RENOWNED EXPERIMENTAL ARTIST SURENDRA PAL JOSHI
प्रख्यात
प्रयोगधर्मी
कलाकार सुरेन्द्र
पाल जोशी
RENOWNED
EXPERIMENTAL ARTIST SURENDRA PAL JOSHI
प्रख्यात
प्रयोगधर्मी
कलाकार
सुरेन्द्र पाल
जोशी
Vinod Kumar Goswami 1
1Researcher, Raja Man Singh Tomar
University of Music and Arts, Fine Arts, Gwalior, Madhya Pradesh, India
ABSTRACT
English:Surender Pal
Joshi one of the finest artist of India. Who was
very much established in his field. He had his own style for his art works
and that is why he was also known as an experimentalist, as he was always
ready to come up with new experiments. His art works hold a very wonderful
charm that everyone who sees them, tends to get
mesmerized. He was born in the year 1958 in a village close to Dehradun.He did his primary and secondary education from Dehradun itself. After that he shifted to Rishikesh
for his BA (Bachelor’s In arts) and then did his B.F.A (Bachelor’s in fine
arts) from Lucknow University. He completed his BFA in 1985 as the top
performer in the entire college. After that he went to Jaipur for further
studies and from there itself his actual journey of becoming one of the
finest artist of India started. He came up with new
Creativity, New experiments, and a whole new series of his art works. Many of
them were exhibited at Lalit Kala academy Jaipur in 1988 and it received a
lot of appreciation. His paintings also used to
depict an essence of Sufi assembly. He was also quite influenced by the great
poet "Kabir" and did made many art works
that used to portray Kabir's sayings. And that's how he got to know about the
power of experimantalism. His art works also used
to depict an essence of mother nature.And gradually he understood his areas of strength.With the power of his imagination and
experiments he started his own journey of failures and success.
With time he started making his art works in
different mediums like Metal, Board ceramic, Tera Cota, Wood steel, Glass,
brass and what not. He tried everything that was possible
whatever seemed not. made it possible too. Not only in India but his art
works started receiving appreciation from other countries too. Became an
international name. He was also bestowed with National awards. Now he started
with a different form that was modern art works but with a traditional touch.
His series were also named as " Taana-Baana". With years of hard
work, risk taking abilities, with power of his imagination
and experiments he became a sensation.And was always appreciated for his great ideas and designs. He was
also called to visit various countries. He was also a professor in School of Art and served their
from 1988 till 2004. He tool VRS and then decided to
be a free artist. His years of hard work got him many awards, scholarships,
