने हैं । कक्ष में रचित चित्रों के रंग अधिक चमकदार हैं किन्तु छज्जे पर बने चित्रों में कलात्मकता संयोजन तथा रेखाओं की बारीकी उच्चकोटि की है । इन चित्रों की शैली से प्रतीत होता है कि यहां पर मालवा तथा राजस्थान के अनेक चित्रकारों ने कार्य किया । Garg (1981) छज्जे की छत लकड़ी की है जिसे गलीचे के समान सुंदर आलेखन से अलंकृत किया गया है । भित्तियों पर बने चित्रों में रामायण से संबंधित विषय तथा कृष्ण लीला के भी चित्र हैं । छज्जे की संपूर्ण दीवार पर कई आले बने हैं उन आलों में तथा उसके आसपास की भित्तियों पर भी चित्रांकन किया गया है । भित्तियों पर निर्मित चित्रों का वर्णन इस प्रकार हैरू:-

  राम सीता एवं हनुमान- लाल पृष्ठभूमि पर एक महल का चित्रण है जिसके प्रत्येक झरोखे एवं बुर्ज के अंदर मानवाकृतियों का चित्रण है। सबसे नीचे बाँयी ओर राम तथा सीता सिंहासन पर विराजमान हैं । उनके समक्ष लक्ष्मण करबद्ध खडे़ हैं । अग्रभूमि में हनुमान जी एक घुटना टेक कर हाथ जोड़े सिर झुकाकर श्रीराम को नमन कर रहे हैं । सभी पुरुषाकृतियों ने मुकुट तथा आभूषण धारण किये हैं स्त्री आकृतियां मराठी धोतीण् मराठी नथ तथा मुक्ता आभूषणों से सज्जित हैं । चित्र का संयोजन उत्तमए रेखांकन सबलए एक चश्म चेहरों पर बड़ी.बड़ी भावपूर्ण आँखें तथा आकृतियों का आभूषणों से अलंकरण मराठा शैली के अनुरूप है।

 हनुमान जी एवं जटायु- यह चित्र दो भागों में चित्रित है उपर के भाग में एक पहाड़ी पर एक बैठी हुई पुरूषाकृति तथा पास ही एक नारी आकृति का चित्रण है । चित्र में हनुमान जी पहाड़ी पर बैठे हैं तथा गरुड़ तेजी से उनकी ओर आ रहा है। अग्रभाग में नदी तट पर विभिन्न प्रकार के पत्तों से युक्त छोटी झाड़ियां अंकित की गई है।

  गज.लक्ष्मी एवं गजेन्द्र मोक्ष- यह चित्र दो आलों के मध्य के स्थान पर चित्रित किया गया है। इस चित्र के संपूर्ण फलक को उपर नीचे दो भागों में विभाजित किया गया है । मध्य भाग में बहुत से पेड़ तथा उसमें भागते हुए हिरण चित्रित हैं । पीछे के भाग में कमलासन पर  विराजित लक्ष्मी जी अपनी दो भुजाओं में छोटे आकार के हाथियों को उठाये हैं जो उनका अभिषेक कर रहे हैं । एक ओर श्वेत वस्त्र तथा दूसरी ओर लाल वस्त्र धारण किये स्त्री आकृति हाथों में माला लिये उनका अभिनन्दन कर रही है। चित्र के अग्रभाग में गजेन्द्र मोक्ष कथानक से संबंधित दृश्य चित्रित है । क्षीर सागर के जल में ग्राह के पाश में बंधे व्याकुल गजेन्द्र की पुकार पर तीव्रगति से आते हुए भगवान विष्णु का चित्रण हैं । सामने की ओर हाथ में सर्प लिये गरूड़ का भी अंकन किया गया है। पृष्ठभूमि में लाल रंग का प्रयोगए आकृतियों की बारीकी तथा अलंकारिक शैली में चित्रण लघुचित्र शैली के समान है । पृष्ठभूमि में लाल रंग लगाने की प्रथा जैन शैली तथा राजपूत शैली के कलाकारों द्वारा लघुचित्रों में थी। Gerola (n.d.)

