ShodhKosh: Journal of Visual and Performing Arts
ISSN (Online): 2582-7472

ARTISTIC ANALYSIS OF HANDCRAFTED HORSES DEDICATED TO LOKDEVTA BABA RAMDEVJI लोकदेवता बाबा रामदेवजी को अर्पित हस्तशिल्पिय घोड़ों का कलात्मक विश्लेषण

ARTISTIC ANALYSIS OF HANDCRAFTED HORSES DEDICATED TO LOKDEVTA BABA RAMDEVJI

लोकदेवता बाबा रामदेवजी को अर्पित हस्तशिल्पिय घोड़ों का कलात्मक विश्लेषण

Manish 1Icon

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1 Research Scholar, Fine Art and Painting, Jai Narain Vyas University, Jodhpur, Rajasthan, India

2 Professor, HOD, Fine Art and Painting, Jai Narain Vyas University, Jodhpur, Rajasthan, India

 

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ABSTRACT

English: The land of Rajasthan has always been world famous as the mother of folk art and folk deities. The folk deity of western Rajasthan, baba ramdevji has been famous for his miracle. Devotees ask from baba ramdevji for the completion of any of their special tasks. On the fulfillment of the request, devotees offer horses made of cloth according to their reverence. In this context, work is being done to make various types of small and big artistic horses from cloth to offer to baba Ramdevji in Pratap Nagar area of Jodhpur district. This work of making horses is being done not only in Jodhpur but also in Jaisalmer, Ramdevra and Pokaran. Horses are adorned with grass thatch, white and colorful cloth, garland, core, turiya, tassel of wool etc. symbols of the artistic workmanship of the handicrafts. The size, stature and gracefulness of these horses give the feel of real horses. According to the Hindu Calendar, artistic horses made of cloth have special significance in this fair, which lasts from second to tenth of day of Shuklapaksha of August month. Where not only Rajasthan but people from many states of India like Gujarat, Madhya Pradesh etc. come to see them. The ancient tradition of offering a horse here in the from of faith and belief is unbroken, which is being followed even in today’s modern era. The artistic horses of cloth being offered as Manauti are folk art tradition and cultural importance as well as a great means of earing livelihood of the handicraftsmen.

 

Hindi: राजस्थान की धरती लोक कलाओं और लोकदेवताओं की जननी के रूप में सदैव विश्व प्रसिद्ध रही है। पश्चिमी राजस्थान के लोक देवता बाबा रामदेवजी अपने चमत्कार के लिए प्रसिद्ध रहे हैं। भक्त अपने किसी विशेष कार्य की पूर्ति के लिए बाबा रामदेवजी से प्रार्थना करते हैं। मन्नत पूरी होने पर भक्त अपनी श्रद्धा के अनुसार कपड़े से बने घोड़े चढ़ाते हैं। इसी कड़ी में जोधपुर जिले के प्रताप नगर क्षेत्र में बाबा रामदेवजी को कपड़े से लेकर विभिन्न प्रकार के छोटे-बड़े कलात्मक घोड़े चढ़ाने का काम किया जा रहा है. घोड़े बनाने का यह काम जोधपुर ही नहीं जैसलमेर, रामदेवरा और पोकरण में भी किया जा रहा है. घोड़ों को घास की छप्पर, सफेद और रंगीन वस्त्र, माला, कोर, तुरिया, ऊन की झालर आदि से सजाया जाता है जो हस्तकला की कलात्मक कारीगरी के प्रतीक हैं। इन घोड़ों का आकार, कद और शालीनता असली घोड़ों का आभास कराती है। अगस्त महीने के शुक्लपक्ष की दूसरी से दसवीं तक चलने वाले इस मेले में कपड़े से बने कलात्मक घोड़ों का विशेष महत्व है। जहां राजस्थान ही नहीं बल्कि भारत के कई राज्यों जैसे गुजरात, मध्य प्रदेश आदि से लोग इन्हें देखने आते हैं। आस्था और विश्वास के आधार पर यहां घोड़े को चढ़ाने की प्राचीन परंपरा अखंड है, जिसका पालन आज के आधुनिक युग में भी किया जा रहा है। मनौती के रूप में चढ़ाए जा रहे कपड़े के कलात्मक घोड़े लोक कला परंपरा और सांस्कृतिक महत्व के साथ-साथ हस्तशिल्पियों की आजीविका कमाने का एक बड़ा साधन हैं।

 

Received 17 October 2022

Accepted 01 December 2022

Published 09 December 2022

Corresponding Author

Manish, chouhanmanish9001@gmail.com

DOI 10.29121/shodhkosh.v3.i2.2022.226  

Funding: This research received no specific grant from any funding agency in the public, commercial, or not-for-profit sectors.