and Fellowships. In 2013, impressed with his hard work and dedication, The
Uttarakhand government proposed an idea to make a museum for him with all his
art works installed. It was inaugurated in 2016. And in 2018 this great man
departed from this world, leaving behind a whole big Era. He'll always be
alive in our hearts, and I'll always be grateful for his teachings and
guidance.
Hindi:सुरेंद्र
पाल जोशी
भारत के महान
कलाकारों
में से एक
हैं। जोशी जी
की स्वयं की
अपनी शैली थी
और इसीलिए
उन्हें एक
प्रयोगवादी
के रूप में भी
जाना जाता हैं, क्योंकि
वह अपनी कला
के साथ हमेशा
नए प्रयोग
करते रहते
थे। उनकी
कलाकृतियों
में इतना
अद्भुत आकर्षण
होता है कि जो
कोई भी
उन्हें
देखता है, मंत्रमुग्ध
हो जाता है।
उनका जन्म
साल 1958 में देहरादून
के नजदीक एक
गांव में हुआ
था।
उन्होंने
अपनी
प्राथमिक और
माध्यमिक
शिक्षा
देहरादून से पूर्ण
की थी। स्नातक
शिक्षा के
लिए जोशी जी
पहले ऋषिकेश गए
और फिर लखनऊ
से बीएफए
(चित्रकला) से
पूर्ण किया।
उन्होंने 1985 में
अपना बीएफए प्रथम
स्थान से
पूर्ण किया। इसके
बाद जयपुर
मैं ही रह कर
अपनी उच्चा
शिक्षा व
चित्रकला की
स्वयं की
प्रथम
श्रंखला का
चित्रांकन
कार्य पूर्ण
किआ। उनमें
से कई को 1988 में
ललित कला
अकादमी
जयपुर में
प्रदर्शित
किया गया और
इसे बहुत
सराहना मिली।
उनके चित्रों
में सूफी सभा
का सार भी
चित्रित
होता था। वह
महान कवि
"कबीर" से भी
काफी
प्रभावित थे
और उन्होंने
कई
कलाकृतियाँ
बनाईं जो
कबीर की विचारो
को चित्रित
करती थी।
उनकी
कलाकृतियाँ
मातृ
प्रकृति के
सार को भी चित्रित
करती थी। अपनी
कल्पना
शक्ति और
प्रयोगों के
बल पर उन्होंने
असफलताओं और
सफलता की
अपनी यात्रा शुरू
की।
समय के
साथ
उन्होंने
धातु, बोर्ड
सिरेमिक, टेरा
कोटा, लकड़ी
स्टील, कांच, पीतल
जैसे
विभिन्न
माध्यमों
में अपनी
कलाकृतियाँ में
उपयोग करना
शुरू कर दिया।
उन्होंने
अपने हर
असंभव
विचारो को, संभव
करने की
कोशिश की, जोशी
जी की
कलाकृतियों
को न केवल
भारत में
बल्कि दूसरे
देशों से भी
सराहना
मिलने लगी। वह
एक अंतरराष्ट्रीय
नाम बन चुके
थे। उन्हें कई
राष्ट्रीय
पुरस्कारों
से भी
सम्मानित
किया गया था।
अब उन्होंने
अलग विचार के
साथ शुरुआत
की, जो
आधुनिक
कलाकृतियाँ
थीं लेकिन
पारंपरिक
स्पर्श के
साथ। उनकी
सीरीज का नाम
भी 'ताना-बाना' रखा
गया। वर्षों
की कड़ी
मेहनत, जोखिम
लेने की
क्षमता, अपनी
कल्पना
शक्ति और
प्रयोगों से
वह एक प्रसिद्ध
कलाकर बन गए,
और उनके महान
विचारों के
लिए उन्हें
हमेशा सराहा
गया। उन्हें
विभिन्न
देशों की
यात्रा के लिए
भी बुलाया
गया। वह
स्कूल ऑफ
आर्ट में
प्रोफेसर पद
पर कार्यरत
थे और
उन्होंने 1988 से
2004 तक वहां सेवा
की, तत्पश्चात
उन्होंने
वीआरएस लिया
और फिर एक
स्वतंत्र कलाकार
बनने का
फैसला किया।
उनकी वर्षों
की कड़ी
मेहनत से
उन्हें कई
पुरस्कार, छात्रवृत्तियां
और फैलोशिप
मिलीं। 2013 में, उनकी
कड़ी मेहनत
और समर्पण से
प्रभावित
होकर, उत्तराखंड
सरकार ने
उनकी सभी
कलाकृतियों
को स्थापित
करके उनके
लिए एक
संग्रहालय
बनाने का
विचार
प्रस्तावित
किया। इसका
उद्घाटन 2016 में
किया गया था
और 2018 में यह
महान कलाकर
इस दुनिया को अलविदा
कह गए, और अपने
पीछे एक बड़ा
युग छोड़ गए।
वह हमेशा
हमारे दिलों
में जीवित
रहेंगे और मैं
उनकी
