ShodhKosh: Journal of Visual and Performing Arts

DRAWING IN THE ART OF CONTEMPORARY PAINTERS (IN SPECIAL CONTEXT OF KG SUBRAMANIAN, J SWAMINATHAN, A RAMACHANDRAN, PARMANAND GOYAL)

समकालीन चित्रकारों की कला में रेखांकन (के. जी. सुब्रमण्यन, जे स्वामीनाथन, ए. रामचंद्रन, परमानन्द गोयल, के विशेष संदर्भ में)

 

Meenakshi 1

 

1 Raghunath Girl’s Post Graduate College Meerut, India

 

 

 

A picture containing logo

Description automatically generated

 

 

 

 

 

Received 10 December 2020

Accepted 12 February 2021

Published 27 February 2021

Corresponding Author

Meenakshi, meenakshivisualart@gmail.com

DOI 10.29121/shodhkosh.v2.i1(SE).2021.21

Funding: This research received no specific grant from any funding agency in the public, commercial, or not-for-profit sectors.

Copyright: © 2021 The Author(s). This is an open access article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution License, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited.

 

 

 

 

 

 

 


ABSTRACT

 

English: The beauty of lines sits in painting since ancient times. Line is the only means of visualization and communication. The lines are symbolic. Which introduces the audience to the artist's state of mind? And in painting, the line is the primary means of expressing one's feelings. This method has been in practice since prehistoric times. That the artist used to complete the work of drawing through lines to calm his state of mind. And used to express his expressions on the rocks through the lines. But today the artist is independent in the art world. He also embellishes his artworks through mixed media.

 

Hindi: संप्राचीन काल से ही रेखाओं का सौन्दर्य चित्रकला में विराजमान है। रेखा दृश्य व सम्प्रेषण  का एकमात्र साधन है। रेखाएं प्रतिकात्मक होती है। जो कलाकार के मन की स्थिति से दर्शकों को परिचित कराती है। व चित्रकला में रेखा व्यक्ति के अहसासों को व्यक्त करने का प्राथमिक माध्यम है । प्रागैतिहासिक काल से यह पद्व़ति चली आ रही है। कि कलाकार अपने मन की स्थिति को शांत करने के लिए रेखाओ के माध्यम से चित्रण कार्यो को पूर्ण करता था। व अपने भावों की अभिव्यक्ति रेखाओं कें माध्यम सें शिलाओं पर करता था। परंतु आज कला जगत में कलाकार स्वतंत्र है। वह मिश्रित माध्यमों के द्वारा भी अपनी कलाकृतियों का सजृन करता है।

 

Keywords: Line, Expression, Simple, Antique, Modern, Contemporary, Unique, Classic, रेखा, अभिव्यक्ति, सरल, प्राचीन, आधुनिक, समकालीन, अनूठा, सवोत्कृष्ट

 

1.    प्रस्तावना   

1.1. शोधपत्र का उदेश्य एवं महत्व   

          रेखा चित्रकला की व्याकरण होती है जिसके बिना चित्रकला असंभव है। रेखाओं के माध्यम से ही कलाकार अपनी कल्पना को कैनवास पर उकेरता है। रेखाओं में कलाकारो के भाव छिपे रहते है। जिन्हे वह अलग-अलग प्रकार की रेखाओं के सौन्दर्य सें प्रदर्शित करतें है

यदि कलाकार को चित्र में बैचेनी, अव्यवस्था, संघर्ष का भाव प्रदर्शित करना हो तो कोणात्मक

 


रेखाओं का चयन करना होता है। यदि विश्राम, शांति का भाव रेखांकित करना हो तो क्षैतिज रेखाओं के माध्यम से प्रदर्शित करने की चेष्टा कलाकार को करनी पड़ती है। यदि किसी कलाकार की रेखांकन पर पकड़ नहीं होगी तो वह चित्रकला के क्षेत्र में असफल सिद्ध हो जाता है। कला में रेखाओ के सौन्दर्य को अभिव्यक्त करने के लिए मैंने इन कलाकारो की रेखांकन पद्धति की चर्चा अपने शोध पत्र में की है । के. जी. सुब्रमण्यन, जगदीश स्वामीनाथन, ए. रामचंद्रन, परमानंद चोयल, जतिनदास, अंजलि इलमेनन, विवान सुंदरम, इत्यादि कलाकारो के चित्रण संयोजन पर प्रकाश डाला है। इन समकालीन कलाकारो ने अपनी कला अभिव्यक्ति में रेखाओ को बड़े ही नियोजित ढंग से अपने संवेगो को कला के प्रति केनवास पर, भित्ति पर, मूर्तिकला में व स्थापना कला में उजागर किया है।