 

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चित्र 1 गज.लक्ष्मी एवं गजेन्द्र मोक्ष

 

    अष्टभुजी देवी- इस चित्र में एक लाल रंग की पहाड़ी का चित्रण है जिसके शीर्ष पर एक मंदिर तथा दोनों ओर दो.दो पेड़ों का चित्रण है। नीचे की ओर उस पर्वत के गुहाद्वार के आगे एक पेड़ के नीचे कमलासीन श्वेत वस्त्रधारिणी अष्टभुजी देवी का चित्रण है।

घुड़सवार- यह चित्र एक आले में बना है। इस चित्र में काठी तथा आभूषणों से सज्जित गतिमान अष्व की लगाम थामे हुए का मराठा योद्धा का चित्रण है । कई स्थानों से चूना झड़ जाने से चित्र आंशिक रूप से अस्पष्ट है। योद्धा के एक हाथ में तलवार है तथा वह लाल रंग की मराठा शैली की पगड़ी धारण किये है। बाँये पीछे की ओर एक योगी तथा दाँये एक राजपुरूष हाथों में माला लिये देवी का अभिनन्दन कर रहे हैं । यह चित्र एक आले में निर्मित है तथा इसके नीचे की पट्टी पर पेड़ों तथा ऋषि मुनियों के चित्र बने हैं ।

 नौनारीनाम-  इस चित्र की विषय वस्तु इस प्रकार है एक बार श्रीकृष्ण जी को हाथी पर बैठने की इच्छा हुई तब भगवान की इस इच्छापूर्ति हेतु नौ गोपियाँ हाथी बन गई तथा उनकी यह इच्छा पूर्ण की । कृष्णभक्ति की पुष्टिनामी की प्रमुख गोपियोंए विशाखाए चम्पकलताए चन्द्रभागाए ललिताए भामाए चन्द्ररेखाए पद्माए विमला एवं राधा से निर्मित नाम हाथी के उपर कृष्ण को वामधारिणी सहित चित्रित किया गया है । हाथी के आगे तीन स्त्री आकृतियाँ चित्रित हैं एक बिगुल बजा रही है दूसरी के हाथ में ध्वजा तथा तीसरी के हाथ में धनुष है । पीछे की ओर एक श्वेत वस्त्रधारी स्त्री आकृति हाथ में चंवर लिये हैं । उपर की ओर नृत्य करतीए चंवर डुलातीए ध्वजा फहराती तथा डफली बजाती नारियाँ हाथी के साथ चल रही हैं। नीचे के भाग में पांच पेड़ चित्रित है । अग्रभाग के जल में मछलियां एवं सर्प अंकित है। चित्र की पृष्ठभूमि नीले मिश्रित हल्के हरे रंग की है। इसके अतिरिक्त सफेदए लालए पीलेए नीलेए हरेए मटमैले रंगों का प्रयोग किया गया है । यह चित्र अन्य चित्रों की अपेक्षा अच्छी दषा में है । इसी प्रकार का एक चित्र इंदौर राजवाड़े में भी अंकित है।

 

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चित्र 2 नौनारीनाम

 

 कृष्णए राधा एवं रूक्मणी- मालवा में राधा.कृष्ण तथा महाराष्ट्र में कृष्ण के साथ रुक्मणी का चित्रण मिलता है । कृष्ण ने अपनी दाहिनी भुजा से अपनी परम भक्त एवं प्रेयसी राधा को एवं बांयी भुजा से उनकी शक्ति स्वरूप रूक्मणि को आलिंगनबद्ध किया है। आध्यात्म एवं संसार दोनों को अंक में समेटे भगवान श्रीकृष्ण एक कमल के फूल पर खड़े हैं। उपर की ओर शेष स्थान पर बहेलिये का चित्र बना है जो संभवतः उनकी मृत्यु का कारण था।

चित्र 3 कृष्णए राधा एवं रूक्मणी

 

