ShodhKosh: Journal of Visual and Performing ArtsISSN (Online): 2582-7472
Depiction of Indian Society by CONTEMPORARY WATERCOLOR Artists समकालीन भारतीय जलरंग चित्रकारों द्वारा समाज का चित्रण़ Rajni Bala 1 1 Research Scholar, Department of Fine
Arts, Kurukshetra University Kurukshetra, Haryana, India 2 Professor, Department of Fine Arts, Kurukshetra University Kurukshetra, India
”कला शब्द
मानव के हर
कार्य का पर्यायवाची
है। जो भी
कार्य मनुष्य
निपुर्णता के
साथ करता है
उसे कला कहते
है। जो मनुष्य
को समाज में
रहने योग्य
बनाता है“
Kasiliwal (2019) समाज और कला
का आपस में
गहन और आन्तरिक
सम्बन्ध है और
समाज में सभी
मनुष्य एक
सकारात्मक
सोच के लिए
संवेदनशील
है। कला के द्वारा
समाज का
उत्तरदायित्व
सरलता से निभाया
जा सकता है, इसके लिए
प्रत्येक
मनुष्य का
अपना एक
दायित्व है।
कला मानव मन
को दर्शाती है,
मानव जिस
वातावरण, समाज
तथा देश में
रहता है, उसकी
छवि मानव मन
पर अंकित हो
जाती है, जिसको
कलाकार अपने
अनुभवों के
द्वारा अपनी कलाकृतियों
में चित्रित
करता है। इसी
प्रकार से
कलाकार जिस
समाज में रहता
है, उसके
समाज का
प्रतिबिंब
उसकी
कलाकृतियों
में
दृष्टिगोचर
होता है, जिसके
द्वारा उस समय
की धर्म, संस्कृति,
सभ्यता तथा
समाज के विषय
में जानकारी
मिलती है। कला
का कार्य
व्यक्ति और
समाज में एकता
लाना है। अगर
प्रागैतिहासिक
काल की बात की
जाए तो उस समय
आदिमानव
गुफाओं में
निवास करने और
जीवित रहने के
लिए पशुओं का
शिकार करते
थे। आदिमानव
आपस में
सम्प्रेषण और
पशुओं का
शिकार करने के
लिए चट्टानों
पर चित्रों को
उकेरते थे, जिससे हमें
प्रागैतिहासिक
काल की
जानकारी चित्रों
के द्वारा ही
प्राप्त होती
है। उसी प्रकार
से सिंधु घाटी
सभ्यता की
खुदाई में
प्राप्त
कलात्मक
बर्तनों, खिलोनों,
मिट्टी की
मूर्तियों, मनकों, ठिकरों
आदि से उस समय
के समाज, संस्कृति
व सभ्यता की
जानकारी कला
के द्वारा ही
दृष्टिगोचर
होती है।
धीरे-धीरे युग
बदलते गए, जिनमें
वैदिक काल, शैशुनाक, नन्दवंश,
मौर्य काल, शुंग काल, कुषाण काल, गुप्त काल, अजंता, एलोरा
आदि गुफाओं
में विभिन्न
कलाकृतियों का
निर्माण हुआ,
जिनमें उस समय
की संस्कृति,
धर्म, सभ्यता
तथा समाज का
पता चलता है।
”अजंता से नारी
सौंदर्य और
बौद्ध धर्म के
विषय में
जानकारी
मिलती है, इसके
उपरांत
मुगलों के समय
में प्रकृति
चित्रण, आखेट,
राजसी
जलूसों, जन्म-उत्सवों
के जश्न और
राजा-महाराजाओं
और रानियों के
पहनावे, उनकी
रहन सहन, संस्कृति,
धर्म आदि का
पता चलता है”। Verma (2020) मुगल काल के
बाद
राजस्थानी और
पहाड़ी कला की
सामाजिक और
संस्कृति के
विषय में
चित्रकारों ने
गुणवता वाले
रंजकों के
माध्यमों से
प्रस्तुत
किया है।
राजस्थानी
कला में राजा
और प्रजा
दोनों ही
धार्मिक
भावना से
ओत-प्रोत थे
तथा
चित्रकारी से
उस समय की
शानों-शोकत के
विषयों में
दर्शन होते
हैं। इसलिए
कहा जाता है, कि कला समाज
के बिना अधूरी
है, और
समाज भी कला
के बिना अधूरा
है। अतः यह
कहना स्वाभाविक
है, कि
कलाओं में
सामाजिक
उत्थान, उसकी
छवि पूर्ण रूप
से दिखाई देती
है। 2.