 

2.    शोध पत्र का साहित्यावलोकन

समकालीन चित्रकारों की कला में रेखाओ के सौन्दर्य को दृष्टिगत करने के लिए मैंने इन पुस्तकों व पत्रिकाओ से मदद प्राप्त की है।

नरेंद्र सिंह यादव- ग्राफिक डिजाइन ( राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी ) जयपुर द्वितीय संस्करण 2010 Yadav (2010)

डॉ रीता प्रताप- ( भारतीय चित्रकला एवं मूर्तिकला का इतिहास) ( राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी ) जयपुर 20 वा संस्करण 2015 Pratap (2015)

डॉ अर्चना रानी- ( कला में धार्मिक संलयन )  प्रकाशक विजुएल आर्ट ड्राइंग एवं पेण्टिंग विभाग शोध केंद्र  Rani (2019)

डॉ आर. ए. अग्रवाल- (रुपप्रद कला के मूलाधार)  प्रकाशक इंटरनेशनल पब्लिशिंग हाउस गवर्नमेंट कॉलेज इन सभी पुस्तकों के अवलोकन के माध्यम से ही मैंने शोध पत्र को पूर्ण किया है। Agrawal (2002)

 

3.    भारतीय प्राचीन कला एवं रेखांकन

भारत में प्राचीन काल से ही रेखाओं का सौन्दर्य विराजमान है। इनका सबसे अनूठा उदाहरण अजंता में दर्शनीय है। भगवान बुद्ध के जीवन से संबन्धित जातक कथाएँ व बेल बुटो का अंकरण अजंता गुफा से भिन्न कही देखने को नहीं मिलता । अजंता की शैली परंपरा प्रधान शैली है व भाव प्रधान है। अजंता में करूण रस, शृंगार रस, रौद्र रस, भय रस, शांत रस, इत्यादि रसो से परिपूर्ण चित्रण है। रेखाओ में सौन्दर्य के बेजोड़ नमूने अजंता में देखने को मिलते है। जो लयपूर्ण है। अजंता मे क्षैतिज रेखा, कोणीय रेखा, वक्रकार रेखा, खड़ी रेखा, आड़ी रेखाओं को बड़े ही मनोरम विधि से संयोजित किया गया है। जो आज भी शीर्ष स्थान प्राप्त किए हुए है।  मरणासन्न राजकुमारी अजंता की गुफा का हदय है जिसमें करूण रस का बड़ा ही मार्मिक चित्रण किया गया है। यह गुफा संख्या 16 में चित्रित है। व भारतीय पारम्परिक कला का आधार ही धार्मिक व दार्शनिक विचारो का संलयन है। तत्पश्चात पाल शैली, अपभ्रंश शैली, मुगल शैली, राजस्थानी व पहाड़ी शैली में भी कलाओ में परम्परागत पूर्ण रेखाओ का सौन्दर्य विराजमान है। परंतु शीर्ष स्थान पर राजस्थानी व पहाड़ी शैली में रेखाओ का सुनियोजित ढंग से चित्रण किया गया है। प्रारम्भ मुगल में ही हो गया था। परंतु अकबर व जहांगीर के समय ही रेखाओ को लयपूर्ण व गतिपूर्ण प्रदर्शित किया गया है। किन्तु पहाड़ी व राजस्थानी शैली में बहुत ही सुंदर ढंग से रेखाओ से रूप सौन्दर्य का संयोजन किया गया है। बनी-ठनी इसका सर्वोत्तम उदाहरण है। जिसे भारत की मोनालिसा कहा जाता है। यह राजा सावंत सिंह की प्रिया तथा निहालचंद ने इस कृति को पूर्ण किया है। यह अद्वितीय रूप सौन्दर्य के कारण रूप चित्रण का आदर्श बन गई है। पहाड़ी चित्रकला में रेखाओ का सौन्दर्य गुलेर कांगड़ा बसोहली व गढ़वाल मे सर्वोत्कृष्ठ रहा है।

 

