ShodhKosh: Journal of Visual and Performing Arts
ISSN (Online): 2582-7472

THEME DISPLAY IN NATIONAL ART EXHIBITION

राष्ट्रीय कला वार्षिकियों में प्रदर्शित प्रकरण

 

Dr. Ruchi Rani 1Icon

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1 Assistant Professor, Department of Painting, Sri Dronacharya Postgraduate College, Dankour, Gautam Budhnagar, India

 

 

 

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Received 10 March 2021

Accepted 11 April 2021

Published 11 April 2021

Corresponding Author

Dr. Ruchi Rani, gargdrruchi21@gmail.com

DOI 10.29121/shodhkosh.v2.i1.2021.23

Funding: This research received no specific grant from any funding agency in the public, commercial, or not-for-profit sectors.

Copyright: © 2021 The Author(s). This is an open access article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution License, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited.

 

 

 


 

 

 

ABSTRACT

 

English: The Lalit Kala Academy established for the purpose of greater publicity of visual arts across the country, has been organizing the National Art Exhibition since its inception. This prestigious exhibition brings together the best selected works of visual arts under one roof and that of art reflect the latest trends. These exhibitions are a showcase of the achievements of artist working in the field of painting of ceramic sculpture graphic or photographic painting in the country. The Academy has organized 61 National Art Exhibition so far. These exhibitions represent the vivid and representative specimens of the latest trends in contemporary art.

I am presenting some evidence related to the painting related to the National Art Exhibition from 1990 to 2000 A.D.

 

Hindi: पूरे देश में दृश्य कला के वृहत् प्रचार.प्रसार के उद्देश्य को लेकर स्थापित ललित कला अकादमी आरंभ से ही राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी का आयोजन करती आ रही है।यह प्रतिष्ठित प्रदर्शनी विभिन्न कला के श्रेष्ठ चयनित कार्यों को एक छत के नीचे लाती है और कला की नवीनतम प्रवृत्तियों को प्रतिबिंबित करती है। यह प्रदर्शनियाँ देश में पेंटिंग सिरेमिक मूर्ति शिल्प ग्राफिक अथवा छायाचित्र के क्षेत्र में कार्यरत कलाकारों की उपलब्धियों की प्रदर्शन मंजूषा है। यह अकादेमी अब तक 61 राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी का आयोजन कर चुकी है। यह प्रदर्शनियाँ समकालीन कला की नवीनतम प्रवृत्तियों के व्रहत् और प्रतिनिधि नमूनों को दर्शाती है।

 

 

Keywords: National, Arts, Annuities, Featured Cases, राष्ट्रीय, कला, वार्षिकियों, प्रदर्शित प्रकरण

 

1.    प्रस्तावना

        1990 से 2000 ईस्वी तक की राष्ट्रीय कला वार्षिकी में प्रदर्शित चित्रों में प्रकरण

        चित्रकला के लिए विषय वस्तु वही महत्व रखती है जो रेल गाड़ी के लिए इंजन इसके बिना उसका काम नहीं चल सकता वास्तविकता तो यह है कि जब कलाकार विषय वस्तु की तलाश नहीं करता है उसे स्वीकार नहीं करता है तो उसका अपना रूप प्रद तरीका और उसकी अपनी कलागत मान्यताएं ही उसका विषयवस्तु बन जाती है और जब यह भी नहीं होता तब वह स्वयं अपनी कला की विषय वस्तु बन जाता है तब वह अपने ही मस्तिष्क की दशाओं का प्रकाशन करने लगता है।"

           “कलाकार किस वस्तु में क्या रहस्य देखता है उसमें जो सौंदर्य देखता है उसी कला की श्रेष्ठता और मूल्य का अंकन किया जाता है कलाकार की प्रेरणा का स्त्रोत कुछ भी हो यदि

 


वह वस्तु के उस सत्य और सौन्दर्य का रेखांकन अथवा चित्रण करता है जो अभी तक किसी  अन्य ने नहीं किया है तो उसकी रचना उस दृष्टिकोण से मौलिक बन जाती है अनुभूति तथा उसकी अभिव्यंजना यह दो चीजें हैं जिसके कारण जनता की परिवर्तनशील रूचि के सामने भी कोई चित्र अपनी श्रेष्ठता बनाए रख सकता है।“ Sinha (n. d.)