जलरंग
कलाकृतियों
का समाज पर
प्रभाव
कला तथा
कलाकार की
पहचान उसकी
कल्पना में
संकलित होती
है, जो
चित्राकंन का
माध्यम है।
“कला संस्थान
में विद्यार्थियों
को कला सृजन
करना सिखा
सकती है, लेकिन
कल्पना करना
नहीं सिखा
सकती, यह
गुण वह स्वंय
से प्राप्त
करता है। सभी
कलाओं में
अपने भावों को
अभिव्यक्त
करने के लिए
भिन्न-भिन्न
माध्यम होते
है। कला समाज
को अनेक रूपों
में प्रभावित
करती है।
चित्रकार
स्वयं के
अनुभवों को
चित्र सतह पर
उकेर कर या
चित्रित करके
समाज को
लाभान्वित
करता है“। Kasilwal (2019) इसलिए वह
कला के माध्यम
से दूसरों तक
अपने अनुभवों
को सांझा करता
है। कलाकार
समाज में व्याप्त
परिस्थितियों
को अपनी कला
के माध्यम से
उजागर करने की
सफलतापूर्वक
प्रत्यत्न
करता है। जिस
चित्रकार का
सामाजिक और
प्रकृति
ज्ञान जितना
विस्तृत होगा
वह उतनी ही
प्रभावी
कलाकृतियों
की रचना करता
है। उदाहरण के
लिए किसी भी
नशे के विषय
में मानव-समाज
को अवगत कराना
है, कि नशा
सेहत के लिए
हानिकारक है,
तो उनको समझ
नही आयेगा, अगर
चित्रांकन के
द्वारा
समझाया जाए तो
उनके मस्तिष्क
पटल पर चित्र
बन जाता है
जिससे इस
परिस्थिति से
छुटकारा मिल
सकता है। कला
और समाज का
आपस में गहरा
सम्बन्ध होना
बहुत आवश्यक
है। कलाकार
अपने में इतनी
शक्ति संग्रह
करता है, कि
वह समाज को
अकेले उच्चतर
स्तर पर ले जा
सकता है इसलिए
कलाकार का यह
भी धर्म है
किं वह समाज
को अपनी शक्ति
से प्रगति की
ओर खींचे और कुरूप
होने से
बचायें और
समाज में एक
संतुलन स्थापित
किया जाये। एक
कलाकार जब भी
किसी चित्र की
रचना करता है,
तो संभवतः
उसका प्रभाव
समाज के लोगों
पर भी भली
प्रकार से
प्रभाव डालता
है उदाहरण के
लिए बंगाल
स्कूल के
कलाकारों ने
अपनी
संस्कृति को
बनाने रखा और
जलरंग पद्धति
के द्वारा
समाज का
चित्रण करने
में महत्वपूर्ण
भूमिका निभाई
और समकालीन
जलरंग कलाकार
सामाजिक
चित्रण करने
में अपना
पूर्ण सहयोग
कर रहे है, जिनमें
से प्रमुख
कलाकार
निम्नलिखित
हैः- 1)
अवनींद्रनाथ
टैगोरः- अवनींद्रनाथ
टैगोर बंगाल
शैली के
प्रमुख कलाकार
है, जिनकों
वॉश शैली का
जन्मदाता
माना जाता है।
उन्होंने कलाकृतियों
के माध्यम से
समाज का
चित्रण करने में
महत्वपूर्ण
भूमिका निभाई
है।
अवनींद्रनाथ
टैगोर के
चित्रों में
समाज का
चित्रण झलकता
है। उनके
कार्यों में
पौराणिक
कथाओं और
सामाजिकता का
दर्शन
दृष्टिगोचर
होता है।
उन्होंने
रेखा चित्रों
के माध्यम से
भी समाज का
रूप दिखाने
में सराहनीय
भूमिका निभाई
है। ”भारतीय
शैली से
प्रेरित होकर
कविवर
रवींद्रनाथ
टैगोर की
चित्रांगदा (
नाटक), विद्यापति
व चंडीदास के
पदों पर
आधारित श्रृंखला
बनाई तथा कृष्णलीला
की त्रमाला और
भारतीय
पुराणकथाओं
को चित्रित
किया” Banerji (2009) जिनमें
से प्रमुख
चित्रः- मैन
विद मटका, म्यूजिशियन
प्लेइंग
सारंगी, कच्छ
विद देवयानी,
टियर डरॉप्स
