ShodhKosh: Journal of Visual and Performing Arts
ISSN (Online): 2582-7472

COLOUR SCHEME IN ROCK PAINTINGS OF CHHATARPUR

छतरपुर के शैल चित्रों में रंग योजना

 

Dr. Anjali Pandey 1 , Garima Mishra 2

 

1 Assistance Professor (HOD), Department of Drawing and Painting, Government M.L.B. Girls P.G. Autonomous College, Bhopal, India

2 Barkatullah University Bhopal, India

 

 

 

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Received 08 May 2020

Accepted 16 June 2020

Published 27 June 2020

Corresponding Author

Dr. Anjali Pandey, anjali_pandey11@yahoo.com

DOI 10.29121/shodhkosh.v1.i1.2020.9

Funding: This research received no specific grant from any funding agency in the public, commercial, or not-for-profit sectors.

Copyright: © 2020 The Author(s). This is an open access article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution License, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited.

 

 

 


ABSTRACT

 

English: Man's innate expression towards art is manifested by rock paintings. For early humans there were rock shelters. On prehistoric shelter sites, humans marked paintings as their natural expression. Paintings made in rock were called rock paintings. Known prehistoric paintings were discovered by Mercilona di Setuala in a cave called Altamira, located in northern Spain, from accidental exploration in 1879. Rock paintings have been discovered in many places in India Gupta (1987).

 

Hindi: कला के प्रति मानव की सहज अभिव्यक्ति शैल चित्रों से प्रकट होती है प् प्रारंभिक मानव के लिए शैलाश्रय आवास गृह थे प् प्रागैतिहासिक आश्रय स्थलों पर मानव ने अपनी स्वाभाविक अभिव्यक्ति के रूप में चित्रों का अंकन किया प् शैलाश्रय  में बनाए गए चित्र शैल चित्रों के नाम से जाने जाते हैं प् प्रागैतिहासिक चित्रों की खोज प्रमुख रूप से उत्तरी स्पेन में स्थित अल्तमिरा नामक गुफा में मर्सीलोना दी सेतुआला द्वारा चित्र राशि की खोज सन् 1879  मैं हुए आकस्मिक अन्वेषण से हो गई थी प् भारत में कई स्थानों पर शैल चित्र खोजे गए हैं।Gupta (1987)

 

Keywords: Rock Painting, Drawing, Rock shelter, Rough Surface, Mood expression, Decoration, Spray Painting, Color Paint, शैल चित्र, अंकन, शैलाश्रय, खुरदरी सतह, भाव भंगिमा, अलंकरण, छिड़काव वाली चित्रकला, रंग द्रव्य

   

1.     मध्य प्रदेश राज्य के शैल चित्रों का संक्षिप्प्त परिचय

       मध्य प्रदेश राज्य के शैल चित्रों की खोज तथा प्रकाश में लाने का श्रेय विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के इतिहास तथा पुरातत्व विभाग के प्रोफेसर डॉ बीएस वाकणकर को जाता है जिन्होंने भीमबेटका नामक स्थान की खोज की । भीमबेटका को विश्व विरासत में स्थान प्राप्त हुआ है । मध्य प्रदेश भारत का एक राज्य है इसकी राजधानी भोपाल है । मध्य प्रदेश मुख्य रूप से अपने पर्यटन के लिए जाना जाता है । भीमबेटका पचमढ़ी, खजुराहो, सांची स्तूप, ग्वालियर का किला,  उज्जैन मध्य प्रदेश के पर्यटन स्थल के प्रमुख उदाहरण है । विश्व पटल पर मध्य प्रदेश एक वृहद शैल कला केंद्र के रूप में सामने आया है यहां पचमढ़ी, होशंगाबाद, सागर, रीवा, कटनी, नरसिंहपुर, ग्वालियर, चंबल व मंदसौर इत्यादि क्षेत्रों में असंख्य शैल चित्र प्राप्त हुए हैं परंतु सर्वाधिक चित्रित शैलचित्र भोपाल, रायसेन, सीहोर, छतरपुर जिले में स्थित है ।Gupta (1987)

 


 

2.    छतरपुर का परिचय

छतरपुर भारत के मध्य प्रदेश राज्य का एक शहर है । विश्व प्रसिद्ध खजुराहो का मंदिर इसी शहर में है । यह मध्य प्रदेश के उत्तर पूर्वी सीमा पर स्थित है  राजा छत्रसाल के नाम के कारण ही यहां का नाम छतरपुर रखा गया । प्राचीन काल में इसे जेजाकभुक्ति के नाम से जाना जाता था । Gupta (1987), Chhatarpur (2020)

