ShodhKosh: Journal of Visual and Performing ArtsISSN (Online): 2582-7472
Interpreting the profound portrayal of nature in the works of artist Vibha Galhotra विभा गल्होत्रा की कलाकृतियों में प्रकृति के प्रति प्रेम Adesh Kheriwal 1 1 Research Fellow, Department of Fine Arts, Kurukshetra University, Kurukshetra, India 2 Assistant Professor Department of Fine Arts Kurukshetra University,
Kurukshetra, India
1. प्रस्तावना भारतीय समकालीन कलाकर विभा गल्होत्रा अपनी नव-माध्यमवादी रचनाओं के लिए प्रसिद्ध है। जहा एक तरफ उनकी कला में प्रकृति के प्रति करूणा व प्रेम की अभिव्यक्ति प्रतीत होती है। वहीं वह अपनी वैचारिक सिद्धस्ता तथा तकनीकी परिवर्तनशीलता के लिए भी जानी जाती है। विभा मुख्यतः छापाकला, मूर्तिकला, चित्रकला, प्रतिष्ठापन कला तथा अन्य कला विधाओं में निपुण है। इनकी कला में मूल रूप से पौराणिक घटनाओं, प्राकृतिक संकट व सामाजिक उथल-पुथल के विषयों को अंकित किया गया है। विभा के विचारों ने माध्यम के रूप में मुख्यतः घुंघरूओं की अभिव्यक्ति को आदर्श स्वरूप माना है। संसार में अवस्थित गुण व दोषों को उजागर करने का कार्य विभा ने अपनी कलाकृतियों के माध्यम से किया है। आधुनिक समय में मनुष्य की महत्वाकांक्षाओ ने प्रकृति को क्षीण कर दिया है। उद्योगो का जिस प्रगति के साथ विस्तारीकरण हुआ है। उसी गति से प्रकृति को भी हानि पहुँचायी है। इस शोध-पत्र का मुख्य ध्येय समकालीन नवमाध्यमवादी कलाकार श्विभा गल्होत्राश् का प्रकृति के प्रति प्रेम तथा संसार में विस्तृत होते औद्योगीकरण ने मानवता को जो क्षति पहुँचायी उसका विश्लेषण करना है। चण्डीगढ़ में जन्मी विभा गल्होत्रा की स्नातक कलाशिक्षा श्चण्डीगढ़ कॉलेज ऑफ़ आर्ट तथा स्नातकोर की शिक्षा श्विश्व भारती शांतिनिकेतनश् से हुई। प्राकृतिक सौन्दर्य एवं वातावरण का उनकी कला व जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। शांतिनिकेतन अपने प्राकृतिक सौन्दर्य और कला वातावरण के लिए जाना जाता है। दिल्ली आने के पश्चात् इनकी कार्य शैली में परिवर्तन दिखायी पड़ता है। चण्डीगढ़ ललित कला अकादमी को दिये साक्षात्कार में विभा ने बताया। चित्र
1
“जहाँ एक तरफ विश्व भारती शांतिनिकेतन का मनमोहक शांत वातावरण वही दिल्ली मानव का मशीनीकरणात्मक व्यवहार लोग रोबोट की तरह है। सुबह से रात तक काम करते ही रहते है। व्यस्तता जीवन पर हावी हो गयी है, निरन्तर कार्यरत लोगों को लगता है कि मनुष्य अपने अलावा किसी और विषय पर विचार-विमर्श करना ही नही चाहता।“Galhotra. (2021). दिल्ली
के लोगों
की जीवन-शैली
से विभा
को प्रेरणा
मिली।
जो इनकी
एकल कला प्रदर्शनी
‘एब्सुर-सिटी-पिटी-डिटी’
में देखने
को मिलता
है। इनकी
कलाकृतियों
में अनुसंधान
की प्रक्रिया
पर मुख्य
रूप से कार्य
किया
गया है तथा कलात्मकता
को मौलिक
रूप प्रदान
करते
हुए दृश्य-चित्रण
किया।
माध्यम
में रंगों
के स्थान
पर घुंघरूओं
को अभिव्यक्ति
का साधक
मानकर
रचना
की। विभा
की पारिवारिक
पृष्ठभूमि
कलाक्षेत्र
से संबंधित
नही थी। जिसके
फलस्वरूप
श्विभा
के पिता
ने उन्हें
अत्यधिक
सिमित
छूट दी थी। उनके
पिता
को इस बात का डर लगा रहता
था, कि विभा
झोलाछाप
कलाकार
(धनमुक्त
कलाकार)
की श्रेणी
में ना गिनी
जाये।Singh (2019) 2. गल्होत्रा की कलाकृतियों का विश्लेषण विभा कार्य के विषय में कहती है, कि “मुझे ऐसी कलाकृतियों की रचना करने में दिलचस्पी है, जो किसी समाज, वर्ग व लोगों के सामने आने वालें आवश्यक मुद्दों को उजागर करके बदलाव ला सके।“Vinni (2018) वर्ष 2006 से विभा की अनुरंजनाकृतियों में घुंघरूओं के पदार्पण से मुख्य परिवर्तन आया । इससे पहले 2004 में भारत से बाहर की रेसिडेन्सी में कार्य करने का अवसर भी प्राप्त हुआ जहां पर विभा ने अपनी शैली में भारतीय अस्मिता एवं चित्र