 आज कला के नए आयामए नए मापदंडए नई परिभाषाएंए नए स्वर चारों और उभर रहे हैं।  नए.नए वादों के प्रचलन ने अभिव्यक्ति में अनेक माध्यमों को नई परिभाषा प्रदान की है। आज कलाकार चित्र की विषय वस्तु को त्याग कर धरातल के विन्यास लिपि मूलक गुणों के निर्वाह आकारों के तनाव रंगों के आकर्षण और विकर्षण तथा चाक्षुष बुनावटों की ओर अधिक आकर्षित हो रहे हैं। आज का कलाकार विषय के प्रति इतने सचेत नहीं है अपितु फिर भी उसने अपनी कला को शैलीए तकनीक एवं संयोजन के बंधनों में बांधने का प्रयास किया हैं।आज की कला जनसामान्य से हटती जा रही हैए उसका झुकाव बुद्धिजीवी वर्ग की ओर बढ़ता जा रहा है।

 राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी के क्षेत्र में साधारण रूप से विविध प्रकार की प्रवृतियां देखने को मिलती हैं। यह एक महत्वपूर्ण परिवर्तन है। आज का भारतीय कलाकार इस नए वातावरण को आत्मसात करने के लिए तैयार हो चुका हैए आज प्रत्येक क्षेत्र का कलाकार अपनी अलग अस्तित्व की पहचान के लिए निरंतर प्रयत्नशील है और दिन प्रतिदिन कुछ ना कुछ नया करने के लिए प्रयासरत है। जिससे प्रतिवर्ष राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी में अनेक नए कलाकारों का काम सामने आता है जो प्रतिवर्ष भारतवर्ष में होने वाले कला के विभिन्न नवीन परिवर्तन को प्रदर्शित करती है। राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी में विभिन्न प्रांतों से आए विभिन्न कलाकारों ने विभिन्न प्रकार के विषय को आधार मानकर चित्र रचना की हैं जो बदलती हुई सामाजिक सांस्कृतिक राजनीतिक और आर्थिक परिस्थितियों पर आधारित है। संपूर्ण दशक के चित्रों को देखकर अनुमान लगाया जा सकता है कि विषय वस्तु के आधार पर चित्रों का वर्गीकरण मूलतः चार वर्गों में विभाजित जा सकता है।

1)     सामाजिक परिवेश का चित्रण

2)     व्यक्तिगत भावाभिव्यक्ति . अधिकांश चित्र इसी वर्गीकरण में आते हैं. भावाभिव्यक्ति के लिए कलाकारों ने कई मार्ग अपनाएं हैं जैसे.

·        अमूर्त अभिव्यंजना

·        मनोवैज्ञानिक स्थिति

·        शीर्षक विहीन

3)     प्रकृति. जिसमें प्राकृतिक दृश्यए पशु.पक्षी आदि।

4)     आध्यात्मिक

 

1)    सामाजिक परिवेश का चित्रण                              

कोई भी कला जिसकी उत्पत्ति अनुभावित सामाजिक यथार्थ से होती है और संवेदनापूर्ण वर्णन या बिम्ब प्रतीको द्वारा सामाजिक यथार्थ के किसी पहलू पर प्रभावशाली टिप्पणी करते हुए उसे मानवीय मूल्य देती हैए यही सामाजिक प्रतिक्रिया  कला कहलाती है। आज के कुछ कलाकार समाज की अस्त.व्यस्त परिस्थितियों को ही चित्रण का विषय मानते हैं। मानव द्वारा मानव का शोषण, तनाव, संघर्ष, स्वर संगति को कलाकारों ने अपनी शैली में प्रस्तुत करके कला को एक नवीन दिशा प्रदान की है।

 ललित कला अकादमी की वार्षिक प्रदर्शनी में अनेक कलाकारों ने सामाजिक परिवेश से संबंधित चित्रांकन किया है जिसमें प्रमुख हैं .