Copyright: © 2022 The Author(s). This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.

With the license CC-BY, authors retain the copyright, allowing anyone to download, reuse, re-print, modify, distribute, and/or copy their contribution. The work must be properly attributed to its author.

 

Keywords: Western, Traditional, Handcrafted, Artistic, Horses, Cloth, Dedicated, पश्चिमी, पांरम्परिक, दस्तकार, कलात्मक, घोड़ें, कपड़ा, अर्पित

 

 

 

 


1.  प्रस्तावना

राजस्थान की भूमि लोककला और लोकदेवताओं की जननी के रूप में सदैव ही विश्व प्रसिद्ध रही है। जहां हमें लोककला परम्परा के रूप में हस्तकलाओं की संतरंगी छटाओं के दिग्दर्शन होते है, वही लोकदेवताओं के रूप में उनके चमत्कार, शूरवीरता, और उनकी कर्तव्यपरायण के कई किस्से आज भी बड़ी ही श्रद्धा के साथ सुने व सुनाये जाते है। ‘‘राजस्थान जहां अपनी शौर्य पूर्ण गाथाओं, बलिदानी रक्त और परम्पराओं के कारण याद किया जाता है। वही अपनी प्राचीन हस्तकलाओं और उद्योगों की अद्वितीयता के कारण सदैव स्मरण किया जाता है। Maharishi (1994) राजस्थान के लोगों में लोकदेवताओ के प्रति गहन आस्था व श्रद्धा देखी जा सकती है। लोगों में इनके प्रति विश्वास और आस्था वंश परम्परा के आधार पर नई पीढ़ी में भी हस्तानांतरित होती रहती है। आधुनिक और तकनीकी युग में भी इनका पूजन किया जाना लोगों में इनके प्रति अटूट आस्था के भाव है, जो कि समय की बहती हुई धारा के साथ और भी ज्यादा प्रगाढ़ होते जा रहे है। राजस्थान में कई चमत्कारिक, मनोकामना पूर्ण और कष्टों को दूर करने वाले लोकदेवताओं की पूजा की जाती है। जिनमें ‘‘बाबा रामदेवजी‘‘ का पूजन अति विशिष्ठ महत्व रखता है।

पश्चिमी राजस्थान के जैसलमेर जिले का ‘‘रामदेवरा‘‘(रूणिचा क्षेत्र) में बना लोकदेवता ‘‘बाबा रामदेवजी‘‘ का मन्दिर (समाधि स्थल) इनके पूजन, चमत्कारिक परचे और ‘‘मनौती‘‘ अथवा ‘‘मन्नत‘‘ की पूर्णता के लिए विख्यात रहा है। बाबा रामदेवजी को भारत राष्ट्र के राजस्थान, गुजरात और मध्यप्रदेश के अलावा भी कई राज्यों में ‘पूजा‘ अथवा ‘माना‘ जाता है। रामदेवजी ने बाल्यकाल से ही कई चमत्कारिक परचे दिये है। जिनमें कपड़े से घोड़े का हस्तशिल्प बनाने के सम्बन्ध में ‘दर्जी को दिये गये परचे‘ का विशेष महत्व है। ऐसी कई कहानियाँ, किस्से और किवदन्तियाँ भी रही है जिसमें इनके द्वारा दिये गये परचों(चमत्कार) का बखान किया जाता है। ‘‘बाबा रामदेवजी‘‘ के द्वारा मनौती पूर्ण होने पर भक्तजन इनको कपड़े से बना घोड़ा अर्पित करते है। भक्तजन इनके मन्दिर अथवा अपने घर से ही अपने किसी विशिष्ठ कार्य की पूर्णता के लिए ‘‘मनौती‘‘ अथवा ‘‘मन्नत‘‘ मांगते है। मांगी गई ‘‘मनौती‘‘ अथवा ‘‘मन्नत‘‘ पूर्ण हो जाने पर भक्तजन इनके प्रिय वाहन घोड़ा बनवाकर अर्पित करते है।

लोककला के अन्तर्गत कपड़ों से कई प्रकार के कलात्मक हस्तशिल्प बनाये जाने की परम्परा रही हैं। इनमें से ही एक प्राचीन लोककला परम्परा के अनुसार ‘‘बाबा रामदेवजी को चढ़ाये जाने वाले कलात्मक घोडों के रूप में‘‘ भी देखी जा सकती है। ‘‘लोककलाओं का सम्बन्ध मूलतः लोक की धार्मिक मान्यताओं और आस्थाओं से जुड़ा रहा हैं। यही कारण है कि इन कलाओं में निरतंर एक प्राणवत्ता मिलती है। अन्यथा वे कभी की काल कलवित हो जाती। हमारी धार्मिक मान्यताओं ने ही इन लोककलाओं को स्थायित्व प्रदान किया है। Bhanawat (1974)