2
संस्कृतिक मूल्यों को प्रकाशवान किया। घुंघरूओं के विषय में विभा का कहना है, “मैं अपने कार्य मे बीज का प्रयोग करती थी। और घुंघरू की आकृति सम्भवतः बीज जैसी ही दिखती है। घुंघरू भारत के पारम्परिक पहनावें को दर्शाता है। भगवान शिव घुंघरूओं को तांडव नृत्य के लिए प्रयोग करते थे। घुंघरू नृत्य का साधक यंत्र है तथा महिलाओं की उपस्थिति को भी दर्शाता है।“Lux art Review (2017) वर्ष 2006 में ‘मधुमखी का छता’ चित्र 2 नामक कलाकृति को सेन जोश म्यूजियम ऑफ़ आर्ट, कैलिफोर्निया, अमेरिका में प्रदर्शित हुआ। जिसमें लगभग 8000 से अधिक घुघरूओं का प्रयोग करके बनाया गया है। इस कलाकृति में छते को जैविक रूप में दर्शाया गया है। जो पारम्परिक रूप से शास्त्रीय नर्तकियों द्वारा ‘पायल’ के साथ पहना जाता था। घंटिया भारत की पारम्परिक आस्थाओं का प्रतिनिधित्व करती है। जबकि छत्ता महानगरीय साख की प्रभुत्वता को प्रज्वल्लित करता है। कलाकार की दृष्टि से आज के परिदृश्य मधुमक्खी के छते जैसे प्रतीत होते है। वहीं अन्य कलाकृतियों में वर्ष 2010 में निर्मित नयी पौध चित्र 3लोहे की बन्दूकनुमा आकार के सांचों में मिट्टी डालकर उसमें दूब के पौधे उगाये गये है। इस कलाकृति में कलाकर औचित्य वैश्विक ताप की वृद्धि को संकेत करना है। वर्तमान में वैश्विक तापमान जिस गति से बढ़ रहा है। मानव जाति के लिए इससे अधिक घातक आतंकवाद और कुछ हो ही नही सकता। चित्र 3
जैक शेनमेन कलाविथिका (वर्ष 2011) में प्रदर्शित “घूँघट” विभा की चुनिन्दा कलाकृतियों में से एक है। कलाकृति का वास्तविक सत्य भारत के पारम्परिक नारीत्व को विशेष रूप प्रदान करना है। वस्तुतः सहृदय कलाकार किसी लिंग विशेष का प्रतिनिधित्व नही करती है, Viveros and christian (2011) किन्तु अपेक्षाकृत पुरूषत्व कलाकृतियों में कम है। चूँकी प्रकृति को स्त्रीत्व रुप में ही मानते है, तो स्पष्ट रूप से कलाकृतियों में उपरोक्त तथ्य संभव है। कलाकार औपचारिकता से बचने का सर्वथा प्रयत्न करता है। विभा की रचनाऐं वैश्विक, सामाजिक, आर्थिक घटको को दृश्यमान करती है।रचनाओं में वैचारिक अन्वेषण की आपूर्ति हेतू पूर्ण शोधार्थक प्रबरती के साथ वास्तविक तथ्यों को उजागर किया है। जिससे परम्परा और अभिव्यक्ति के मध्य परस्पर दीर्घकालीन संबंध स्थापित हुआ है। वर्ष 2011 में निर्मित श्नया दैत्यश् चित्र 4 एक शिल्प श्रृंखला है। प्रस्तुत शिल्प श्रृंखला में मानव की मशीनों पर निर्भरता को अंकित किया है। शिल्पकार ने नवीन व विशालकाय मशीनों को दैत्य की संज्ञा दी है। Muhammad (2012) चित्र
4
शिल्पों के पृष्ठभूमि का उद्देश्य स्पष्ट है, कि मनुष्यों ने औद्योगिक उद्देश्य की प्राप्ति हेतू प्रकृति को भट्टी मे झोंक दिया। वैश्विक औद्योगिक क्रान्ति जल-जन-जीव, वनस्पति व समस्त पदार्थों को अवैधानिक क्षति पहुँचायी है। इस शिल्प श्रृंखला परवर्ती का नाम ष्अर्थ मूवरष् था, किन्तु बाद में किसी कारणवश बदल दिया गया। दिल्ली की सड़कों पर दौड़ती विशालकाय मशीनों का भी विभा के मन मस्तिष्क पर प्रभाव पड़ा। विभा अपने जीवन को सादगी और विनम्रता प्रदान करने में अग्रसर है। भारत भर में तथा मुख्य रूप से दिल्ली में प्रदूषण पर चिन्ता व्यक्त करते हुए कहती है श्दिल्ली में वायु-प्रदूषण से प्रत्येक नवम्बर व दिसम्बर में सर्वनाश होता है। सरकार राजनिति में व्यस्त रहती है। कुछ लोगों का मत है, कि वर्तमान समय में भारतवासी