कासुर वध- दो आलों के मध्य का फलक दो भागों में चित्रित है। नीचे के भाग में रामए लक्ष्मणए भरत एवं शत्रुघ्न चारों भाईयों के चित्र बने हैं । अग्रभाग में पानी तथा पृष्ठभूमि में पेड़ चित्रित किये हैं । फलक के उपरी भाग में बकासुर वध का दृश्य है । कृष्ण दोनों हाथों से बकासुर नामक दैत्य जो पक्षी के रूप में उन्हें मारने आया था । उसकी चोंच के दोनों भागों को पकड़े उसका वध कर रहे हैं । कृष्ण नीलवर्णीए पीताम्बरधारीए स्वर्ण मुकुट तथा मुक्ता आभूषण धारण किये है। उनके पीछे उनके दो गोप सखा चित्रित है । अग्रभूमि में पत्तियों से युक्त पेड़ तथा केले के वृक्षों का अंकन है। मध्य के भाग में वृक्ष समूह के बीच दौड़ते हुए गतिशील मृगों का चित्रण है । पेड़ो की पत्तियों के चित्रण में भी विभिन्नता है । चित्र की पृष्ठभूमि लाल है जो कि मालवा शैली के चित्रों की विशेषता है । इस शैली में वर्ण संयोजन में विभिन्न प्रकार के लालए गहरे तथा श्यामता लिए हुए नीले एवं कोमल हरे रंगों का प्रभाव बना रहता है ।Agrawal (n.d.-b)

 गणपति- एक आले के मध्य एक मंदिर के समान आकार में नीचे के भाग में चतुर्भुज गणपति का चित्र हैए शीर्ष पर मुकुटए पीले रंग की धोतीए लाल दुपट्टाए आभूषण तथा चारों भुजाओं में विभिन्न आयुध धारण किये गणपति कमल पर पद्मासन मुद्रा में बैठे हैं । उनके पीछे दो नारी आकृतियाँ चंवर लिये खड़ी हैं। सामने की ओर एक स्त्री हाथों में पात्र लिये हैं तथा दूसरी चंवर डुला रही है सभी स्त्रियों ने मराठी धोतीए नथ तथा अन्य मुक्ता आभूषण धारण किये है। मंदिर के उपर के झरोखों में मध्य के बुर्ज के नीचे दो स्त्रियां एक दूसरे से वार्तालाप कर रही ळें

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चित्र 4 गणपति

 

  शेषशायी विष्णु- भगवान विष्णु सप्तफनी शेषशय्या पर विश्राम की मुद्रा में अंकित है। नाभि से उत्पन्न कमल के उपर चारों शीर्ष पर एक मुकुट तथा हाथों में वेद धारण किये ब्रह्मा जी विराजमान हैं विष्णुजी के निकट लक्ष्मी जी बैठी हैं तथा उनके चरण दबा रही है । उनके दांयी ओर गरुड़ तथा बाँयी ओर ब्रह्मर्षि सूत करबद्ध खड़े हैं । पृष्ठभूमि में पांच पेड़ों का अंकन है । अग्रभाग में पानी की लहरों पर सर्प तथा मछलियां चित्रित हैं रंग समय के साथ धुंधले पड़े गये हैं चित्र की रेखायें सबल एवं महीन है।

 

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चित्र 5 शेषशायी विष्णु

 