शिक्षाओं और
मार्गदर्शन
के लिए हमेशा
आभारी
रहूंगा।
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सुरेन्द्रपाल
जोशी (1988 से 2018)
सुरेन्द्र
जोशी आज के उन
विशिष्ट
कलाकारों में
शामिल है,
जो आधुनिक कला
के प्रयोग के
लिए जाने जाते
हैं। इनका
जन्म सन् 1958 में
देहरादून के
पास एक गांव
में हुआ
प्रारम्भिक
शिक्षा गाँव
और फिर माध्यमिक
शिक्षा
ऋषिकेश में
होने के बाद
लखनऊ से बी. एफ. ए.(पेंन्टिग) प्रथम
क्षेणी में
किया लखनऊ के
प्रसिद्ध कला महाविधालय
(लखनऊ कलेज ऑफ
आर्ट) के
मेधावी छात्र
रहे
सुरेन्द्र को
प्रारम्भ से
ही गरीब और
संघर्षशील
सामाजिक
तानेबाने से
प्रेम थाए
शायद अपने आप
को उनमें
देखते थे।
आज के
जटिल लेकिन
प्रयौगिक युग
में जहाँ मानव
हर समय गतिशील
है। उससशीयाँ
करण ने ही
हमें
कम्पूयटर दिया, जो हमारे
जीवन का अंह
हिस्सा है,
या यो कहें वह
हमें संचालित
कर रहा है,
आज के आधुनिक
श्रोत हमें
बहुत हद तक
कम्पूयटर से
मिलते हैं वह
कहते इस से
बचने के लिए
हमें अपनी
लड़ाई खुद लड़नी
है, नहीं
हमारी
स्वतंत्र
पहचान बहुत
जल्द इस सब के
आश्रित हो
जाएगी जिसमें
कलाकार का मन
खो जाएगा हाँ
इससे हमें कुछ
आवश्यक या
बुनियादी लाभ
मिले जैसे तकनीक
जिसमें लेक्चर
हमें बहुत हद
तक कम्पूयटर
के द्वारा
प्राप्त हो
सकते हैं तो
ले सकते हैं।
उनके अनुसार
एक कलाकार
अपने तकनीक
कौशल द्वारा
कला जगत में
सहज और
संतुलित
पहचान बना
सकता है। जब यह
औजार बन जाए
तो
दिम्भ्रमित
कर चमहकृत भी
कर देता है।
बचपन में
इनके पिता के
द्वारा कला के
प्रति दूरदर्शिता
और इनकी
प्रतिमा को
समझ लिया थाए
तदर्थ गाँव
में ही
प्रकृति और
जीव जन्तुओं
के स्केच
बनाने के लिए
कहा करते, बाद में
चूँकि 1971 में
भारत.पाक
युद्ध के
दौरान फौजी
पिता का सिर
से अल्पायू
में ही साया
नहीं रहा,
तदर्थ इनके
बहनोई मग्लेश
ड़बराल और माँ
ने इन्हें कला
के प्रति
प्रोत्साहित
किया।
बी.एफ.ए. की शिक्षा
पूर्ण करने के
बाद
सुरेन्द्र
रायल राजस्थान
की राजधानी जयपुर
आ गये और इसे
ही अपनी
कर्मभूमि
बनाया। यहाँ
इन्होनें कई
चित्र
श्रंखलाओं का
निर्माण किया
“काट होते
लोग” में
मशीनी युग से
आज के मानव की
तुलना की कि
कैसे यह हमें
नये जीवन की
प्रेरणा देती
है। जिस में “चक्को या
कहें पहिया” इस श्रंखला
का ऐसा प्रतीक
रहा जो जीवन
के चलायमान
स्वरूप् को
दर्शाता है, हमारे भीतर
और बाहर के
भावों को नये
अन्दाज में
व्यक्त करता
है। इस
श्रँखला में
और भी कुछ ऐसे
ही प्रतीकों
के साथ श्वेत-श्याम रंगों
का समायोजन
दर्शाया काठ
के ठेले के
सद्श्य “काठ
होले लोग”
में कुछ गहरे
भाव थे। इसमें
बने चित्रों
को कार्बन
पेपर द्वारा
बनाये
चित्रों की प्रदर्शनी
लखनऊ में
फुटबाल पर
लगाई,
चूँकि इन
चित्रों के
लिए गैलरी ने
प्रदर्शनी करने
से मना किया, जो बहुत
चर्चित रही
जनवरी में 1989
में लखनऊ में
सफदरहासमी
हत्या के
फलस्वरूप,
नुक्कड़ नाटक
के साथ इस
प्रदर्शनी को
फुटपाथ पर
सद्श्य
दर्शाया गया, जयपुर आकर
इनके रचना
संसार का
रूखापन सरस और
चटख रंगो के
साथ नये आयाम
में आने लगा
यहाँ के मेलों
को अब अपने
चित्रों में
पिरोने लगे, साधू
महात्मा भी
यदाकदा इनके
चित्रों में
सूफी संगत
देने लगे,
अब चित्रों के
साथ नया आयाम
म्यूरल (मिश्रित
चित्रण) भी
इनकी तकनीक का
मुख्य आकर्षक
बिन्दु बनने लगा, इनके
चित्रों में
हमेशा से ही
प्रयोगों के