4.    भारतीय आधुनिक कला एवं रेखांकन

19 वी शताब्दी में कालीघाट में चित्रण की नई पद्धति का प्रचलन चल गया था। जिसमें चित्रों को मोटे कागज पर मजबूती कें साथ कपड़ा चिपकाकर तैयार किया जाता था। डब्ल्यू जी आर्चर ने कालीघाट को बाजार पेण्टिंग के नाम से पुकारा था। यह धार्मिक चित्रो के अलावा वैष्णव धर्म से भी संबन्धित रही है। तत्पश्चात पटना कलम या कंपनी शैली का उदभव हुआ इस शैली का प्रमुख चित्रकार ईश्वरी लाल प्रसाद थे कंपनी शैली या पटना शैली यूरोपीय व मुगल शैली से प्रेरणा पाकर ही जन्मी थी। पटना कलम में चित्र प्राय छोटे छोटे बनाए जाते थे व यथार्थवादी ढंग से चित्रित किए जाते थे। सूक्ष्म व गतिमान रेखाओ के सौन्दर्य को पटना कलम में चित्रों का संयोजन किया गया है। कलाकार राजसी, तामसिक, सात्विक, इन तीनों भावो का चित्रण किया करते थे मछली खाती बिल्ली, तोता कही-कही रेखाओं को मोटी भी बनाया गया है। तत्पश्चात बंगाल स्कूल का उदय हुआ । 18 वी शताब्दी में ब्रिटिश अधिकारियों का शासन रहा तब कला मृतप्राय सी हो गई थी। राजा रवि वर्मा एक मुर्घन्य कलाकार के रूप में जाने जाते है उन्होने रेखाओं का अपने चित्रों में सूक्ष्म रूप से संयोजन किया है। उनका चित्र विधान यथार्थवादी शैली से प्रेरित है। राजा रवी वर्मा ने तेल चित्रण का रंग विधान प्रारम्भ किया उन्होने ऐतिहासिक पौराणिक व राजा महाराजाओ के शबीह भी बनाए तत्पश्चात पुनर्जागरण चित्रकला का उद्भव अवनीन्द्रनाथ ठाकुर ने किया। वह आधुनिक भारतीय चित्रकला के जनक माने जाते है। उन्होने वाश पद्धति व इटालियन शिक्षक गिलहार्डी से पेस्टल तकनीक भी सीखी । नंदलाल बोस, असीत कुमार, गगनेन्द्रनाथ ठाकुर, क्षितीन्द्रनाथ मजूमदार ने बंगाल स्कूल को चरम शीर्ष तक पहुचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। बंगला स्कूल में रेखांकन पद्धति पारम्परिक विशुद्ध व प्रवाहपूर्ण है। इस काल में चित्रकार जन-समुदाय से जुडे व सामाजिक घटनाओं पर अधिक चित्रण किया करते थे। नंदलाल बोस स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय भूमिका में रहे है।

 

5.    भारतीय समकालीन कला एवं रेखांकन

भारतीय समसामयिक कला आंदोलन 20 वीं शताब्दी सें प्रारम्भ होता है। जो वर्तमान तक गतिशील है। समकालीन कलाकार कला के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित है। वह किसी बंधन में रहकर कार्य नहीं करना चाहते वह अपनी प्रतिभा को हर क्षेत्र में प्रसारित कर रहे है। चाहे वह चित्रकला हो मूर्तिकला हो स्थापत्य कला हो कम्प्यूटर कला हो आज की कला में पूर्ण रूप से बौद्धिक प्रक्रिया है। जो कलात्मकता के पूर्ण शिखर पर विराजमान है। आज का भारतीय कलाकार प्रदर्शनकारी बन गया है। वह रेखा रंग रूप तान पोत अंतराल सभी तत्वो को अपनी कलाकृतियों में सुव्यवस्थित ढंग से संयोजित करता है। वह मूर्त व अमूर्त कला के संसार मे विचरण करता है। व आकृति मूलक व अर्द्धआकृतिमूलक की और अग्रसर है। भारतीय समकालीन कला के प्रमुख कलाकार कवलं कृष्ण, अंजलि इला मेनन, जतिन दास, विवान सुन्दरम प्रमुख कलाकार है। कंवल कृष्ण ने जलरंग व ग्राफिक माध्यम का उत्कृष्ट उपयोग किया है। इनके चित्रों में प्रकाश की झगमगाहट दिखाई देती है। आपने डिजाइन व रंगो के टेक्स्टर का गतिशील रेखांकन किया है। Mago (2006)