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चित्र  1 Source https://www.mapsofindia.com/maps/madhyapradesh/districts/chhatarpur.htm

 

3.    छतरपुर जिले के शेल चित्रों की खोज

अगर छतरपुर जिले के शैल चित्रों की बात की जाए तो यह मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले की बिजावर तहसील में स्थित है । जटाशंकर से लगभग 5 किलोमीटर दूरी पर मोना सैया नामक गुफाएं हैं इन शैल चित्रों की खोज का श्रेय श्री सुधीर कुमार छारी (विभागाध्यक्ष चित्रकला विभाग शासकीय महाराजा महाविद्यालय छतरपुर मध्य प्रदेश) ने 2007 एवं 2010 में की थी । यहां के शैल चित्र लगभग 30,000 से 40,000 वर्ष प्राचीन है यहां की सबसे बड़ी गुफा 100  फ़ीट गहरी 180 फीट चौड़ी है यहां पर लाल गेरुआ रंग से बने चित्र स्पष्ट दिखाई देते हैं इन चट्टानों में ऊपर से गिरता हुआ झरना बहुत ही खूबसूरत है । यहां के शैल चित्र जंगल के बीच पहाड़ी पर स्थित है, जोकि सुरक्षित हैं क्योंकि यह आज भी मानव की पहुंच से दूर घने जंगलों में स्थित है । उपलब्ध चित्र खुरदरी सतहों पर बने हुए हैं । Maps of india (n.d.)

 

 

4.    मुख्य चित्र

यहां के मुख्य चित्र जो इस प्रकार से हैं :-

1)     ऐसी सम्भावना है कि घायल दौड़ता हुआ बैल सबसे अच्छी स्थिति में है । यहां एक चित्र पाया गया है जिसमें जानवर को घायल तथा आहट करते हुए चित्रित किया गया है इसकी गर्दन के ऊपर के बाल तथा कान एवं पूंछ से मालूम होता है कि वह जानवर गधा या घोड़ा है ।

2)     एक अन्य चित्र में केवल एक हिरण का गर्दन युक्त सिर बड़ा सुंदरवन पड़ा है इसमें सशक्त रेखाओं का प्रयोग किया गया है ।

3)     एक अन्य चित्र में शिकारी किसी भैंसे पर बैठकर शिकार करते हुए चित्रित किया गया है एक चित्र में दो शिकारी एक हिरण को घेरकर शिकार करते हुए चित्रित किया गया है ।

4)     एक चौकोर चतुर्भुज के अंदर बराबर 4 पंक्तियों में छोटे-छोटे त्रिभुज बनाए गए हैं इसके अलावा इन जंगलों में सैकड़ों गुफाओं में शैल चित्रों होने का अनुमान लगाया गया है ।

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चित्र  2 Picture by Author

इससे प्रतीत होता है कि बुंदेलखंड का यह जंगली क्षेत्र संसार का सबसे प्राचीनतम शैल चित्र केंद्र रहा होगा, इन चित्रों के वहां की स्थानीय लोग लाल पुतरिया के नाम से जानते हैं । Sudhir (2016)

 

5.    छतरपुर की शैल चित्रों की रंग योजना

अगर भारत की शैल चित्रों की बात करें तो उसमें रंग पीले, हरे, जामिनी, सफेद, गुलाबी तथा काले रंगों में चित्रण कार्य किया गया है परंतु छतरपुर की शैल चित्रों में अधिकतर लाल रंग में ही चित्रण कार्य दिखाई देता है यहां पर जो रंगों का प्रयोग किया गया है उसमें लाल गेरू  तथा जानवरों से निकाले लाल खून, पीला रंग रामराज पीली मिट्टी, सफेद खड़िया, चुना आदि से काला रंग कोयले तथा जंगल में लगने वाली आग से हरा रंग कॉपर के अशुद्ध रूप से विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों से अनेक रंगों को आपस में मिलाकर कई प्रकार के अन्य द्वितीय क्रम भी तैयार किए जाते थे । वस्तुओं के धरातल में रंग होने के कारण हमें यह स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं । मानवीय चित्रण में भाव भंगिमा को खूबसूरती से दर्शाया गया है तकनीकी दृष्टि से आदिमानव ने लाल रंग को जानवर की चर्बी में मिलाकर सपाट दीवाल पर तथा खुरदरी चट्टानों की गुफाओं की छतों पर चित्र को एक ही प्रयास में बनाने की कोशिश की है । चित्र चाहे जानवरों के हो या मानव के सभी को ज्यामिति तकनीक से चित्रित किया है । एक ही रंग लाल गेरू से बनी होने के कारण इन चित्रों को यहां के स्थानीय ग्रामीण लाल पुतरियो के नाम से जानते हैं यहां के शैल चित्रों में मुख्यतः जानवरों पशुओं के चित्र एवं शिकार से संबंधित चित्र पाए गए हैं । Sudhir (2016)