सांस लेने योग्य हवा से छः प्रतिशत अधिक प्रदूषित हवा में जिन्दा है। और कुछ मर जाते है। Susan (2013) वर्ष 2008 मे निर्मित कलाकृति “न्यू कॉमफ्लेग” चित्र 5जैक शेनमेन कलाविथिका 2011 में प्रदर्शित की गयी। इस विशालकाय 53 फीट के मुद्रित म्युरल (भित्ति चित्र) में दिल्ली अव्यवस्थित घरों व कॉलोनियों के फोटोग्राफ है। दीवार के ठीक आगे मुद्रित हुए पुतले भी खड़े किये गये। पुतलों को उसी प्रकार की मुद्रणयुक्त वर्दी पहनायी गयी। जिस प्रकार की मुख्य दीवार पर है। इस शिल्प में भारतीय शहरी नगर-योजना की व्यवस्था के विरूद्ध नाराजगी दिखायी पड़ती है चित्र
5
चित्र
6
म्यूरल का प्रस्तुतिकरण आकर्षक है। घरों में धूमिल होते पुतले भारत की नगरीय व्यवस्था का प्रतीकात्मक रूप प्रतीत होता है। इसके अतिरिक्त श्अल्टरिंग बूनश् जिसमें तार के बुने हुए झुले को बनाया गया। झूले कि ऊपरी परत पर कांच के टुकड़ो से विश्व मानचित्र अंकित है। इसके साथ ही अन्य आकर्षक कला शिल्प क्रमशः ष्मृत दैत्यष् 2011, मध्य. 2011, ष्ज्ञात और अज्ञात के मध्यष् 2011, बिला वर्ड ट्रेड्स, कॉलोनी कोलेप्स मृत दैत्य में जे0सी0बी0 मशीन के आकार को मृत अवस्था मे अंकित किया है। घुंघरूओं से बनी इस कलाकृति में लयात्मकता और सजीवता सघन मात्रा में मिलती है। हृदय से उठते मनोभाव कलाकृति की प्रशंसा किये बिना नही रह पाते आकार का वास्तविक प्रस्तुतिकरण तथा भावभिव्यक्ति उच्चकोटि की है। शिल्प को देखते ही हम उसी अनुभूति को अनुभव करने लगते है जो शिल्पकार ने रचना के समय की होगी। कलाकार का मुख्य ध्येय ही दर्शक को मंत्रमुग्ध करना है। विभा विषय में कोई परिवर्तन नही करना चाहती वरन् वातावर्णिक परिवर्तन के नये-नये तथ्यों को अन्वेषण करने में तत्परता से कार्यरत है। विभा की कलाकृतियाँ संस्कृति, समाज और भौगोलिक परिवर्तन जैसे विषय पर न केवल भारत तथा समूचे विश्व को पुनर्गठन के विषय पर विचार-विमर्श करने के लिए विवश किया है। प्रदर्शनी कक्ष की छत पर लटकी कलाकृति “कॉलोनी कोलैप्स डिसोर्डर” चित्र 7 मधुमक्खी के छते के समान प्रतीत होती हैं। किन्तु आकार में उतार-चढ़ाव तथा छोटे-बड़ें मकानों की भीड़ नजर आती है। इस रचना का माध्यम भी मुख्य रूप से घुंघरू है। इसमें शहरी कॉलोनियों की छतो पर मधुमक्खी के छते की अव्यवस्था को दर्शाता है। जिस प्रकार मनुष्य वास्तुज्ञान के अभाव में कॉलोनी की संरचना करता है। उसी परिदृश्य को कलाकार ने मधुमक्खी के छते के रूप में दर्शाया है। प्रतिकों- संकेतो, छवियों तथा अध्ययनों के इस जटिल अन्वेषण के माध्यम से गल्होत्रा हमारे समय का एक कालक्रम स्थापित करती है। उपकरणों और प्रक्रियाओं से प्रेरणा प्राप्त कर कार्य की गहन प्रतिबद्धता तथा वैचारिक तर्क के आधार पर कार्य निर्मिति करना ही भविष्य का दर्पण है। चित्र
7
वर्ष 2011 “मध्य” नामक कलाकृति लंबी तथा मोटी रस्सी के आकार में घुंघरू एवं जूट के धागों से निर्मित है। मनुष्य की आंत जैसी दिखने वाली कलाकृति में विभिन्न घुमाव तथा लय दिखायी पड़ती है। इस विषय पर गल्होत्रा कहती है, “मैंने मनुष्य की आंत से प्रेरणा ली है। जब मैं दिल्ली स्थायी रूप से निवास करने लगी तो मुझे विपरीत रोग प्रतिरोधक क्षमता का सामना करना पड़ा, जो मेरी कला में देखने को मिल जाता Gupta (2014) घुंघरू भारतीय संस्कृति में मधुर ध्वनि के लिए जाना जाता है। इसके साथ ही साथ भारतीय शास्त्रीय नृत्य तथा ग्रामीण जीवन को इंगित करता है। अर्थात् कलाकृतियाँ मूक ध्वनि को संकेत करते हुए भारतीय संस्कृति को अव्यवस्थित संरचना से बचने के लिए सुरक्षित व संगठित निर्णय लेने की ओर प्रेरित करती है। अन्य