ऑन लोट्स लीफ,
भारत माता,
कजरी डांस,
संथाल गर्ल,
यंग ब्वॉय
विद टॉय Parimoo (2011) आदि
अनेक चित्रों
में सामाजिक
चित्रण दर्शाने
में
सफलतापूर्वक
प्रयत्न किया
है। चित्र 1
2)
गगनेंद्रनाथ
टैगोरः-
गगनेंद्रनाथ
टैगोर घनवादी
कलाकार होने
के साथ-साथ
व्यंग्यचित्र
के लिए भी
प्रसिद्ध है। इन्हीं
गुणों की उनकी
गणना भारतीय
कला के पहले
आधुनिक
कलाकार के रूप
में होती है।
गगनेंद्रनाथ
टैगोर के चित्रों
में चैतन्य
महाप्रभु और
व्यंग्य
चित्रों के
द्वारा समाज
का चित्रण
करने में
महत्वपूर्ण
भूमिका निभाई
है। “उनके
प्रमुख चित्र कत्थक
पंडित में दो
पंडित को पढ़ते
और आपस में
विचार विमर्श
करते हुए
दिखाया गया
है। यह चित्र
जलरंग में
बनाया गया है।
चैतन्य इन
एकटैसी एट द
फीट ऑफ विष्णु
अवतार, मदन
थिएटर बाय
नाइट, में
उन्होंने
बहुत संख्या
में लोगों को
रात में
इकट्ठे हुए
दिखाया है, जिससे देखकर
गहन
वार्तालाप का
भाव और एकता
का आभास होता
है“। Parimoo (2011) प्रतिमा
विसर्जन
कलाकृति के
कार्य
चित्रों में
प्रतिमा को
विसर्जन
करनकी प्रथा
को दिखाया है।
हिमालय, फ्लावर
शो इन
दार्जिलिंग, प्यारे माइन,
मैरिज, ड्रिम
बोट, ग्रुप
ऑफ स्टैंडिंग
वूमेन, मीटिंग
एंट द
स्टेयरकेस
आदि चित्रों
का निर्माण
किया, जिनमें
से एक बोट पर
एक व्यक्ति
सवार है, जिसको
चित्रित किया
है।
गगनेंद्रनाथ
टैगोर के
चित्र
“कम्पोजीशन”
(जलरंग ) में
उन्होंने एक समुदाय
को प्रदर्शित
करने की
चेष्टा की है, जिसमें
उन्होंने
महिलाओं को
आपस में
वार्तालाप
करते हुए
चित्रित किया
है। चित्र
2
3)
नंदलाल
बोसः-
अवनींद्रनाथ
टैगोर के
शिष्यों में
नंदलाल बोस का
नाम
महत्वपूर्ण
स्थान रखता है
। इनमें
कलाकार, शिक्षक
और विचारक
तीनों गुणों
का समावेश था।
उनकी कला और
व्यक्तित्व
पर
अवनींद्रनाथ
ठाकुर, रामकृष्ण
परमहंस, रवींद्रनाथ
ठाकुर का
प्रभाव पड़ा।
अवनींद्रनाथ
टैगोर के
शिष्यों में
अपनी प्रतिभा
से भारतीय कला
जगत को समृद्ध
करने वाले
नंदलाल बोस का
नाम अत्यंत
महत्वपूर्ण
है। उनके
चित्रों में
भारतीय कला
परंपराओं का
गहरा अध्ययन
दिखाई देता
है। सामाजिक
जीवन के दृश्य
चरित्र और
जीवन के गहरे
मनोभावों के
साथ-साथ
पुरानी कथाओं
को भी अभिव्यक्त
करने का
प्रयत्न किया
हैं। नंदलाल
बोस के चित्रों
में
कुरुक्षेत्र,
उमाशिव, अहिल्या
आदि उनके
प्रमुख चित्र
है। 4)
गणेश
पाइनः- गणेश
पाइन के जलरंग
चित्रों में
सामाजिकता का
गुण दिखाई
देता है।
भारतीय कला के
दौर की आधुनिकता
में गणेश पाइन
का सबसे बड़ा
योगदान रहा है।
”उन्होंने
सामाजिक-सांसारिकता
को ऐसे सौंदर्य
बोध में बदल
दिया, जो
रहस्यात्मकता
पैदा करती है।
निजी और सामाजिक
विक्षोभ ने
इनको जलरंगों
में
अपारदर्शी अनगढ़
शैली में
चित्रांकन की
श्रृंखला
बनाने को
प्रेरित
किया”। Ghosh (2021) कलम और
स्याही से
रेखांकन उनके
माध्यमों में से
एक था। चित्र
नाव कलम और