 

 

1)    आधा भरे चित्रांकन-  इसके अंतर्गत यहां पर चित्रांकन में कुछ आंतरिक भाग बिना किसी रंग के भरे ही छोड़ दिए गए हैं यह रंग भी इन चित्र अलंकरण को बढ़ा देता है और कुछ कलात्मक प्रभाव भी उत्पन्न करता है ।

चित्र 3 हिरण का शिकार जटाशंकर छतरपुर

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चित्र 4 हिरण, शूकर, बारहसिंगा आदि के चित्र Sudhir (2015)

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2)    वाहय रेखा चित्रांकन- इसमें यहां पर शिकार से संबंधित कई चित्रों को केवल बाहरी रेखांकन के द्वारा चित्रित किया गया है । कुछ ज्यामिति आकृतियां भी सिर्फ बाहर रेखांकन के द्वारा पूरी की गई हैं । सामान्य रूप से केवल एक रेखा द्वारा निर्मित चित्र प्राप्त होते हैं किंतु भारत में कहीं-कहीं चित्र दोहरी रेखा से निर्मित है । दो रेखाओं से बनाए गए चित्रों में वस्तुतः एक ही मोटी रेखा होती है । दोहरी रेखाओं द्वारा बनाए गए चित्र बहुत कम मात्रा में उपलब्ध है आजमगढ़ से प्राप्त भैंसे का चित्र दो रेखा वाले चित्रों में से एक प्रमाण है । यह चित्र आकृति इस प्रकार की चित्रकारी का अच्छा उदाहरण है इस चित्र में पशुओं के शरीर को लाल रंग से भरा है बाकी भाग को छोड़ दिया गया है । Sudhir (2015)

चित्र 5 शिकार का दृश्य जटाशंकर छतरपुर

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चित्र 6 कबरा पहाड़ रेखांकन Sudhir (2015)

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3)    सिलहटी रूपरेखा चित्रांकन- तीसरा सिलहटी रूपरेखा चित्रांकन छतरपुर के शैल चित्रों में इस तरह का कार्य अधिक रूप से देखा गया है इसके लिए एक अन्य शब्द पूरा रंग भरा चित्र भी कहा जा सकता है । यहां पर मुख्यतः चित्रों का चित्रांकन सिलहटी रूप में किया गया है इन चित्रों को भरने के लिए प्रायः गहरा लाल अथवा गेरुए रंग का प्रयोग किया गया है अगर मध्य प्रदेश के अन्य क्षेत्रों की बात करें तो वहां पर सफेद, पीला, काला और बैगनी रंग में भी चित्र प्राप्त हुए हैं । Sudhir (2015)

चित्र 7 हिरन जटाशंकर छतरपुर

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चित्र 8 रॉक पेंटिंग महाभारत व्यू Sudhir (2015)

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4)    अलंकरण पूर्ण चित्रांकन- अलंकरण पूर्ण चित्रांकन इसमें चित्रों से प्राप्त साज-सज्जा से यह प्रतीत होता है की प्रागैतिहासिक काल में सौंदर्य बोध विकसित था । यहां पर अलंकरण का प्रयोग पशु के चित्रांकन में देखने को मिलता है । अलंकरण में चित्रों को या तो रंग भरकर सजाया गया है या इसके लिए रेखाओं का उपयोग किया गया है कुछ चित्रों में सजावट के लिए बिंदुओं का उपयोग किया गया है । मानव चित्रों में उनके वस्त्रों को अलंकृत किया गया है । छतरपुर के शैल चित्रों में जानवरों के चित्रों को ज्यामिति आकृति से अलंकृत किया गया है । पचमढ़ी तथा अन्य स्थानों से प्राप्त चौकोर मानव आकृतियों को रेखाओं द्वारा सुसज्जित किया गया है इसमें चित्र के भीतरी भाग को लहरदार रेखाओं से सजाया गया है । छतरपुर की शैल चित्रों में चतुर्भुजी त्रिकोण गोल तथा अन्य चरणों को सजावट के लिए प्रयुक्त किया गया है ।