गोगी सरोज पाल ने नारी आतंकित स्थिति उद्वेलन और विषाद का गहन संवेदना से अध्ययन किया है।“स्वयंवरम” 1 और “बीइंग ए वूमेन” 2 प्रति में उन्होंने मानवीय आकृतियों का संक्षिप्तीकरण किया है। उनके दोनों चित्रों में एक आकृति है। यह आकृतियां कुछ क्षुब्ध रंग परिवेश से घिरी हुई हैंए स्वयं आकृतियों को भी रंग मिले हैंए लेकिन जितने ध्यान देने योग्य आकृतियों के रंग हैं उससे कुछ अधिक ध्यान देने योग्य आकृतियों को घेरे हुए रंग हैं जो चित्र कथा का सूत्र थामें हुए हैं। स्वयंवरम् कृति को गोगी सरोज पाल ने दो भागों में बांटा है एक भाग में धरातल में लाल और आकृति में भी लाल रंग है। जो तीव्र भावनाओं को दर्शाता है दूसरे भाग में नीला है और पीले रंग से आकृति को बनाया है। गोगी सरोजपाल ने अपनी बात को कहने के लिए आकृति से अधिक रंगों की ओर ध्यान दिया है।

 ‘गोगी के रंग इस बार अधिक गौरतलब है जाहिर है कि चित्रभाषा का उन्होंने इस तरह एक कठिन रास्ता चुना है ऐसी चित्रभाषा का जिसमें आकृति रूपों से शेष रंगाकारों की संगति न केवल जरूरी होती है स्वयं रंगाकारों को एक अपेक्षित गहराई और विश्वसनीयता मिलना जरूरी होता है नहीं तो रंग केवल चित्र हिस्सों को पूरा किए जाने का साधन भरे जाएंगे।“ Lalit Kala Academy (1990)

  गोगी सरोज पाल के चित्रों की पृष्ठभूमि के रंग किन्ही मानसिक अवसाद और उदिग्नता निराशा लिए हैं जो प्रसन्नता उल्लास विप्लव कामुकता और आवेग के लिए भी हैं।

 के॰ राजे की कृति वास्तविकता को परिलक्षित करती है कि किस प्रकार व्यक्ति आवश्यकता को पूरी करने के लिए किन.किन कठिनाइयों का सामना करता है। के॰

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चित्र 1 https://penguin.co.in/book/the-legends-of-khasak/

 

 राजे की कृति उसी का प्रतिबंध है। उनकी कृति “जीवन  संघर्ष” Lalit Kala Academy (1992) में कुछ व्यक्तियों को  पेड़ पर चढ़ते हुए दर्शाया गया है कुछ व्यक्तियों को धरातल पर और कुछ व्यक्तियों  को पेड़ की चोटियों पर दर्शाया है जो पेड़ पर लगे हुए फलों को पाने के ए व्याकुल हैं। यही कृति संदेश देती है कि किस प्रकार व्यक्ति विभिन्न स्तरों को पार करता हुआ विभिन्न प्रकार की कठिनाइयां उठाकर ही चरम सीमा पर पहुंचता है। उसने सभी आकृतियों को नीले रंग में रंगा हुआ है तथा सिर पर पगड़ी बंधे हुए जो हल्के लाल रंग में रंगी है दर्शाया है। रंगों को संतुलित करने के लिए सफेद रंग से अंडरवियर पहने हुए दर्शाया है जो एक तरह की शक्ति का प्रतीक है। एक - एक रस्सी सभी के हाथ में है उनकी यह कृति शीतलताए आनंद, एकता और भय को दर्शाती है और इस तथ्य को उजागर करती है कि कल्पना प्रवण और निष्ठावान कलाकार परंपरागत सीमाओं में रहते हुए भी सही सूझबूझ के इस्तेमाल से विमुक्तकारी शक्ति प्राप्त कर सकते हैं।

राजीव लोचन की कृति “असलियत का तसव्वुर” Dinman Weekly Magazine (1981) जीवन की एक  गाथा समेटे हुए हैं जो वास्तविकता का सीधा वक्तव्य है। इन्होंने अपने चित्रों में श्वेत और श्याम रंगों से मिली जुली तकनीक का प्रभावशाली प्रयोग किया है।  उनकी इस कृति में एक आकृति को सीढ़ी पकड़े हुए दर्शाया है। किसी वास्तविक दृश्य को देखकर जहां साधारण व्यक्ति इस वक्तव्य को साधारण मान लेता है वहां कलाकार प्रतिक्षण कोई ना कोई कृति का सृजन करने के लिए किसी भी वक्तव्य को रंगों के माध्यम से एक कृति का स्वरूप देने के लिए तत्पर रहता है यह कृति उसी का प्रमाण है।