स्याही से
चित्रित है, जिसको
उन्होंने
शक्ति
चट्टोपाध्याय
की काव्य पाठ
को सुनकर
बनाया था। यह
नाव तैरते शव
की मौखिक छवि
को लेकर
चित्रित किया
गया था। इसको
उन्होंने
बांग्लादेश
के मुक्ति संग्राम
में जहाज को
नष्ट किए जाने
के विरुद्ध प्रतिक्रिया
में बनाया था।
फिशरमैन
चित्र में एक
जहाज, जो
हड्डियों से
बना प्रतीत
होता है, नाव
में मछुआरे
पानी में जाल
डाले में जाल
डाले बैठे है और
नाव में बैठे
व्यक्ति के
पास दीपक जल
रहा है। इन
सभी चित्रों
में सामाजिकता
का भाव दिखाई
देता है। चित्र
3
5)
राम
जैसवालः-
कलाविद् राम
जैसवाल
राजस्थान के
प्रसिद्ध चित्रकार
हैं।
उन्होंने
चित्रों में
पौराणिक
कथाओं के साथ
भारतीय
सौंदर्य को
दिखाने का सफलतापूर्वक
प्रयास किया
है। उनके
चित्रों में
समाज का
सकारात्मक
पक्ष दिखाई
देता है। उनके
वॉश चित्रण के
अतिरिक्त
रेखाचित्र
में भी समाज
का भाव दिखाने
में
महत्वपूर्ण
भूमिका निभाई
है। उनके
प्रमुख चित्र, जिनमें
प्रकृति
चित्रण के साथ
ग्रामीण दृश्य
को भली-भांति
से चित्रित
किया, जिसमें
उन्होंने
बैलगाड़ी ले
जाते चित्र
में एक महिला
और पुरुष है, जो बैलगाड़ी
में जाते हुए
दिखाए गए है
और एक अन्य
चित्र जिसमें
कुछ महिलाओं
को धान
निकालते हुए
निर्मित किया
गया है। यह
सभी समस्त
समाज के
सकारात्मक
दृश्यों को
प्रकट करते है
और आज के दौर
में भी
कलाविद् राम
जैसवाल
चित्रों का
निर्माण कर
रहे हैं। चित्र
4
6)
वासुदेव
कामथ:- वासुदेव
कामथ समकालीन
कला में
महत्वपूर्ण
स्थान रखते
है। उन्होंने
जल रंग में
बहुतायत चित्रों
का निर्माण
किया और आज भी
कर रहे हैं।
वासुदेव कामथ
के चित्रों
में पुरानी
कथाओं, व्यक्ति
चित्रों और
ग्रामीण
दृश्य
चित्रों के
माध्यम से
समाज का
चित्रण
स्पष्ट झलकता
है। ”उनकी
कलाकृतियाँ
कोमलता, शांति
और सकारात्मकता
सोच का भाव
जागृत करती
है। गौ- माता
में उन्होंने
श्रीकृष्ण को
दिखाया है।
जिसका माध्यम
जलरंग है।
कपिल मुनि और
देवहुती माता
आदि चित्र में
करुणा का भाव
स्पष्ट दिखाई
देता है“। Kamath (2017) उनके चित्र
एज माई वर्ड, कोणार्क, एट यूअर
मर्सी, ऑन
द ईव, मी टू,
थिंक बिग, काठमांडू, आदि उनके
महत्वपूर्ण
चित्र है। चित्र
5
7)
समीर
मंडलः- समीर
मंडल पश्चिम
बंगाल के
जाने-माने
जलरंग कलाकार
है। उन्होंने
अनेक विषयों
से सम्बंधित
चित्रों की
रचना की, जिसमें
समाज कि परिस्थितियों
को भली भांति
दिखाया गया
है। समीर मंडल
के चित्रों
में कल्पना, धार्मिक, अमूर्त आदि
से समाज का
चित्रण
दृष्टिगोचर
होता है।
जिसमें द कपल
चित्र जलरंग
पद्धति द्वारा
बनाया गया है,
जिसमें
स्त्री और
पुरुष के
प्रेम प्रसंग
को दिखाया है।
एक दूसरी और
उनका चित्र
पागल है, जिसको
उन्होंने
जलरंग पद्धति
से चित्रित किया
है, इसमें
उन्होंने एक
व्यक्ति के
सिर के ऊपर
समाचार पत्र
को रखे हुए
चित्रण किया
है, जिससे
समाज में
व्याप्त कुछ