कलाकृतियों में श्ज्ञात व अज्ञात के मध्यश् चित्र 8 में बड़े आकार की मेज है। जिसकी ऊपरी सतह पर जली हुई लकड़ी के कोयले का ग्लोब (मानचित्र) है तथा ठीक सतह के नीचे मधुमक्खी का छता है। जिसमें वैश्विक ताप की अधिकता को चिन्हित किया है, छतो को नगरीय विस्तार के प्रतीकात्मक रूप में प्रदर्शित किया है, मूलतः कलाकृतियां वैचारिक बोध तथा तर्कसंगत दिखलायी पड़ती है। विषय-वस्तु सामान्य है, किन्तु शिल्प रहस्य और प्रश्न चिन्ह उत्पन्न करते है, कि वास्तविक सत्य है क्या? जिसके फलस्वरूप दर्शक की जिज्ञासा कलाकार और उनकी कलाकृतियों को समझने के लिए प्रबल हो जाती है। इसके अतिरिक्त “बीला वर्ड ट्रेंस” जो औसतन बड़ा है। इस कला में घूँघट (Veil) जैसी दिखने वाली घुंघरूओं की एक परत है। जिसमें अंग्रेजी अक्षरों में वैश्विक ताप संकट की ओर संकेतात्मक दिशा-निर्देश दिये गये है। ये सभी अद्वितीय शिल्पाकृतियाँ “जैक शेनमेन कलाविथिका न्यूयोर्क, यू0 एस0 ए0” में उटोपिया ऑफ़ डिफरेंस नामक एकल प्रदर्शनी में प्रदर्शित हुए। न्यूमार्क मे विभा के कला-शिल्पों की विस्तृत सराहना हुयी। चित्र
8
वर्ष
2011 में
निर्मितचित्र
श्रृंखला
’’सेडिमेंट्स
एंड अदर’’ 2013
में एग्जिबिट
320, नई दिल्ली
में एकल प्रदर्शनी
प्रदर्शित
करायी
गयी।
इस प्रदर्शनी
में यमुना
नदी को औद्योगिक
क्रांति
के कारण
हुई क्षति
से अवगत
कराया।
प्रदर्शनी
की दर्शकों
ने भूरी-भूरी
प्रशंसा
की। विभा
ने इन सभी कृतियों
में वैश्विक
औद्योगिकीकरण
का वास्तविक
दर्पण
प्रस्तुत
किया।
सेडिमेंट
(मल) चित्रश्रृंखला
में यमुना
के मलयुक्त
दूषित
पानी
को कैनवास
पर बहाया
गया है। Muoio (2015) चित्र 9पानी के काले
रंग में पानी
शून्य
तथा मल अधिक
प्रतीत
होता
है। यमुना
नदी की इस दुर्दशा
को देखकर
हृदय
खिन्न
हो जाता
है। साथ ही साथ आस-पास की वानस्पतिक
तथा जैविक
परिवर्तन
के साक्ष्य
प्रस्तुत
किये
है। फुल, पत्ती,
जल-जीव आदि पर दूषित
जल से दयनीय
आघात
हुआ है, मानवता
अपने
हर्षोल्लास
के साथ व्यस्त
है। जिसके
फलस्वरूप
प्रकृति
निरंतर
क्षीण
की ओर अग्रसर
है, कई प्रजातियां
हम खो चुके
है। कहीं
ऐसा ना हो कि मनुष्य
भी इतिहास
की परिपाठी
बन जाए।
विभा
की इस चित्र
श्रृंखला
में अत्यंत
संवेदनशील
संदेश
है। चित्र 10
चित्र
11
वर्ष 2015 एब्सुर-सिटी-पिटी-डिटी बहुत ही लोकप्रिय एकल प्रदर्शनी रही। जैक शेनमेन न्यूयार्क में प्रदर्शित इस एकल प्रदर्शनी ने अमेरिका के समाचार पत्रों का सर्वाधिक ध्यान आकर्षित किया। चंडीगढ व अमेरिका के समाचार पत्र ष्द ट्रिब्यूनष् तथा श्द वायरश् ने लेख लिखे। विभा ने इस प्रदर्शनी के माध्यम से भारत की यमुना नदी में तेजी से हो रहे पर्यावरणीय परिवर्तनों पर ध्यान केन्द्रित किया। Habib (2015) द्धवर्तमान समय में यमुना नदी दुनिया की सबसे दूषित नदियों में गिनी जाती है। इस प्रदर्शनी में भी मुख्यतः भारत की प्रसिद्ध नदी यमुना की दुर्दशा का यर्थाथ अंकन है। प्रदर्शनी में श्मजनू का टीलाश् चित्र 12अत्यंत प्रभावशाली कलाकृति है, जो एक टेपेस्ट्री है। मजनू का टीला दिल्ली में स्थित स्थान का नाम है। 2015 में निर्मित शिल्प में घुंघरूओं को वर्ण के स्थान पर प्रयोग किया गया है। कलाकृति में मजनू के टीले को दूषित आभामंडल में दर्शाया गया है। रचना अत्यंत वास्तविक तथा यथार्थ रूप के साथ वैचारिक संवेदना से परिपूर्ण है। मजनू का टीला दिल्ली के प्रसिद्ध स्थानों में से एक है। जो यमुना नदी के तट पर स्थित है। मजनू के टीले पर स्थित इमारतों का प्रतिबिम्ब नदी में अत्यंत सुगम व सौन्दर्यपूर्ण आभा प्रस्तुत करता है। आकार विस्तृत तथा दृढ़ है। रचनाकार की अनुभूति के अनुसार “,aFkz®sikslhu के मुद्दों और मानव स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव के बारे में चल रही अनुसंधान और चिंताओं के बीच प्रदर्शनी की कल्पना की गयी है। हम अपनी कृपालु प्रवत्ति के कारण लगातार अविष्कार करके स्वयं के लिए दयनीय स्थिति पैदा कर रहे है।