सी॰एन॰ पाटिल की कृति “ट्राइबल  वूमेन” Lalit Kala Academy (1990) में खेत का दृश्य अंकित है। इसमें कुछ स्त्रियों को सिर पर घास का पूला उठाकर ले जाते हुए दर्शाया गया है जो पूर्ण रूप से वास्तविक जीवन की झलक को दर्शाता है। इस चित्र में पूर्ण रूप से भारतीयता के दर्शन होते हैं। उनकी पेंटिंग अपनी माटी पानी की गंध से  सरोबार  नीति. अनीति  करणी . अकरणीय के तमाम पहलुओं को तार.तार करती हुई कैनवास पर  चित्र की एक नई परिभाषा गढ़ती है।

 

2)    व्यक्तिगत भावाभिव्यक्ति                 

व्यक्तिगत भावाभिव्यक्ति वह कला है जिसका यथार्थ से कोई संबंध नहीं हैंए जो किसी विषय की व्याख्या नहीं करती, कोई कहानी नहीं कहती, यह आत्मा के उस संप्रेषित पक्ष को उजागर करती है जहां संकेत आकार बन जाते हैं, विचार बन जाते हैं। आज का कलाकार किसी एक कृति में स्वत: को अभिव्यक्त नहीं करता  बल्कि उसकी कृतियां उसी निरंतरता का अंग है जो किसी संगीत रचना की तरह समय के साथ साथ चलायमान होती रहती है।

अमूर्त अभिव्यंजनावाद-                   

शिव अनिवेद की कृति “कनसाइंस” Lalit Kala Academy (2000)

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चित्र 2 https://amzn.to/3JBbQus

 

में रंगों की आंतरिक अभिव्यक्ति रंगों का वैचारिक चिंतन पाश्चात्य कला से अप्रभावित है इसमें परंपरा प्रकृति दर्शन की भाषा है दर्शक उसमें उलझता नहीं है बल्कि सौंदर्य व कविता का आनंद लेता है। उनकी कृति में भारतीयता के दर्शन होते हैं।

 राज जैन जो कि 42 वी राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी का सबसे वरिष्ठ कलाकार है उनका चित्र “दीवार” Lalit Kala Academy (1996) शैली की परिपक्वता के साथ.साथ चित्र विषय की गहनता पर प्रस्तुत करता है। जीवन के टेढ़े मेढ़े रास्ते चेहरे पर बनी कटी कटी रेखाएं या फिर जीवन के उलट फेर को सहजता से कह पाना जीवन को करीब से जान लेने जैसा है  दीवार चित्र कुछ ऐसी ही कल्पना का प्रतिरूप है।

 

मनोवैज्ञानिक स्थिति -

मनोवैज्ञानिक स्थिति कला का एक महत्वपूर्ण पहलू या तत्व है जो अपनी सांकेतिकता में मानवीय अभिव्यक्ति की नई ऊंचाइयों तक पहुंचा है।      

मोहन लाल शर्मा की कृति “उड़ान” Lalit Kala Academy (1996) कलाकार की आंतरिक मनरूस्थिति को दिग्दर्शित करती है। जिसमें कुछ पक्षी आकृतियों को उड़ते हुए दर्शाया गया है यह दर्शक को जटिल अंतर्जाल के बीच से ज्ञात दृश्यात्मक परिवेश में ले जाते हैं।

हिरदेय गुप्ता ने अपनी कृति “आजादी के 50 वर्ष” Lalit Kala Academy (2000) को दो भागों में बांटा है जिसमें एक भाग में शासक वर्ग के प्रतीक एक कुत्ते को लेटे हुए दर्शाया है तथा दूसरे भाग में

चित्र 3  Lalit Kala Academy (2000)

 

कुछ मानव आकृति तथा पशु आकृति को हाहाकार करते हुए दर्शाया है जो हमारे देश की स्थिति को उजागर करती है कि किस प्रकार आजादी के 50 वर्ष बीत जाने के बाद भी न जाने कितने लोग भूखे नंगे निर्धनता की आत्मा सह रहे हैं, फुटपाथों पर अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं  अपराध और राजनीति का जाल चारों ओर फैला हुआ है नेताएं देश की परवाह किए बिना कुर्सी के लिए लड़ रहे हैं। भारत की स्थिति सुधरने की जगह बिगड़ती ही जा रही है।