प्रवृत्तियों
को प्रदर्शित
किया गया है। चित्र
6
8)
राजकुमार
स्थाबाथीः- राजकुमार
स्थाबाथी
तमिलनाडु के
रहने वाले जलरंग
चित्रकार के
रूप में
प्रसिद्ध है।
उन्होंने
जलरंग पद्धति
के माध्यम से
अपने समाज का चित्रण
करने में
महत्वपूर्ण
भूमिका निभाई
है। उन्होंने
तमिलनाडु और
उसके आसपास के
सामान्य
लोगों को
चित्रित कर
सबका ध्यान
अपनी और आकर्षित
करने में अपना
पूर्ण सहयोग
दिया है। जिससे
सबका ध्यान
उनकी
कलाकृतियों
की ओर दृष्टिगोचर
होता है।
“उन्होंने
अपने चित्रों
में सामाजिक
चित्रों को
दिखाया है, रिक्शा चालक
चित्र में
उन्होंने
रिक्शा चलाने
वालों के भाव,
उनकी
शारीरिक थकान,
मजबूरी और
उनकी
दिनचर्या को
चित्रित किया
है। उन्होंने
प्रमुख
श्रृंखलाः
क्यू-श्रृंखला,
वयिल
श्रृंखला में
उन्होंने
पशुओं को
चित्रित किया
है,” Sthabathy (2017) इसके
अतिरिक्त
उन्होंने सड़क
पर काम करने
वाली महिलाओं
और पुरुषों को
अपनी तूलिका के
द्वारा
चित्रांकन
किया है और
दैनिक जीवन, कुंभ मेला
आदि अनेक
संख्याओं में
उन्होंने चित्रों
का रचना कर
सामाजिक
चित्रण को
दर्शाया है चित्र
7
9)
रघुनाथ
साहूः- रघुनाथ
साहू उड़ीसा के
जलरंग
चित्रकार के
रूप में जाने
जाते है।
जलरंग पद्धति
से उनकी कलाकृतियाँ
यथार्थता से
परिचित है।
उनके चित्रों
में ग्रामीण
दृश्यों और
समाज की
सुंदरता को भली
भांति गहन अध्ययन
करके चित्रित
किया है।
उन्होंने बचपन
श्रृंखला और
दैनिक जीवन से
संबंधित
चित्रों का
निर्माण कर
समाज से जुड़ी
वस्तुओं को
दर्शाकर समाज
को महत्व दिया
तथा इसके
अतिरिक्त उन्होंने
टोकरी बनाते
हुए महिला, मिट्टी के
बर्तन बनाते
हुए, बच्चों
के बचपन के
दृश्य में उन्होंने
बच्चों को जल
से खेलते हुए,
दीवारों पर
लिखते हुए आदि
को चित्रित
किया है। उनके
प्रमुख चित्र:
बचपन, गाय,
जिंदगी, स्टील
लाइफ, खेल,
बचपन टू, ट्राईबल आदि
चित्र हैं। चित्र
8
10) बिजय
बिस्वालः- बिजय
बिस्वाल
नागपुर के
प्रसिद्ध
चित्रकार हैं।
उनका बचपन
उड़ीसा के गांव
में व्यतीत
हुआ, जिससे
उनके चित्रों
में उनके समाज
का दर्पण दिखाई
देता है।
उन्होंने
अपनी जड़ से
संबंधित, धार्मिक
से संबंधित
आदि चित्र
बनाएं। भगवान अंगुल
चित्र जलरंग
पद्धति
द्वारा बनाया
गया है, जिसमें
मंदिर में
श्रद्धालुओं
को जाते हुए दिखाया
गया है और यह
समाज को इंगित
करता है। समाज
में धार्मिक
भावना को
दर्शाता है।
उन्होंने
रेलवे श्रृंखला
द्वारा
रोजमर्रा की
जिंदगी के
विषय में चित्रांकन
किया तथा
बूंदी ट्रेन
को चित्रित
किया, जिसमें
बूंदी के स्टेशन
को दिखाया है,
जबकि बूंदी
का कोई स्टेशन
नहीं है, फिर
भी उन्होंने
यह चित्र
बनाकर वहाँ के
लोगों को
स्टेशन तक से जोड़
दिया है।
उन्होंने
ग्रामीण
श्रृंखला को
लेकर भी काम
किया, जिसमें
उन्होंने
अपने उड़ीसा के
समाज को चित्रों
में समाहित
किया है। 11) प्रभु जोशीः- प्रभु जोशी
जलरंग और तैल