राजस्थान के जैसलमेर जिले में स्थित ‘‘रामदेवरा‘‘ अगस्त माह में आकर्षण का विशेष केन्द्र होता है। अगस्त के भादवा माह में यहां पर लगने वाला मेला साम्प्रदायिक सद्भावना के द्योतक के रूप में जाना जाता है। रामदेवरा (रूणिचा क्षेत्र) में ‘‘भादवा माह के शुक्लपक्ष की द्वितीया से दशम‘‘ तक भरे जाने वाले ‘‘लोकदेवता बाबा रामदेवजी‘‘ के इस मेले में कपडे़ से बने घोड़ों के साथ ही पंचरंगी ध्वजा (नेजा) का भी अत्यधिक महत्व रहता है। आमजन अपने किसी विशिष्ठ कार्य की पूर्णता के लिए की कपड़े से बनी ध्वजा अथवा घोड़ा चढ़ाने की ‘‘मनौती‘‘ अथवा ‘‘मन्नत‘‘ मांगते है। मनौती अथवा मन्नत पूरी होने के बाद, मनौती मांगने वाला व्यक्ति कपड़े का घोड़ा बनवाकर उसे अपने कन्धे पर उठाकर अपने निवास स्थान से जैसलमेर जिले में स्थित रामदेवरा (रूणिचा क्षेत्र) में बने लोक देवता बाबा रामदेवजी के धाम पर पदयात्रा कर अर्पित करते है।

 

2.  उद्भव एवं विकास

लोकदेवता बाबा रामदेवजी का जन्म भाद्रपक्ष की दूज (द्वितीया) को विक्रम संवत 1409 तंवर राजपूत वंश में हुआ था। लोक देवता बाबा रामदेवजी को राजस्थान की आम भाषा में ‘पीरों के पीर‘ ‘रामसापीर‘ और ‘रामापीर‘ के नाम से भी पुकारा जाता है। बाबा रामदेवजी को घोड़ें चढ़ाने की प्रथा अति प्राचीन है। बाबा रामदेवजी को अर्पित किये जाने वाले कपडें से बने घोड़ों के सम्बन्ध में कई प्रकार की जानकारी मिलती है जो कि निम्न प्रकार से है- प्रचलित कथा के अनुसार ‘‘एक दिन एक घुड़सवार रामदेवजी के सामने से गुजरा तो रामदेवजी ने घोड़ा लाने की हठ की तो माता मैणादे ने एक दर्जी को बुलवाकर उसे कीमती कपड़ें घोड़ा बनाने के लिए दिया। दर्जी ने कपड़ें के घोड़ें के अन्दर फटे-पुराने कपड़ें भर दिए। रामदेवजी उस कपडे के घोड़ें पर बैठे तो घोड़ा आसमान में उड़ चला रामदेवजी के माता-पिता बड़े दुखी हुए उन्होंने दर्जी को जादू का घोड़ा बनाने के अपराध में कैद कर लिया। दर्जी ने रामदेवजी से प्रार्थना की तो रामदेवजी, माता मैणादे के आंगन में खेलते हुए मिले और उनका घोड़ा आंगन में घास खाता हुआ मिला। रामदेवजी के चमत्कार से दर्जी को उनके घोड़ें के अन्दर ‘खोटा‘ (पुराना) और बाहर ‘उजला‘ (सफेद) करने का फल मिला। दर्जी को कैद से छोड़ दिया गया इस परचे के कारण दर्जी ईमानदारी से कार्य करने लगा, जिस पर एक बहुत ही सुन्दर भजन भी गाया जाता है। Salvi (2009)  रामदेवजी के इसी परचे और उनको घोड़ा प्रिय पशु होने के कारण भक्तगण मनौती अथवा मन्नत की पूर्णता पर उनको घोड़ा अर्पित(चढ़ाते) करते है।