Sharma (2016) कलाकृति में सामाग्री का घनत्व मजनू के टिले पर खड़ी इमारतों में रहने वाले लोगों के आपसी सम्बन्धो को चित्रित करता है। सम्भवतः इनकी रचनाओं में घनत्व पर विशेष ध्यान आकृष्ट किया है। उसी प्रदर्शनी में ष्बहावष्;सिवूद्ध चित्र 13नामक कृति प्रदर्शित हुयी। यह कृति यमुना नदी से प्राप्त Sediment प्रभावित है। तथा इसकी संरचना कलाकार के प्रिय माध्यम घुघरू से की गयी है। प्रदर्शनी कक्ष के एक कोने से रसती हुई कलाकृति कल्पनाओं के मूक दृश्य का वार्तालाप प्रतीत होती है। यमुना के प्रति अगाध स्नेह और करूणा का कलाकृति से कलात्मक सौन्दर्य प्रकट होता है। घुंघरूओं को विभिन्न रंगों में विभाजित करके रूप व सौन्दर्य के माध्यम से साक्षात् सत्य की अनुभूति को प्रस्तुत किया है। हल्के-गहरे रंगों के घुंघरूओं से कलाकृति में उतार-चढ़ाव उत्पन्न किया है। दीवार के कोने से फिसलती यह कलाकृति दर्शकों का केन्द्र बनी। यमुना के पानी की वास्तविकता का यर्थाथ रूपी तथा मार्मिक रूपांतरण इस कलाकृति में देखते ही बनता है। चित्र
12
चित्र
13
चित्र
14
चित्र
15
प्रदर्शनी में लगी सभी कलाकृतियां सराहना की पात्र है। इनके अतिरिक्त ‘फेरबदल (Altering)’‘365 दिन “मंथन” (10 मिनट का चलचित्र) जो यमुना के पानी की व्यथा व्याख्यायित करता है तथा रेजिन के वर्गाकार, आयताकार डब्बे जैसी आकृति में निहित यमुना के वातावरण में वन्य, जीव, फल आदि को संक्षिप्त आकार में प्रदर्शित किया गया है। चित्र 15 शोध पत्र में प्रस्तुत चित्र समस्त व्यथा को समझने तथा अवलोकन के लिये पर्याप्त है। “तार्किक युग में पागलपन”
([IN] Sunity in the age of Reason)
नामक बहुचर्चित
एकल प्रदर्शनी
का आयोजन
नई दिल्ली
की एक्जिबिट
320 गैलेरी
में कराया
गया।
यह प्रदर्शनी
4000 ई0 स्टेनली
ब्राउन
द्वारा
लिखित
घोषणापत्र
पर आधारित
है। विभा
गलहोत्रा
ने अनुसंधानिक
अभ्यासों
के द्वारा
एंथ्रोपोसीन
के इस युग में जल, पृथ्वी,
अग्नि,
वायु
और अंतरिक्ष
इन पांच
तत्वों
को केन्द्रित
करते
हुए गल्होत्रा
ने घोषणापत्र
को हमारे
वर्तमान
समय के पर्यावरण
संबंधी
चिन्ताओं
को दूर करने
के लिए नियोजित
समाधान
प्रस्तुत
किये
गये है। इन सभी कलाकृतियों
में प्रकृति
के प्रति
मातृत्व
झलकता
है, विभा
कहती
है, प्रत्येक
क्षण
जब हम सांस
लेते
है, तो समस्त
संसार
को अपने
अंदर
खींच
लेते
है। चित्र
16
चित्र
17
जलघड़ी (Com Bustion) अग्नि के तत्वों को घेरने वाली घड़ी यह समय को दर्शाती है। एक बड़े पात्र में जला हुआ तेल है। कलाकृति का औचित्य कम होते प्राकृतिक संसाधनों को इंगित करना है। चित्र 17 सांस से सांस (Breath by Breath) पंचतत्व (five Elelments) आदि कलाकृतियाँ प्रदर्शनी की शोभा बढ़ाती है वर्ष 2016 में आयोजित इस प्रदर्शनी की बहुत सराहना हुई। प्रत्येक कलाकृति का मापदंड प्रकृति के प्रति अनिष्ठ प्रेम है। फरवरी से मार्च तक, 2020 आसमान के उस पार (Beyond the blue) एकल प्रदर्शनी जो “जैक शेनमेन कलाविथिका” न्यूयोर्क में आयोजित की गयी। इस प्रदर्शनी का मुख्य विषय काल्पनिक परिदृश्य को चित्रित करना है। अर्थात् हमारे ग्रह पृथ्वी के लोग मंगल ग्रह पर जीवन की खोज में लगे है सम्भवतः यह निर्धारित है, कि पृथ्वी अब विनाश के दरवाजे पर है। अतः हम पृथ्वी को संतुलित करने की अपेक्षा इसे