ShodhKosh: Journal of Visual and Performing ArtsISSN (Online): 2582-7472
ग्रहण की
है उनके
लिए इस
समय में
उनकी कला
किसी ईश्वरीय
वरदान से कम साबित नहीं हो
रही है। कला
एक साधना है, कलाकार
के पास समय है
कि वह अपनी
कला में उच्चता
पाने के लिए
इस वक्त खूब
रियाज करे, मेहनत करे।
कला की साधना ईश्वर
प्राप्ति का
सबसे सरल
माध्यम है।
भारतीय शास्त्रीय नृत्यकला
में भावों की
अभिव्यक्ति
के समय ताल और
लय को साधता
हुआ कलाकार का
तन जब मन के
भावों से
जुड़कर किसी
भाव विशेष की
अभिव्यक्ति
देता है तब
अनिवर्चनीय
आनन्द की
अनुभूति होती
है तथा भाव विशेष
की गति में
डूबा कलाकार,
शरीर
और मन को
एकाग्र करते
हुए ध्यान व
समाधि की
स्थिति में
पहुंच जाता है
जहाँ तनाव उसे
स्पर्श भी नहीं कर
पाता। कला
मनुष्य को ईश्वर
से प्राप्त
सबसे अनमोल
उपहार है। हम
अपने आप को
सौभाग्यशाली समझें कि हम
कलाकार हैं।
कला चाहे कोई
भी हो मनुष्य
को परिपूर्ण
बनाती है।
मनुष्य
तकनीकी दृष्टि
से कितना भी
आगे बढ़ जाए, कितना भी पढ़
लिख ले उसे एक
छन्द या कला
की हमेशा
आवशयकता होती है जो
उसकी भागती -
दौड़ती
जिन्दगी में
कुछ सरलता
पैदा कर सके, अन्यथा
उसका जीवन
कठिन हो
जावेगा।
कलाएं कई तरह
की है जिनसे
हम आप नाता
जोड़ सकते हैं
किन्तु नृत्य
एक ऐसी कला है
जिसमें
मनुष्य का मन
सबसे ज्यादा
रमता है।
मनुष्य के
आनन्द की अभिव्यक्ति
का सबसे सशक्त माध्यम है
नृत्य। कहते
हैं जब मनुष्य
प्रसन्न होता
है तो नृत्य
करता है, या
जब वह नृत्य
करता है तो
प्रसन्नता
अपने आप आ
जाती है। नृत्य
चाहे कोई भी
हो व्यक्ति को
एक अनोखी ऊर्जा
से भर देता
है। नृत्य एक
व्यायाम भी है
जो शरीर को
परिपुष्ट
करता है।
तीव्र गति से
किए गए नृत्य
से शरीर में
रक्त संचार का
प्रवाह होता
है जो मस्तिष्क
को प्रसन्नता
देता है। कहते
हैं कि जब
व्यक्ति
नृत्य करता है
तो उसके शरीर में
कुछ
हार्मोन्स का
सीक्रीषन
होता है जिनके
नाम है neurotransmitter endorphins आदि, इन्हें
happy hormones भी कहा
जाता है, ये
हार्मोन्स
व्यक्ति के
तनाव को दूर
कर उसे प्रसन्न
और स्थिर करते
हैं। चूंकि
तनाव की वजह से
आदमी अन्दर से
खोखला हो जाता
है और यह आदमी का
सबसे बड़ा शत्रु है यदि इसे
समय रहते न
पहचाना गया और
इसका इलाज
नहीं किया गया
तो हम कई तरह
की शारीरिक और मानसिक
बिमारियों से
ग्रसित हो
सकते हैं। आज
के इस कठिन
समय में अपनी
रोग
प्रतिरोधक
क्षमता को
विकसित करने
तथा
तनावमुक्त
रहने के लिए
योग
प्राणायाम की
बात की जा रही
है। योग में किए
जाने वाले आसन
में हम अपने शरीर के
हर अवयव से
जुड़ते हैं व शरीर के
बाद अपनी
अन्तरात्मा
के साथ एकाकार
होने का अनुभव
करते हैं यही
बात नृत्य के
परिप्रेक्ष्य
में देखें तो
योग के