गोवर्धन धारण एवं रासलीला- संपूर्ण चित्र दो आलों के मध्य के लंबे फलक पर तीन भागों में बना है । उपर के भाग में नृत्यरत कृष्ण एवं राधा का चित्र है । कृष्ण अपनी पारंपरिक वेशभूषा में है तथा राधा लाल रंग की मराठी धोती एवं ब्लाउज धारण किये है । हल्की मटमैली पृष्ठभूमि पर वृक्ष एवं लताएँ अंकित हैं । मध्य के भाग में एक विशाल वृक्ष के नीचे कमल के फूल पर स्थित राधा के हाथों को पकड़े कृष्ण उनके साथ नृत्य कर रहे हैं । वृक्ष के दोनों ओर मयूर एवं गोपिकाएँ चित्रित हैं । सामने की ओर जल में मछलियों का अंकन है। सबसे नीचे के भाग में कृष्ण द्वारा गोवर्धन धारण का दृश्य है। कृष्ण अपनी चार भुजाओं में से एक में गोवर्धन पर्वत धारण किये हैं पर्वत पर पेड़ पशु तथा मंदिर का अंकन है। सभी आकृतियों के पैरों में नीले कमल के फूल चित्रित हैं । संपूर्ण चित्र की पृष्ठभूमि हल्के मटमैले रंग की है। अग्रभूमि में झाड़ियांए पानी में लहरों तथा मछलियों का चित्रांकन है ।

 

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चित्र 6 गोवर्धन धारण एवं रासलीला

 

कार्तिकेय एवं गणेश जी- एक लंबे फलक पर एक ओर चतुर्भुज गणेश जी कमलासन पर विराजित हैं तथा दूसरी ओर भगवान कार्तिकेय अपने वाहन मयूर पर बैठे हैं उनकी चार भुजाओं में से एक में वीणा तथा अन्य एक में डमरू हैं । मयूर अलंकारिक शैली में चित्रित है गणेश जी तथा कार्तिकेय बादामी रंग सेए मयूर का चित्रण नीले रंग से किया गया है। काले रंग से अलंकरणए आभूषण तथा संपूर्ण चित्र की सीमा रेखायें अंकित की गयी हैं । मध्य में एक नारी आकृति का चित्रण है जो संभवतः माता पार्वती है ।

 अयोध्या वापसी-  हाथियों से जुते हुए रथ पर तकिये का सहारा लिये राम विराजमान है । चूना झड़ जाने से राम की आकृति तथा उनके साथ बैठी आकृति जो संभवतः सीता ही है वह भी स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं दे रही। हाथी पर महावत तथा रथ के अग्रभाग पर सारथी बैठा है। रथ के आगे ध्वजा है एक पुरूषाकृति रथ के आगे पैदल चलते हुए घूमकर देख रही है। मध्य के भाग में चार पुरूषाकृतियां विभिन्न वाद्य बजा रही है। दो के हाथ में बिगुल एक के हाथ में नगाड़ा तथा अंतिम पुरूष के हाथ में बिगुल है। उपर के भाग में भी एक रथ बनाया गया है जिसे एक घोड़ा खींच रहा है। घोड़े का चित्रण गतिमान है तथा उस पर एक पुरूषाकृति बैठी है। संभवतः यह चित्र राम की अयोध्या वापसी का है ।

 

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चित्र 7 अयोध्या वापसी

 

राम विजय- इस चित्र के दाँयी तथा बाँयी ओर राजागण अपने.अपने स्थान पर विराजमान है। मध्य के भाग में रावण दस सिर एवं दोनों ओर दस.दस भुजाओं सहित विशाल आकार में चित्रित है। रावण भूमि पर गिरा हुआ बनाया गया है जो उसकी पराजय का सूचक है । उनके समक्ष हनुमान तथा सामने की ओर नल.नील उपहास करते चित्रित हैं । पीछे के भाग में सीताजी हथिनी पर बैठी है सामने खड़े रामजी को हथिनी अपनी सूंड से विजय माला पहना रही है उनके साथ लक्ष्मण भी है। संपूर्ण चित्र का रेखांकन काले रंग से किया गया है । कहीं.कहीं हल्के एवं गहरे नारंगी रंग का उपयोग कर चित्र को आपूरित किया है चित्र का संयोजन अत्यंत प्रभावशाली है।

 बैकुण्ठ धाम- इस दृश्य में नारद मुनि सहित ब्रह्माए गणेशजीए सूर्यए चन्द्र इत्यादि देवगण अपनी व्यथा कहने देवी के पास पहुंचे हैं । कमलासीन देवी लाल साड़ी पहने अष्टभुजी चित्रित है उनके पीछे एक सेविका मराठी वेशभूषा में खड़ी है ।