नष्ट करने में लगे है। इस प्रदर्शनी में शिल्पश्रृंखला मंगल पर जीवन (Life on Mars) विषय पर अपने पारम्परिक माध्यम घुंघरू से वृताकार श्रृंखला मे उकेरित किया है। चित्र 18 साथ ही साथ टूटे हुए कांच के टुकड़े, सीमेंट, भवन के टूटे भाग, जो वर्तमान समय में उपलब्ध है। उन सब को संजोकर और भी कई नवमाध्यमवादी कलाकृतियां बनायी। आंरभ से वर्तमान तक विभा का प्रकृति के साथ करूणामय सम्बन्ध रहा। विभा ने आधुनिक जीवनयापन, जलवायु संकट तथा वर्तमान मानसिक प्रवृत्ति के कई वास्तविक उलझन पैदा करने वाले प्रश्न खड़े किये है। जिसका उत्तर हम सबको प्रकृति या ईश्वर को देना है। उद्धृत कलाकृतियों के अतिरिक्त ‘एब्सेंस प्रेजेंस’, ‘नजफगढ़’ वर्क इन प्रोसेस’, ‘असुविधा के लिए खेद’, आदि कलाकृतियां सराहनीय है। साथ ही साथ कुछ परियोजन शिल्प भी किया है। जैसे- ब्लैक क्लाउड प्रोजेक्ट’, ‘मेरी कहानी’, ‘आंखो की जुबानी’,’ गार्डन ऑफ़ ड्रीम्स’, रिबर्थ डे’ आदि। विभा की प्रसिद्धि देश-विदेश तक अपनी नवमाध्यमवादी कला तथा सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में है। चित्र
18
चित्र
19
3. शोध अध्ययन का महत्व शोध
पत्र
में प्रत्येक
बिन्दुओं
पर ध्यान
देते
हुए उनके
वास्तविक
महत्व
के तथ्यों
पर विशेष
ध्यान
दिया
गया है। अतः कलाकार
विभा
गल्होत्रा
का प्रकृति
के विघटन
के प्रति
अत्यन्त
संवेदनशीलता
की व्याख्या
की गयी है।
शोध पत्र
में विदित
अनेक
प्राकृतिक
आपदाऐं
मनुष्य
जाति
की देन है यदि प्रकृति
को मनुष्य
के द्वारा
इसी प्रकार
क्षति
पहुंचती
रही तो शीघ्र
ही मानव
अपने
निजी
लाभ के कारण
सम्पूर्ण
मानव
जति को कठिनाइयों
में डाल सकता
है। विभा
की कलाकृतियों
में दिल्ली
के बढ़ते
प्रदूषण
एवं मजनु
का टीला
स्थित
भवनों
की यमुना
नदी पर पड़ी छाया
की प्रदूषित
आभा से तत्कालीन
स्थिति
के प्रमाण
प्राप्त
होते
है। कलाकार
की प्रत्येक
कलाकृति
में प्राकृति
की दयनीय
स्थिति
एवं वैश्विक
ताप वृद्धि
पर चिंता
जताई
है जो वर्तमान
के मुद्दों
में सर्वाधिक
महत्वपूर्ण
है। शोध पत्र
का महत्व
प्रकृति
की दुखद
स्थिति
के साथ-साथ कलाकारों
की इसके
प्रति
संवेदनशीलता
का अध्ययन
तथा वर्तमान
में कलाकार
सामाजिक
एवं पर्यावर्णिक
सुधार
की गतिविधियों
में भागीदारी
का अवलोकन
है। 4. शोध अध्ययन का उद्देश्य प्रस्तुत
शोध पत्र
का उद्देश्य
सम्पूर्ण
मानव
जाति
को सचेत
करना
है। वैश्विक
ताप वृद्धि
के भयावह
एवं दुष्परिणामों
को समय रहते
समझने
की सम्पूर्ण
मानव
जाति
से प्रार्थना
है। मुख्य
रूप से विभा
दिल्ली
के विषय
में आगाह
करती
है कि यमुना
के दयनीय
स्थिति
का कारण
कहीं
न कहीं
दिल्लीवासी
ही है। जिन्होंने
अव्यवस्थित
ढंग से दिल्ली
की संरचना
की, जिससे
यमुना
नदी की शुद्ध
धारा
दूषित
हो गयी।
केवल
नदी ही नहीं
अपितु
दिल्ली
के अन्दर
आधुनिक
श्रब्ठ
मशीनों
के द्वारा
नित-प्रतिदिन
होते
अतिक्रमण
को भी दर्शाया
है। शोध का उद्देश्य
यह भी है कि विभा
अपनी
सृजनशीलता
के लिए किसी
भी विशेष
माध्यम
के प्रति
बाध्य
नहीं
है, उनकी
नवमाध्यम
वादी
शैली
के कारण
वर्तमान
में इनकी
अलग पहचान
बनी हुई है। विभा
की घुंघरुओ
से बनी कलाकृतियां
इनकी
विशेषज्ञता
का प्रमाण
है। साथ-ही साथ कलाकृतियों
के अन्तर्निहित
प्रत्यवादी
विचारधारा
पर प्रकाश
डालना
भी इस पत्र
के उद्देश्यों
में से एक है। 5. सम्बन्धित साहित्य सर्वेक्षण पुस्तकें Exploring the invisible: Art,
Science, and the Spiritual. Lynn gamwell, Princeton University Press, 17 March,
2020 प्रस्तुत
पुस्तक
में मुख्य
रूप से विज्ञान
कला एवं आत्मीयता
के अन्तःसम्बन्ध
के विषय
में चर्चा
की गयी पुस्तक
के प्रथम