इसी संन्दर्भ में जोधपुर जिले के प्रताप नगर क्षेत्र में स्थित नेशनल हैण्डलूम से लेकर टेम्पो स्टेण्ड तक का नजारा बड़ा ही मनोरम होता है। यह स्थान मार्च से अगस्त माह तक आकर्षण का विशेष केन्द्र रहता है। सड़क का फुटपाथ लोक देवता बाबा रामदेवजी को चढ़ाये जाने वाले छोटे व बडे़ कलात्मक घोडों से सुसज्जित रहता है। घास-फूस, सफेद व रंग-बिरंगे कपडे़, माला, मोती, कोर, तुर्रियाँ, ऊन की लटकन आदि से शृंगारित घोड़ें हस्तशिल्पियों की कलात्मक कारीगरी के प्रतीक बन जाते है। जिन्हें देख हर कोई इनकी ओर अनायास ही आकर्षित होता है, इसी वजह से इनकी मांग प्रत्येक वर्ष बढ़ती ही जा रही है। हस्तशिल्पियों द्वारा बनाये जा रहे इन घोड़ों का बड़ा आकार, कद-काठी व लावण्यता वास्तविक घोड़ों की अनुभूति कराते है। घोड़ें बनाने का यह कार्य बहुत ही मेहनत एवं कुशल कारीगरी वाला होता है, जिसे हर कोई व्यक्ति नही कर सकता है।

 

3.  हस्तशिल्पी प्रेमाराम जी से भेंटवार्ता

हस्तशिल्पी प्रेमाराम जी भाट से भेंटवार्ता करने पर इस सम्बन्ध में कई प्रकार की महत्वपूर्ण जानकारियाँ प्राप्त हुई। इन्होंने बताया कि मारवाड़ की प्राचीन मान्यतानुसार राजस्थान के लोग बाबा रामदेवजी के मन्दिर में जाकर या अपने घर से ही किसी निश्चित अथवा विशिष्ठ काम के लिए मन्नत अथवा मनौती मांगते है। मांगी गई मन्नत अथवा मनौती पूर्ण हो जाने पर श्रद्धालु अपनी श्रद्धा के अनुसार बाबा रामदेवजी को कपड़े से बना घोड़ा चढ़ाते हैं। ‘‘रामदेवरा में भक्तजन अपनी मनौती पूरी हो जाने पर कपड़े के घोड़े चढ़ाते है। Salvi (2009)

बाबा रामदेवजी को अर्पित किये जाने वाले कपड़े से कलात्मक घोडे़ बनाने का काम मैंने मेरे पिताजी से सीखा। मुझे कठपुतली और घोड़ें बनाने का काम करते हुए लगभग 50 से 55 वर्ष हो चुके हैं। मैं आज भी इस कार्य से जुडा हुआ हूँ और मेरी देख-रेख में यहाँ पर लगभग 20 से 25 अन्य हस्तशिल्पी घोड़ें बनाने का काम करते हैं। इन कलात्मक घोड़ों को बनाने में महिला व पुरूष दोनों ही हस्तशिल्पियों की बराबर ही भागीदारी देखी जा सकती है। घोड़ें के जीव बनाने से लेकर उसके पूर्ण आकार प्रदान करने और घोड़ें पर प्लास्टिक की पन्नी लगाने तक का सबसे अंतिम कार्य पुरूष हस्तशिल्पीयों के द्वारा ही किया जाता है। कार्यरत पुरुष हस्तशिल्पियों में भरत, सुरेश, राहुल, नौरंग, रणछोड़, राजा, रोहित, राजू आदि है। वही महिला हस्तशिल्पियों में लता, सुनिता, सुशीला, और मंजू देवी है जो पुरूषों के साथ ही बनाये गये इन घोड़ों पर कपड़े की सिलाई और उनका शृंगार करने का कार्य करती हुई उन्हे पूर्णता प्रदान करती है।

इसी संदर्भ में हस्तशिल्पी प्रेमारामजी ने बताया कि इन घोड़ों को बनाने का यह कार्य केवल जोधपुर, जैसलमेर, रूणिचा और पोकरण क्षेत्र में ही किया जाता है। जिनमें सर्वाधिक बड़े और कलात्मक घोड़े जोधपुर में ही बनाये जाते है, जबकि अन्य जगहों पर सिर्फ छोटे घोड़े ही बनाये जाते है। हमारे यहां पर 1 फीट से लेकर 4 फीट तक के छोटे आकार वाले घोड़ों की मांग ज्यादा रहती है। हस्तशिल्पी प्रति घोड़ा सामग्री और मेहनताना सहित 1 हजार रूपये फीट के हिसाब से बनाते है। मनौती पूरी हो जाने पर भक्तजन अपनी श्रद्धा के अनुसार जोधपुर, रूणिचा अथवा पोकरण में बने इन कलात्मक घोड़ों को खरीद कर पदयात्रा करते हुए जाते है और ‘‘रामदेवरा‘‘ में बाबा रामदेवजी के मन्दिर में इन घोड़ों को अर्पित करते हैं।