 शिव पूजन- यह दृश्य किसी उत्सव दृश्य की तरह प्रतीत हो रहा है । चित्र के मध्य एक नारी आकृति शिवलिंग की पूजा कर रही है उसके दोनों ओर की स्त्रियां हाथो में कलश लिये खड़ी है । पीछे की आकृतियां नगाड़ेए बिगुलए डफली आदि वाद्य बजा रही हैं। सामने की दो पंक्तियों में स्त्री तथा पुरुषाकृतियाँ नृत्य कर रही है । संपूर्ण चित्र में तीस से भी अधिक मानवाकृतियों का चित्रण कर भव्य उत्सव के समान वातावरण की सृष्टि की गयी है। सभवतः इस चित्र के पीछे के भाग में पूजा तथा सामने के भाग में रासनृत्य का दृश्य अंकित था ।

 राजा.रानी एवं परिचारक-  लाल रंग की पृष्ठभूमि पर चित्र के मध्य में पशुचर्म के बने आसन पर एक स्त्री पुरुष युग्म चित्रित है। इनके दाँयेए बाँये दोनों ओर धोती एवं षिखा धारण किये दो पुरुषाकृतियां हैं । पृष्ठभूमि में नारियल के पेड़ हैं तथा अग्रभूमि में पानी के किनारे पत्तियों से युक्त झाड़ियां हैं ।

राम जन्म- महल के अंदर का दृष्य है । आसन पर संभवतः राजा दषरथ आसीन है चूना झड़ जाने से चेहरा एकदम अस्पष्ट हो गया है दशरथ की आकृति समस्त आकृतियों से बड़ी चित्रित है । सामने की ओर दो नारी आकृतियां बहुत से आभूषणों से सज्जित है । इस चित्र के उपर के भाग में पंक्तिबद्ध झरोखे बनाये गये हैं जिन सभी में स्त्री व पुरूष आकृतियाँ बैठी दिखाई गयी हैं ।

 श्रृंगार- लाल पृष्ठभूमि पर केले के तथा अन्य पत्तियों से युक्त पेड़ों का अंकन है । प्राकृतिक वातावरण में तकिये का सहारा लिये देवी सीता बैठी है उनके समक्ष बैठी एक बहन उनके हाथों का श्रृंगार कर रही है दूसरी पीछे खड़ी उनका आंचल ठीक कर रही है । बांयी ओर एक बहन तथा दाहिनी ओर की भव्य स्त्री आकृति उनकी जननी है ।

 युद्ध दृश्य- यह बाली तथा सुग्रीव के मध्य हुए युद्ध का दृश्य है। सभी वानरों के हाथों में आयुध ढालए तलवारए मुद्गर इत्यादि है एक आकृति दूसरी आकृति से युद्ध कर रही है ।

 भगवान विष्णु के अवतार- यह चित्र फलक पांच भागों में विभक्त कर चित्रित किया गया है । सबसे उपर के भाग में कूर्मावतार का चित्रण है मछलियों एवं सर्प से भरे जल में कूर्म के मुख से भगवान श्रीहरि हाथो में शंख चक्र एवं पद्म लिये प्रकट हो रहे हैं । दूसरे भाग में नृसिंह अवतार का चित्र है विष्णु नृसिंह रूप में गोद में हिरण्यकष्यप को लिये उसका वध कर रहे है । बांयी ओर एक पुरूष तथा दांयी ओर एक नारी आकृति करबद्ध खड़े उनकी स्तुति कर रहे हैं । तीसरे भाग में बना चित्र बहुत अधिक नष्ट हो गया है। मध्य में एक बड़े पेड का चित्रण है । जिसके बांयी ओर कृष्ण तथा उनके समक्ष अर्जुन खड़े हैं चैथे भाग में कंस वध का प्रसंग चित्रित है । कृष्ण तेजस्वी एवं क्रोधित मुद्रा में चित्रित हैं तथा बलपूर्वक कंस के बाल खींच कर उसे सिंहासन से उठा रहे हैं। सबसे अंतिम पांचवा चित्र कल्कि अवतार का है काठी आभूषण एवं छत्र से सज्जित एक घोड़े के पीछे चलते हुए चंवर लिये एक मनुष्याकृति चित्रित है।