अंजलि इला मेनन भी इसी श्रेणी की चित्रकार है। उनकी कलाकृतिया प्राचीन कलाकारो से प्रेरित है। आपकी कलाकृतियो में स्पष्ट रेखाओ का प्रयोग किया गया है। नारी  सौन्दर्य, रूप, मनोभाव, प्रप्रतीकों  के रूप में अभिव्यक्त किए है। अंजलि इला मेनन की कला बाइजेंटाइन कला की तरह रंग योजना चमकीली चटख व ताजगीपूर्ण है।

जतिन दास भी समकालीन कलाकार की श्रेणी में आते है। जतिन दास सदैव मानवआकृति के लिए पूर्वाग्रह ग्रसित रहते है। 1970 के दशक में आपने अन्याय से संबन्धित चित्रण किया है। आपकी सम्पूर्ण कलाकृतिया सजृनात्मकता, अमूर्त, ऐंद्रिय, संबंध को अपने अन्तर्मन से महसूस होती है। आपकी कला में रेखाओ में भी धरातलीय बनावट का रूप विद्यमान है।

समकालीन श्रेणी के एक कलाकार विवान सुन्दरम है जो इंटरनेशनल कला के सुप्रसिद्ध चित्रकार है। बहुत नगण्य कलाकार ऐसे होते है जो कागज व भित्ति, केनवास, की रीति को तोड़कर आगे बढ़ते है। परंतु विवान सुन्दरम ने इस रीति को तोड़कर स्थापना कला की उच्च श्रेणी में अपना नाम शीर्ष स्थान पर दर्ज कराया है। विवान सुन्दरम को देश ही नहीं अपितु विदेशो में भी ख्याति अर्जित है। 20 वी शताब्दी में कला के क्षेत्र मे जिस प्रकार के विकास हुए है। उन्होने कला के तत्वो व माध्यमों को चुनौती दी हुई है। कलाकार अयथार्थवादी की व अमूर्त कला की और अत्यधिक अग्रसर हो रहा है। Pradeep (2007), Samkalin Kala  (1984), Samkalin Kala (2002), Samkalin Kala  (2018)

 

6.    के. जी. सुब्रमण्यन की कला में रेखांकन

चित्रकला एवं शिल्पकला के विपरीत प्रकृति के रूप व माध्यमों को एक साथ प्रयोग करने वाले के. जी. सुब्रमण्यन का जन्म केरल में हुआ था तथा शिक्षा शांति निकेतन में हुई । शांति निकेतन प्रकृति से जुड़ा हुआ कला का केंद्र है। जो आज भी प्रकृति पर आधारित कला का केंद्र है। के. जी. सुब्रमण्यन को मणि दा के नाम से भी जाना जाता है। सुब्रमण्यम नें पिकासो से प्रभावित होकर धनवादी शैली में कार्य किया लगभग दस वर्षो तक ज्यामितीय रूपो को अधिक महत्व दिया। मुर्गा बेचने वाला नमक चित्र इसका श्रेष्ठतम उदाहरण है। सन 1960 के दसक में वह अतियथार्थवाद की और अग्रसर हुए प्रारम्भ में के. जी. ने स्थानीय तत्वों रूपांकन  मुहावरों को रूप में प्रयोग करने का प्रयास किया है।Agrawal (2019) उनकी कला को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि वह स्वतंत्र है। व बंगाल की कला शैली से जुड़कर उनकी कला जन समुदाय के समक्ष निखार कर आई उनकी कला मिथको लोक कला और जनजातीय कला से प्रेरित व मनमोजीपन व चमकदार रंगो का आकर्षण देते है। के. जी. सुब्रमण्यन ने नारी के बहुत सारे रूपो का चित्रण किया है। हास्य, श्रंगार, करुण, भय, रोद्र इत्यादि भावो का चित्रण किया है। देवी -देवताओ का भी के. जी. ने चित्रण किया है। सन 1970 के दशक में मणि दा ने टेरकोटा बनाए जो लयात्मक अलंकरण लिए हुए है। चिकने धरताल पर विविध प्रकार के जटिल पोत उत्पन्न की है। व रसायनिकों का प्रयोग चमक के लिए किया गया है। के. जी. सुब्रमण्यन ने एक्रेलिक पर रिवर्स पेण्टिंग व सेरीग्राफी का प्रचलन भारत में पहली बार किया है। जो सराहनीय है। आगे जाकर मणि दा ने कल्पनाओ व परी कथाओ को अभिव्यक्त प्रदान करने का सहज साधन बना लिया था। के. जी. की कला रंग रूप आकारो से क्रीडा करती नजर आती है। चमक रंगो व बेजोड़ रेखांकन पद्वती के कारण मणि दा हमेशा स्मरण किए जाते है।

Fairytales of Purvapalli

चित्र 1 Fairytales of Purvapalli (Subramanyan, K. G.)