 

 

4.  प्रयुक्त सामग्री 

हस्तशिल्पी प्रेमारामजी और सुरेश जी ने भक्तजनों की मनौती अथवा मन्नत की पूर्णता के पश्चात् लोकदेवता बाबा रामदेवजी को चढ़ाये जाने वाले कलात्मक घोड़ों को बनाने में प्रयुक्त सामग्री के सम्बन्ध में भी महत्वपूर्ण जानकारी दी। इन्होंने बताया कि घोड़ें को बनाने के लिए कई प्रकार की सामग्री की आवश्यकता होती है जो कि हमें इसी क्षेत्र से प्राप्त हो जाती है। हस्तशिल्पी इन सभी वस्तुओं का उपयोग क्रमानुसार कर छोटे-बड़े घोड़ों को बनाता है। जिनकी प्रयुक्त सामग्री निम्न प्रकार से है-

1)     बाँस की खप्पचियाँ।              

2)     घास-फूस।

3)     सफेद एवं रंग-बिरंगे कपडे़।          

4)     रंग-बिरंगे मोतियों की मालाएं।

5)     सुनहरी कोर।                           

6)     रंग-बिरंगे धागे व ऊन।

7)     प्लास्टिक पन्नी।            

8)     प्लास्टिक टेप।

9)     कृत्रिम आँखें।                          

10) वेलवट आदि।

 

5.  निर्माण विधि

हस्तशिल्पी अपने आस-पास के बाजारों से घोड़ें बनाने की सामग्री की खरीद करते है। ये लोग भक्तजन के द्वारा दिये गये ऑर्डर अथवा अपने विवेक के आधार पर भी छोटे व बड़े घोड़ें बनाने का कार्य करते रहते हैं। जिसे व्यक्ति विशेष, मांगी गई अपनी मनौती की पूर्णता के बाद अपनी-अपनी श्रद्धा के अनुसार हस्तशिल्पिीयों से इन घोड़ों को खरीदते अथवा बनवाते है। कपडे़ से कलात्मक घोडा बनाने में हस्तशिल्पी कुछ चरणों का निर्धारण करता है। हस्तशिल्पी निर्धारित किये गये चरणों के अनुरूप चलते हुए घोड़ों को आकार देने का कार्य निम्न चरणों के द्वारा सम्पन्न करता है।

 

5.1.     प्रथम चरण

प्रथम चरण सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है, जिसमें सर्वप्रथम ‘‘घोड़े का जीव‘‘ बनाया जाता है। इस ‘‘जीव‘‘ का सम्बन्ध घोड़ें की आत्मा से लगाया जा सकता है। बाँस की पाँच खप्चियों को घास के साथ सूतली की डोरी से आपस में जोडते हुए ‘‘घोड़ें का जीव‘‘ बनाया जाता है। इस जीव में लगी पाँच बाँस की खप्चियों का सम्बन्ध पंचमहाभूतों जैसे- पृथ्वी, जल, आकाश, अग्नि, एवं वायु से लिया जा सकता है।

चित्र 1

चित्र 1  बाँस की खप्चियाँ

Source (Bhat, P. personal communication, 2022)

 

चित्र 2

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चित्र 2 बाँस की खप्चियों से बना घोड़ें का जीव

Source (Bhat, P. personal communication, 2022)

 

5.2.     द्वितीय चरण

इस चरण में हस्तशिल्पियों के द्वारा ‘‘जीव‘‘ के ऊपर घास-फूस को एक मोटे धागे की सहायता से लपेटते हुए घोड़े को आकार देने का कार्य किया जाता है। घोडे़ं के छोटे व बडे़ अलग-अलग आकार व नाप होते हैं, अतः इनके आकार व नाप के अनुरूप ही घास-फूस को लगाते हुए धागे लपेटे जाते है। इस कार्य को बहुत ही सावधानी व मजबूती के साथ करना पड़ता है। जिसमें सर्वप्रथम घोड़ें की कद-काठी एवं बाद में उसके मुंह को बनाते हुए घोड़ें को मूर्तरूप दिया जाता है।

चित्र 3

                                                          

चित्र 3 जीव पर घास-फूस को लपेट कर हस्तशिल्प बनाते हुए

Source (Bhat, P. personal communication, 2022)

 

चित्र 4

                                                          

चित्र 4 घोड़ा बनाते हुए हस्तशिल्पी प्रेमारामजी, सुरेश, नौरंग

Source (Bhat, P. personal communication, 2022)

 

चित्र 5        

                                                            