5)    छिड़काव वाली चित्रकला- छतरपुर की शैल चित्रों में प्रायः छिड़काव वाली चित्रकला का प्रयोग नहीं किया गया इसमें रंग छिड़काव का बहुत ही कम प्रयोग किया गया है । यह रायगढ़ (छत्तीसगढ़) के कबरा पहाड़ क्षेत्र तक ही सीमित है । इसमें एक स्टेन्सिल को चित्र के पट पर रखकर रंग को या तो मुख में भरकर अथवा बांस जैसी खोखली किसी नलिका में भरकर मुख से हवा देकर उस चित्र पर रंग का छिड़काव किया जाता था । कलाकारों द्वारा सभी आकार के चित्रों का निर्माण किया गया है कई चित्रों में पशुओं को उनके पूरे आकार में दिखाया गया है उदाहरण आजमगढ़ के भैंसे का चित्र तथा हाथी का चित्र इसी प्रकार बरखेड़ा से प्राप्त सफेद रंग के बड़े बैल और चीते का चित्र जो कि अलंकृत है ।Sudhir (2015)

प्रागैतिहासिक कला में चित्रों की तकनीक खनिज रंग और वनस्पति भी अधिकांश स्थितियों में समान है यद्यपि कलाकारों के चित्रण का तरीका उनके सांस्कृतिक स्तर तथा परिवेश से प्रभावित होता था किंतु कलाकारों का उद्देश्य अच्छे कला का सर्जन ही रहा था । चित्रों में जिन रंग द्रव्य का उपयोग किया गया वह सभी जगह की शैल चित्रों में समान है । चित्रों में अधिकांशतः लाल गेरू रंग का उपयोग किया गया है जो कि छतरपुर की शैल चित्रों में देखने को मिलता है किंतु अन्य स्थानों की शैल चित्रों में अन्य रंग जैसे  पीला, गुलाबी, काला और हरे रंग से बनाए गए चित्र भी मिलते हैं । प्रारंभिक चित्र सामान्य रूप से लाल रंग में प्राप्त होते हैं । पचमढ़ी, भीमबेटका, भोपाल, रायसेन, सागर में चित्र बहुतायत  से प्राप्त होते हैं । अभी तक केवल भीमबेटका में प्राप्त, दो चित्र मंगल एवं मानव आकृति ही बहुरंगी प्राप्त हुई है । इन चित्रों में रंग योजना अत्यंत सुंदर है और जिन रंगों की परंपरा अजंता और बाघ चित्रकला से जुड़ी हुई प्रतीत होती है । छतरपुर के शैल चित्र तीन चार मंजिलों में स्थित है । यहां के शैल चित्र कई स्तरों में बने है । इनकी रंग योजना चित्रण तकनीकी से स्पष्ट होता है यहां के शैल चित्र में केवल एक ही लाल रंग का प्रयोग किया गया है । यहां के प्रमुख चित्रों में बाघ, हिरण, सूअर, भैंसा, चीतल, सांभर, बंदर और लंबी पूछ वाले जानवर तथा मानवीय चित्रण मुख्य रूप से तीर भाले एवं शिकार करते हुए, तथा शिकार को गिरते हुए, शिकार को काटते हुए दिखाए गए हैं । एक चित्र में बाघ द्वारा हिरण के शिकार दृश्य हैं, एक चित्र में मानवीय जुलूस का दृश्य है, शिकार दृश्यों में दौड़ने के दृश्य, जानवरों को भागने, बाग द्वारा हिरणो पर हमला, शिकार किए जाने वाले जानवरों को चीर फाड़ करना आदि को दिखाया गया है ।

शैल चित्र जो हमारी ऐतिहासिक धरोहर है, आज जो जीवित है, वह यहां पर एक संपूर्ण सभ्यता और संस्कृति के अस्तित्व का संकेत देती है ।

 

REFERENCES

Bhimbetka (2020, June 6).http://www.mpholidays.com/bhimbetka.html

Chhatarpur (2020, June 7). In Wikipedia. https://en.wikipedia.org/wiki/Chhatarpur

Gupta, J. (1987). Pragaitihasik Bhartiya Chitrakala [ Prehistoric Indian Painting] New Delhi, National Publishing House, Hindi. https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.403154/page/n1/mode/2up

Maps of India (2020. June 1). Chhatarpur District Map. https://www.mapsofindia.com/maps/madhyapradesh/districts/chhatarpur.htm

Pandey, S. K., Mishra, U. P., Pandey, N. (2018). [Rock paintings of Madhya Pradesh Theory Analysis Technique], Lisa Publications

Prabhat, K.S. (2019). Kabara Pahaad Ka Chitrit Shailaashray [Painted Rock Shelter at Kabara Pahad]. https://www.sahapedia.org/kabaraa-pahaada-kaa-caitaraita-saailaasarayapainted-rock-shelter-kabara-pahad

Sudhir, K. C. (2016). Research Journal of Bundelkhand, Interdisciplinary, 5

Sudhir, K. C. (2015). Research Journal of Bundelkhand, Interdisciplinary, 1

 

 

 

 

 

 

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