ShodhKosh: Journal of Visual and Performing ArtsISSN (Online): 2582-7472
माना जाता है। बाहर से देखने पर यह घर ही प्रतीत होता है तथा चित्र भी उपर की ओर भित्तियों पर इतने छोटे आकार में बने हैं कि आसपास के लोगों को संभवतः इसकी जानकारी ही नहीं है । इस मंदिर में लगभग 19 चित्र है, जिनमें से दो का आकार 12” x 13” तथा बाकी सभी चित्रों का आकार 8” x 10”का है इन सभी चित्रों के विषय रामायण से संबंधित हैं । इनमें से कुल 13 चित्र ही स्पष्ट हैं, अन्य धुंधले हो गये हैं, इन चित्रों पर लघुचित्र शैली के साथ-साथ लोककला शैली का भी प्रभाव दिखता है । ग्वालियर में प्रचलित लोक धारणा के अनुसार यह मंदिर किसी छत्री निर्माण के समय का है । इसके बाद में बनी छत्रियों में जो चित्र हैं, उन पर मराठा शैली का स्पष्ट प्रभाव है, जबकि इस मंदिर में बने चित्रों की शैली लोकशैली के प्रभाव की होते हुए भी रंग, संगति, रेखा, संयोजन तकनीक के कारण ग्वालियर कलम के अधिक निकट हैं । Bhand (2006) प्रथम चित्र में विष्वामित्र एवं वषिष्ठ ऋषि द्वारा राम को साथ ले जाने के लिये राजा दषरथ के पास आने का प्रसंग है । राम, लक्ष्मण पिता की गोद में विराजे हैं । सिंहासन के समीप ही माता कौषल्या बैठी है । उपर की ओर दोनों तरफ चार नारी आकृतियां बैठी है । चित्र में मुकुट आभूषणों आदि में स्वर्ण रंग का उपयोग किया गया है । दूसरा चित्र राजा जनक के दरबार में सीता स्वयंवर का है । चित्र के मध्य में राम धनुष भंग करते चित्रित हैं । उनके पीछे ऋषिद्वय वषिष्ठ एवं विष्वामित्र के साथ अनुज लक्ष्मण भरत एवं शत्रुध्न हैं। समीप अन्य राजागण खड़े हैं । सामने की ओर सीता, जननी तथा तीनों बहनों, उर्मिला, माण्डवी तथा श्रुतकीर्ति सहित हाथों में वरमाला लिये खड़ी है । सामने की ओर षिवजी, रावण तथा एक अन्य राजपुरूष बैठे हैं । श्वेतवर्णी भूमि पर फूलपत्तों का अलंकरण है । लाल, पीला, हरा, नीला, नारंगी, श्वेत, श्याम तथा स्वर्ण रंगों के उपयोग से ये चित्र संपूर्ण चित्र से लघुचित्र शैली की परंपरा से पोषित हैं। तथापि इनमें तकनीक भित्तिचित्र शैली की ही उपयोग की गयी है ।
तीसरा चित्र राम विवाह का है, चित्र में राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुध्न के पीछे दषरथ खड़े हैं तथा सीता, उर्मिला, माण्डवी, श्रुतकीर्ति दोनों आसन पर विराजित हैं । उनके समक्ष पुरोहित भी बैठे हैं । नीचे अत्यन्त लघु आकार में राम सीता का परिणय दर्षाया गया है ।
चैथे चित्र के दृष्य में राम-सीता के वनवास काल में राजा जनक का उनसे मिलने का प्रसंग है । राजा जनक तथा ऋषिगण राम, लक्ष्मण तथा सीता को अयोध्या वापिस लौट चलने का आग्रह करते अंकित है । पांचवे चित्र में शूर्पणखा का राम के पास स्वयं के विवाह का प्रस्ताव लेकर आना तथा राम का उन्हें अनुज लक्ष्मण के पास भेजने का प्रसंग चित्रित है । चित्र में बायीं ओर राम सीता सहित बैठे हैं । शूर्पणखा सुन्दरी स्त्री के रूप में लहंगा ओढ़नी धारण किये लक्ष्मण की ओर बढ़ रही है । लक्ष्मण के उपर कोने में कामदेव अपने धनुष की प्रत्यंचा पर बाण चढ़ा उसे चलाने की तैयारी में चित्रित है । गहरे हरे रंग की पृष्ठभूमि में शूर्पणखा के पाष्र्व में दैत्यों का चित्रण है । अग्रभूमि में अत्यन्त छोटे आकार में कुटी में बैठी सीता एवं बाहर रक्षक के रूप में लक्ष्मण अंकित है ।