चित्र 5 बड़े आकार में घोड़ा बनाते हुए एवं फुटपाथ पर खड़े किये गये घोड़ें

Source (Raja, personal communication, 2022)

 

5.3.     तृतीय चरण 

इस तृतीय चरण के कार्य में घास-फूस से घोडे़ं की कद-काठी बन जाने के बाद, उस पर प्लास्टिक टेप की सहायता से प्लास्टिक पन्नी लगाई जाती है। प्लास्टिक पन्नी, भादवे के महीने में होने वाली बारिश से घोड़ें को भीगने से बचाती है। यदि घास-फूस को लगाने के बाद घोड़ें पर प्लास्टिक पन्नी नहीं लगाई जाती है, तो बारिश से भीगने के बाद 25 किलोग्राम का घोड़ा 100 किलोग्राम तक का हो जाता है। जिसे गन्तव्य स्थान पर ले जाने में अत्यधिक कठिनाई होती है।

चित्र 6

                                                           

चित्र 6 घोड़ें पर प्लास्टिक पन्नी लगाते हुए हस्तशिल्पी रोहित

 

5.4.     चतुर्थ चरण

चतुर्थ चरण में प्लास्टिक पन्नी लगाने का कार्य पूर्ण हो जाने के बाद हस्तशिल्पियों के द्वारा घोड़ें पर पूर्ण रूप से सफेद अथवा हरे रंग के कपड़ें की सिलाई का कार्य किया जाता है जो कि पूर्ण रूप से ग्राहक के ऑर्डर और पंसन्द पर निर्भर करता है। सफेद कपड़े की सिलाई के बाद घोड़ें की साज-सजावट का कार्य किया जाता है, जिसमें कई तरह के रंग-बिरंगे कपड़े (सफेद, हरा, केसरिया व लाल आदि) मोती, मालाओं, चमकीली कोर, तुर्रा, ऊन से बनी लटकन व सजावटी आभूषणों आदि से घोडे़ का शृंगार किया जाता है। घोड़ें की साज-सजावट का कार्य पुरूषों के साथ-साथ महिला हस्तशिल्पियों के द्वारा भी किया जाता है, चूंकि महिलायें इस सजावट के कार्य में पूर्णतया पारंगत होती है।

चित्र 7

                                                          A picture containing ground, outdoor, building

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चित्र 7 घोडों पर सफेद कपड़े की सिलाई करते हुए हस्तशिल्पी

Source (Sushila, personal communication, 2022)

                                                  

चित्र 8

                                                           

चित्र 8 घोडे़ का शृंगार करते हुए हस्तशिल्पी

Source (Bharat, personal communication, 2022)

 

6.  घोड़ों का आकार व वजन

घोड़ें बनाने वाले हस्तशिल्पी प्रेमारामजी भरत व सुरेश ने इनके आकार और वजन के सम्बन्ध में कई महत्वपूर्ण बातों से अवगत कराया और बताया कि छोटे से छोटा घोड़ा 6 इंच का बनाया जाता है। जिसका वजन लगभग 250 ग्राम तक का होता है, और बड़े से बड़ा घोड़ा 10 से 12 फीट तक बनता है, जिनका वजन लगभग 40 से 45 किलोग्राम के आस-पास होता है। ज्यादा बड़ी साईज के घोड़ें हम पूर्णरूप से ग्राहक के ऑर्डर और एडंवास जमा कराने पर ही बनाते है। 10 से 12 फीट के घोड़ें बहुत ही कम लोग बनवाते हैं। इन घोड़ों का वजन भी बनाये गये घोड़ें के आकार के समान ही होता है। जहां छोटे और कम वजन वाले घोड़ों को ले जाने में सुलभता रहती है तो, वही बड़े आकार वाले और ज्यादा वजनी घोड़ों को निश्चित स्थान पर लेकर जाने में कठिनाई होती है। हस्तशिल्पी सुरेश जी ने इन घोड़ों के सम्बन्ध में कुछ विशेष बात यह भी बतलाई कि बड़े घोड़े को ले जाने के लिए घोडे़ की कद-काठी के अनुरूप ही व्यक्ति की लम्बाई अथवा कद-काठी होनी चाहिए। जैसे कि- 10 फीट का घोड़ा है तो उसे ले जाने के लिए व्यक्ति की लम्बाई भी 5 फीट से ऊपर ही होनी चाहिए, नहीं तो संतुलन नहीं बनेगा और घोड़ें के पाँव बार-बार जमीन को स्पर्श करते रहेगें जिससे व्यक्ति को चलने में कठिनाई होती है।

चित्र 9

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चित्र 9 शोधार्थी द्वारा फीते से घोड़े की लम्बाई नापते हुए