 सी॰एल॰ दत्ता की कृति “द  बॉल्स वर्कर्स” Lalit Kala Academy (1997) में एक नारी आकृति पुरुषाकृति को ढपली और ढोल बजाते हुए गाना गाते हुए दर्शाया है। सारा वातावरण संगीतमय है कुछ पक्षी उड़ते हुएए एक व्यक्ति को सुदूर नाव चलाते हुएएएक व्यक्ति को हल जोतते हुए दर्शाया है जो ग्रामीण आंचल की परिछाप छोड़ता है।

प्रमोद कुमार ने अपनी कृति “आतंक” Lalit Kala Academy (1997) में आतंक की स्थिति को दर्शाया है इस कृति में हम त्रस्त व्यक्ति की

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चित्र 4  Lalit Kala Academy (1997)

 

मानवाकृतियों को और पंजे को देखते हैं जो संपूर्ण मानव परिस्थितियों की सामाजिक त्रासदी को उजागर करती है इनकी रचना का संवेग स्वयं स्फूर्त है।

शीर्षक विहीन -

शीर्षक विहीन में मैंने उन कलाकारों को चयनित किया है जिन्होंने अपनी कृति का कोई शीर्षक नहीं दिया बल्कि अपनी कृति को अनटाइटल्ड लिखकर चित्राकृति को एक दिशा प्रदान की है।

आर॰ बिरादर शेशिराव की कृति “अनटाइटल्ड” Lalit Kala Academy (1991) में हरे रंग की प्रचुरता है मध्य में एक गांधी टोपी पहने हुए एक पुरूषाकृति है तथा ट्यूबवेल का सा आभास है जिसमें

चित्र 5  Lalit Kala Academy (1991)

 

पानी को गिरते हुए दर्शाया गया हैं कुछ ज्यामितीय आकृतियां है शायद कलाकार कलाकृति के माध्यम से विकास का संदेश देना चाहता है अर्थात गांधी के आदर्शों का पालन करने का संदेश देना चाहता है।

नूपुर वाजपेई की कृति “अनटाइटल्ड” Lalit Kala Academy (1991)  में नग्न आकृतियां हैं। जिसमें रूठना मनाना दर्शाया गया है ऐसा लगता है जैसे एक आकृति गुस्से में बैठी है और शदूसरी आकृति उसे खुश करने का प्रयास कर रही है।

अमरजीत चड्डा की कृति “अनटाइटल्ड” Lalit Kala Academy (1997) में एक बिना मुंह के एक  पशु आकृति को बनाया है इस आकृति को कलाकार ने आदिवासी शैली में चित्रित किया है। कलाकार इस आकृति के माध्यम से क्या कहना चाहता है शायद कलाकार स्वयं भी स्पष्ट नहीं है।

 

3)    प्रकृति

कलाकार प्रकृति से अलग रहकर एक अधूरे पन का एहसास करता है प्रकृति से जुड़ाव मन - प्राणों में नई चेतनाए नए रंग भर देता है। धरती से आकाश तक बिखरे प्राकृतिक रंगए नीला आकाशए हृदय के निर्मल विस्तार उगते वृक्ष उन्नत जीवन का प्रतीक है। एक प्रकृति ही तो है जो हृदय के उल्लास तथा कोमल अभिव्यक्ति की साथी है प्रकृति का रूप जिसमें धूपए वर्षाए नदीए वृक्ष हैं इन सबने व्यक्ति को सहज ही प्रेरित किया है। प्रकृति में निश्छलता भरी है कोई छिपाव नहीं है कोई रोक टोक नहीं है उसका कोष उन्मुक्त है।

 आज के कलाकारों का उद्देश्य समाज में प्रकृति के प्रति लगाव और जुड़ाव की भावना उत्पन्न करने का प्रयत्न है उस प्रकृति को कलाकारों ने अपने चित्रों के माध्यम से संवारा है इन कलाकारों का उद्देश्य यही है कि जिस तरह प्रकृति निस्वार्थ स्नेह का पर्याय है उसी प्रकार प्रत्येक मनुष्य को स्वार्थ हीन होकर एक दूसरे के प्रति कल्याण की भावना रखते हुए व्यवहार करना चाहिए।     