अध्याय
में ,aFzkksikslhu व वैश्विक
ताप वृद्धि
के संदर्भ
में अनेक
तथ्य
प्रस्तुत
किये
गये।
जिसमें
विभा
गल्होत्रा
के सराहनीय
कार्यों
एवं कलाकार
के रूप इस वैश्विक
संकट
में विभा
के सामाजिक
योगदान
की प्रशंसा
की है। जिसमें
’मंथन’
एवं
’ब्रीथ-बाई-ब्रीथ’
जैसी
कलाकृतियों
का विश्लेषण
किया
गया है। अतः पुस्तक
में कलाकार
की वैज्ञानिक
सोच के साथ-साथ नव-माध्यमवादी
अवधारणा
का भी स्वरूप
परिलक्षित
होता
है। जिसके
फलस्वरूप
कलाकृतियाँ
अत्यंत
प्रभावशाली
एवं आकर्षण
का केन्द्र
बिन्दु
प्रतीत
होती
है। Intersections of contemporary
Art, Anthropology and Art history in South Asia: Decoding visual worlds.
Sasanka, Perera Pathak Suvanka Brera odev pathak, pelgrare macmillan, 2017 इस
ई-पुस्तक
के प्रारम्भिक
भाग में विभा
द्वारा
एंथ्रोपोसिन
के मुद्दों
पर प्रकाश
डाला
गया है। साथ-ही-साथ दिल्ली
में निरन्तर
बढ़ते
प्रदुषण
के प्रति
चिन्ता
जताई
है। इस पुस्तक
में विभा
की ब्रीथ
बाई ब्रीथ
नामक
परफोर्मेन्स
कलाकृति
की प्रति
प्रकाशित
की गयी है। जिसमें
दिल्ली
स्थित
राष्ट्रीय
राजमार्ग
-1 के किनारे
पर एकत्रित
कचरे
के ढुए के पास अपनी
कृतज्ञता
का प्रदर्शन
कर रही है। इस पुस्तक
में पर्यावरण
प्रदूषण
के सम्पूर्ण
दुष्परिणामों
की व्याख्या
तथा इससे
निवारण
के ऊपाय
भी सुझाए
है। परिणामस्वरूप
पुस्तक
में विभा
की कलाकृतियों
को विशेष
स्थान
दिया
गया है। The word is Art: The global use
of Language in contemporary And Art Micheal petry, thones and hudson, 17 March,
2018 इस बहुचर्चित पुस्तक में विभिन्न देशों के नवमाध्यम वादी कलाकारों की सूची बनायी गयी है। जिसमें विभा गल्होत्रा का नाम भी सम्मिलित है। उक्त पुस्तक में विभा की धुंघरूओं से बनी कलाकृतियों को विशेष महत्व दिया गया है। मजनू का टीला, फेरबदल एवं बीहीव जैसी कलाकृतियों पर अध्ययन प्रस्तुत किया है। इस अध्ययन में कलाकार की सम्पूर्ण बुद्धिजीवी एवं वैज्ञानिक विचारधारा को मुख्य रूप से चिन्हित किया गया है। विभा की परिवर्तनवादी प्रवृत्ति ही इनको समकालीन कलाकारों से भिन्न बनाती है। जर्नल
(पत्रिकाओं)
एवं
अन्य
लेख Slime
¼कीचड़+½,
Esther
leslie, Matter: Journal of New Materialistic Research, University of London,
Vol n. - 2, 2021 प्रस्तुत
जर्नल
में कीचड़
alime नामक
लेख प्रकाशित
किया
है। जिसमे
लेखक
‘‘इश्थर
लैश्ली‘‘
बेस्ट
ऑफ वेस्ट
की संज्ञा
देते
हुए समूचे
विश्व
में बढ़ती
नव सामग्रीवादी
विचारधारा
को चिन्हित
किया
है। साथ-ही-साथ विश्व
के अनेक
कलाकारों
की व्याख्या
की, जो मुख्य
रूप से इस नवीन
माध्यमवादी
अवधारणा
से प्रेरित
है। Troubling the waters of
Neutrality: ECO Arts as an Identity Proposition, Ila sheren, Unversity af
California press, Vol.- 47, Issue-2, 21 June 2020 प्रस्तुत लेख में यमुना नदी की दयनीय स्थिति का वर्णन तथा आस्था के नाम पर भारतीय नदियों की वर्तमान स्थिति की चर्चा भी की है। विभा की रचना मंथन (चलचित्र संस्थापन) में यमुना नदी की क्षण-प्रतिक्षण क्षतिवृद्धि को वास्तविकता प्रदान की है। नदी में पानी की अपेक्षा अत्यन्त काला एवं वीभत्स द्रव्य जलप्रवाह दिखायी देता है। जो अत्यंत निन्दनीय है। विभिन्न
प्रदर्शनियों
के समीक्षात्मक
लेख Wild
tales’ cosmic waters, Radhika Subramaniam, Jack Shainman gallery, New York, 29