प्रति गहरा
आर्कषण फूल, बच्चे,
चिड़िया,
साधू पादरी, सीडी “बियॉण्ड
द सिटी”
नयी सीराज की
कल्पना को
साकार
अभिव्यक्ति
देने लगे अब
कभी म्यूरल
में “अतिआधुनिक” तकनीक से
रचना पूर्ण
करते तो कभी
चटख रंगो से मेलो
का आकार
प्रतीकात्मक
लेकिन सपाट और
सहज स्वीकृत
होता आ रहा। 1994.95
में इस सीरीज “बियॉण्ड द
सिटी” में
लोक कला शैली
को खूब अपने
कैनव्स पर
उकेरा। जो
बहुत सहज व
नूतन प्रयोग
लगता था। इस
श्रंखला की
देश भर में
प्रदर्शनी
हुई और बहुत
सराही गयी।
इसके बाद
नये विचारों
और नवीन
प्रयोगों की
श्रंखला “टाइम-टैक्चर” का
प्रारम्भ
लगभग एक दशक
के बाद सन 2002.2003
में प्रारम्भ
किया जिसमें
आदिवासी
महिलाओं
द्वारा चुने कपड़ों
से प्ररेणा
लेकर भिन्न-भिन्न
माध्यमों में
प्रदर्शित
किया,
सुरेन्द्र
जोशी अपने
किसी भी कार्य
को बहुत सोच
समझकर और
प्रायोगिक
तकनीक से
परिपक्व होकर
ही प्रर्दशित
करते, उक्त
चित्र
श्रंखला से
चित्रों में
बुनकरों द्वारा
जो बुनने से
कुछ तैयार
होता वह अब
जोशी अपने
अनौखे भाव से
नये सयोजनों
का निर्माण करने
लगे, इस
श्रंखला ने
उन्हें
सराट्रीय कला
पुरस्कार
दिलाया, अब
उनके रचना
संसार में नये
पंख लग गये थे, देश
विदेशों में
इन सीरीज की
कई चित्र
प्रर्दशनी हो
चुकी थी, 2010
में फिर ताना
बाना सीरीज
द्वारा अब
अमूर्त चित्रण
से सबको
आकर्षित किया
इसमें फूलों
के रंगो का
अक्स नये
क्लेवर से
व्यक्त किया
चित्रों के
साथ-साथ
स्टील वुड तक
और विभिन्न
माध्यमों से
कलाकृतियों
का निर्माण
करने लगे इनकी
बनाई कृति विश्व
स्तर पर
पहचाने लगी
देश-विदेश
के बड़े कला
उत्सवों में
इन्हें खूब
सराहा जाने
लगा था।
इसके बाद मेमोरी
लाइन (2015 में) प्रारम्भ
की जिसमें बड़े
साइज की
कलाकृतियों
के साथ-साथ
“इन्टालेशन” स्कल्पचर
भी बनने लगे
जिससे इन्हें
देश के बड़े
कलाकारों में
पहचान मिली, सुरेन्द्र
जोशी के
पुरस्कार 1980.85
मैरिट स्कालरशिप
1991 आलइंड़िया
अवार्ड,
नागपुर 1991
यूनेस्को
जापान से
पुरस्कृत 1994, राजस्थान
ललित कला
अकादमी
द्वारा
अवार्ड 1997
बिट्रिश
फैलोशिप फॉर
म्यूरल
डिजाइन। 2000
गोल्ड मेडल
द्वारा
यूनेस्को (जापान) 2004 ऑल इण्डिया
अवार्ड लखनऊ
ललित कला
अकादमीए दिल्ली।2005 कालेज
शिक्षा
निदेशालयए
जयपुर।
सम्मान व
पुरस्कार - सन् 1980, 85
में मेरिट स्कॉलरशिप
कॉलेज ऑफ लखनऊ
1986, 88 स्कॉलरशिप
ऑफ ललित कला
अकादमी,
लखनऊ, 1990
एशियन कल्चर
सेन्ट्रल फॉर
यूनेस्को
जापान, 1991 ऑल
इण्डिया
अवार्ड साऊथ
सेन्ट्रल
कल्चर जोन,
नागपुर 1992
राजस्थान
ललित कला
अकादमी, 1994 ऑल
इण्डिया
अवार्ड
राजस्थान,
ललित कला
अकादमी 1997
फैलोशिप फॉर
प्यूरल
डिजाइन वाई
ब्रिटिश आर्ट
कौंसिल एण्ड
चेयरलेस वेल्स
ट्रस्ट वेल्स
कार्डिफ यू.के. 2000 गोल्ड मेडल
युनेस्को,
2001 ऑल इण्डिया
अवार्ड तिलक
स्मारक
ट्रस्ट पूणे, 2004 ऑल इण्डिया
अवार्ड,
उत्तर प्रदेश
ललित कला
अकादमी, 2004
नेशनल अवार्ड
ललित कला
अकादमी, नई
दिल्ली, 2005 कॉलेज
शिक्षा
राजस्थान
सरकार द्वारा
सम्मानित इत्यादि
उपलब्धियाँ
रही हैं ।
उन्होंने
म्यूरल
डिजाईन
विभिन्न
क्षेत्रों
में अनेकों
स्वरूपों में
डिजाइन किये हैं
। जिसमें
प्रौढ़ शिक्षा
नई दिल्ली,
1989 ई से लेकर 2005
में जे.एन.टी.यू. कॉलेज ऑफ
कार्टून आर्ट
हैदराबाद में
करते हु,
सतत्
क्रियाशील
है। इसी के
साथ विविध
स्थलों पर
सहभागिता
स्वीकार की।