बी॰ एन॰ आर्य की कृति “इमेज” Lalit Kala Academy (1997)  में कलाकार ने लोकाचार संस्कृति और पौराणिक आख्यानों से प्रभावित होकर काल्पनिक चित्रण किया है। उनकी इस कृति में कलारूपों में समाहित विभिन्न संस्कृतियों और उनके अलग.अलग आदर्शों को इस प्रकार संयोजित किया है। कि वह एक दूसरे को दृढ़ता प्रदान करें तथा प्रोत्साहित करें न कि एक दूसरे से संघर्ष करें और उसे उत्पीड़ित करे।

   

चित्र 6  http://goaartgallery.com/arya_b_n.htm

 

पी॰ आर॰ राजू की कृति “प्रकृति” Lalit Kala Academy (1997)  कल्पना पर आधारित होती है प्रतीत होती है इसमें कलाकार ने कुछ फूल पत्ती तथा बादल जैसा आभास देने का प्रयास किया

चित्र 7 Lalit Kala Academy (1997)

 

है। कलाकार ने समतल तथा कोमल रंग लगाए हैं नदी को बहते हुए तथा नाव को चलते हुए दिखाने का प्रयास कलाकार ने किया है संपूर्ण पृष्ठभूमि नीले सफेद और ग्रे रंग से रंगी है।

विनोदा रेवन्नासिद्धिहां ने अपनी कृति “क्रांति” Lalit Kala Academy (1991) में प्रकृति का प्रस्तुतीकरण किया है जिसमें समुद्र में उठती लहरों में के प्रभाव का अंकन है।

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चित्र 8 https://www.saatchiart.com/art/Painting-SEASCAPE/934791/8828800/view

 

राजस्थान के कैलाश चंद शर्मा की गति “ट्रा नेचर” Lalit Kala Academy (1996) में कुछ वानरों को दर्शाया गया है जिसकी पूंछ को इतनी लंबी दिखाया है कि वह चोटी तक पहुंच गई है।एक तरफ कुछ बदरों को पेड़ पर चढ़ते हुए उतरते हुए दर्शाया है तो दूसरी तरफ एक व्यक्ति को बंदर का खेल दिखाते हुए दर्शाया है जिसे बच्चे बड़ी ही उत्सुकता से देख रहे हैं।

 

4)    आध्यात्मिक

प्राचीन काल से ही व्यक्ति पराभौतिक शक्ति से प्रभावित रहा है इस शक्ति को उसने ईश्वर और देवी.देवताओं के रूप में मान्यता दी है। कुछ लोग पत्थरों को भगवान के रूप में रखकर जैसे - शालिग्राम तथा देवी देवताओं की मूर्तियों को ऐश्वर्य रूप जानकर आराधना करते हैं जिससे उनका चित्त आध्यात्म की ओर झुके तथा मानसिक शांति बनी रहे। ऐसे ही कुछ कलाकारों ने देवी-देवताओं पर आधारित रचना की है जो समाज को संदेश देना चाहते हैं कि ईश्वरीय सुख सबसे बड़ा सुख है। यह भौतिक जगत हमें मानसिक और शारीरिक रूप से प्रभावित करता रहता है। ईश्वर ही लोगों को कहना देता है उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करता है। अत: पराभौतिक  अथवा आध्यात्मिक विषय को चित्रकला में समायोजित करने का चलन आदिकालीन है इन्हीं विषयों का चित्रण आधुनिक चित्रकारों ने किया है ।

रमेश तेरदल का चित्र “जन्म और मृत्यु” बरूप चौधरी का चित्र “अंतर्मन की यात्रा”,आर॰ एस॰मंडल का चित्र “पुनर्जन्म” राजेंद्र चौधरी की रचना “आत्मा” कमल गोस्वामी का “निर्वाण” ऐसी रचनाएं हैं जिसमें देश की मिट्टी के कण- कण से बोलती ऋषि मुनियों की वाणी का निचोड़ है। हम चाहे तो भी स्वयं को इससे अलग नहीं कर सकते क्योंकि आध्यात्मिक चेतना सामाजिक मूल्यो का पूरक हैं। इस का प्रमाण भारतीय पुराने मंदिरों एवं गुफाओं में तराशी महान मूर्ति रचनाएं हैं, अजंता के लघु चित्र है।