 कृष्णलीला- इस चित्र फलक को भी तीन भागों में विभाजित कर उपर के भाग में कृष्ण को राधा के बाल संवारते हुए चित्रित किया है। कृष्ण चार भुजाओं वाले नीलवर्ण पीताम्बरधारी चित्रित है । उनके पीछे एक द्वारपाल खड़ा है।    

चित्र 8 कृष्णलीला

 

मध्य के भाग में कालिय नाग को एक पेड़ के नीचे खड़े कृष्ण द्वारा बीन बजाकर यमुना नदी में उपर बुलाने का दृश्य चित्रित है। बलराम    कृष्ण को रोकने की चेष्टा कर रहे हैं । समीप ही एक गोप भयभीत सा खड़ा है। कालिया नाग के आसपास उसकी दो नागिन रानियां चित्रित हैं । यमुना के जल में मछलियां तथा लहरें अंकित की गयी हैं । सबसे आगे के भाग में कदम्ब के वृक्ष के नीचे त्रिभंग मुद्रा में कमल पर स्थित कृष्ण वेणुवादन कर रहे हैं समीप ही राधा एवं अन्य गोपिकायें भी कमल पर खड़ी अंकित हैं । वंशी की तान से मुग्ध एक गाय उनके पीछे तथा दो गायें उनके समक्ष यमुना नदी के तट पर बैठी हैं । कृष्ण एव राधा दो चश्म तथा गोपिकायें एक चष्म अंकित हैं । मध्यकाल में राजस्थानी शैली में एक चष्म चेहरे अधिकता से अंकित किए गये ।Agrawal (n.d.-a) यह चित्र अन्य चित्रों से अच्छी अवस्था में है । अन्य मटमैले रंगों के साथ शुद्ध लाल रंग का प्रयोग चित्र के सौंदर्य को द्विगुणति कर रहा है।

छज्जे के समीप ही एक कक्ष जो लगभग 12ष् ग 15ष् के आकार का है वहाँ भी चारों और की भित्तियों पर चित्रांकन किया गया है । यहाँ पर रामायण या विष्णु अवतारों से संबंधित चित्र चित्रित किए गए हैं।

यहाँ नृसिंह अवतार चित्र के मध्य में विष्णु नृसिंह रुप में आसन पर विराजमान हो गोद में हिरण्य कश्यप के लिए उसका वध कर रहे है। दूसरे चित्र में परशुराम ढाल तलवार लेकर सहस्त्रबाहु से युद्ध कर रहे हैं।

 तीसरे चित्र में अशोकवाटिका में हनुमान जी एक हाथ में गदा लिए दूसरे हाथ से एक विशाल पेड़ को उखाड़ रहे हैं। गंगावतरण चित्र में शिवजी की जटा से एक धारा के रूप में गंगा अवतरित हो रही है । बाँयी ओर राजा भागीरथ करबद्ध महादेव की स्तुति कर रहे हैं।

 एक चित्र में दोनो भुजाओं में हाथी धारण किए चर्तुभुजी देवी गजलक्ष्मी का चित्रण है । एक अन्य चित्र माखन चुराते हुए कृष्ण का है। माता यशोदा माखन बनाते हुए एक स्त्री से बात कर रही हैए मौका पाकर कृष्ण माखन चुरा रहे हैं । घर के अंदर का दृष्य है छत पर छींके से भरी माखन की भरी मटकियाँ लटक रही हैं । यहीं पर एक ब्रह्मा जी का चित्र तथा लक्षमण एवं कुंभकर्ण का युद्ध करते हुए चित्र अंकित है।