Source https://artsandculture.google.com/asset/fairytales-of-purvapalli-k-g-subramanyan/GAFzek1m-x5vZQ?hl=en

 

7.    जगदीश स्वामीनाथन की कला में रेखांकन

जगदीश स्वामीनाथन - स्वामीनाथन एक ऐसे कलाकार थे। जिनके व्यक्तित्व को कभी भी कला के आकारो में समाहित नहीं किया जा सकता आपने आदिवासियो के जीवन को चित्रित किया। जगदीश स्वामीनाथन की चित्रकला में आकाश, उड़ते पक्षियो को प्रतीक बना कर कला कृतियो का सजृन किया है। उनकी कला के प्रति जो संवेदनाए थी वह बड़ी ही स्पष्ट थी। स्वामीनाथन कि कलाकृतियों की रेखाए स्पष्ट, त्रिकोणीय, वृत्ताकार, सर्पीली, व सुलेखीय प्रभाव के रूपांतरित करती है। भिन्न भिन्न प्रकार के धरातलीय बनावट रंगो की प्रवाहशीलता जादुई प्रभाव उत्पन्न करती है। Singh (2005)

जगदीश स्वामीनाथन का जन्म पहाड़ी परिवेश में होने के कारण उनकी कला में पूर्ण रूप से प्रदर्शित होता है। उनके चित्रो में रंगो का संयोजन कोमल व शुद्ध है। चटक रंगो का प्रवाह उनकी कलाकृतियों में पाया जाता है।  उनकी कला में एक पारदर्शी आवरण व जलरंगी स्पर्श विद्यमान है। परंतु बाद की कलाकृतियों में उनके चित्रो में रेखाए काली व मोटी स्पैटुला की सहायता से लगायी गयी है। ऐसा प्रतीत होता है मानो पिकासो की कला से प्रेरणा ग्रहण की गई हो उनके रूप आकारो को देखकर ऐसा प्रतीत होता है मानो संवेगो की तीव्रता उत्पन्न हो रही हो।

A picture containing text

Description automatically generated

चित्र 2 Swaminathan, J.

Source  https://alchetron.com/Jagdish-Swaminathan

 

8.    ए. रामचंद्रन की कला में रेखांकन

रेखाओ के सौन्दर्य के विषय में चर्चा की जाए तो ए. रामचंद्रन का नाम भी शीर्ष स्तर पर विराजमान है। उन्होने धार्मिक विषयो को लेकर असंख्य चित्र बनाए है। केरल में जन्म होने के कारण कृष्णा स्वामी मंदिर की मूर्तियाँ रामचंद्रन के मन में बसी हुई थी। रामचंद्रन एक संगीतकार होने के साथ साथ चित्रकार भित्ति चित्रकार भी है। संगीत प्रशिक्षण ग्रहण करने के पश्चात कला में भी प्रवाह विराजमान है। उनके चित्र पशु व पक्षियो के बीच अतियथार्थ वादी शैली का मिश्रण है। रामचंद्रन तेल रंगो में काम करते थे। यह राजस्थान की भील जनजाती से लगाव रखते है। रामचंद्रन ने राजस्थान के सुंदर लैडस्केप और लघुचित्रों के संसार में बहुत ही कलात्मक ढंग से कार्य करते दिखाई देते है ययाति भारतीय महाकाव्य महाभारत से प्रेरित म्यूरल है। रामचंद्रन की कला स्पष्ट रेखाए व गतिमान चित्रण से परिपूर्ण है रंग संयोजन में बड़ी ही दिलचस्प शुद्धता व चमक है। ययाति से पूर्व चित्रण तकनीक व प्रतीक भिन्न है। जो समाज में मनुष्य की त्रासद स्थिति और दुर्दशा को लगभग एक अतियथार्तवादी अभिव्यक्ति प्रदान करते है। ए. रामचंद्रन अजंता व बह्य की गुफाओ के चित्रण संयोजन व लयपूर्ण रेखाओ से प्रेरित कलाकार थे। रामचंद्रन कहते है कि कलाकार किसी घटना को बदल नहीं सकता। यदि उसे कसाई की दुकान का चित्रण करने के लिए कहा जाए तो वह वहाँ भी रंगो का बहुत संवेदनशील रूप में प्रयोग करके उसमे सौन्दर्य की अनुभूति को स्पष्ट करने का प्रयास करता है। रामचंद्रन के चित्रो में सदैव युवा पीढ़ी को एक बार फिर से संघर्ष, समाज, पौराणिक कथाओ की और अग्रसर किया है। Viranjan (2003)