राजीव लोचन साहू ने यामिनी राय से प्रभावित होकर अपनी कृतिष्राम और सबरी” Lalit Kala Academy (1996)  अंकित की है। जिसमें सबरी को भगवान राम को बेर खिलाते हुए दर्शाया है।राम के हाथ में बेर है और सबरी के हाथ में बेर की टोकरी है। कुटी के दरवाजे पर लक्ष्मण को दर्शाया है। राजीव लोचन साहू की यह कृति पौराणिक तथ्यों पर आधारित है।

 बारीकी गौरंगा की कृति “गिरी  गोवर्धन” लोक जीवन पर आधारित है। गिरी गोवर्धन कृति में उन्होंने श्री कृष्ण की आकृति को पर्वत उठाते हुए दर्शाया है। आसपास स्त्री पुरुष आकृति खड़ी हुई है जो कुछ तो कृष्ण को पकड़े हुए हैं कुछ उनकी तरफ दृष्टि उनकी लगाए हुए हैं। कुछ पशु आकृति भी समीप खड़ी है जो ऊपर मुंह उठाकर श्री कृष्ण की और देख रही हैं इनकी  इस कृति में पूर्णतया भारतीयता के दर्शन होते हैं।

राजस्थान के शांतिलाल शर्मा ने अपनी कृति “मेलोडियस रिदम” में श्री कृष्ण को बांसुरी बजाते हुए दर्शाया है। तथा मध्य में कुछ पशु आकृति को गोलाकार में चक्कर लगाते हुए दर्शाया है जो लय का प्रतीक है पृष्ठभूमि में किले के दरवाजों को चित्रित किया गया है।

पुष्पा आर्य की कृति “देवी” लोक कला पर आधारित है उनकी यह  कृति अत्यंत सरलीकृत रूप है जिसमें चार हाथ है और एक हाथ में कमल का पुष्प सुशोभित है सिर पर मुकुट है और बाएं तरफ सूर्य को दर्शाया गया है।

 इस प्रकार आज की विषय वस्तु कला को अभिव्यंजना की दृष्टि से स्थूल और सतही कही जा सकती है फिर भी सक्रिय या निष्क्रिय रूप में कलाकृति में अवश्य प्रतिबिंबित होती है। वह समकालीन जीवन व परिवेश के प्रति कलाकार की सुक्ष्म दृष्टि व संवेदनशीलता दिखाती है। इसी से कलाकृति में रूचि आती हैए कला की महानता का मूल्यांकन उसकी विषय वस्तु की मानवीय सभ्यता से ही निर्धारित किया जा सकता है।

 

REFERENCES

Dinman Weekly Magazine (1981, November 28), 82.

Lalit Kala Academy (1990). Annual National Art Exhibition. New Delhi. https://lalitkala.gov.in/showdetails.php?id=102 

Lalit Kala Academy (1991). Annual National Art Exhibition. New Delhi. https://lalitkala.gov.in/showdetails.php?id=102 

Lalit Kala Academy (1992). Annual National Art Exhibition. New Delhi. https://lalitkala.gov.in/showdetails.php?id=102  

Lalit Kala Academy (1996). Annual National Art Exhibition. New Delhi. https://lalitkala.gov.in/showdetails.php?id=102 

Lalit Kala Academy (1997). Annual National Art Exhibition. New Delhi. https://lalitkala.gov.in/showdetails.php?id=102 

Lalit Kala Academy (2000). Annual National Art Exhibition. New Delhi. https://lalitkala.gov.in/showdetails.php?id=102 

Lalit Kala Academy (2001). Annual National Art Exhibition. New Delhi. https://lalitkala.gov.in/showdetails.php?id=102 

Shukla, R. C. (1994). Aadhunik Kala-Samikshavad (Modern Art and Indian Movement of Art Samikshavad), Kala Prakashan, Allahabad, India, 58.

Sinha, B. R.  (n. d.) . Contemporary Art. (17), 26.

 

 

 

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