Source (Raju, personal communication, 2022)

 

7.  समय के साथ बदलती घोडें बनाने की तकनीक व स्वरूप

लोक देवता बाबा रामदेवजी की मनौती की पूर्णता के बाद घोड़ा अर्पित करने की यह प्राचीन परम्परा, आज भी जीवित है। बाबा रामदेवजी के प्रति लोगों में आस्था व विश्वास के फलस्वरूप आज भी कलात्मक घोड़ें बनाने का कार्य किया जा रहा है, जिसमें समय के साथ इन घोडों को बनाने तकनीक व कुछ बदलते स्वरूप भी देखने को मिले है जिन्हे निम्न प्रकार से देखा जा सकता है-

1)     पूर्व समय में जो घोड़ें कपड़े की कतरन से बनाये जाते थे, जबकि आज के समय में फलों की पेटियों में आने वाली सूखी घास और थर्माकोल से घोडें बनाये जा रहे है।

2)     पूर्व समय में केवल छोटे घोड़ें ही ज्यादा बनाये जाते थे, जबकि वर्ष 2010-2011 से कुछ बड़े घोड़ें भी बनवाये जाने की एक हौड़ सी लग गई है।

3)     पूर्व समय में बनवाये जाने वाले घोड़ों की ऊँचाई जहाँ केवल 1 से 4 फीट तक ही सीमित थी, वही वर्तमान समय में वर्ष 2022 से बनवाये जा रहे घोड़ों की ऊँचाई में परिवर्तन आया है।

4)     जहाँ पूर्व समय में छोटे घोड़ें को ले जाना ज्यादा पंसन्द करते थे, वही आज के समय में युवावर्ग कुछ ज्यादा बड़े घोड़ों को ले जाने में ही अपनी शान समझते है। जिनकी ऊँचाई 10 से 12 फीट तक की होती है।

 

8.  क्षेत्रीय भ्रमण के दौरान नौजवान युवकों से वार्ता

क्षेत्रीय भ्रमण के दौरान यह देखा गया कि नौजवान युवक अपने पूरे जोश, उमंग व उल्लास के साथ 7 से 12 फीट तक के घोड़ों को अपने कंधे पर उठाकर बाबा रामदेवजी का ‘‘जै कारा‘‘ लगाते हुए चलते है। इन युवकों के साथ वार्तालाप करने पर कई सारी महत्वपूर्ण जानकारियाँ प्राप्त हुई। इन्होनें बताया कि कुछ लोग इन घोड़ों को अपनी घरेलू परम्परा के आधार पर, वही कुछ मनौती की पूर्णता पर और कुछ लोग इन्हे अपनी श्रद्धा और शौकिया रूप में भी लेकर जाते है। इन युवकों में ज्यादा बड़े घोड़ों को ले जाने की आपसी हौड, इन घोड़ें के बड़े आकार के रूप में भी देखी जा सकती है। रास्ते में जहां भी विश्राम और भोजन के लिए ठहरते है, घोड़े को खड़ा करने से पूर्व पहले वहां की भूमि को पानी से पवित्र किया जाता है। इन घोड़ों को ले जाने वाले नौजवान युवकों की एक टोली होती है, जिसमें 10 से 12 लड़के ही होते हैं। ये नौजवान युवक इन घोड़ों को बारी-बारी से उठाकर चलते हैं जिससे रुणिचा धाम तक पहुँचने में आसानी रहती है। ‘भादवा सुदी बीज से लेकर दशम‘ तक लगभग 7 से 8 दिन तक रुक-रुक कर पैदल चलते है। ये लोग लगभग 190 से 200 किलोमीटर का सफर तय करते हुए जोधपुर से जैसलमेर जिले के ‘‘रामदेवरा‘‘ (रुणिचा धाम) तक ले जाकर इन घोड़ों को बाबा रामदेवजी को अर्पित हैं।

चित्र 10

                                                            A picture containing text, sport, group, dancer

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चित्र 10 मनौती पूर्ण होने पर छोटे व बड़े आकार के घोड़ों को रुणीचा धाम ले जाते हुए भक्तगण

Source (Devotees, personal communication, 2022)

 