चित्रों के
लिए जाने जाते
थे। “उन्होंने
जिस श्रद्धा
से तैल पद्धति
में चित्रों
की रचना की, उसी श्रद्धा
के साथ
उन्होंने
जलरंग
चित्रों की
शुरुआत की।
उनका चित्र
प्लेसिस
अनपीपल्ड शीर्षक
के अतंर्गत
बहते हुए
रंगों में
चित्रित किया
है“। Joshi (2021)
इन चित्रों
में उन्होंने
अपने बचपन के
गांव के अतीत
के घर को
दिखाया है, जिसमें टूटी
हुई खसरैले
हैं, खंडहर
में बदलता हुआ
घर है, ध्वस्त
होती दीवारें
दिखाई देती है
यह चित्र उनके
समाज को
दर्शाता हैं।
उनके चित्र घर
के भीतर तक
जाते हुए
प्रतीत होते
है। असित
कुमार हाल्दार,
रामगोपाल
विजयवर्गीय, रामकिंकर
बैज, सुखवीर
सिंहल, राम
जैसवाल, प्रभू
जोशी, वासुदेव
कामथ के जलरंग
चित्रों में
भारतीय समाज
के दर्शन होते
है। राजकुमार
स्थाबाथी के जलरंग
चित्र ”रिक्शा
चालक“ में
समाज के दर्शन
होते है। बिजय
बिस्वाल, संजय
भट्टाचार्य, विक्रांत
शितोले, विकास
भट्टाचार्य, प्रवीण
कर्माकर, निशिकांत
प्लांडे, की
कलाकृतियों
में समाज का
चित्रण
स्पष्ट दिखाई
देता है।
कलाकारों ने
समाज की
परिस्थितियों
को उजागर करने
का सफलतापूर्वक
प्रयत्न किया
है। इसलिए यह
कहा जाता है, कि जो हमें
मनुष्य बनाता
है, वह है
समाज। लेकिन
कहा जाता हैं,
कि कला, समाज
का दर्पण होती
है, जो
हमें सत्य को
दिखाती है। यह
कथन पूर्णत
सत्य है। किसी
भी युग की
सभ्यता व
संस्कृति, रहन
सहन, खान-पान
आदि अवयवों का
प्रदर्शन कला
में किया है।
जिस तरह का
समाज होता है
वहाँ वैसी ही
कला जन्म लेती
है। आदिमानव
के युग से
लेकर आज तक की
कला को देखा
जा सकता है। 3.
शोध
अध्ययन का
उद्देश्य
शोध पत्र का
मुख्य
उद्देश्य कला
और समाज के
अन्तर्सम्बन्ध
को बनाए रखना
है। कला व समाज
एक सिक्के के
दो पहलू है, जिससे समाज
में धर्म, संस्कृति
और सभ्यता को
बनाए रखने के
लिए कलाकारों
को अथक प्रयास
करना चाहिए और
इसके साथ समाज
को एकजुट रखने
में अपनी
भूमिका
निभानी चाहिए,
जिससे
कलाकार समाज
के उदेश्यों
की पूर्ति कर सकें
तथा कला को
जीवित रखने
में समाज को
चित्रकार की
सहायता करनी
चाहिए। 4.
सम्बन्धित
साहित्य
समीक्षा 4.1. पुस्तकें 1)
Art of Three Tagores
from Revival to Modernity, Parimoo Ratan, 2011 लेखक ने
पुस्तक में
प्रत्येक
तथ्य को बड़ी
सजीवता के साथ
लिखा है।
इसमें शोध
पत्र से
संबंधित तथ्य
संकलित है, जिसमें
अवनींद्रनाथ
टैगोर, नंदलाल
बोस आदि
कलाकारों की
कला को कई
चरणों में
वर्गीकृत
किया गया है।
अध्याय में
धूले हुए
चित्रों के
विषय में व
जलरंग माध्यम
के चित्रांकन
की अलग से
चर्चा की गई
है, जोकि
समाज के दर्शन
कराती है। 2)
Tradition and Modernity Indian Arts: During the Twentieth
Century, Vashishtha, Neelima,
2010 इस
संपूर्ण
पुस्तक के
माध्यम से
आधुनिक काल के
बारे में
उजागर किया
गया है।
पुनर्जागरण
काल को
प्रभावित
करने वाले
तत्वों की ओर
विशेष रूप