A picture containing text, indoor

Description automatically generated

चित्र 3 Kumar, S. R.

Source https://www.facebook.com/photo/?fbid=517520815049820&set=a.517520651716503.1073741828.439885819479987

 

9.    परमानंद चोयल की कला में रेखांकन

इसी श्रेणी के एक अन्य कलाकार राजस्थान में जन्मे परमानंद चोयल है। सन 1955 के आस-पास राजस्थानी कला में एक महत्वपूर्ण चक्र आया परमानंद भी आधुनिक कला जगत में अपनी विशिष्ट छवि रखते है। इतिहास इस बात को प्रमाणित करता है कि हर देश व प्रांत में उतार चढ़ाव आते रहते है। कभी दुख के काल से कभी खुशी के काल से समय बीतता है। उसी प्रकार कला का भाव है जब कलाकार समाज की त्रासदी को देखता है तो उनकी कलाकृतियों में स्वयं ही विवाद करुणा का भाव जागृत होता है। यदि वह प्रफुल्लित मन से है तो हास्य, शृंगार, इत्यादि भाव का चित्रण करता है यह भाव संचारी है । समय के साथ साथ परिवर्तित होते होते रहते है। परमानंद चोयल नें चित्रों में सामाजिक उत्पीड़न व जीवन के संघर्षो को अधिक चित्रित किया है। उनकी कला इम्पेस्टो माध्यम में अधिक है। प्रतीत होता है वानगाग की कला से प्रेरित है। मोटे व सीधे नाइफ से रंगो से कलाकृतिया पूर्ण कि गई है। उनकी कला फंतासी व अतियथार्थवादी शैली में मिश्रण कर कला को नया स्वरूप प्रदान करती है। परमानंद चोयल के चित्रो की विषय वस्तु वास्तुकला प्रकृतिक अंकन, नारी वेदना, ऐतिहासिक विषयो का चयन, धुंध भरा आकाश, टूटती दीवारे, सरकती हवेलियाँ व प्रसिद्ध भेंसो पर बनाई शृंखला महत्वपूर्ण है। उन्होने तेल रंगो में मोहक कला का प्रदर्शन किया है । उन्होने राधा कृष्ण को लेकर भी अनेक कलाकृतियों का सजृन किया है। परंतु रंग विन्यास, शैली व संयोजन में हमे आधुनिकता के दर्शन होते है। परमानंद चोयल की कला वाश पद्धति से भी प्रेरित है। उनकी कला को विषय बनाकर चित्रित किया गया है जो कलिया दमन की विषय वस्तु से प्रेरित है। व आधा चित्र गोवर्धनधारी के रूप में चित्रित किया गया है। श्री कृष्ण जो एक हाथ से गोवर्धन पर्वत को धारण किए हुए है व पैरो के नीचे कालिया का दमन किया गया है । एक हाथ में बांसुरी है । वही कालिया उनकी ओर निहार रहा है । एक पैर कालिया सर्प के शीर्ष पर विराजमान है । अगर हम वास्तव में इस चित्र को देखे तो रोद्र रस का अनुभव श्री कृष्णा की चक्षुक में दिखाई देता है। रंगो का संयोजन चोयल ने बड़ा ही व्यवस्थित रूप से किया है। जो वास्तविकता का अनुभव कराता है। धरातल में नीला रंग व ऊपर पानी की उठती हुई तरंगे हरे रंग व गोवर्धन पर्वत को भूरे रंग से दर्शाया गया है। व श्याम रंग से श्री कृष्णा जी को मोर पंख शीर्ष पर विराजमान है। मानो एक शांत वातावरण का चित्रण परमानंद चोयल ने इस कलाकृति में किया है। रंग संयोजन अवनीन्द्रनाथ की वाश पद्धति जैसा प्रतीत होता है। मानो कोमल व शुद्धता, चमक से परिपूर्ण है। कोई बनावटीपन नहीं है। दर्शकों को अपनी और मंत्र मुग्ध करने वाली कलाकृति का सजृन आपने किया है। जो पौराणिक होते हुए भी आधुनिकता की ओर अग्रसर होती प्रतीत होती है। Yadav and Yadav (2015).