छटे चित्र में सीता हरण का दृष्य है । सीता रथ पर सवार है, रथ में घोड़ों के स्थान पर गधे बनाये गये हैं । पृष्ठभूमि में पहाड़ तथा वृक्षों के साथ-साथ आकाष में मंडराते बादल अनिष्ट के संकेत स्वरूप बनाये गये प्रतीत होते हैं । दषानन स्वर्ण मुकुट तथा स्वर्ण रंग के वस्त्र पहने हैं उसका प्रतिकार कर रहे जटायु के पाष्र्व में एक नारी हाथों में फूल लिये बैठी चित्रित है । चित्र में रेखायें बारीक तथा चित्र संयोजन उत्तम है । सातवा चित्र रावण द्वारा सीता के अपहरण की सूचना हनुमान को देते जटायु का चित्रण है । जटायु दुखी एवं पराजित भाव में चित्रित है । हनुमान शीर्घ निर्णय लेते हुए अति उत्साही मुद्रा में चित्रित है । उनके पीछे नल, नील तथा अंगद खड़े हैं । गहरे हरे रंग की पृष्ठभूमि में बादल, पर्वत तथा पेड़ मनोरम पहाड़ी स्थान की सुन्दरता का आभास दे रहे हैं । अग्रभूमि में नदी में कमल के फूल पत्तों तथा कलियों का चित्रण है ।
आठवें चित्र में पर्वतीय पृष्ठभूमि पर धर्नुधारी राम लक्ष्मण खड़े हैं, उनके समक्ष जटायु अंतिम सांस ले रहा है । राम उसे हाथ उठाये निर्निमेष दृष्टि से देख रहे हैं । पृष्ठभूमि में हरे रंग की घास मटमैले भूरे रंग के पर्वत बड़े-बड़े प्रस्तरखण्ड तथा फूलपत्तों से लदे वृक्ष अंकित किये गये हैं । नौवाँ चित्र सुग्रीव के दरबार में लक्ष्मण का है, जो हाथ उठा कर उसे अपना वचन याद दिला रहे हैं । सुग्रीव तथा रूमा सिंहासन पर विराजमान हैं, लक्ष्मण के साथ अंगद, जाम्बवन्त तथा नल-नील है । चित्र में हरे रंग की पृष्ठभूमि पर स्वर्ण रंग का ही अधिक प्रयोग है । इसके अतिरिक्त नारंगी, लाल तथा मध्यम हरे रंग का प्रयोग है। चित्र रचना छाया प्रकाष तथा रेखाओं के माध्यम से आकर्षक बन पड़ी है ।
दसवां चित्र लंका का है । षट्कोणाकार स्वर्ण दीवार से घिरी लंका में दषानन रावण का चित्र है जिसके मध्य शीर्ष पर मुकुट के स्थान पर गदर्भ का चित्रण है । लाल रंग के वस्त्र पहने रावण की दोनों ओर आठ-आठ भुजायें चित्रित की गयी हैं । रावण के सम्मुख हनुमान खड़े हैं तथा वह अपने लघु रूप में छज्जे पर भी बैठे दिख रहे हैं । पृष्ठभूमि में मंदिर तथा मंदिर के बाहर आसनक षिव-पार्वती का चित्र है । मध्य में तीन वानरों का चित्रण है जो रामनामी पुल बनाने हेतु पत्थर उठाये हैं । अग्रभूमि में जल में अधखिले कमल, पत्ते एवं कलियां अंकित है । चमकीले गहरे हरे रंग की पृष्ठभूमि पर स्वर्ण का प्रयोग कर लंका की दीवार बनायी गयी थी जो स्वर्ण खुरच लिये जाने से श्रीहीन प्रतीत होती है । इस पर चित्रित अस्पष्ट दैत्याकृतियों से प्रतीत होता है कि इस दीवार पर दैत्य प्रहरियों का भी चित्रण किया गया होगा । यह चित्र संयोजन तथा कला कौषल की दृष्टि से सर्वोत्तम है ।