ध्यान
आकर्षित किया
गया है।
जिसमें सिस्टर
निवेदिता, रवींद्रनाथ
टैगोर, अवनींद्रनाथ
ठाकुर, आदि
की कला का
मूल्यांकन
किया गया है। 3)
Water Colour Portraits Out of Space, Rajkumr
Sthabathy इस पुस्तक
में राजकुमार
स्थाबाथी के
चित्रों के
विषय में
जानकारी
मिलती है।
जिसमें उनके द्वारा
बनाए गए
व्यक्ति
चित्र, सयोंजन,
रिक्शा-चालक
आदि विषयों के
छाया चित्र
है। 4)
Ahluwalia Roda. Rajput
Painting, Romantic, Divine and Courtly Art from India. London: The British
Museum Press, 2008 इस सचित्र
पुस्तक में
रोडा
आहूवालिया ने
राजस्थान, मध्य भारत
और पंजाब की
रियासतों में
स्थानीय शैलियों
को देखते हुए अपने
ऐतिहासिक और
कला ऐतिहासिक
पृष्ठभूमि में
राजपूत
चित्रकला को
स्थापित किया
है। इस पुस्तक
में मुख्य रूप
से लोक कथाओं
और महाकाव्य
साहित्य
कामुक और
धार्मिक
कविताओं
मिथकों, किंवदन्तियों
और संगीत के
लिए नए विषयों
की पूर्ण
जानकारी दी गई
है। 5)
भारतीय
चित्रकला, वाचस्पति
गैरोला, 1963, इलाहाबाद प्रस्तुत
पुस्तक में
वाचस्पति
गैरोला ने प्रागैतिहासिक
युग से लेकर
आज तक भारतीय
चित्रकला की
प्रमुख सहायक शैलियो
पर ऐतिहासिक
ढंग से विवेचन
प्रस्तुत
करने वाली
मौलिक रचना की
है। इसमें
भारतीय
चित्रकला में
विविध
विधानों पर
निरूपित सामग्री
का वैज्ञानिक
और वर्गीकृत
अध्ययन किया गया
है। 6)
भारतीय
चित्रकला का
इतिहास, डॉ॰
अविनाश
बहादुर वर्मा,
अनिल वर्मा,
संगीता
वर्मा, 2020, बरेली इस पुस्तक
में अविनाश
बहादुर तथा
उनके सहयोगी
साथियों ने
अपना पूर्ण
सहयोग दिया।
पुस्तक में
लेखक ने
प्रागैतिहासिक
काल से
चित्रकला के
बारे में
स्पष्ट रूप से
अपने शब्दों
में सांझा
करने की कोशिश
की है, उन्होंने
प्रागैतिहासिक
काल से लेकर
मुगल काल, पहाड़ी,
राजस्थानी,
कंपनी
स्कूल आदि के
बारे में
स्पष्ट रूप से
अपनी बात
पहुंचाने की
चेष्टा की है
और आधुनिक कलाकारों
के बारे में
स्पष्ट रूप से
लिखित साम्रगी
उपलब्ध करवाई
है। इस पुस्तक
में शोध से संबधित
वॉश प्रविधि
की तकनीक व
प्रकिया के
बारे में बताया
गया और आधुनिक
कलाकारों के बारे
में जानकारी
मिलती है 7)
भारतीय
कला चिंतन, एक कला
विचार, ज्योतिष
जोशी, 2010, दिल्ली,
पुस्तक
में बहुतेरे
लेखकों के
प्रकाशित लेख
संग्रहित है।
पुस्तक में
अन्य लेख जिसमें
भारतीय
चित्रकला, काव्य और
कला साहित्य
में चित्रकला,
भारत में
कला की स्थिति,
भाषा कला और
औपनिवेशिक
मानस आदि पर
चर्चा की गई
है इनमें से
चित्रकला की
स्थिति लेख के
बारे में
बताया गया है। 8)
ललित कला
के आधारभूत
सिद्धांत, डॉ.
मीनाक्षी
कासलीवाल
भारती, जयपुर,
2019 इस पुस्तक
में चित्रकला
के तत्व, सिद्धांत,
विषय वस्तु
और कला और
प्रकृति के
अतिरिक्त समाज
और कला का
अनुशीलन किया
गया है, जिसमें
कला और समाज
के आन्तरिक
सम्बध के विषय
में चर्चा की
गयी है। 9)
कला एवं
तकनीक, डॉ.