 एक चित्र श्रीहरि विष्णु जी का है जो पद्मासन मुद्रा में समस्त आयुधों शंखए चक्रए गदा के साथ चैथी भुजा में देवी लक्ष्मी को गोद में लिए है।

 एक चित्र राम सीता विवाह का है। यहाँ एक चित्र में राम और सीता दुल्हे दुल्हन के रुप में चित्रित है । रामचन्द्र जी सिर पर मोर धारण किए एवं सीता हाथ में वरमाला लिए खड़ी है। पास खड़ी  नारी आकृति सीता को सिर पर हाथ रखकर आर्शीवाद दे रही है जो संभवतः उनकी माता है। बाँयी और गदाधारी हनुमान भी चित्रित है। राम कुंभकर्ण युद्ध में दो घोड़ों से युक्त रथ के मध्य राम धनुष की प्रत्यंचा पर तीर चढ़ाए युद्ध़ को तत्पर हैं। पृष्ठभूमि में कुंभकर्ण विशाल एवं विकराल रूप में हाथों में तलवार लिए युद्ध करता हुआ चित्रित है। गणेश जी का चित्रण हैए रिद्धि सिद्धि दोनों ओर चंवर डुला रही है । कल्कि अवतार की घोड़े के रूप में चित्रित किया गया है । त्रिपुरासुर संहार चित्र में शिव रौद्र रूप में अपने त्रिशूल से त्रिपुरासुर दैत्य का संहार कर रहे हैं।

 एक अन्य चित्र में धायल मेघनाद को सती सुलोचना रथ में युद्धभूमि से लेकर पलायन कर रही है। श्वेत पृष्ठभूमि पर काले रंग से संपूर्ण चित्र का रेखांकन कर उसमें सलेटी लाल तथा काले रंगों में चित्र को आपूरित किया गया हैण् कक्ष में चित्रित लगभग सभी चित्रों में इसी तकनीक का प्रयोग किया गया है । चांदवढ़ राजप्रासाद में मराठाकालीन फूल पत्तियों से युक्त आलेखन चित्रित है। दूर से देखने पर संपूर्ण दीवार ही चित्रित जान पड़ती है समीप से देखने पर बोध होता है कि एक ही दीवार पर विभिन्न विषयों को आर्कषक ढंग से संयोजित कर लघु चित्र शैली के समान चित्र रचना की गई है ।

 छज्जे के साथ लगे कक्ष में बने चित्रो में रंग चमकदार हैं किन्तु छज्जे की भित्तियों पर बने चित्रों की तुलना में संयोजन एवं रेखायें कमजोर प्रतीत होती हैं । ऐसा प्रतीत होता है कि ये चित्र बाद में अन्य किसी कलाकार द्वारा बनाए गए हैं। वर्तमान में इस कक्ष में नगर पालिका का ऑफिस संचालित हो रहा है ।

 होल्कर कालीन भित्तिचित्रों में चांदवढ़ राजप्रासाद के चित्र सबसे प्राचीन होते हुए भी कला शैली की दृष्टि से अत्यन्त उत्तम एवं परिष्कृत हैं । चित्र संयोजन श्रेष्ठए रेखाओं में लयात्मकताए आर्कषक वर्ण योजनाए एक चश्म चेहरों पर बड़ी.बड़ी भावपूर्ण आँखे तथा आकृतियों का अलंकरण उच्चकोटि का है। वर्तमान मे कला की इस धरोहर की संरक्षण की अत्यन्त आवश्यकता है ।

 

REFERENCES

Agrawal, G. K. (n.d.). Ashok Prakashan Mandir Kala or Kalam [Ashoka Prakashan Mandir Art and Pen]. Ashok Prakashan Mandir, Aligarh, 133, 152.

Garg, R. S. (1981). History of Painting in Indore Nagar. Ahilya Souvenir.11, 41.

Gerola, V. (n.d.). Bharatiya Chitrakala [Indian Painting]. Mitra Prakashan Pvt. Limited, Allahabad, 141.

Ketkar, K. S. (2007-08). Maratha Painting of Malwa, Miniature. 29.

 

 

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