ग्यारहवां चित्र राम विभीषण की प्रथम भेंट के समय का है । विभीषण के साथ अन्य राक्षसगणों का भी चित्रण किया गया है । लक्ष्मण, नल एवं वानर सेना विभीषण का स्वागत कर रहे हैं । हनुमान राक्षसगणों पर मंडरा रहे हैं । लक्ष्मण सतर्क वीरोचित मुद्रा में चित्रित हैं। पृष्ठभूमि चटख हरे रंग की है तथा उस पर बने अलंकारिक फूलों से यह स्पष्ट होता है कि इसे परवर्ती काल में पुनः रंगा गया हैं ।
बारहवां चित्र राम-कुंभकर्ण युद्ध का है । कुंभकर्ण वृहदाकार रूप में चित्रित हैं उसके बड़े-बड़े दाँतों के बीच से लाल रंग की जिव्हा उसके भयंकर स्वरूप को परिभाषित कर रही है । वह अपने बल से वानर सेना को नष्ट कर रहा है । राम धनुष पर बाण चढ़ाये कुंभकर्ण पर प्रहार करने की मुद्रा में अंकित है ।
तेरहवां चित्र राम-रावण युद्ध का है । पीताम्बर धारी राम स्वर्ण रथ में विराजमान है उन्होनें कमर पर लाल रंग का दुपट्टा पहन रखा है । रावण भी लाल रंग के वस्त्र पहने स्वर्णरथ पर बैठकर युद्ध के लिये तत्पर है । चैदहवां चित्र लंका विजय के बाद अयोध्या वापसी का है । यह चित्र दो भागों में बनाया गया है । उपर के भाग में राम-सीता, लक्ष्मण, हनुमान, सुग्रीव तथा नल-नील नौका में बैठे हैं । नौका के दोनों ओर लाल वस्त्र धारण किये अप्सरायें चित्रित की गयी हैं । नीचे के भाग में राम, भरत मिलाप के दृष्य का सुन्दर चित्रण है। लक्ष्मण, सुग्रीव तथा हनुमान राम के साथ तथा भरत के साथ सुमन्त, शत्रुध्न तथा एक अन्य राजपुरूष का चित्रण है । हरे, लाल तथा पीले रंग वर्णों के साथ-साथ बादामी, हल्के नीले आदि मिश्रित रंगों का भी प्रयोग किया गया है । आकृतियों सुन्दर तथा रेखायें संतुलित एवं महीन हैं ।
पंद्रहवां चित्र राम राज्याभिषेक का है । राम-सीता सिंहासन पर विराजमान है उनके पीछे अनुज लक्ष्मण, भरत तथा शत्रुध्न खड़े हैं । राजतिलक करते वषिष्ठ ऋषि तथा उनके राजा जनक तथा हनुमानजी खड़े हैं । राम तथा भरत सांवले वर्ण के सीता, लक्ष्मण, शत्रुध्न, जनक तथा ऋषि वषिष्ठ गौरवर्णी चित्रित हैं । हनुमानजी श्वेत वर्ण के तथा उनका मुख लाल रंग से आपूरित है । पृष्ठभूमि में गहरा हरा रंग तथा भूमि पर श्वेत रंग की बिछावन पर बारीक फूल-पत्तियों का आलेखन है। ग्वालियर स्थित चितेरा ओली के वयोवृद्ध कलाकारों के अनुसार गिर्राज मंदिर के चित्र ‘कन्हाई’पुत्र गंगाराम द्वारा लगभग 150 वर्ष पूर्व बनाये गये हैं । Bhand (n.d.)
इन सभी चित्रों में लघुचित्र शैली का प्रभाव स्पष्ट है । कुछ चित्र समय के साथ धुंधले पड़ गये हैं, कुछ चित्रों के रंगों में चमक लाने के लिये उन्हें पुनः रंगा गया प्रतीत होता है । हालांकि मूल आकृतियां वही हैं, किन्तु नये रंगों की चमक से आंषिक रूप से ही सही ये चित्र अपने पुरातन स्वरूप से भिन्न प्रतीत होते हैं, किन्तु फिर भी अभी यहाँ कुछ चित्र अपने मूल स्वरूप में देखे जा सकते हैं । REFERENCES Bhand, L. (n.d.). Gwalior Kalam [Gwalior Pen], 59, 60, 67 Bhand, L. (2006). Madhyapradesh Mein Chitrakala [Painting in Madhya Pradesh]. Madhyapradesh Jansampark Karyalay, MP, 81. https://antarang.librarika.com/search/detail/3631589
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