अविनाश
बहादुर वर्मा,
अमित वर्मा,
बरेली, 2007 इस पुस्तक
में लेखक ने
कला और समाज
के विषय में
चर्चा की है, जिसमें कला,
समाज के
विभिन्न
परिस्थितियों
को अपनी चित्रों
के माध्यम से
उजागर करता
है। 4.2. जर्नल (पत्रिका) एवं अन्य लेख 1)
kala Dirgha, International
Journal of Visual Art, April 2010, Vol.10, No.20 भारतीय
समकालीन कला
और लखनऊ के
कलाकार, डॉ॰
अवधेश मिश्र इस
कला दीर्घा
में आधुनिक
वॉश प्रविधि
में कार्य
करने वाले
कलाकारों तथा
उनसे प्रभावित
और उनके
शिष्यों के
योगदान के
विषय में उद्घृत
किया गया है।
इस अंक में
भारतीय पुनर्जागरण
कला जिसका
नव्य
प्रस्थान
बंगाल में रवींद्रनाथ
टैगोर, अवनींद्रनाथ
टैगोर की
प्रेरणा तथा
नंदलाल बोस, रामकिंकर
बैज आदि की
तूलिका से हुआ
और उसी रंगधारा
को लखनऊ कला
विद्यालय में
पल्लवित करने का
श्रेय असित
कुमार हाल्दर
और सुधीर रंजन
खास्तगीर को
जाता है। इस
में पूर्ण रूप
से वॉश
प्रविधि के
विषय में
गहराई से
अध्ययन करने
में
महत्वपूर्ण
योगदान दिया
है। 2)
kala Dirgha,
International Journal of Visual Art, October 2015, Vol.16, No. 31 कला में
भारतीयता की
खोज और बंगाल
में नई शैली
का जन्म, निशांत, इस पत्रिका
में बंगाल
शैली और
रवींद्रनाथ
टैगोर की
कलाकृतियों
के विषय में
जानकारी मिलती
है। इसमें यह
स्पष्ट किया
गया है कि
जलरंग कंपनी
स्कूल से शुरू
हुआ था।
भारतीय
कलाकारों ने
ब्रिटिश
अफसरों के लिए
जलरंग में
चित्रण किया,
लेकिन
धीरे-धीरे
पश्चिमी तैल
माध्यम को
महत्व देना
शुरू हुआ। इस
पत्रिका से यह
जानकारी मिलती
है कि
अवनींद्रनाथ
टैगोर बंगाल
शैली के जनक
माने गए है।
इस पत्रिका
में शोध से
संबंधित
जानकारी प्राप्त
होती है।
जिसमें
नंदलाल बोस, असित कुमार
हाल्दर, समेंद्रनाथ
गुप्ता आदि के
बारे में
समझने का अवसर
मिलता है। 3)
kala
Dirgha, International Journal of Visual Art, April
2009, Vol. 9, No.18 राजस्थान
के प्रमुख जल
रंग चितेरे
राम जैसवाल की
शब्द चित्र
यात्रा, डॉ. अन्नपूर्णा
शुक्ला, इस लेख में
राम जैसवाल के
व्यक्तित्व
और कृतित्व के
बारे में
जानकारी
मिलती है। राम
जैसवाल की वॉश
प्रविधि से
संबधित चित्र
मिलते है। 4)
kala Dirgha, International
Journal of Visual Art, October 2015, Vol.15, No. 29 नटखट रंगो
का चितेरा, मनमोहन सरल
प्रस्तुत
लेख में समीर
मंडल के बारे
में समुचित
जानकारी
मिलती है। समीर
मंडल के जलरंग
चित्रों के
बारे में
बताया गया है। 5.
उपसंहार
कलाकार कला
के द्वारा
दूसरों को
आनदिंत करता
है। कला समाज
का अंग है, जिसके बिना
कला अधूरी है,
इस प्रकार
कलाकार समाज
में ऐसे
वातावरण का निर्माण
करता है। कला
प्रागैतिहासिक
काल से ही अनुभवों
को व्यक्त
करने का
माध्यम रही है,
जिसमें
कलाकार अपनी
आंतरिक और
बाह्ना अनुभवों
से
सृजनात्मकता
का अन्वेषण
करता रहा है।
जैसे-जैसे
समाज मे
परिवर्तन आया
है, वैसे
ही कलाकार के
कला माध्यमों
में भी परिवर्तन
आया है। जलरंग
एक ऐसी पद्धति
है, जिसमें
कलाकारों ने
समाज के सभी
पहलुओं का चित्रांकन
किया है। अतः
स्पष्ट है कि
कला को जीवित
रखने के लिए
कलाकार और
समाज के पूर्ण
सहयोग की
आवश्यता है।।
CONFLICT OF INTERESTSNone. ACKNOWLEDGMENTSNone. REFERENCESBanerji, D. (2009). The Alernate Nation of Abanindranath Tagore. Sage Publication. Ghosh, M. (2021, Oct-Dec).
Ganesh Pyne : The Painter
of the World of Deep Secrets. Vishwarang, 3, 168-177,
247. Joshi, P. (2021, Oct-Dec). Where Flowy Colours Decide the Creation of the Work. Vishwarang, 3, 225- 228, 247. Kamath, V. (2017). Vasudeo Kamath. Praranjape Jyotsna Prakashan. Kasilwal, M. (2019). Lalitkala ke Adharbhut Siddhant. Rajasthan Hindi Grantha Academy. Mago, P. N. (2001). Contemporary Art in Indian : A Perspective. National Book Trust. Parimoo, R. (2011). Art of Three Tagores from Revival to Modernity. Sunit Kumar Jain. Sthabathy, R. (2017). Watercolour Portraits : Out of Space. Aquarelles Galerie d’art. Verma, A. V. (2020). Kala Evam Taknik. Prakash Book Depot.
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