9.  रामदेवरा रूणिचा से प्राप्त जानकारी

रामदेवरा रूणिचा धाम का भ्रमण और यहां के लोगों से भेंटवार्ता करने पर इन घोड़ों के सम्बन्ध में कई महत्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त हुई। बाबा रामदेवजी की सेवा करने वालों ने बताया कि भक्तजनों द्वारा ‘‘मनौती की पूर्णता के बाद‘‘ ये लोग अपनी श्रद्धानुसार कपड़े, लकड़ी, चाँदी के साथ ही असली जीवित घोड़ें भी अर्पित करते है। ‘‘लोकदेवता बाबा रामदेवजी की सामाधि पर जालौर के गाँव गुड़ा बालोतान, तहसील आहौर के ओमप्रकाश खत्री जो कि मुंबई में सोने-चाँदी के व्यापारी हैं। ये अपने परिवार के साथ यहां आकर के चाँदी से बने इस 150 किलो वजनी घोडे़ को अर्पित किया। जिसमें 100 किलो चाँदी और 50 किलो अन्य जरूरी धातु लगी लगी हुई है। इसी घोड़े के साथ उन्होंने 20 किलो चाँदी का एक छोटा घोड़ा भी चढ़ाया(अर्पित करना) है। उन्होंने बताया कि उनके पड़दादा और दादा की मान्यता पर इन घोड़ों को चढ़ाया है।  Travelers Offered 150 Kg of Silver Horse at Baba Ramdev’S Tomb (2022)भक्तों के द्वारा लाये गये घोड़ों को यहां बने बड़े हॉल में सुरक्षित रख दिया जाता है। प्रदेश में जहां कहीं भी बाबा रामदेवजी का मन्दिर बनता है, उस मन्दिर में रूणिचा धाम से अखण्ड ज्योति ले जानी पड़ती है। इसी अखण्ड ज्योति के साथ श्रद्धालु अपनी इच्छानुसार रखे हुए बाबा के भेंट पात्र में कुछ भेंट को डालकर कपड़े से बना एक घोड़ा भी साथ में ले जाते है, और नवनिर्मित मन्दिर में रख दिया जाता है। बताया जाता है कि ऐसा करने पर ही बनाये जा रहे बाबा रामदेवजी के रूप में मन्दिर को स्थापित किया हुआ माना जाता है।

चित्र 11

A group of people wearing clothing

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चित्र 11 रामदेवरा के हॉल में रखें 10 से 12 फीट के कपड़े से बने घोड़ें

Source (Jaipal, D. personal communication, 2022)

 

चित्र 12

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चित्र 12 रामदेवरा में बाबा रामदेवजी को अर्पित चाँदी से बना घोड़ा

Source (Jaipal, D. personal communication, 2022)

 

10.  निष्कर्ष

यही कहा जा सकता है कि हस्तशिल्पियों के द्वारा बनाये जा रहे ये कलात्मक घोड़ें लोककला और परम्परा के रूप में अति प्रचीनता लिए हुए है। परम्परागत कार्य के अन्तर्गत घोड़ें बनाने का यह कार्य अत्यंत ही कलात्मक और अनूठा है, जिसमें समय के साथ कई नवीन आयाम जुड़ते गये हैं। इन लोगों के लिए यह कलाकर्म लोककला के रूप में सृजन के नवीन अवसरों, कुशल कारीगरी और कलात्मकता के साथ ही जीविकोपार्जन के साधनों की उपलब्धता भी करवाती है। हस्तशिल्पी की कुशल कारीगरी के द्वारा बनाये गये घोड़ों की साज-सजावट का कार्य पूर्ण हो जाने पर कपड़ें और घास-फूस से बने घोड़ें भी वास्तविक घोडे़ की अनुभूति करवा देते है। वास्तव में देखा जाये तो यह कुशल कला की कारीगरी ही है, जो हस्तशिल्पी के मन-मस्तिष्क के भावों को मूर्त रूप में बदल देती है। घोड़े बनाने व खरीदने के पीछे छुपी हुई आस्था को भी बचाया जाना चाहिए, ताकि समय परिवर्तन के साथ भावी पीढ़ी भी इस लोककला परम्परा, घोड़ा बनाने की तकनीक और घोड़ा अर्पित करने की प्राचीन परम्परा से परिचित हो सकें।

 

CONFLICT OF INTERESTS

None. 

 

ACKNOWLEDGMENTS

None.

 

REFERENCES

Bhanawat, M. (1974). Folk Art Values and References (1st ed.). Rajasthan : Bharatiya Lok Kala Mandal, Udaipur.

Maharishi, H. (1994). Handicrafts of Rajasthan : Kshitij Publications Jaipur, Rajasthan.

Salvi, S. (2009). Rajasthani Folk Culture and Folk Goddess – God. Rajasthan : West Zone Cultural Center Udaipur.

Travelers Offered 150 Kg of Silver Horse at Baba Ramdev’S Tomb (2022, february13). Rajasthan : Danik Bhaskar Jodhpur.

     

 

 

 

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