विभिन्न
आसनों की तरह
नृत्य में हम
विभिन्न अंग
विन्यास और
स्थिर भंगिमाओं
की रचना करते
हैं। अंग
प्रत्यंग उपांगों
के निष्चित
हलन-चलन से
हमें योग के
आसनों की तरह
ही लाभ
प्राप्त होता
है। यह
अनुभव किया
गया है कि यदि
मस्तिष्क को
विभिन्न
तरीकों से काम
करने के लिए
उत्प्रेरित
किया जाए तो
इससे कई नवीन
वाहिनियाँ
खुल जाती है।
नृत्यकार
सृजन के
क्षणों में
अपनी रचनात्मकता
को प्रदर्षित
करने हेतु
अपने शरीर मन
बुद्धि तीनों
को क्रियाशील
बनाता है।
मनोवैज्ञानिकों
का कथन है कि
मनुष्य के
भीतर बहुत सी ऐसी
शक्तियाँ है जिसका
ज्ञान उसे
स्वयं नहीं
होता है। योग तथा
नृत्य संगीत
के माध्यम से
उन अज्ञात शक्तियों का विकास
संभव है। नृत्य
की क्रिया
व्यक्ति की शवासन की
गति को
नियंत्रित
करने में
सहायक है, नृत्य
करने से व्यक्ति
का स्टेमिना
भी बढ़ता है
जिससे दैनदिन
के कार्यों
में उसे कम
थकान महसूस
होती है। नृत्य
में एकाग्रता
की सबसे
ज्यादा जरूरत
है जो व्यक्ति
को तनावमुक्त
कर देती है।
नृत्य करते समय
ताल और लय को
स्थापित किए
जाने वाले
वाद्यों की
ध्वनि और
तीव्र गति के शब्द
व्यक्ति के
स्वास्थ्य पर
जादुई असर
डालते हैं यह
रक्तचाप के
नियंत्रण और
अवसाद तथा
अस्थिरता को दूर
करने में
सहायक है।
नृत्य चूंकि
एक श्रमसाध्य
क्रिया है
जिसको करने से
पसीना आता है
तथा जिसके
माध्यम से शरीर
के किटाणुओं
के साथ
नकारात्मक
विचार भी बाहर
निकल जाते
हैं। नृत्य
में विशेषकर शास्त्रीय नृत्य में शरीर
और मस्तिष्क
दोनों का
तालमेल आवश्यक होता है।
अतः शरीर के साथ-साथ
व्यक्ति का
मस्तिष्क भी
क्रियाशील और
ऊर्जावान
बनता है
इसीलिए इसे Healing
Art का दर्जा
भी दिया गया
है। आज ऐसे व्यक्ति जिन्होंने कभी नृत्य सीखा नहीं, किया नहीं, स्वबा कवूद के समय में अपने पसन्दीदा गाने या धुन पर थिरक रहे हैं और स्वयं आष्चर्य कर रहे हैं कि आनन्द प्राप्ति का इतना सीधा सरल उपाय उन्हें इसके पहले कैसे ध्यान में नहीं आया और यह किसी भी कला के साथ संभव है तो आईये कला से नाता जोड़िए, ऊर्जावान बनिए और सकारात्म्क सोच के साथ तनावमुक्त हो जाइए। क्योंकि इतिहास भी इस बात का साक्षी है कि समाज के हर परिवर्तन में कलाओं ने जीवन को ढूंढा है या यह कह लीजिए कि कलाओं में ही हर बार हमें जीवन के दर्शन हुए हैं। REFERENCES Azad, T. R. (2020), Kathak Darpan (3rd ed.). Natveshavar Kala Mandir. https://www.flipkart.com/kathak-darpan/p/itm83bee49716ad7 Bakshi, J. (2000), Kathak : Aksharon ki Aarsi. Madhya Pradesh Hindi Granth Academy, Bhopal. https://www.exoticindiaart.com/book/details/kathak-aksharon-ki-aarsi-mzg198/
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