october, 2015, (ABSŪR-CITY-PITY-DITY) जिसके अंतर्गत यमुना नदी की विकट स्थिति का अंकन और इसी संस्करण के ’शर्लेन खान’ द्वारा लिखित लेख Ecalogies of the visual, Economics of Banifit में भी में यमुना नदी के विषय में लिखा है। इनके अतिरिक्त ’निकोला ट्रेजी’ ने Where should the birds fly After the last sky में ऐसे मुद्दों पर चर्चा की एक अन्य लेखों में Art] Ecalogy and A political consciousness में विभा की प्रिया पाल से किये गये वार्तालाप का एक अंश प्रकाशित किया गया था, जिसमें उन्होंने अपनी कला यात्रा एवं प्रेरणार्थक साक्ष्यों को प्रस्तुत किया है। इन तथ्यों से यह स्पष्ट होता है कि जैक शैनमन कलादीर्घा ने विभा की अनुरंजनाकृतियों को विशेष आयाम प्रदान किया है। Beyond
The Blue, एवं [In] Sanity in The Age of Reason नामक
एकल प्रदर्शनी
पर अनेक
समीक्षकों द्वारा
लेख प्रकाशित
किए गए। जिसमे
एक तथ्य
समरूपित
है कि विभा
प्रकृति
की रक्षा
का प्रयत्न
अपनी
कलाकृतियों
के माध्यम
से सफलपूर्वक
कर रही है। 6. उपसंहार कलाकार की कलात्मक अनुभूति अत्यंत मार्मिक व संवेदनशील है। प्राकृतिक धरोहर के दिन प्रतिदिन होते विघटन के प्रति शिल्पि ने अत्यधिक चिन्तन किया है। मानवीय मूल तथा मानुषी दायित्वों के अकस्मात् नष्ट होते विषय पर प्रतिक्रिया जतायी है। प्राकृतिक स्त्रोतों के एकाधिकारों को नगरीय व्यवस्था ने अत्यधिक क्षति पहुँचायी, जिसके फलस्वरूप वैश्विक महामारियों ने मनुष्य जाति को वास्तविकता से साक्षात्कार कराया। प्रत्येक कलाकार अभिव्यक्ति के लिए माध्यम और विषयवस्तु से बाध्य नही होता। इस विषय पर विभा कहती है, कि “मेरे लिए माध्यम कलाकृति के विषय-वस्तु पर निर्भर होता है। यदि विचार बोध अत्यंत शून्य है, तो कोई भी माध्यम प्रयोग हो सकता है, किन्तु विषय से अछुता ना हो।“ Subramanyam, C. (2010). वैचारिक पक्ष शून्य होने से वैश्विक संकट का भय मंडराता रहता है। जिसके फलस्वरूप हम अन्त की दिशा में अग्रसर हो जाते है, इतिहास इन तथ्यों का साक्षी है। अतः समय रहते परिस्थितियों को संभाला ना गया तो ये सभ्यता भी इतिहास बनने में अधिक समय नही लेगी।. CONFLICT OF INTERESTS None . ACKNOWLEDGMENTS None . REFERENCES Gupta, M. (2014). Asian Artist Use A Snake And A Magic Carpet To Bind Art. Hindustan times. Habib, S. (2015). Dredging A Dirty River For Art. New York : City Life. Jaywardhane, M. (2017). When the of life nears zero time. Exhibit-30, 03. Lux art Review. (2017). Idendity of art. lux art insititute. california: Lux art insitute. Muhammad, s. (2012). Vibha Galhotra on her latest work. Muoio, A. (2015). Making art amidst the death of an immortal river. New york: The Wire. Mago, p. n. (2015). indian comtemporary art: A perspactive. New delhi: National Book Trust. Nature morte. (2019). Nature morte. Paul cooper gallery. (2020). A conversation with vibha galhotra Sharma, M. (2017). Ways of seeing. New Delhi. Sharma, S. (2016). Don't write off the Yamuna yet. chandigarh : the tribune . Singh, M. (2019). Artist extra ordinary. Spactram. Subramanyam, C. (2010). Masters strokes. New Delhi : The india today group. Susan, C. (2013). Hidden in plain sight. Sculpture magzine, 34. Vibha galhotra. (2021). vibha galhotra work. Vibha Galhotra. (2019). vibha galhotra intrview with nonika singh:. (M. Singh, Interviewer) youtube. Vinni, M. (2018). Straight Talk. SCIART magazine, 15. Viveros, f., & christian. (2011). Stan Douglas And Vibha Galhotra. Sewage Muck Meet Disco Jack Shainman Art Review.
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