A picture containing text, water, painting

Description automatically generated

चित्र 4 Choyal, P.N.

Source  https://www.artchill.com/works.php?artist_id=64#box248

 

10.      उपसंहार

इस प्रकार हम कला में रेखाओ  के सौन्दर्य को प्राचीन काल से प्रारम्भ होकर वर्तमान तक के सौन्दर्य को देखते है। चित्रकला में रेखा का महत्वपूर्ण स्थान है। चाहे वह किसी भी प्रकार की चित्रकला हो, मूर्तिकला, स्थापत्यकला, सभी में कलाकार अपनी कल्पना का सजृन प्रारम्भ में रफ लेआउट के माध्यम से तैयार करता है। प्राचीन काल में शिला चित्र प्राप्त हुए है। वह पूर्णत रेखाओ पर आधारित है। सभी कला शैली रेखाओ के बिना अपूर्ण है। रेखाओ का एक मात्र कार्य कला के सजृन में ही नहीं अपितु रेखाओ का पूर्ण रूप से भाव भी दृष्टिगोचर होता है। जो व्यक्ति की मनोवेगों से भी संबंध रखती है। चित्रकला में रेखा का स्थान सर्वोत्कृष्ठ है।

 

REFERENCES

Agrawal, G. K. (2019). Roopankan. Agra : Sanjay Publication. https://amzn.to/3rm1wjD

Agrawal, R. A. (2002). Roopprad Kala ke Mooladhaar [Fundamentals of Plastic Art]. Meerut : International Publication House, 14. https://amzn.to/3JrNJhH

Chaturvedi, M. (2014). Samkalin Bhartiya Kala [Contemporary Indian Art] (5th ed.). Jaipur : Rajasthan Hindi Granth Academy, 131. https://amzn.to/3js7tXF

Mago, P.N. (2006). Bharat Ki Samakaleen Kala : Ek Pariprekshya [Contemporary Art of India : A Perspective]. India : National Book Trust, 158. https://amzn.to/3xgFKBz

Pradeep, K. (2007). Sarajan Ke Muladhar - Aakriti 1. Krishan Prakashan, 910. https://amzn.to/3O1rqTt

Rani. A. (2019). Kala Mein Dhaarmik Sanlayan Prakaashak [Religious Fusion in the Arts illuminant]. Meerut : Department of Fine Arts, R G College, 205

Samkalin Kala [Contemporary Art] (1984). Lalit Kala Academy, 2, 19

Samkalin Kala [Contemporary Art] (2002). New Delhi : Lalit Kala Academy, 10, 11, 22, 23

Samkalin Kala [Contemporary Art] (2018). New Delhi : Lalit Kala Academy, 20, 60

Singh, M. (2005). Drashy Kala Aur Lok Kala Ka Mool Tatv Aur Sidhdaant [Basic Elements and Philosophy of Visual Arts and Folk Arts] (1st ed.). RHGA Rajasthan Hindi Granthagar Academy, 47. https://www.onlinebooksstore.in/rhga-basic-elements-and-philosophy-of-visual-arts-and-folk-arts-by-dr-mamta-singh

Viranjan, R. (2003). Samkalin Bhartiya Kala [Contemporary Indian Art] (1st ed.), Kurukshetra : Nirmal Book Agency.

Yadav, N. S. (2010). Graphic Design. Jaipur : Rajasthan Hindi Granth Academy, 15. https://amzn.to/3uwRWMN

Yadav, N. S. and Yadav, A. (2015). Kala Ke Navin Swarup [New Forms of Art] (1st ed.). Jaipur : Rajasthan Hindi Granth Academy, 25. https://amzn.to/3JCUCwp

Pratap, R. (2015). Bhartiya Chitrakala Evam Murtikala Ka Itihas [History Of Indian Painting And Sculpture] (20th ed.). Jaipur : Rajasthan Hindi Granth Academy, 424. https://amzn.to/379uRGU   

 

 

 

 

 

 

Creative Commons Licence This work is licensed under a: Creative Commons Attribution 4.0 International License

© ShodhKosh 2021. All Rights Reserved.